Impartial Voice
Saturday 12 October 2024
Saturday 28 September 2024
भिन्न (Fraction) बताने का एक तरीका यह भी
गणित में किसी संपूर्ण
वस्तु या वस्तुओं के समूह के एक भाग या खंड को दिखाने/दर्शाने के लिए भिन्न का
प्रयोग किया जाता है। एक उदाहरण से भिन्न को हम इस प्रकार समझ सकते हैं - किसी रोटी
को यदि हम दो, तीन या चार हिस्सों में तोड़ते हैं तो इसके टूटे एक भाग को उस रोटी
का भिन्न या हिस्सा या खंड कहते हैं। इसके
दो हिस्से होते हैं, जिसे ‘अंश (Numerator)’ एवं ‘हर (Denominator)’ के नाम से जाना जाता है। ‘अंश’ जहाँ किसी वस्तु के छायांकित भाग को
दिखाता है, वहीं ‘हर’ उस वस्तु के कुल खंड या हिस्से को। किसी भी वस्तु को बराबर
बराबर भागों में बांटने के लिए भिन्न की अवधारणा का प्रयोग किया जाता है।
इस
अवधारणा का अनुप्रयोग हमारे दैनिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। यही कारण है कि कक्षा
दो से ही बच्चों को गणित विषय के अंतर्गत इस अवधारणा को समझने एवं आगे के कक्षाओं
में इसे जोड़ने, घटाने, गुणा, भाग की संक्रिया के साथ जोड़कर सिखाई जाती है। सामान्यतः गणित पढ़ाने वाले शिक्षक ELPS पद्धति
से बच्चों को इस अवधारणा से परिचित नहीं कराते हैं, जिस कारण
भिन्न की अवधारणा समझ पाने से अधिकांश बच्चे वंचित रह जाते हैं। यही कारण है कि भिन्न से
संबंधित जोड़ने, घटाने, गुणा, भाग करने की संक्रिया तो बच्चे कर लेते हैं लेकिन उस भिन्न
के वास्तविक मायने को समझ पाने से वंचित रह जाते हैं। गलती यहाँ बच्चों की भी नहीं
है, हम शिक्षक भी वास्तव में उसके मायने को नहीं समझ पाते हैं। 1/2, 1/4, 1/5 से
लेकर 1/10 तक तो समझ लेते हैं, लेकिन जब 2/10, 4/10 को चित्र के
माध्यम से समझने या किसी को समझाने की बारी आती है तो इससे कैसे प्रदर्शित करना है?
समझ नहीं पाते। जो बच्चे थोड़ा बहुत इससे संबंधित समझ रखते हैं वह जाने अनजाने कर
लेते हैं। लेकिन उन्होंने ऐसा ही क्यों किया जब पूछा जाता है तो वे भी बता नहीं
पाते हैं। ऐसा ही एक वाकया शासकीय प्राथमिक शाला, सोनपुरी (संकुल – सोनपुरी) के कक्षा 5वीं के बच्चों
के साथ Worksheet द्वारा भिन्न के सवाल पर कार्य करने के
दौरान हुआ। इस दौरान 1/2 भाग को दो बच्चों ने कुछ अलग तरीके से छायांकित किया।
शाला के कक्षा पांचवीं के बच्चे FLN स्तर प्राप्त हैं या नहीं, को जानने के लिए एक कार्य-पत्रक (worksheet) दिया गया, जिनमें FLN एवं कक्षा स्तर के सवाल थे। कुल 26 बच्चे इस अध्ययन में शामिल हुए। कार्यपत्रक में एक सवाल भिन्न से संबंधित भी था। सवाल था - नीचे दिए गए ग्रिड के 1/2 भाग को पीले रंग से, एवं 1/2 भाग को नीले रंग से दिखाना था। चित्र में हम देख सकते हैं कि शाला के दो बच्चों ने ½ भाग को दिखाने के लिए हमारे द्वारा छायांकित करने संबंधी बताये गए पारंपरिक तरीके से थोड़ा भिन्न (अलग) तरीके से छायांकित किया है।
दोनों ही बच्चों ने इस 16
ब्लॉक्स वाली ग्रीड के 8 ब्लॉक को पीले रंग से और बाकी के 8 ब्लॉक को नीले रंग से रंगा है। दोनों बच्चों द्वारा द्वारा दिए गए उत्तर
को यदि हम तार्किक तरीके से विष्लेषित करें तो हम पाते हैं कि इनके द्वारा दिए गए
उत्तर बिल्कुल सही हैं, क्योंकि यहाँ नीला रंग ½ भाग को और
पीला रंग बाकी के ½ भाग को represent कर
रहा है।
बच्चों
द्वारा दिए गए इस उत्तर को जब गणित विशेषज्ञों को दिखाया गया तो उन्होंने इस practice को एक बेहतर practice माना। क्योंकि कोई बच्चा यदि 1/2
भाग को इस तरीके से बता पा रहा है, तो इसका मतलब है कि शिक्षक बच्चों को 1/2 के
मायने को पारंपरिक तरीके के साथ साथ अलग तरीके से भी बता रहे हैं। बच्चों के इस
उत्तर के संबंध में जब शाला के गणित के शिक्षक से बात हुई तो उन्होंने बताया कि इस
तरीके से उन्होंने अपने बच्चों को कभी नहीं बताया। ये दोनों बच्चे किसी निजी
कोचिंग संस्थान से भी संबंधित नहीं थे। इससे निष्कर्ष निकाला गया कि बच्चों ने
जाने-अनजाने भिन्न को प्रदर्शित करने के एक अलग तरीके का पता लगाया।
भिन्न
को समझने/समझाने के लिए इस तरीके का भी इस्तेमाल हम सभी शिक्षक अपनी अपनी कक्षा
में कर सकते हैं।
Saturday 3 August 2024
BRC बेमेतरा में 5 दिवसीय अंगेजी प्रशिक्षण (कीप टॉकिंग) संपन्न
शासकीय प्राथमिक शालाओं
के शिक्षक अंग्रेजी भाषा बोलने में दक्ष हों, ताकि बच्चों
को इसका पर्याप्त लाभ मिल सके, इस बात को ध्यान में रखते हुए
बेमेतरा विकासखंड के शिक्षकों के लिए डाइट बेमेतरा की ओर से दिनांक 29 जुलाई से 2 अगस्त के बीच 5 दिवसीय
अंग्रेजी प्रशिक्षण (कीप टॉकिंग) आयोजित किया गया। विकासखंड के प्राथमिक शाला के
शिक्षकों के लिए यह प्रशिक्षण दो केंद्र डाइट - बेमेतरा एवं बीआरसी - बेमेतरा पर
आयोजित किया गया। बीआरसी बेमेतरा केंद्र पर आयोजित इस प्रशिक्षण में 56 शिक्षकों की सहभागिता रही।
अंग्रेजी
भाषा में सामान्य बातचीत को बढ़ावा देने के उद्देश्य से फाइंड योर ट्विन खेल, गेसिंग गेम, ब्लेंड क्रीचर, पिक
एंड स्पीक, जाऊ ऑफ़ डेथ आदि गतिविधि, बेहिचक
अंग्रेजी बोलने के लिए व्हाटइवर स्पीक नॉन-स्टॉप, अंग्रेजी
भाषा में सांस्कृतिक गतिविधि जैसे दर्जनों रोचक गतिविधियों के माध्यम से 5 दिनों
तक शिक्षकों को लगातार अंग्रेजी बोलने का माहौल दिया गया।
प्रशिक्षण
के दौरान इस बात पर जोर दिया गया कि बच्चों को अंग्रेजी भाषा को समझ के साथ सुनने
और अपने विचार को अंग्रेजी भाषा में ही सोचकर बोलने में दक्ष करने के लिए अंग्रेजी
भाषा शिक्षण के दौरान उनके साथ अंग्रेजी भाषा में ही लगातार बातचीत अपेक्षित है। किसी
प्रसंग का हिंदी अनुवाद कर बताने को न्यूनतम स्थान दिया जाना चाहिए. कोड मिक्सिंग
(किसी भाषा में हो रही बातचीत में कुछ अंग्रेज़ी के शब्द शामिल करना) से कोड
स्विचिंग (बातचीत में पूर्णतः अंग्रेजी शब्द शामिल करना) की ओर बढ़ने की बात की गई.
मास्टर ट्रेनर के रूप में उपस्थित शासकीय प्राथमिक शाला, मांझीडेरा (बेरला
विकासखंड) के शिक्षक दुर्गाशंकर पटेल एवं अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन बेमेतरा के साकेत
बिहारी ने प्रशिक्षण के व्यवस्थित संचालन में योगदान दिया. शासकीय प्राथमिक शाला भनसुली के प्रधान पाठक राम सोहागी सिन्हा ने भी प्रशिक्षणार्थियों
को विभिन्न प्रकार के अंग्रेजी शब्दों के उच्चारण करने के नियमों पर विस्तृत चर्चा
कर यह समझ बनाया कि सी का उच्चारण कब ‘स’ और कब ‘क’ होगा. वर्ष 2016-17 के
दौरान उन्होंने अंग्रेजी शब्दों के उच्चारण को लेकर किए गए क्रियात्मक अनुसंधान को
भी प्रस्तुत किया.
