Wednesday, 6 August 2025

पाठ्यपुस्तक समीक्षा : हमारा अद्भुत संसार, कक्षा : तीन

 

छत्तीसगढ़ शासन द्वारा अकादमिक सत्र 2025 में पूर्व से अध्ययन/अध्यापन कराए जा रहे ‘पर्यावरण अध्ययन’ विषय को एक नए कलेवर, एक नए नाम ‘हमारा अद्भुत संसार’ के साथ लाया गया है। बच्चों के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए उन्हें 21 वीं सदी के कौशलों से युक्त एक वैश्विक नागरिक के रूप में विकसित करने की दिशा में कार्य करते हुए एनसीईआरटी, दिल्ली द्वारा इस पाठ्यपुस्तक को विकसित किया गया है। एससीईआरटी, रायपुर ने इस पाठ्यपुस्तक में छत्तीसगढ़ के संस्कृति एवं संदर्भ को समाहित करते हुए थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ प्रकाशित किया है। पर्यावरण के प्रति बच्चों की संवेदनशीलता को विकसित करने के उद्देश्य से बुनियादी स्तर एवं मध्य स्तर की कड़ी के रूप में इस पाठ्यपुस्तक को प्रकाशित किया गया है।

पाठ्यपुस्तक को चार इकाइयों में विभाजित किया गया है जिसके अंतर्गत तीन छोटे-छोटे अध्याय हैं -

इकाई

नाम

अध्याय

 

1

 

हमारे परिवार और समुदाय

अध्याय 1 - मेरा परिवार और मित्र

अध्याय 2 - मेले में हम

अध्याय 3 - त्योहार मनाएँ एक साथ

 

2

 

जीवन आसपास

अध्याय 4 - कुछ खोज पेड़ पौधों की

अध्याय 5 - पेड़ पौधे और पशु पक्षी हैं साथ

अध्याय 6 - निर्भरता एक दूसरे पर

 

3

 

प्रकृति के उपहार

अध्याय 7 - पानी है अनमोल

अध्याय 8 - हमारा भोजन

अध्याय 9 - स्वस्थ रहो प्रसन्न रहो

 

4

 

आस पास है क्या क्या?

अध्याय 10 - वस्तुओं की दुनिया

अध्याय 11 - कैसे बनी ये वस्तुएँ

अध्याय 12 - क्या और कैसे करें इसका?

 

पहले इकाई (हमारा परिवार और समुदाय) का पहला अध्याय ‘मेरा परिवार और मित्र’ है जो बच्चों को एक परिवार के विभिन्न सदस्य, मित्र, पड़ोसी व इन सभी के बीच के संबंध, परस्पर सहयोग को क्रमबद्ध रूप से परिचित कराता है। साथ ही यह अध्याय बड़ा परिवार, छोटा परिवार से परिचित कराने के साथ-साथ मानव-मानव के बीच के रिश्ते से आगे ले जाते हुए बच्चों को इस ज्ञान से परिचित कराता है कि मानव-जीव जन्तु, मानव-पेड़ पौधे के बीच भी रिश्ते होते हैं जो काफी प्रेम से निभाए भी जाते हैं। दूसरा अध्याय हमारे पास के और दूर के रिश्तेदारों के बीच के परस्पर सहयोगी संबंध से बच्चों को परिचित कराता है। तीसरे अध्याय में देश के दो राज्यों जम्मू एवं झारखंड में वसंत ऋतु को अलग-अलग नाम से मनाए जाने का जिक्र करते हुए विभिन्न प्रकार के व्यंजन एवं संस्कृति से परिचित कराते हुए त्योहारों को मिलजुल कर मनाने का संदेश दिया गया है। साथ ही सुरक्षित यात्रा करने हेतु आवश्यक नियमों, चौड़ी पक्की सड़क, संकरी कच्ची सड़क से भी परिचित कराया गया है।  

दूसरा इकाई ‘जीवन आसपास’ हमारे आसपास के जीवन से संबंधित है, जो तीन अध्यायों में विभाजित है। इसका पहला अध्याय ‘कुछ खोज पेड़ पौधों की’ है। यह अध्याय बच्चों को हमारे आस पास उगने वाले विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों, उनके भौतिक विशेषताओं, एवं महत्त्व से परिचित कराता है। इस इकाई का दूसरा अध्याय ‘पेड़ पौधे और पशु पक्षी हैं साथ’ है। पौधों तथा जानवरों के बीच के परस्पर संबंध से परिचित कराता यह अध्याय बच्चों को उनकी आवास एवं व्यवहार से संबंधित ज्ञान देता है। तीसरा अध्याय ‘निर्भरता एक दूसरे पर’ है जो यह दिखाता है कि हम पौधों तथा जानवरों के साथ किस प्रकार जुड़े हैं।  

