जवाहर लाल नेहरू के विचारों के अतिरिक्त देश
में अन्य प्रगतिशील विचारधारा, बुद्धिजीवियों को पैदा करने व उसके विकास
में जेएनयू जैसे शिक्षण संस्थान का बहुत योगदान है । मार्क्सवादियों का गढ़
कहलानेवाला, पूरे भारत की संस्कृति को अपने छोटे से परिसर
में समेटा यह संस्थान अपने स्थापना काल से आज तक अपने कर्तव्य को बिना जातिगत या
धार्मिक पक्षपात के काफी दृढ़ता पूर्वक अंजाम दिया है । कट्टरपंथियों की आँखों में
यह हमेशा से खटकता रहा है यही कारण है कि आज से पूर्व ही आरएसएस के मुखपत्र
पंच्जन्य द्वारा इसे देशद्रोहियों का अड्डा तक बता दिया गया ।[1]
क्योंकि दोनों की विचारधाराओं में काफी अंतर है । अक्तूबर 2015 से ही आज तक लगातार
मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार एवं यूजीसी द्वारा
एम.फिल व पीएच.डी शोधार्थियों के शोधवृत्ति 5000, 8000 को
खत्म कर शिक्षा के व्यवसायिकरण हेतु डबल्यू.टी.ओ के हाथों बेचे जाने के खिलाफ पूरे
देश सहित इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को छोडकर, वामपंथी-अंबेडकरवादी संगठनों के हजारों छात्र-छात्राएँ
इस कंपकपाती- नस्तर की तरह चुभती ठंडी में भी दिन-रात खुले आसमान के नीचे रहकर विरोध
कर रहे हैं । हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की आत्महत्या में
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की संलिप्तता व शिक्षा में जाति के आधार पर भेदभाव
किए जाने के खिलाफ भी इन छात्र संगठनों ने खुलकर विरोध किया था । देश में शैक्षणिक
स्थिति को सुदृढ़ करने के प्रति चिंतनशील, सत्तापक्ष या
विपक्ष की परवाह किए बिना अन्याय के खिलाफ लड़ने का जज्बा रखने वाले ऐसे जेएनयू के
छात्रों पर पूरे देश को गर्व की अनुभूति होती है । लेकिन 9 फरवरी 2015 की रात को
सांस्कृतिक संध्या के आयोजन के नाम पर संसद हमले के दोषी अफजल गुरु के फांसी लगाने
की तीसरी वर्षी पर हैरतअंगेज़ करनेवाले “कश्मीर की आजादी,
भारत की बर्बादी” जैसे देश विरोधी नारे लगाया जाना बहुत ही दुखद है । इन नारों को
स्थानीय छात्रों द्वारा रेकॉर्ड की गयी विडियो में स्पष्ट सुना जा सकता है ।[2] इस
विडियो में जो कुछ भी देखा-सुना जा रहा है वह वास्तव में भारत के एक नागरिक होने
के नाते हमारे लिए एक शर्मनाक घटना है । इस कार्यक्रम में संलिप्त दोषियों की
पहचान कर भारत में रहते हुए भी देश की अखंडता के खिलाफ बोलने के लिए इनपर उचित कारवाही
किया जाना चाहिए । लेकिन इस घटना के विडियो में नारेबाजी करनेवाले प्रदर्शनकारियों
की मानसिकता को भी समझने की आवश्यकता है ।
विडियो
में स्पष्ट सुनाई पड़नेवाले नारों “गो इंडिया गो बैक” कश्मीर की आजादी, भारत की
बर्बादी जैसे नारों से यह साफ हो जाता है कि नारेबाजी करनेवाले जेएनयू के ये सभी
सम्मिलित छात्र “जम्मू कश्मीर लिबरेसन फ्रंट” जैसे संगठनों से संबन्धित छात्र कार्यकर्ता