कार्यशाला
के पांचवें दिन जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, बेमेतरा
के व्याख्याता श्रद्धा तिवारी, विकासखंड शिक्षा अधिकारी,
बेमेतरा अरुण कुमार खरे, विकासखंड स्त्रोत
समन्वयक, बेमेतरा राजेंद्र कुमार साहू ने भी शिक्षकों का
उत्साहवर्द्धन किया। विकासखंड शिक्षा अधिकारी, बेमेतरा अरुण
कुमार खरे और विकासखंड स्त्रोत समन्वयक, बेमेतरा राजेंद्र
कुमार साहू द्वारा सभी प्रशिक्षणार्थी शिक्षकों को सहभागिता प्रमाण-पत्र भी दिया
गया.
प्रतिभागी शिक्षकों को सहभागिता प्रमाणपत्र देते BEO & BRC बेमेतरा |
Sunday 7 July 2024
दांगी युवा शक्ति द्वारा समाज के प्रतिभाओं को सम्मानित किया गया
दांगी समाज को समाज की
मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयत्नशील एवं प्रतिबद्ध जमुई (बिहार) में जमीनी स्तर
पर कार्यरत सामाजिक संगठन ‘दांगी युवा शक्ति’ द्वारा दिनांक 30 जून 2024
दिन रविवार को ‘सम्राट अशोक प्रतिभा सम्मान सह शिक्षा सेमिनार समारोह -
2024’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में 10वीं एवं 12वीं कक्षा
में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले जमुई जिले के छात्र-छात्राओं को शील्ड, मेडल आदि देकर सम्मानित किया गया। जमुई नगर स्थित द्वारिका विवाह भवन में
आयोजित इस समारोह में जिले के कोने-कोने से आए हज़ारों लोगों ने सहभागिता की।
ज्ञात
हो कि आज से 9 वर्ष पूर्व 2015 में जमुई के कुछ युवाओं ने मिलकर एक स्वप्न देखा था
कि सैकड़ों/हज़ारों वर्ष से पिछड़े समाज के रूप में गिने जाने वाले दांगी जाति एवं
इसके युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए, समाज की मुख्यधारा में
लाने के लिए कुछ सम्मिलित प्रयास किए जाएं। आखिर कब तक हम पिछड़े समाज होने का तमगा
ढोते रहेंगे, अब हमें अपने दांगी समाज को जागृत एवं विकसित
समाज के रूप में स्थापित करना है। उन युवाओं ने इस स्वप्न को साकार करने के लिए
2015 में ‘दांगी युवा शक्ति’ के नाम से एक संगठन बनाया और इसी के बैनर तले कुछ
छोटे-बड़े कार्यक्रम आयोजित करना प्रारंभ किये।
संगठन
का पहला प्रयास था - जमुई नगर स्थित ‘दांगी छात्रावास’ की व्यवस्था को सुधारने का, उसका जीर्णोद्धार करने का. इस बात को ध्यान में रखते हुए कि 10वीं एवं
12वीं कक्षा पास करने के पश्चात दांगी युवा वहाँ रहकर अपना भविष्य संवार रहे होते
हैं, छात्रावास में उनकी मूलभूत आवश्यकता जैसे पेयजल,
शौचालय, स्वच्छ हवादार कमरे, पुस्तकालय आदि पर विशेष रूप से ध्यान देते हुए भवन से लेकर कई प्रकार की
आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध करवाया गया। इसी क्रम में समाज के लोगों को संगठित करने के
लिए वनभोज कार्यक्रम, होली मिलन समारोह का आयोजन संगठन द्वारा लगातार किया जाता
रहा है। जिसमें प्रति वर्ष सैकड़ों की संख्या में दांगी समाज के लोग शामिल होकर, एक
जगह बैठकर एक दूसरे से घुलते-मिलते आपसी मेलजोल बढ़ाते हैं। प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष
रूप से दांगी समाज के लोगों को संगठित होकर रहने का संदेश संगठन द्वारा लगातार
दिया जा रहा है।
इसी
कड़ी में एक कदम आगे बढ़ाते हुए दांगी युवा शक्ति द्वारा वर्ष 2019 से लगातार शिक्षा
के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले विशेष रूप से 10वीं एवं 12वीं कक्षा
में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होने वाले, सरकारी,
गैर सरकारी क्षेत्रों में अपने अथक मेहनत से नौकरी प्राप्त करने
वाले युवा-युवतिओं को सम्मानित कर, उनका हौसला, मान बढ़ाने की शुरुआत की गई। संगठन द्वारा उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने
का हरसंभव लगातार प्रयास किया जा रहा है। युवा प्रतिभाओं को निखरने का पर्याप्त
मौका मिले इसका भी ध्यान रखते हुए शिक्षा सेमिनार को इस सम्मान कार्यक्रम का एक
अनिवार्य हिस्सा बनाया गया। दांगी समाज के ही मोटिवेशनल स्पीकर श्री अनुराग दांगी इस
कार्यक्रम के तहत पिछले 3 साल से लगातार समाज के युवाओं को मार्गदर्शित करने का
कार्य कर रहे हैं। इसी कड़ी में इस वर्ष दांगी युवा शक्ति द्वारा लगातार चौथी बार ‘प्रतिभा
सम्मान समारोह’ का आयोजन किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में पूरे दांगी समाज का
योगदान रहा। संगठन से जुड़े ऊर्जावान कार्यकर्ताओं द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से
दांगी समाज के लोगो से इस नेक कार्य में सहयोग करने की अपील की गई, जिसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला। जमुई जिले में निवासरत दांगी
बंधुओं के साथ-साथ देश के अलग अलग राज्यों में सरकारी, गैर
सरकारी क्षेत्र में अपनी सेवाएं देने वाले सैकड़ों युवाओं ने कार्यक्रम के सफल संचालन/आयोजन
हेतु आर्थिक सहयोग किया।
एक नई
परंपरा के साथ दीप प्रज्वलित करने के स्थान पर वृक्षारोपण कर कार्यक्रम की शुरुआत
की गई। इस शुरुआत के माध्यम से अधिक से अधिक पेड़ लगाने/बचाने का प्रत्यक्ष संदेश
समाज एवं पूरी दुनिया को दिया गया। कार्यक्रम
को आगे बढ़ाते हुए दांगी समाज के लोगों ने शिक्षा एवं संगठन के मजबूती पर अपनी-अपनी
राय रखी। इसके बाद मोटीवेशनल स्पीकर अनुराग दांगी ने जीवन में सफल होने के सूत्रों
से परिचित कराया। अनुराग दांगी ने टाइम मैनेजमेंट स्किल पर युवाओं को जागरूक करते
हुए अनुशासनपूर्ण जीवन जीने के तरीके से परिचित कराया। युवाओं को उन्होंने मोटिवेट
किया कि वर्तमान समय में जीवन में कुछ अच्छा करने के लिए पढ़ाई के साथ-साथ आजीविका
कमाने के लिए अपने अंदर आवश्यक कौशल विकसित करने चाहिए। उचित समय प्रबन्धन द्वारा
ही युवा अपने अंदर ये कौशल विकसित कर सकते हैं। साथ ही युवाओं को यह भी संदेश दिया
कि सरकारी नौकरी प्राप्त करने की दिशा में बढ़ने के साथ-साथ खुद में ऐसे कौशल भी
विकसित करें जो रोजगार प्राप्ति में सहायक हो। मातृभाषा हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी
को भी आत्मसात करने की अपील उन्होंने युवाओं से की ताकि वर्तमान समय के साथ युवा
कदमताल कर सके।
कक्षा
10वीं के उन 20 छात्र-छात्राओं को सील्ड देकर सम्मानित किया गया जिन्होंने दसवीं
बोर्ड परीक्षा को प्रथम दर्जे से पास करने के साथ-साथ 70% से अधिक अंक हासिल किया।
तत्पश्चात कक्षा बारहवीं के उन 20 छात्र-छात्राओं को मेडल देकर सम्मानित किया गया, जिन्होंने 12वीं बोर्ड की परीक्षा को 70% से अधिक अंकों के साथ पास किया।
इसी क्रम में वर्ष 2023-24 में अपने अथक प्रयास से प्रतियोगिता परीक्षा पास करते
हुए सरकारी एवं गैर सरकारी क्षेत्र की सेवाओं में योगदान देने वाले युवाओं को