तीसरा इकाई ‘प्रकृति के उपहार’ है इसके अंतर्गत भोजन और पानी के संबंध में चर्चा किया गया है। इस इकाई का पहला अध्याय ‘पानी है अनमोल’ है जो इस बात पर केंद्रित है कि किस प्रकार बारिश हमें पानी जैसे अनमोल उपहार प्रदान करती है। यह अनमोल उपहार हमें किन किन स्रोतों से प्राप्त होता है? किस प्रकार हम इस अनमोल उपहार का प्रभावी तरीके से उपयोग करते हुए इसका संरक्षण कर सकते हैं। दूसरा अध्याय है ‘हमारा भोजन’ इसके अंतर्गत विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने वाले खाद्य पदार्थ एवं इससे प्राप्त होने वाले लाभकारी पोषक तत्व के संबंध में बच्चों को बताया गया है। तीसरा अध्याय ‘स्वस्थ रहो प्रसन्न रहो’ है है जो अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के महत्त्व एवं तरीके पर विस्तृत जानकारी देता है।

चौथा इकाई ‘आस-पास है क्या-क्या?’ है। इस इकाई में अलग अलग प्रकार के पदार्थों/धातुओं जैसे लकड़ी, कांच, प्लास्टिक से निर्मित उन वस्तुओं को शामिल किया गया है जिन का उपयोग मनुष्य सुविधापूर्वक रहने के लिए करते हैं। साथ ही इस संबंध में भी महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं कि अपने आस पास के परिवेश को स्वच्छ बनाए रखने के लिए उसका प्रबंधन कैसे किया जाना चाहिए। इस इकाई का पहला अध्याय ‘वस्तुओं की दुनिया’ है। यह अध्याय बच्चों को यह जानने में मदद करता है कि कौन कौन सी वस्तुएं प्रकृति निर्मित है और कौन-कौन मानव के द्वारा बनाई गई है। दूसरा अध्याय ‘कैसे बनी ये वस्तुएँ?’ है, इस अध्ययन में यह पता लगाने का प्रयास किया गया है कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किस प्रकार घरों का निर्माण किया जाता है? तीसरा अध्याय ‘क्या और कैसे करें इसका?’ है। इस अध्याय में हमें अपने घरों और आसपास स्वच्छता बनाए रखने के तरीकों से परिचित कराया गया है।

एससीईआरटी, रायपुर के द्वारा प्रकाशित 162 पृष्ठों वाले हमारे आस पास के जीवन से संबंधित जानकारियों से सुसज्जित इस पाठ्यपुस्तक के अध्ययन से प्राप्त अंतर्दृष्टि को निम्न बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है -  

·       पाठ्यपुस्तक बहुत ही सरल तरीके से सरल शब्दों में बच्चों के आसपास की दुनिया जैसे – मिट्टी, नदी, पहाड़, उनपर आश्रित रहने वाले अलग-अलग आकार-आकृतियों के पेड़-पौधे (शाक, घास, लताऐं, बेल) उसके भाग (जड़, तना, पत्ती, फूल, फल, बीज) उनकी विशेषताएं, महत्ता/उपयोगिता, इन पेड़-पौधों पर आश्रित रहने वाले पशु-पक्षी, जीव-जन्तु (उनकी बोली, परिवार-रिश्ते जैसे विभिन्न सामाजिक अवधारणाओं, सांस्कृतिक जीवन (खानपान, कपड़े, त्योहार) आदि से परिचित कराता है। इनके संरक्षण की आवश्यकता, तरीके पर समझ विकसित करता है।

·       इस पाठ्यपुस्तक में एक अच्छी बात यह लगी कि प्रत्येक इकाई से संबंधित अध्यायों के संबंध में शिक्षकों को संक्षेप में परिचित कराया गया कि इस इकाई के अंतर्गत कितने अध्याय हैं? किस अध्याय में किसके संबंध में चर्चा की गई है? उस अध्याय पर कार्य करने के दौरान किन किन शिक्षण सहायक सामग्रियों की आवश्यकता होगी? को भी संक्षेप में बेहतर तरीके से बताया गया है ताकि पाठ को समझने में शिक्षक के साथ-साथ बच्चों को भी कोई असुविधा न हो। विशेष रूप से शून्य लागत वाले शिक्षण सहायक सामग्री।   

