हमारे
देश में कई ऐसे बुद्धिजीवी लोग हैं जिन्हें हमारी
शिक्षा और उससे संबंधित नौकरी हेतु चयन की प्रक्रिया से शिकायत है। इनमें से एक
हमारे मित्र भी हैं जो लगभग सात वर्षों से हमारे देश के युवाओं को चिकित्सा
क्षेत्र में ले जाने हेतु आवश्यक प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कराते हैं। मेडिकल
जगत को ही ध्यान में रखते हुए उनकी जो शिकायत है उसे यहाँ रखा जा रहा है,
‘हमारे
देश में बच्चों को एक डॉक्टर बनने के लिए क्या-क्या करना होता है? उन्हें कक्षा नर्सरी से लेकर कक्षा 8 वीं तक कई प्रकार के विषय पढ़ने पड़ते
हैं। भले ही इस दौरान आप कक्षा में टॉप पर क्यों ना रहे हों! ढेर सारे मैडल क्यों
ना जीते हों? वे सभी के सभी धरे रह जाते हैं जब आप बारहवीं में आते हैं। बारहवीं
पास कर लेने के बाद आपको एक इम्तिहान देना होता है ताकि आपका MBBS के लिए चयन हो जाए। इसकी तैयारी के लिए आप वही सब रटेंगे जो आपने बारहवीं
में रटा था। इसके पश्चात यदि इस कोर्स में आपका चयन हो जाता है, तब अब तक आपने (नर्सरी से कक्षा 8 वीं तक) जो भी रटा था, इतनी मेहनत की, इतना दिन रात जगे, सब कुछ किया, वो सब अब किसी काम का नहीं होगा। अब
आपको कुछ सालों तक डॉक्टर की पढाई करनी होगी, फिर उस पढाई के
बाद आपकी ट्रेनिंग होगी। तब जा कर आप डॉक्टर बनेंगे। अब सवाल ये आता है कि जब
डॉक्टर की पढाई करवाकर और फिर ट्रेनिंग देकर आपको डॉक्टर बनता है ये सिस्टम तो फिर
वो आपको सीधे इसके लिए क्यूँ नहीं चयनित कर लेता है वो आपको कक्षा एक से लेकर 12वीं तक क्यूँ इतनी मेहनत करवाता है? तो इसका जवाब ये
मिलता है कि इतने सारे लोग हैं, लाखों बच्चे हैं, सबको डॉक्टर बनना है, और सबको ऐसे ले लिया तो फिर
इतने डॉक्टर किस काम के होंगे? इसलिए बनाना कम है, कम्पटीशन इसीलिए रखा जाता है.. सरकार इसीलिए सीट का कोटा बनती है.. ये
नहीं कि आपके पास प्राइवेट कॉलेज है और आप दस लाख डॉक्टर अपने यहाँ से एक साल में
निकाल दें.. फिर डॉक्टर की कोई वैल्यू नहीं रह जायेग। समझ रहे हैं आप इस खेल को?