दांगी गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया।
इस
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में चिनवेरिया ग्राम निवासी राष्ट्रपति से
पुरस्कार प्राप्त श्री अर्जुन मंडल, प्रसिद्ध
चिकित्सक डॉ० संजय मंडल, डॉ० नमिता कुमारी मौजूद थे। साथ ही
इस एक दिवसीय कार्यक्रम में दांगी समाज के श्री रविन्द्र मंडल, श्री सुबोध मंडल, डॉ० रंजीत कुमार, श्री गोपाल मंडल, श्री शतेंद्र मंडल, श्री प्रदीप कुमार, श्री नागेंद्र नाथ, श्री जंग बहादुर सिंह, श्री निरंजन मंडल, श्री बरुण कुमार, श्री अरुण मंडल, श्री उमेश चंद्र मंडल, डॉ धर्मेंद्र मंडल (आयुर्वेदिक चिकित्सा पदाधिकारी), श्री पुरुषोत्तम चंद्रा, श्री कुमार मुकेश, श्री योगेश कुमार, श्री राजीव नयन एवं समाज के सैकड़ों
गणमान्य लोग इस कार्यक्रम का हिस्सा बने।
पूरे
कार्यक्रम को संचालित करने में दांगी युवा शक्ति के संयोजक - अजित कुमार, अध्यक्ष राजेश कुमार राजा, उपाध्यक्ष- अवध बिहारी,
सचिव अरुण मंडल, चंद्रशेखर कुमार, आदित्य कुमार, नवीन कुमार, प्रेम सिंह दांगी, रुपेश कुमार आदि ने योगदान दिया।
Wednesday 26 June 2024
बच्चों में बुनियादी साक्षरता एवं संख्याज्ञान (FLN) की दक्षता लाने में उपयोगी है पुस्तकालय
प्राथमिक स्तर पर भाषा और गणित दो ऐसे विषय हैं जो बच्चों में सम्प्रेषण कौशल (Communication skill) के साथ-साथ समझ के साथ पढ़ना-लिखना (Reading-writing with Understanding), कल्पना करना(Imagination), तर्क करना, विश्लेषण करना, गणितीय संक्रियाओं (संख्या समझ, जोड़ना, घटाना, गुणा-भाग कर पाने का कौशल) का दैनिक जीवन में समुचित रूप से उपयोग करते हुए गणितीय समस्याओं का समाधान करने का कौशल विकसित करता है. इन्हीं कौशल पर सही मायने में बच्चों का भाषाई, बौद्धिक, रचनात्मक विकास निर्भर करता है. व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ यह बच्चों में आलोचनात्मक चिंतन, समस्या समाधान का कौशल आदि गुण विकसित कराने का आधार है. यही कारण है कि अपने देश के नागरिकों को 21वीं शताब्दी के कौशल से लैस कराने के उद्देश्य से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 दस्तावेज में इस बुनियादी कौशल को सभी बच्चे में अनिवार्य रूप से सुनिश्चित करवाने का लक्ष्य रखा गया है.
बच्चों को इन कौशलों (FLN – Foundational Literacy and Numeracy) से लैस करने में कक्षा प्रक्रिया की सर्व प्रमुख भूमिका है, लेकिन हमारी शाला परिसर में कुछ ऐसे भी संसाधन उपलब्ध हैं जिसका उपयोग हम इस हेतु प्रमुखता से कर सकते हैं. बच्चों में ये कौशल विकसित करने में पुस्तकालय या कक्षा का प्रिंटरिच वातावरण काफी मददगार होता है. पुस्तकालय की पुस्तकें, कक्षा का प्रिंटरिच वातावरण, बच्चों को भविष्य के पाठक बनाने की ओर ले जाने का कार्य करती है. यही कारण है 1952 की मुदलीयार आयोग की रिपोर्ट से लेकर 1986 के राष्ट्रीय शिक्षा नीती में विद्यालयों में पुस्तकालय की स्थापना पर ज़ोर दिया गया. राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में पुस्तकालय कालांश के लिए समय निकालने की बात की गई. इसकी महत्ता को देखते हुए 2018 में समग्र शिक्षा अभियान में प्रत्येक शाला में पुस्तकालय के लिए 5,000 से 20,000 रुपये की राशि का प्रावधान किया गया. चूँकि पुस्तकालय एक जरिया है शिक्षा के व्यापक लक्ष्य तक पहुँचने का. इसलिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी बच्चों में पढ़ने एवं संवाद की संस्कृति को बढ़ावा देने की बात करती है.
शालाओं में पुस्तकालय की वर्तमान स्थिति
पुस्तकें केवल पढ़ने और प्रश्नों के उत्तर खोजने भर के लिए नहीं होती, बल्कि वे पढ़कर आनंद लेने, अनजानी-अनदेखी जगहों को चित्रों-शब्दों के माध्यम से देखने, सोचने-समझने, कल्पना करने, तर्क करने, अतीत या भविष्य में सैर करने के मौके देती है. इस दृष्टि से पुस्तकें बच्चों के सीखने के लिए एक महत्वपूर्ण उपयोगी संसाधन है. बच्चों में उपरोक्त भाषाई एवं गणितीय कौशल सुनिश्चित करने के उद्देश्य से समग्र शिक्षा से लेकर अन्य कार्यक्रमों के तहत अनेक प्रकाशन के सैकड़ों पुस्तकें शालाओं को उपलब्ध कराए गए हैं. अलग-अलग संस्थाओं द्वारा पुस्तकालय के पुस्तकों के रख-रखाव के लिए आलमारी से लेकर रैक आदि सुविधाएं उपलब्ध कराई गई है. सर्वसाधन उपलब्ध होने के बावजूद पुस्तकें अलमारी में ही रखी रह जा रही हैं, क्योंकि इनके इस्तेमाल करने को लेकर शाला के शिक्षकों को कोई व्यवस्थित प्रशिक्षण, दिशा-निर्देश नहीं मिल पाता है, जिससे कि पाठ्यपुस्तक से इतर इन पुस्तकों का इस्तेमाल करने के पीछे निहित उद्देश्य क्या हैं? इनका इस्तेमाल बच्चों के भाषाई एवं गणितीय कौशल को बेहतर करने में किस प्रकार किया जाए? इन बिंदुओं पर समझ बना पाना आज भी चुनौती है. परिणामस्वरूप पुस्तकालय तक सभी बच्चों की समुचित पहुँच नहीं हो पाती है. कई शालाओं में सबसे अंतिम कालांश पुस्तकालय के रखे जाते हैं, कुछ शालाएं शनिवार को बैगलेस डे में इसका उपयोग करने की बात करते हैं. लेकिन पुस्तकालय से संबंधित किस-किस प्रकार की गतिविधियां कराई जाए? संबंधी जानकारी के आभाव में शिक्षक की सहभागिता नाममात्र ही होती है. वे बच्चों को मुक्त होकर पढ़ने के लिए छोड़ देते हैं, जिससे बच्चों को यह फ्री रीडिंग की प्रक्रिया उनके चंचल स्वभाव के कारण रुचिकर नहीं लगती। शिक्षक की व्यवस्थित सहभागिता नहीं होने के कारण बच्चे इस प्रक्रिया में रूचि नहीं लेते हैं.
पुस्तकालय की पुस्तकें बुनियादी साक्षरता एवं संख्याज्ञान को प्राप्त कराने में किस प्रकार योगदान देती है?
पुस्तकालय
की पुस्तकें यदि बच्चों को रुचिकर लगती है तो वे उसे पुस्तकालय के रैक से निकालकर
उसे उलट-पलट कर देख रहे होते हैं, उनमें बनी चित्र को
देखने-समझने का प्रयास करते हैं. उनमें बनी चित्र को देखकर वे यदि उसके बारे में
अनुमान लगाकर या अपने पूर्व अनुभव का प्रयोग करते हुए कुछ उसके बारे में मौखिक रूप
से बता पा रहे हैं तो यह एक तरह से समझ के साथ चित्र पठन कर रहे होते हैं. अपनी
मौखिक बातचीत में वे चित्र पर बात करते हुए अपने अनुभव भी जोड़ रहे होते हैं. जो
समझ के साथ लिपि पठन का शुरूआती रूप है. धीरे-धीरे वे अनुमान लगाकर पढ़ने से लेकर
उन शब्दों के बनावट का अवलोकन कर रहे होते हैं, इससे वे
लिखने की ओर भी जा रहे होते हैं. उदाहरण के लिए यदि बच्चों को पुस्तकें पढ़ने का
अनुभव देने के बाद यदि उन्हें कुछ स्वतंत्र रूप से लिखने को कहा जाता है तो बच्चे
पठित कहानी या गद्यांश का उपयोग लेखन में कर पाते हैं.