·       समूह कार्य, यह जोड़ी में रहकर स्वयं से कार्य कर सीखने को बढ़ावा दिया गया है।

·       प्रत्येक पृष्ठ में पाठ से संबंधित चित्रों को काफी बेहतर प्रिन्ट के साथ लगाया गया है।

·       प्रत्येक पाठ में मानवीय मूल्यों को विकसित करने वाले सवालों को भी शामिल किया गया है। जैसे पहले अध्याय का एक सवाल देख सकते हैं – क्या आपको लगता है कि हमें जानवरों को तंग क्यों नहीं करना चाहिए या चोट क्यों नहीं पहुंचाना चाहिए? जानवरों के व्यवहार से भी परिचित कराते हुए ये बताया गया है कि जानवरों से डर लगने या उन्हें पसंद न करने पर भी मारना नहीं चाहिए। क्योंकि आम तौर पर जानवर हमें तब तक नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, जब तक कि वे हमसे खतरा महसूस नहीं करते। गर्मी के महीने में पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करने हेतु बर्डबाथ बनवाना।

·       पीका-बू (छुपम-छुपाई), अंताक्षरी, सांप-सीढ़ी, पिट्टुल जैसे स्थानीय, पारंपरिक खेल जिससे लगभग सभी बच्चे परिचित होते हैं, को शामिल किया गया है, ताकि बच्चे स्वयं को उससे जोड़ कर कही जा रही बातों को समझ सकें।

·       किसी अवधारणा पर कार्य करने के बाद दिया गया अभ्यास कार्य समझ व स्मरण आधारित होने के साथ-साथ स्वतंत्र चिंतन या व्यक्तिगत अनुभव व्यक्त करने से संबंधित है।

·       पाठ्यपुस्तक को इतनी बेहतरीन तरीके से बनाया गया है कि संबंधित अवधारणा पर समझ बनाने में अलग से कार्यपत्रक के उपयोग की आवश्यकता महसूस नहीं होती है।

·       एक अवधारणा पर समझ बनाने के बाद उनसे संबंधित कुछ स्वतंत्र चिंतन करने वाले कुछ सवाल दिए गए हैं, उसपर कार्य कर समझ बनाने के बाद आगे की अवधारणा से परिचित कराया गया है। 

·       ऐसे वाक्य प्रयुक्त किए गए हैं जो लैंगिक विषमता को पाटने का कार्य करता है जैसे – मेरे माता पिता घर की सफाई और खाना पकाने से लेकर बाजार के सभी कामों में एक दूसरे की सहायता करते हैं। रवि भैया सब्जियों को साफ करके काटने में सहायता करते हैं। (अध्याय 1, पृष्ठ 10)

·       प्रत्येक अध्याय में गणितीय दक्षता से संबंधित प्रश्न भी शामिल किए गए हैं- जैसे – आपके परिवार में उम्र में सबसे बड़ा व्यक्ति कौन है? आपके परिवार में उम्र में सबसे छोटा व्यक्ति कौन है? आपके परिवार में सबसे लंबा व्यक्ति कौन है? (अध्याय 1, पृष्ठ 12)

·       चित्र पठन, समझ के साथ चिंतन करते हुए लेखन करने से संबंधित गतिविधियां प्रत्येक पाठ में देखने को मिलती है।

·       प्रत्येक अध्याय में आसान से लगने वाले चित्र बनाने की गतिविधियां इस ओर इशारा करती है कि बच्चों के रचनात्मक विकास पर भी गहराई से कार्य किया जा रहा है।

·       FLN स्तर के बच्चों को भी ध्यान में रखते हुए उनके लिए डिकोडिंग व बौद्धिक विकास से संबंधित सवाल (वर्ग पहेली) रखे गए हैं। 

·       संबंधित अवधारणाओं पर बेहतर समझ बनाने के लिए रोल प्ले (नाटकीय रूपांतरण) जैसे शिक्षण विधि को भी शामिल किया गया है। (अध्याय 2 पृष्ठ 32)

·       मौखिक भाषा विकास हेतु चर्चा किए जा रहे विषय से संबंधित बालगीत, कहानी को भी शामिल किया गया है। जैसे अध्याय 3 में शामिल किया गया बालगीत ‘वसंत ऋतु’। अध्ययन आठ में भोजन की महत्ता को दिखाने के लिए ‘शशि की कहानी – धावक’ नामक कहानी का उपयोग किया गया है।

·       आगे की कक्षा में मानचित्र के घटकों (दिशा, संकेत चिन्ह) की ओर ले जाने हेतु पृष्ठभूमि तैयार की गई है। (अध्याय 3 पृष्ठ 43)