हैं, जो पिछले 6 दसक से भी अधिक समय से कश्मीर मुद्दे को
लेकर भारत व पाकिस्तान के आपसी किच-किच से तंग आकर या तो भारतीय कब्जे से मुक्त
होकर स्वतंत्र कश्मीर बनाना चाहते हैं या अब पिछले 2 वर्षों के राजनीति से त्रस्त
होकर मुस्लिम बहुल क्षेत्र पाकिस्तान के साथ जाना चाहते हैं । केंद्र में स्थापित
काँग्रेस से लेकर वर्तमान बीजेपी की सरकार द्वारा कश्मीर मुद्दे को लेकर कोई ठोस
कदम उठा न पाने की स्थिति में यह असंतोष दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है । स्वतंत्र
कश्मीर का ख्वाब देखनेवाले जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के संस्थापक सदस्यों में से
एक मक़बूल भट्ट की विचारधारा व संसद हमले के मास्टर माइंड अफजल गुरु की फांसी के
बाद गुप्त रूप से यह काफी तेजी से फैल रहा है । हालांकि इसकी शुरुवात 1991-92 में
ही हो गयी थी जब स्वतंत्र कश्मीर की मांग करने वाले कश्मीर के मुस्लिम
कट्टरपंथियों ने भारत के साथ रहने की इच्छा जतानेवाले वहाँ के मूल निवासियों में
से एक कश्मीरी पंडितों जो कुल जनसंख्या की 4 प्रतिशत थे, को
कश्मीर से खदेड़कर भगा दिया । स्वतंत्र कश्मीर का ख्वाब देखनेवाले अफजल गुरु की
फांसी के बाद गुप्त रूप से भारत विरोधी माहोल बन रहा है । जिसकी एक छोटी सी झलक है
9 फरवरी की घटना ।
पिछले
2 महीने से शोधवृत्ति को लेकर केंद्र सरकार तथा रोहित वेमुला प्रकरण को लेकर अखिल
भारतीय विद्यार्थी परिषद पर निशाना साधने वाले इन वामपंथी अंबेडकरवादी छात्र संगठन
द्वारा सरकार की नाक में दम करने का ही परिणाम है कि इस मुद्दे को सत्ता समर्थित
न्यूज़ चैनल चटखारे लगाकर कुछ से कुछ बोलकर या पूरे देश को दिखा रहे हैं । रोहित
प्रकरण में हुई किरकिरी से क्षुब्ध एबीवीपी भी इस मौके को हाथ से जाने नहीं देना
चाहती । इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इनके दुष्प्रचारों से आगे चलकर
ये हिंदू मुसलमान प्रकरण का रूप न ले ले । कुछ दिनों पूर्व ही जब एम. फिल एवं
पीएच.डी शोधवृत्ति बंद किए जाने के निर्णय के खिलाफ तथा रोहित प्रकरण के खिलाफ दिल्ली
पुलिस के लाठियों व वाटर कैनन का सामना कर रहे थे तो एक भी चैनलवाले वहाँ नहीं
दिखे । हद तो इस बात की है कि एक न्यूज़ चैनलवाले ऐसे देशद्रोही कृत्यों को रोकने
के लिए जेएनयू को बंद करवाने संबंधी प्रस्ताव रख रहे थे । लेकिन इसे बंद करने से
समस्या का समाधान होनेवाला नहीं है । आंदोलन को जितना दबाया जाता है वह उतनी ही
तेज़ी से और विनाशक होती जाती है । अतः देश में ऐसे महोल न बने इसके लिए भारत सरकार
को जल्द से जल्द पाकिस्तान से कश्मीर मुद्दे पर उपयुक्त निर्णय लेने की आवश्यकता
है ताकि वहाँ के स्थानीय सैनिक व आतंकवादियों के साये से मुक्त होकर स्वतंत्र जीवन
यापन कर सके । उनमें असंतोष की भावना को पाटने का यह एक प्रभावी कदम होगा ।