कमलेश चंद्र जोशी अपने आलेख 'बच्चों के लिखना सीखने में भी सहायक है बरखा पुस्तकमाला की पुस्तकें' (पाठशाला : भीतर और बाहर, मार्च 2024, पृष्ठ 7-10) में इसी बात को दिखाने का प्रयास किया है जिसमें वे दिखाते हैं कि एक शिक्षिका द्वारा बच्चों को दिवाली विषय पर कहानी लिखने को जब दिया गया तो कक्षा 4 की एक बच्ची चांदनी ने जिस तरीके से कहानी को लिखा वह बरखा पुस्तकमाला की कहानी किताब की वाक्य संरचना से मिल रही थी. जबकि इससे पूर्व उन बच्चों को कहानी लिखने का कोई खास पूर्व अभ्यास नहीं कराया गया था. उस बच्ची ने बरखा पुस्तकमाला की कई पुस्तकों को पढ़ने के बाद उसके वाक्य में अपने अनुभव और कल्पना मिलाकर एक बेहतरीन कहानी लिख पाई. इस आलेख में लेखक अप्रत्यक्ष रूप से कहते हैं कि पुस्तकों के समुचित उपयोग से बच्चे स्वतः ही पढ़ने के साथ-साथ लिखना भी सीख जाते हैं. इस लेखन में बच्चों की समझ भी शामिल रहती है.
बच्चों को स्वयं से सीखने के लिए प्रेरित करती हैं पुस्तकालय की पुस्तकें –
पुस्तकालय की पुस्तकों में केवल कविता/कहानियां ही नहीं होती बल्कि देश दुनिया के अलग-अलग लोगों के जीवन के किस्से भी होते हैं. इनसे बच्चे समाज, विज्ञान आदि क्षेत्र की विभिन्न प्रकार के अवधारणाओं से भी परिचित हो पाते हैं. प्राथमिक कक्षा के बाद उच्च प्राथमिक शाला में जब बच्चा प्रवेश करता है तो उसका सामना होता है कई नए नए प्रकार के सामाजिक शब्दावली/अवधारणा से. जैसे - अलग-अलग आधार पर समाज में फैली असमानता, हिंसा, लैंगिक -जातिगत-वर्ग आधारित भेदभाव, नफरत। उनसे अपेक्षा होती है कि इनके कारणों की पड़ताल कर इसके समाधान में अपनी भूमिका निर्धारित करें। इन्हें दो तरीके से सिखाया जा सकता है - उपदेशात्मक तरीके से, बच्चों को संबंधित साहित्य देकर स्वयं से समझ बनाने के अवसर देकर.
दोनों
ही तरीकों के सफल होने की अपनी अपनी शर्त है. हालाँकि बच्चों को स्वयं से उस
समस्या के संबंध में जानने और उसके समाधान के लिए उन्हें सोचने को यदि कहा जाए तो
यह एक बेहतर तरीका होगा। यदि कुछ चुनौती देकर उचित साहित्य सामग्री देकर अपना
निष्कर्ष निकाल पाने के अवसर दिए जाएं तो बच्चे अपने स्तर अनुरूप उस चुनौती को
पूर्ण करने का प्रयास करते हैं. पुस्तकालय के पुस्तकों का उपयोग करते हुए किस
प्रकार इन अवधारणाओं से बच्चों को परिचित कराया जा सकता है इसे अलका
तिवारी के आलेख 'किताबों के साथ चलते-चलते'
(पाठशाला : भीतर और बाहर, मार्च 2024, पृष्ठ 11-20) के माध्यम से
समझा जा सकता है. इस प्रक्रिया में लेखिका पुस्तकालय की पुस्तकों को बच्चों को
अपनी रूचि के अनुरूप चयनित कर पढ़ने व समझ बनाने के पश्चात बच्चों से अपने विचार
साझा करने को कहती। इस क्रम में इस मिथक को भी तोड़ने का प्रयास किया कि रंगविहीन
और शब्दों से भरे पुस्तक अरुचिकर होते हैं. कम चित्रों वाली, या ज्यादा लिखावट वाली पुस्तकों की सामग्री भी रोचक लगती है, यदि उनमें डूबकर पढ़ा जाए. बच्चे स्वयं से पढ़कर यदि उन पलों को साझा करते
हैं जो उनके ह्रदय को छू लेती है तो अपने जीवन में उसके महत्व को समझ पाते हैं, चाहे
वह किसी के होने वाला छुवाछूत, अन्याय, हिंसा हो. वे इसे ख़त्म करने के संभावित उपाय के बारे में भी विचार करना
शुरू करते हैं.
इस तरह हम बच्चों को स्वयं से सीखने के लिए पुस्तकालय की
पुस्तकों का सदुपयोग कर सकते हैं. नवाजतन भी हमें बच्चों को सीखने लिए अधिक से
अधिक चुनौती देने की बात करता है.
क्या कक्षा 01-02 के बच्चे जिन्हें पढ़ना नहीं आता है, उनके लिए पुस्तकालय कालांश उपयोगी है?
पुस्तकालय
कालांश सभी बच्चों के लिए उपयोगी है,
चाहे वह कक्षा 1, 2 के
बच्चे हों या उच्च कक्षाओं के. कक्षा
1 या 2 के बच्चे जिन्हें पढ़ना लिखना नहीं आता वह भी इस कालांश से लाभ लेकर खुद को
पढ़ने-लिखने के कौशल में दक्ष कर सकते हैं. लेकिन इसके लिए शिक्षक के समुचित सहयोग
की आवश्यकता होगी। राजाबाबू ठाकुर लिखित आलेख 'और
पुस्तकालय चल पड़ा : बड़े काम की छोटी सी शुरुआत' में इस बात की झलक मिलती है. वे कई गतिविधियां सुझाते
हैं कक्षा एक एवं दो के बच्चों से सम्बंधित हैं. वे कहते हैं कि - सभी शुरूआती
स्तर के बच्चों को पुस्तक के पाठ से संबंधित चित्र बनवाया जा सकता है. शिक्षक
द्वारा उस पाठ से संबंधित चित्र बनाते हुए बच्चों को उस चित्र के नाम लिखने के लिए
प्रेरित किया जा सकता है. बाल साहित्य से कुछ शब्दों का चुनाव कर उसकी संरचना
(ध्वनि लिपि चिन्ह संबंध) से शुरुआती स्तर के बच्चों को शिक्षक द्वारा पहचान करवाया
जा सकता है. चित्रों को देखकर कहानी का अनुमान लगाने की गतिविधि करा सकते हैं.
पुस्तकालय को जीवंत कैसे बनाएं ?
शाला
के पुस्तकालय को जीवंत बनाने के कई तरीके हो सकते हैं –
1. पुस्तकालय
का विकेन्द्रीकरण (प्रत्येक कक्षा में रीडिंग कॉर्नर) –
सामान्यतः
शाला में पुस्तकें पुस्तकालय के लिए निर्धारित एक स्थान पर रखी जाती है. वह स्थान
अलग कक्ष के आभाव में या तो शाला का कार्यालय होता है, या एक अलग कक्षा-कक्ष। शाला को कार्यालय जहां प्रधानपाठक से लेकर सभी
शिक्षक के बैठने का स्थान निर्धारित होता है, के कारण बच्चे
उसका समुचित उपयोग नहीं कर पाते हैं. यदि अलग से कक्षा कक्ष भी होते हैं तो
सामान्यतः बच्चों को वहां जाने की इजाजत नहीं होती। पुस्तकालय कालांश या बैगलेस डे
के दौरान ही वे पुस्तकालय की पुस्तकों से परिचित हो पाते हैं. सप्ताह में तीन या
चार घंटे तक समय देने से उस अपेक्षित बदलाव में भी समय लगेगा जो हम बच्चों में
देखना चाहते हैं. ऐसे में हमें ऐसी व्यवस्था करनी होगी कि पुस्तकालय तक उनकी पहुँच
सभी समय हो. ऐसे में सभी कक्षाओं में रीडिंग कॉर्नर या पढ़ने-लिखने का कोना बनाना
एक बेहतर विकल्प होगा। उन कोनों में कक्षा के साथ-साथ उन बच्चों के शैक्षिक स्तर
अनुरूप पुस्तकें उपलब्ध हो. पुस्तकें रैक में रखी जा सकती हैं. ज्यादा बेहतर यह
होगा कि उन्हें कक्षा की दीवार में तार की सहायता से लटकाए जाएं। इस दौरान इस बात
का ध्यान रहे कि पुस्तकें इतनी ऊंचाई पर लगाई जाए कि बच्चे आसानी से उन्हें खुद से
निकाल और रख सके. कक्षा की सभी दीवारें अलग-अलग विषय के बाल साहित्य से सजी होनी
चाहिए।
2. पुस्तकालय/रीडिंग
कॉर्नर के रख-रखाव की जिम्मेदारी बच्चों को दी जाए –
सामान्यतः
बच्चों को पुस्तकालय की पुस्तकों से दूर रखने के पीछे का एक प्रमुख कारण निकल कर
आता है - 'बच्चों द्वारा पुस्तकों को फाड़ देना या गुमा
देने का भय'. इस वास्तविकता को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता
है, लेकिन इस समस्या का भी समाधान है. सभी बच्चे पुस्तकों को
फाड़ने में प्रवीण नहीं होते, वे सहेजना भी जानते हैं. ऐसे
बच्चों की पहचान कर हम रीडिंग कॉर्नर के रख-रखाव की जिम्मेदारी निभाना कुछ दिनों
की मेहनत से सिखाया जा सकता है. कक्षा पहली, दूसरी, तीसरी के बच्चों के लिए खुद शिक्षक किताबों की आवक-जावक की जिम्मेदारी ले
सकते हैं. कक्षा चौथी एवं पांचवीं के एक-एक बच्चों को इसके रख-रखाव और आवक-जावक
रजिस्टर की जिम्मेदारी देना चाहिए। राजाबाबू ठाकुर अपने आलेख 'और
पुस्तकालय चल पड़ा : बड़े काम की छोटी सी शुरुआत' में
कहते हैं कि इस कदम से बच्चे पुस्तकालय/रीडिंग कॉर्नर से जुड़ाव महसूस कर सकेंगे, यथासंभव
पुस्तकों को सुरक्षित रखने में योगदान दे रहे होंगे साथ ही उनमें जिम्मेदारी की
भावना आएगी, शिक्षकों के समय की भी बचत होगी। इतना करने के बाद भी यदि किताबें फट
जाती हैं,
या गुम हो जाती हैं तो ये कोई बड़ी बात नहीं होनी चाहिए। उनकी जगह पर
नई पुस्तकें आ जाएगी। यदि वे घर ही ले चले जाते हैं तो कभी न कभी कोई न कोई उससे
लाभान्वित हो रहा होगा। उस बच्चे से बात कर उन्हें वापस भी लाया जा सकता है.
