चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित मौर्य वंश के तीसरे सम्राट के रूप में अशोक की गिनती एक ऐसे महान भारतीय सम्राट के रूप में की जाती है जिन्होंने लगभग 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व के बीच शासन किया। अपने दादा चन्द्रगुप्त मौर्य एवं पिता बिंदुसार की विरासत को बढ़ाते हुए अपने शासनकाल में इसे एक नई ऊँचाई (चरमोत्कर्ष) तक पहुंचाया। उस दौरान अशोक के राज्य को ‘मगध साम्राज्य’ के नाम से जाना जाता था। अशोक ने अपने कुशल नेतृत्व से भगत साम्राज्य का विस्तार पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में बांग्लादेश तक, उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में चोल राज्य तक किया।
अशोक के
शासनकाल को राजनीतिक एकता को बढ़ावा देने के साथ-साथ उत्तम प्रशासनिक व्यवस्था, धार्मिक,
सांस्कृतिक विकास के लिए भी जाना जाता है। अपने 36 वर्ष के शासन के दौरान लगभग
संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप पर उन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया। शुरुआत में यह
विस्तार जहाँ अपने बाहुबल के दम पर, तो वहीं बाद
में अहिंसा और करुणा के दम पर। सम्राट अशोक आपकी प्रशंसा उनके साम्राज्य विस्तार
कौशल से कहीं ज्यादा उनके न्यायोचित कानून व्यवस्था, उत्तम प्रशासनिक व्यवस्था व जनहित
कार्यों के लिए की जाती है। उनके कार्य आज भी अनुकरणीय हैं –
भारत
और पाकिस्तान के अलग-अलग स्थान से प्राप्त अभिलेख, शिलालेखों से पता चलता है कि उन्होंने
लोगों को नैतिकता और सदाचार का पालन करने के लिए प्रेरित किया। सत्य, अहिंसा,
करुणा आदि महत्वपूर्ण मूल्यों को बढ़ावा दिया, गरीबों तथा असहायों की सहायता करने
के लिए योजनाएं बनाए, समाज में एकता और सौहार्द को बढ़ावा दिया। अलग-अलग अवसरों पर
की जाने वाली जानवरों की हत्या पर रोक लगाया। साथ ही उन पशुओं के लिए चिकित्सा
सुविधाएं भी शुरू की। अपने राज्य में न्यायपूर्ण व्यवस्था के लिए उन्होंने न्यायिक
अधिकारियों की नियुक्ति की जो निष्पक्ष और न्यायपूर्ण तरीके से निर्णय देते थे।
न्याय सभी वर्गों के लिये समान होता था चाहे वह किसी भी वर्ग या जाति का हो। अपने साम्राज्य
के लोगों के जीवन को सुधारने और उनकी भलाई के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए - मनुष्य
तथा जानवरों के लिए चिकित्सा सुविधाएँ स्थापित किया। उनके लिए अस्पताल बनवाए, चिकित्सा
सेवाओं को बढ़ावा दिया। सड़कों तथा कई नवीन मार्गों का निर्माण करवाया जिससे व्यापार
व्यवस्था सुदृढ़ हुई, लोगों की सुविधा के लिए उन मार्गों पर विश्राम गृह तथा पेड़ों
की छाया के लिए पेड़ लगवाए। सिंचाई तथा पेयजल की सुविधा के लिए नहरों तथा जलाशयों
का निर्माण करवाया।
जिन
मूल्यों को अपनाने और उनके साथ जीने की बात अशोक करते हैं, उससे पहले उन्होंने खुद अपनाया, उनके साथ जिया फिर
लोगों को भी इसे अपनाने के लिए प्रेरित किया। एक कट्टर हिंसक शासक से एक अहिंसा का
समर्थक बनने का सफर आकस्मिक नहीं था। कलिंग (वर्तमान में उड़ीसा राज्य में स्थित) के
युद्ध में सम्राट अशोक की जीत हुई, लेकिन इस युद्ध में हुई हिंसा और रक्तपात नहीं
उन्हें प्रभावित किया। तत्पश्चात उन्होंने अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित बौद्ध
धर्म अपना लिया और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए बौद्ध धर्म को अपने सूझबूझ से भारत
के साथ-साथ श्रीलंका तक फैलाने का काम किया।
सम्राट
अशोक के कार्यों का गहराई से विश्लेषण करें तो उनके कार्य आज भी अनुकरणीय हैं।