इसलिए आपसे कक्षा 12 तक कत्थक डांस करवाया
जाता है। बाद में डाक्टरी की ट्रेनिंग होती है। उस कत्थक डांस का आपके भविष्य से
कोई लेना देना नहीं होता है। वो ज्ञान किसी काम का नहीं होता है। मेरे अपने जीवन
में वो कुछ भी कभी काम नहीं आया जो मैंने 12वीं तक पढ़ा। और आप इस ज्ञान को इतना सीरियसली ले कर बैठे
रहते हैं और अपने दो बच्चों को पढ़ाने में अपना सारा जीवन “नष्ट” कर देते हैं। वो
ज्ञान जो किसी काम का नहीं उसमें आप “बीस” साल तक स्वयं पागल बने रहते हैं और अपने
बच्चों को मानसिक उत्पीडन की हद तक पागल किये रहते हैं.. इस पर आपको सोचना चाहिए।
इनकी
बातों का विश्लेषण किया जाए तो इनका यह मानना है कि बच्चों को पहली से आठवीं या
बारहवीं तक पढ़ाई के नाम पर अलग अलग विषय पढ़ा कर इनका समय बर्बाद किया जाता है। जबकि
ये होना चाहिए कि जिस बच्चे को मेडिकल जगत की और जाना है, उसे शुरुआत से ही मेडिकल
से संबंधित पढ़ाई दिया जाना चाहिए। एक तरीके से वे प्रत्येक बच्चों को उस तरह की
शिक्षा दिए जाने की बात करते हैं जैसे किसी के खेल में रुचि रखने वाले बच्चों को बचपन
से ही उस खेल की ट्रेनिंग में शामिल कर दिया जाता है।
यहाँ
इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि एक खेल के लिए बच्चों को ट्रेंड करना और
चिकित्सा जगत में सेवा के लिए किसी बच्चे को प्रशिक्षित करना, दोनों अलग-अलग मायने
रखते हैं। किसी भी खेल की अपनी अलग अलग स्तर की बारीकियां हैं। उन बारीक कौशलों (skills)
को आत्मसात करने के बाद ही कोई उस क्षेत्र में सफल हो पाता है। ऐसे
ही चिकित्सा जगत जैसे क्षेत्र में सफल रूप से सेवा देने के लिए जो आवश्यक कौशल होना
चाहिए उसका विकास नर्सरी से आठवीं या बारहवीं कक्षा तक प्रमुखता से किया जाता है।
यदि
हम केवल आंगनबाड़ी का ही उदाहरण लें तो तीन से 6 साल की अवस्था के दौरान ही बच्चों
के शारीरिक विकास के साथ-साथ बौद्धिक विकास, भाषाई विकास, सामाजिक एवं भावनात्मक
विकासरचनात्मक विकास से संबंधित कौशल पर गहराई से कार्य किया जाता है। इन पांच
क्षेत्रों से संबंधित कौशल का विकास बच्चो में आठवीं से लेकर बारहवीं तक होता ही
रहता है, जीवन पर्यंत भी होता है। पहली से 12 तक की शिक्षा
बच्चों में अलग अलग प्रकार के भाषाई कौशल (समझ के साथ सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना, सोचना, विचार करना, मौखिक व
लिखित रूप से अपने विचार अभिव्यक्त करना) गणितीय कौशल (तर्क करना/लगाना, दैनिक जीवन से संबंधित जोड़ने, घटाने, गुणा, भाग करने संबंधी गणितीय समस्याओं का समाधान
करना) का विकास करने के लिए अति आवश्यक है। इसी तरह विज्ञान व सामाजिक विज्ञान से
संबंधित कौशल जैसे किसी घटना का कार्य कारण संबंध जानना, किसी
घटना का विश्लेषण करना, सर्वे करना, अवलोकन करना आदि कौशल/दक्षताऐं
यदि आपमें नहीं होगा तो मेडिकल प्रवेश परीक्षा तक निकालने आपके लिए नाको चने चबाने
जैसा है। एमबीबीएस करने के बारे में सोचना तो छोड़ ही दीजिए। उपरोक्त कौशल के बिना मेडिकल
से लेकर इंजीनियर बनने की पढ़ाई केवल उच्चारण कर पढ़ने भर मात्र होंगे। इसलिए पहली
से 12वीं तक की पढ़ाई आपके डॉक्टर के रूप में तैयार होने के
लिए नींव तैयार करती है। इसमें value & disposition कौशल
भी शामिल है। बिना इसके आपमे humanity आ ही नहीं सकती।
इसलिए अपने बच्चों को डॉ, इंजीनियर बनाने के सपने बाद में देखिए पहिले ये देखिए कि पहली से लेकर 12वीं कक्षा तक के अपेक्षित कौशल आपके बच्चे में हैं या नहीं। यदि नहीं है तो उसपर काम करने की आवश्यकता है।