3. शिक्षक
का पाठक होना
पुस्तकालय को जीवंत बनाने की एक अनिवार्य सीढ़ी है - शिक्षक द्वारा पुस्तकालय के पुस्तकों (बाल साहित्य) को समय निकालकर पढ़ना। अलग से समय निकालकर पढ़ने से लाभ यह होगा कि पुस्तकालय कालांश में वे पूर्ण आत्मविश्वास के साथ कार्य कर पाएंगे। किसी भी शाला के सभी शिक्षक यदि स्वयं से पुस्तकालय की पुस्तकों को पढ़ने की प्रवृति जागृत करे तो वह बच्चों में भी इस प्रवृत्ति को जागृत कर सकता है. इससे शाला में पढ़ने की संस्कृति विकसित होगी।
पुस्तकालय की पुस्तकें किस प्रकार के हों?
बच्चे
पुस्तकालय की पुस्तकों से दो स्थिति में सहज रूप से जुड़ते हैं-
·
पुस्तकें यदि उनके शैक्षणिक
स्तर के अनुरूप हों.
बाल
साहित्य में मुख्य रूप से दो विधाओं के माध्यम से बच्चों को संबंधित भाषा
(हिंदी/अंग्रेजी), नई-नई शब्दावलियों से परिचय
कराया जाता है. कहानी की किताब में मुख्यतः दो प्रकार की सामग्री होती है - चित्र
एवं लिखित कहानी। लिपि चिन्ह युक्त कहानी केवल उन्हीं बच्चों को अच्छी/रुचिकर
लगेगी जो ध्वनि-लिपि चिन्ह सम्बद्धता से परिचित हो. राजाबाबू ठाकुर अपने आलेख 'और
पुस्तकालय चल पड़ा : बड़े काम की छोटी सी शुरुआत' में
कहते हैं कि किताबें बच्चों के स्तर अनुरूप होनी चाहिए। शुरूआती स्तर (कक्षा पहली, दूसरी) के बच्चों की किताबों में चित्र बड़े हों, लिखा
कम हो, लिखावट के साइज भी बड़े-बड़े हों. छोटे बच्चों की
किताबों में घटनाओं का दुहराव अधिक हो. उस साहित्य में कल्पनाशीलता और तर्क करने
के पर्याप्त मौके हों. यहां इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि कक्षा स्तर
अनुरूप होने के साथ-साथ किताबें उस कक्षा के बच्चों के स्तर के अनुरूप भी हों.
चूँकि हर कक्षा में विभिन्न स्तर के बच्चे होते हैं, ऐसे में
यदि उन्हें स्तर अनुरूप किताबें पढ़ने को दिया जाए तो वे इस आत्मविश्वास के साथ
पढ़ते हैं कि वे इसे पढ़ सकते हैं. बच्चों के पढ़ने की दक्षता का आकलन करने के पश्चात
यदि उन्हें पढ़ने को दिया जाता है तो यह बेहतर प्रक्रिया होगी। ऐसे में बच्चे
ज्यादा से ज्यादा किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं. बाल साहित्य उपलब्ध कराने
वाले प्रकाशन अलग-अलग स्तर के पुस्तकें उपलब्ध कराती हैं. उदाहरण के लिए पहले स्तर
की पुस्तक वह है जिनमें एक पेज में एक या दो वाक्य में 5 से 10
शब्द होते हैं. दुसरे स्तर की पुस्तक में 2 से
4 वाक्यों में 10-20 शब्द होती हैं.
तीसरे स्तर की पुस्तक में प्रति पेज 5-10 वाक्य जिसमें 20-40
शब्द होते हैं.
·
पुस्तकों में यदि उनके
सन्दर्भ/परिवेश से जुड़ती सामग्री (चित्र, कहानी,
कविता) हो.
राजाबाबू ठाकुर अपने आलेख 'और पुस्तकालय चल पड़ा : बड़े काम की छोटी सी शुरुआत' में कहते हैं कि बच्चों की किताबें (बाल साहित्य) सुन्दर चित्रों से सुसज्जित होना चाहिए। जैसे - उनके परिवेश के पशु-पक्षी, जीव जंतु, कार्टून, आदि. क्योंकि कोई कहानी या कविता की सामग्री यदि बच्चों के पूर्व अनुभव से जुड़ती है तो वह उनसे जुड़ाव महसूस करते हैं और पूरी रूचि के साथ वे उसे पढ़ने का आनंद लेते हैं. वह बाल साहित्य (विशेष रूप से शुरूआती स्तर का) चित्रों से भरपूर होना चाहिए, साथ ही उन दिए गए चित्रों में गतिशीलता हो ताकि बच्चे उन चित्रों को देखकर कहानी लिखित कहानी के बारे में अनुमान लगा पाएं कि कहानी क्या हो सकती है?
पुस्तकालय से संबंधित क्या-क्या गतिविधियां कराई जा सकती
है?
पुस्तकालय
कालांश के दौरान वर्षभर यदि निम्न गतिविधियां कराई जाए तो कक्षा तीन तक कोई भी
बच्चा FLN तक की दक्षता प्राप्त कर सकता है
1.
सभी
शुरूआती स्तर के बच्चों को पुस्तक के पाठ से संबंधित चित्र बनवाया जा सकता है. चित्र
बनवाने के पश्चात उन बच्चों से मौखिक रूप से बातचीत करना कि यह चित्र किस प्रकार
पढ़े गए सामग्री से संबंधित है?
(यह गतिविधि बच्चों को मौखिक
एवं लिखित अभिव्यक्ति कौशल, कल्पनाशीलता, तार्किकता,
रचनात्मकता कौशल विकास की ओर ले जा रहा होगा।)
लेखक अरविंद कुमार सिंह अपने आलेख ‘पुस्तकालय से पत्रिका तक’ में इस बात
का जिक्र करते हैं कि किस प्रकार उन्होंने अपने बच्चों को पुस्तकालय की पुस्तकों
का उपयोग करते हुए चित्र बनाने के प्रक्रिया में शामिल किया उनसे उनके द्वारा बनाए
गए चित्र का कहानी से जुड़ाव किस प्रकार है? आदि
बिंदुओं पर चर्चा कर उनकी रचनाओं को संग्रहित करते हुए उसे बच्चों की दीवार
पत्रिका 'उड़ान' का रूप दिया।
2.
शिक्षक
द्वारा उस पाठ से संबंधित चित्र बनाते हुए बच्चों को उस चित्र के नाम लिखने के लिए
प्रेरित करना (इस गतिविधि से शुरूआती स्तर के बच्चों में पढ़ने और लिखने के कौशल का
विकास हो रहा होगा।
3.
बाल
साहित्य से कुछ शब्दों का चुनाव कर उसकी संरचना (ध्वनि लिपि चिन्ह संबंध) से
शुरुआती स्तर के बच्चों को शिक्षक द्वारा पहचान करवाना।
4.
कक्षा
पूर्व स्तर या कक्षा स्तर के बच्चों के साथ किसी चयनित शब्द से वाक्य या कहानी
निर्माण करवाना।
5.
सभी
बच्चों के साथ पाठ के शीर्षक पर चर्चा करना। उस पाठ के चित्र एवं कहानी का अवलोकन
करने के पश्चात उसे कोई नया शीर्षक देने की गतिविधि शिक्षक बच्चों से करा सकते हैं, इस
गतिविधि से उनमें स्वयं से विचार कर किसी निष्कर्ष पर पहुँचने, तार्किकता
के कौशल विकसित हो रहे होंगे।
6.
शिक्षक
शुरूआती स्तर के बच्चों को किसी पाठ के चित्रों को देखकर कहानी का अनुमान लगाने की
गतिविधि करा सकते हैं.
7.
किसी
कहानी को सुनाने पर काम करने के पश्चात मौखिक रूप से कहानी के अंत में बदलाव करने
की गतिविधि शिक्षक करवा सकते हैं.
8.
किसी
कहानी को आधा सुनाने के पश्चात शिक्षक उस कहानी को आगे बढ़ाने की गतिविधि करा सकते
हैं.
9.
शिक्षक
तीसरी, चौथी, पांचवीं कक्षा के बच्चों को लिखित में कहानी के अंत में
बदलाव करने की गतिविधि करा सकते हैं.
10. बिना किसी की मदद लिए उस पाठ से संबंधित प्रश्नों के
उत्तर खोज कर मौखिक या लिखित रूप से व्यक्त करने की गतिविधि.
11. मुखर वाचन,
सह पठन, जोड़ों में पठन,
स्वतंत्र पठन की गतिविधि करा सकते हैं.
12. बच्चों की मदद लेते हुए उस कहानी का नाटकीय रूपांतरण
करवा सकते हैं, इससे बच्चे और भी कहानी पुस्तक पढ़ने को प्रेरित होंगी।
13. पठित पाठ के नए शब्दों को कक्षा में स्थान देना, उन
शब्दों पर रोज कक्षा शिक्षण के दौरान काम करने संबंधी गतिविधि कराना।
Friday 14 June 2024
जून माह में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए 'मैं' थीम पर कार्य करने हेतु कार्ययोजना
छत्तीसगढ़ शासन द्वारा मुद्रित थीम पुस्तिका में दिए गए थीम के अनुसार जून माह में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को अपने संबंधित आंगनवाड़ी केंद्रों में बच्चों के साथ बाल विकास के पांच क्षेत्रों को समाहित करते हुए 'मैं' थीम से संबंधित गतिविधियाँ बच्चों को कराने हैं। इस थीम पर कार्य करते हुए यह अपेक्षा है कि इस माह के दौरान बच्चों में कम-से-कम निम्न ज्ञान अवश्य सुनिश्चित कर सकें -
- बच्चे अपना एवं सहपाठियों के नाम, अपने परिवार जनों के नाम एवं उनके साथ रिश्ते बता सकें. वह (बच्चे) एवं उनके सहपाठी कहाँ (किस गांव, पारा या मोहल्ला में) रहते हैं? कौन से आंगनवाड़ी केंद्र में पढ़ते हैं? बता सकें.
- अपने शरीर के बाहरी अंगों के नाम (सिर, बाल, आँख, कान, नाक, दांत, जीभ, ठुड्ढी, गाल, गला, कंधा, हाथ, पैर, घुटना, हथेली, कलाई, उंगली, आदि) एवं कार्य को बता सकें। कौन सा अंग कितनी संख्या में है? बता सकें।
- अपने पसंद की चीज/वस्तु के बारे में बता सकें जैसे - उन्हें क्या खाना पसंद है? उनके पसद का खेल क्या है? उन्हें यह चीज क्यों पसंद है? जब उन्हें उनके पसंद की वस्तु मिलती है तो उन्हें कैसा लगता है? अपनी ख़ुशी कैसे व्यक्त करते हैं?
- उनके साफ़-सफाई से संबंधित क्या-क्या चीजें हैं? साफ़-सफाई की आवश्यकता क्यों है?
उपरोक्त इन चार बिंदुओं पर यदि प्रति सप्ताह सुनियोजित तरीके से कार्य किया जाए तो बच्चों में यह आसानी से सुनिश्चित हो सकता है. इन गतिविधियों के माध्यम से निम्न उद्देश्यों की पूर्ती की दिशा में बढ़ रहे होंगे -
- बच्चों के बोली-भाषा का विकास
- सामाजिक विकास, खुद की पहचान और उस विषय पर बोल पाना
- शरीर के अंगों के बारे में जानना
- इन्द्रियों का विकास
- शारीरिक विकास
- रचनात्मक विकास
कार्य करने से पूर्व आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बाल विकास के इन 5 क्षेत्रों का भी अवश्य ध्यान रखें –
- शारीरिक विकास
- बौद्धिक विकास
- भाषा विकास
- सामाजिक विकास
- रचनात्मक विकास
बाल
विकास के 5 क्षेत्रों के साथ-साथ आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को पूरे वर्ष के 11 थीम से
परिचित होना भी आवश्यक है. साथ ही इस समझ को भी बढ़ाने की जरूरत है कि प्रत्येक
महीने के थीम के अनुसार बाल विकास की 5 क्षेत्रों को समाहित करते हुए किस प्रकार
बच्चों के साथ कार्य किया जा सकता है?
· वर्षभर की 11 थीम
- जून - मैं
- जुलाई - मेरा परिवार और मेरा घर
- अगस्त - मेरा गांव और मेरी आंगनवाड़ी
- सितम्बर - जानवर और पक्षी
- अक्टूबर - फल और सब्जियां
- नवम्बर - जीव-जंतु
- दिसंबर - हवा और पानी
- जनवरी - मौसम और त्यौहार
- फ़रवरी - बाज़ार
- मार्च - यातायात के साधन
- 11. अप्रैल - हमारे सहायक
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता निम्न तरीके से 'मैं' थीम
से संबंधित गतिविधियों को सप्ताहवार आयोजित कर सकते हैं.
सप्ताह 1 : बच्चों को अपने नाम, सहपाठियों के नाम, परिवार जनों के नाम, वे कहाँ रहते हैं? से परिचित कराना
गतिविधि
01
मुख्य
क्षेत्र – शारीरिक विकास
उप
क्षेत्र – बौद्धिक, भाषाई एवं सामाजिक विकास
समय
- 30 मिनट
आंगनवाड़ी
कार्यकर्ता सभी बच्चों को गोल घेरे में खड़ा कर गेंद फेंकने और पकड़ने का खेल
खेलेंगे। खेलते हुए सभी बच्चों को अपना नाम बताना है. शुरुआत कार्यकर्ता कुछ इस
प्रकार से करेंगी -
कार्यकर्ता -
मेरा नाम रेखा है, मैं नारायणपुर गांव में रहती हूँ.
इसके
पश्चात कार्यकर्ता किसी दुसरे बच्चे बच्चे की तरफ देखकर गेंद फेंकते हुए उसका नाम
पूछेगी कि 'आपका क्या नाम है?
बच्चा 01 - मेरा
नाम गीतांशी है. मैं नारायणपुर गांव में रहती हूँ.
इसके
पश्चात बच्चा 01, बच्चा 02 की तरफ बॉल फेंकेगा। और उससे पूछेगा -
तुम्हारा/आपका नाम क्या है? यही प्रक्रिया सभी बच्चों के साथ दुहराई जाएगी. कोई बच्चा
जब अपनी बात पूरी कर लेगा तो सभी बच्चे उसके लिए ताली बजाएंगे।
नोट – 01. ध्यान रहे गतिविधि की शुरुआत शुरुआत 5-6 वर्ष
के बच्चों के साथ करना है, ताकि बच्चे की ओर से उचित मौखिक उत्तर आ सके, तभी
3-4 वर्ष के बच्चे भी ऐसा करने की कोशिश कर पाएंगे।
नोट – 02. पहले दिन अपेक्षा ये रहेगी कि सभी बच्चे (विशेष रूप से 3-4 वर्ष उम्र के) एक-दो-तीन शब्दों में बोले लेकिन माह के अंत तक उन्हें पूरे वाक्य में बुलवाने का प्रयास करना है.
गतिविधि
02
मुख्य
क्षेत्र - भाषाई विकास
उप
क्षेत्र – शारीरिक, एवं सामाजिक विकास
समय
- 30 मिनट
आंगनवाड़ी
कार्यकर्ता सभी बच्चों को उपस्थित सभी बच्चों को दो-दो बच्चों की जोड़ी बनाएंगे।
(जोड़ी बनाते समय इस बात का ध्यान रहे कि दोनों अलग-अलग उम्र
के बच्चे हों)
दो
समानांतर लाइन में बच्चों को खड़ा किया जाएगा।
शुरुआत
कार्यकर्ता कुछ इस प्रकार से करेंगी – (अपने सामने के बच्चे से हाथ मिलाते हुए)
कार्यकर्ता -
मेरा नाम रेखा है, मेरी उम्र 35 वर्ष है.
बच्चा 01, बच्चा 02 से हाथ मिलाते हुए अपना परिचय देगा - मेरा नाम गीतांशी है.
मेरी उम्र 5 वर्ष है.
इसके
प्रत्युत्तर में बच्चा 02 अपना परिचय देगा - मेरा नाम सुमित है, मेरी उम्र 3 वर्ष है.
इसी
तरह सभी बच्चे एक दुसरे से परिचय करते हुए इन दोनों बातों को दुहराएंगे।
नोट – 01. गतिविधि की शुरुआत करने वाले दो-तीन जोड़ी 5-6 वर्ष
के बच्चों की बनाना उपयुक्त होगा, ताकि उनकी ओर से आने वाले उचित मौखिक उत्तर
सुनकर छोटे बच्चे समझ बना सके कि उन्हें करना/कहना क्या है? तभी
3-4 वर्ष के बच्चे भी ऐसा करने की कोशिश कर पाएंगे।
(उपरोक्त 1 घंटे की दोनों गतिविधियों से बच्चे अपना नाम, उम्र, किस गांव एवं पारा में रहते हैं, बता पाएंगे।)
गतिविधि
03 : गीली मिट्टी से अपनी आकृति बनाना और उसे अपना नाम देना
मुख्य
क्षेत्र – सृजनात्मक विकास
उप
क्षेत्र – भाषाई विकास
समय
- 30 मिनट
कार्यकर्ता
पूर्व ही बच्चों की संख्या के हिसाब से गीली मिट्टी की व्यवस्था कर लें. गीली
मिटटी के एक छोटे से टुकड़े को गोल कर आकृति का सर बनाएं। एक त्रिभुज से उसका धड़
एवं दो आयताकार आकृति से उसके पैर बनाएगी। इसके बाद उसके दो हाथ, दो कान, एक मुख, एक नाक उसमें बना देगी।
उसमें हाथ से ही आँख, नाक, कान, हाथ से उकेर दें. आकृति पूरी बन जाने के बाद
कार्यकर्ता उस आकृति को एक नाम देंगे जो केंद्र के किसी एक बच्चे का ही नाम होगा।
कार्यकर्ता एक कागज़ के टुकड़े पर बड़े-बड़े अक्षरों में उस नाम को लिखेंगे। आकृति बन
जाने के बाद शिक्षिका बच्चों से बात करेगी –
कार्यकर्ता -
ये किसका आकृति हमने बनाया है?
बच्चे -
सुमित का
कार्यकर्ता -
सुमित की उम्र कितनी है? और यह कौन से गांव/पारा में रहता है?
बच्चे - 4
वर्ष है, नारायणपुर गांव में रहता है.
कार्यकर्ता यह ध्यान रखेंगी कि सभी बच्चे इस बातचीत में शामिल हों.
गतिविधि
04 : बोर्ड पर किसी बच्चे की चॉक से आकृति बनाना
क्षेत्र
– सृजनात्मक विकास
समय
- 30 मिनट
इस
गतिविधि के दौरान कार्यकर्ता सबसे पहले बच्चों को गोले या अर्द्धगोले में बैठाकर
बोर्ड पर एक बड़ी सी लेकिन आसान सी मानव आकृति बनाएगी। एक गोले से उसका सर एक
त्रिभुज से उसका धड़ एवं दो आयताकार आकृति से उसके पैर बनाएगी। इसके बाद उसके दो
हाथ, दो
कान, एक
मुख, एक
नाक उसमें बना देगी। इस प्रक्रिया को वह काम से काम तीन बार करेगी। इस आकृति को वह
एक नाम भी देगी जो आंगनबाड़ी के एक बच्चे का ही नाम होगा। फिर सभी को रनिंग बोर्ड पर ऐसा ही आकृति बनाने
का प्रयास करने को कहेगी। रनिंग बोर्ड की अनुपलब्धता में वह कागज पर बनाने को भी
दे सकती हैं.
(यह
जरूरी नहीं कि इस तरह की आकृति बच्चे बना ही लें,
यह अपेक्षा बिलकुल भी न करें, जो भी-जैसी भी आकृति वे
बनाएं, उसके
लिए उनकी प्रशंसा करें।)
सप्ताह 2 : अपने शरीर के बाहरी अंगों के नाम (सिर, बाल, आँख, कान, नाक, दांत, जीभ, ठुड्ढी, गाल, गला, कंधा, हाथ, पैर, घुटना, हथेली, कलाई, उंगली, आदि) एवं कार्य, कौन
सा अंग कितनी संख्या में है? बता सकें।
गतिविधि 01 : शरीर के अंगों को पहचानना और उसके उपयोग जानना
मुख्य क्षेत्र – भाषाई विकास
उप क्षेत्र – शारीरिक, बौद्धिक, एवं सामाजिक
विकास
समय - 30 मिनट
एक
बालगीत के माध्यम से बच्चों को शरीर के अंगों को पहचानने और उसके उपयोग बताने की
गतिविधि कराई जाएगी। कार्यकर्ता हाव-भाव के साथ ये बालगीत गाएंगी। बच्चे पीछे-पीछे
उसे दुहरा रहे होंगे. बीच में जो शब्द (शरीर के अंगों के नाम) आ रहे हैं उसे हाथ
से छूकर उसके कार्य को एक्शन से कर रही होंगी।
बालगीत
दो
आँख हमारे, दिन भर देखा करते हैं, - 2
रात
को थक जाते और
सो
जाते हैं -
दो
कान हमारे, दिन भर सुना करते हैं, - 2
रात
को थक जाते और
सो
जाते हैं -
एक
नाक हमारे, दिन भर सूंघा करते हैं, - 2
रात
को थक जाते और
सो
जाते हैं -
एक
मुंह हमारे, दिन भर बोला करते हैं, - 2
रात
को थक जाते और
सो
जाते हैं -
दांत
हमारे,
दिन भर चबाया करते हैं, - 2
रात
को थक जाते और
सो
जाते हैं -
दो
पैर हमारे, दिन भर चला करते हैं, - 2
रात
को थक जाते और
सो
जाते हैं -
दो
हाथ हमारे, दिन भर लिखा करते हैं, - 2
रात
को थक जाते और
सो
जाते हैं –
गतिविधि
02 : कुछ और शरीर के अंगों को पहचानना
क्षेत्र
– शारीरिक,
उप
क्षेत्र – बौद्धिक, एवं सामाजिक विकास
समय
- 30 मिनट
इस गतिविधि के माध्यम
से हम बच्चों को एक सरल English Rhymes के द्वारा कुछ और
अंगों से परिचित करा रहे होंगे. कार्यकर्ता बच्चों को गोल घेरे में खड़े कर इसे करा
रहे होंगे -
Rhymes
Head,
Shoulder, knee, and toes,
Knee
and Toes
Eyes
and ear and mouth and nose
Head,
shoulder knee and toes.
Jump,
Jump, Jump
Everybody
Jump
गतिविधि के बाद
शिक्षिका बच्चों को समझ बना रही होगी कि head, shoulder, knee, toes किस अंग को कहते हैं, इनके क्या कार्य हैं?
गतिविधि
03 :
क्षेत्र
– बौद्धिक विकास
उप
क्षेत्र – भाषाई विकास
समय
- 30 मिनट
कविता के माध्यम से हाथ, पैर, आँख, नाक, कान, एवं उसके परिचय कराने के बाद एक और गतिविधि
कराई जाएगी, जिसके माध्यम से बच्चों को सोचकर, पूर्व ज्ञान का उपयोग करते हुए सोचकर बोलने का मौक़ा दिया जाएगा। कार्यकर्ता
सभी बच्चों को अपने हाथ दिखाएंगी और कहेंगी -
कार्यकर्ता
- ये देखो, ये मेरे दो हाथ हैं,
आपके दोनों हाथ किधर हैं? सभी लोग अपने अपने
हाथ दिखाओ।
(सभी बच्चे अपना हाथ
दिखा दिए हैं यह सुनिश्चित करने के बाद)
कार्यकर्ता
- मैं अपने हाथ से खाना खाती हूँ, आप सब अपने हाथ से क्या करते हैं?
सभी बच्चों को सोचकर
अधिक से अधिक बोलने का मौक़ा देना है.
हाथ के बाद इसी गतिविधि को पैर, आँख, नाक आदि से जोड़ते हुए करना है. इस गतिविधि को पूरे सप्ताह क्रम बदलते हुए कराना है.
गतिविधि
04 : मुक्त वार्तालाप
क्षेत्र
–भाषाई एवं सामाजिक विकास
उप
क्षेत्र – बौद्धिक विकास
समय
- 30 मिनट
इस गतिविधि के दौरान बच्चे आपस में जोड़ी बनाकर मुक्त रूप से वार्तालाप (बातचीत) कर रहे होंगे। हालाँकि इसे थोड़ा बहुत निर्देशित कार्यकर्ता कर रही होंगी। वह बच्चों को निर्देशित करेंगी कि आपको एक दूसरे के शरीर के अंग के बारे में बातचीत करना है, जैसे - आपके आँख कहाँ हैं? आपके आँख कितने हैं? आँख से आप क्या-क्या करते हैं? सभी बच्चों को इस गतिविधि में शामिल करने का प्रयास करना है. इसकी निरंतरता में सभी अंगों के उपयोग, उनकी संख्या गिनने पर बच्चे आपस में free conversation करने के मौके दिए जा रहे होंगे।
गतिविधि
05 : कागज़/रनिंग बोर्ड/फर्श पर अपने हाथ/पैर की उंगलियों के निशान बनाना।
क्षेत्र
– सृजनात्मक विकास
समय
- 30 मिनट
इस गतिविधि को
कार्यकर्ता पहले खुद करके दिखाएंगी। रनिंग बोर्ड/कागज़ या फर्श पर बाएं हाथ की
उँगलियों को फैलाकर, या दोनों पैर की उंगलियों को फैलाकर दाहिने हाथ से चॉक या
पेंसिल से उसका आउटलाइन बनाएंगी। फिर दो-दो बच्चों की जोड़ी बनाकर एक दूसरे के मदद
से ऐसा बनाने को कहेंगी। इसके पश्चात उसके
बगल में वह उनके नाम लिखेंगी - जैसे हाथ का चित्र बनाया है तो लिखना है - हाथ.
सप्ताह 3 : अपने पसंद की चीज/वस्तु के बारे
में बता सकें जैसे - उन्हें क्या खाना पसंद है? उनके
पसद का खेल क्या है? उन्हें यह चीज क्यों पसंद है? जब उन्हें उनके पसंद की वस्तु मिलती है तो उन्हें कैसा लगता है? अपनी ख़ुशी कैसे व्यक्त करते हैं?
गतिविधि
01 : प्रिय
दोस्त पर चर्चा
क्षेत्र
–भाषाई विकास
उप
क्षेत्र – सामाजिक विकास
समय
- 30 मिनट
इस
गतिविधि में कार्यकर्ता किसी एक बच्चे (5 - 6 वर्ष) को बुलाकर उसके प्रिय दोस्त के
बारे में चर्चा का रही होगी। कार्यकर्ता बच्चा 1 से पूछेगी -
कार्यकर्ता
- आपका नाम क्या है?
बच्चा
01 - गीतांशी
कार्यकर्ता
- आपके सबसे प्रिय दोस्त का नाम क्या है?
बच्चा
01 - सुमित
कार्यकर्ता
- आपके प्रिय दोस्त की उम्र कितनी है?
बच्चा
01 - 5 साल (वर्ष)
कार्यकर्ता
- वह कहाँ रहती/रहता है?
बच्चा
01 - नारायणपुर गांव में
कार्यकर्ता
- उसे क्या खाना पसंद है?
बच्चा
01 - मैगी
कार्यकर्ता
- आपको क्या खाना पसंद है?
बच्चा
01 - रोटी
कार्यकर्ता
सभी बच्चों को बुलाकर इसी तरह बच्चों के पसंद से संबंधित सवाल आगे बढ़ाते जा सकती
है. जैसे - पसंद का रंग, फल, सब्जी, खिलौने आदि। बच्चे जितना भी बताएं
उनकी प्रशंसा में ताली जरूर बजाएं एवं बजवाएं.
गतिविधि
02 : कागज़/रनिंग बोर्ड/फर्श पर अपने पसंद के वस्तु का चित्र बनाना।
क्षेत्र
– सृजनात्मक विकास
समय
- 30 मिनट
बच्चों को एक पेज और कुछ क्रेयॉन्स दें और उन्हें अपने पसंद के रंग के क्रेयॉन्स से अपने पसंद की फल, सब्जी, आकर, वस्तु के चित्र बनाने को दें. बच्चों को जैसा आता है वैसा बनाने दें, किसी भी प्रकार का दवाब न डालें। सभी बच्चे जब ये गतिविधि पूर्ण कर लें तो उनके साथ यह चर्चा जरूर करें कि उन्होंने क्या बनाया? यह उनको क्यों पसंद आता है? उन्हें अधिक से बोलने के मौके दें. कक्षा में यदि रनिंग बोर्ड उपलब्ध हों तो बच्चों को चॉक देकर उनपर ही इसे बनवाएं।
सप्ताह 4 : उनके साफ़-सफाई से संबंधित क्या-क्या चीजें हैं? साफ़-सफाई की आवश्यकता क्यों है?
गतिविधि
01 : बालगीत के माध्यम से साफ़ सफाई के महत्व को समझना
क्षेत्र
–भाषाई विकास
उप
क्षेत्र – बौद्धिक एवं सामाजिक विकास
समय
- 30 मिनट
बालगीत
दांतों की तुम करो सफाई
चमके जैसे दूध मलाई
गन्ना, गाजर, मूली खाना
दांतों को मजबूत बनाना
हावभाव के साथ गाने के
बाद कार्यकर्ता बच्चों को बातचीत में शामिल करेंगी।
कार्यकर्ता
- इस गीत में हमारे शरीर के किस अंग को साफ़ करने की बात की जा
रही है?
(किसी भी 5-6 वर्ष के बच्चों का नाम लेकर)
बच्चा
01
-
दांतों की
कार्यकर्ता
- कौन-कौन आज दांत की सफाई करके आए हैं?
(सभी बच्चों से
एक एक कर पूछना है)
कार्यकर्ता
- दांत की सफाई आपलोग कैसे करते हैं?
बच्चे - दातून/ब्रश से
कार्यकर्ता
- कौन-कौन आज शरीर की सफाई (स्नान) करके आए हैं?
(सभी बच्चों से
एक एक कर पूछना है)
कार्यकर्ता
- शरीर की सफाई आपलोग कैसे करते हैं?
बच्चे
- साबुन से
इसी क्रम में बातचीत में स्नान करने के दौरान बच्चे किन-किन सामग्री का उपयोग करते हैं, नाखून की सफाई कैसे करते हैं, आदि बातों को शामिल करेंगी।
गतिविधि
02 : साफ़-सफाई के वस्तुओं की पहचान करना
क्षेत्र
– बौद्धिक विकास
उप
क्षेत्र – भाषाई विकास
समय
- 30 मिनट
सामग्री
- ब्रश, पेस्ट, दातून, साबुन, शैम्पू, कंघी, आदि
आंगनवाड़ी कर्यकर्ता साफ़ सफाई से संबंधित सामग्री जैसे - ब्रश, पेस्ट, दातून, साबुन, शैम्पू, कंघी, आदि बच्चों को दिखाते हुए वह शरीर के किस अंग के साफ़ सफाई से संबंधित है, बातचीत करेगी।
गतिविधि
03 : रोल प्ले
क्षेत्र
–भाषाई विकास
उप
क्षेत्र – बौद्धिक विकास
समय
- 30 मिनट
बच्चे अपने शरीर के किस अंग की सफाई कैसे करते हैं? इसे अभिनय कर दिखाएंगे। जैसे ब्रश/दातून करना, स्नान करना, नाखून काटना, कपडे की सफाई करना। आदि
इस दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ता अपने-अपने आंगनबाड़ी केंद्र में इन गतिविधियों को कराते हुए उसके छोटे छोटे वीडियो बना कर उसे आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए निर्मित वाट्सएप ग्रुप में साझा भी करें. ताकि और सभी कार्यकर्ता ये इसका लाभ लेते हुए कक्षा में ये सभी गतिविधियाँ बच्चों के साथ कर सके.
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एक सर्वविदित तथ्य है कि किसी भी भाषा को समृद्ध करने में उस भाषा की साहित्यिक विधाएँ अर्थात उस भाषा में लिखित कविता , कहानी , निबंध , यात्रा ...
-
मनुष्य के सामाजिक क्रियाकलापों का अध्ययन ही सामाजिक अध्ययन है। एक अकादमिक विषय के रूप में समस्त विश्व सहित हमारे देश में भी प्राथमिक स्कू...
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जब जब भी उनको लगेगा कि दलित हमसे दूर हो रहे हैं मंदिर का चढ़ावा कम हो रहा है । तब दान पाने के लिए , उन्हें लुभाने के लिए कुछ न कुछ ...