पाठ्यपुस्तक के उपरोक्त विशेषताओं के अतिरिक्त कुछ ऐसे भी कमियाँ देखने को मिली जो ये यदि सम्मिलित होते तो पाठ्यपुस्तक की समृद्धि को बढ़ा रहे होते।

·       ‘त्योहार मनाएं एक साथ’ पाठ में भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में वसंत ऋतु से संबंधित त्योहार मनाए जाने की बात आई है, आकलन खंड में विभिन्न क्षेत्र व धर्मों से संबंधित त्योहारों या धार्मिक आयोजनों (जैसे क्रिसमस, ईद उल फ़ितर, छठ पूजा आदि) को शामिल किया गया है। इसी आधार पर इसके पूर्व के अध्याय में मेला का जिक्र करते हुए कुंभ को शामिल किया गया है। ईद के अवसर पर ईदगाह में लगने वाले मेले का भी यदि वहाँ उल्लेख किया जाता तो इस्लाम धर्म मानने वाले बच्चे भी मेले की अवधारणा से जुड़ पाते।

·       पूरे पाठ्यपुस्तक में एक ही धर्म केंद्रित पात्रों के नाम को शामिल किया गया है। पाठ्यपुस्तक को समावेशी बनाने के लिए अन्य धर्मों से संबंधित लोगों के नाम को शामिल किया जा सकता था। उदाहरण के लिए एक अध्याय में यदि बेला का नाम आ रहा है तो अगले अध्याय में शबाना, जॉन, अब्दुल जैसे नाम का भी जिक्र किया जा सकता था।

·       अध्याय 3 त्योहार मनाएं एक साथ में गतिविधि 1 को शामिल करने का लॉजिक समझ नहीं आया। (पेज 36) इस गतिविधि से संबंधित चर्चा इस अध्याय में नहीं की गई है।

·       तीसरे अध्याय में ऐसे ऐसे व्यंजनों का नाम (होलिगे, सद्दा) शामिल किया गया है जिसके बारे में बच्चों को बता पाने में बहुत ही मुश्किल होगी कि इसका संबंध किस त्योहार से है? 

नउम्मीद है कि नए कलेवर में लाया गया यह पाठ्यपुस्तक बच्चों में 21 वीं सदी के कौशल को विकसित करने में सहायक होगा। 



Saturday, 28 June 2025

दांगी युवा शक्ति द्वारा दांगी समाज के प्रतिभाओं को किया गया सम्मानित

दांगी समाज को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयत्नशील एवं प्रतिबद्ध जमुई  (बिहार) में जमीनी स्तर पर कार्यरत सामाजिक संगठन ‘दांगी युवा शक्ति’ द्वारा दिनांक 22 जून 2025 दिन रविवार को ‘सम्राट अशोक प्रतिभा सम्मान सह शिक्षा सेमिनार समारोह – 2025’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में 10वीं एवं 12वीं कक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले जमुई जिले के छात्र-छात्राओं को शील्ड, मेडल आदि देकर सम्मानित किया गया। जमुई नगर स्थित द्वारिका विवाह भवन में आयोजित इस समारोह में जिले के कोने-कोने से आए हज़ारों लोगों ने सहभागिता की।

ज्ञात हो कि आज से 10 वर्ष पूर्व 2015 में जमुई के कुछ युवाओं ने मिलकर एक स्वप्न देखा था कि सैकड़ों/हज़ारों वर्ष से पिछड़े समाज के रूप में गिने जाने वाले दांगी जाति एवं इसके युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए, समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए कुछ सम्मिलित प्रयास किए जाएं। आखिर कब तक हम पिछड़े समाज होने का तमगा ढोते रहेंगे, अब हमें अपने दांगी समाज को जागृत एवं विकसित समाज के रूप में स्थापित करना है। उन युवाओं ने इस स्वप्न को साकार करने के लिए 2015 में ‘दांगी युवा शक्ति’ के नाम से एक संगठन बनाया और इसी के बैनर तले कुछ छोटे-बड़े कार्यक्रम आयोजित करना प्रारंभ किये।  

संगठन का पहला प्रयास था - जमुई नगर स्थित दांगी छात्रावास की व्यवस्था को सुधारने का, उसका जीर्णोद्धार करने का। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि 10वीं, 12वीं, स्नातक, स्नातकोत्तर कक्षा पास करने के पश्चात दांगी युवा वहाँ रहकर अपना भविष्य संवार रहे होते हैं, छात्रावास में उनकी मूलभूत आवश्यकता जैसे पेयजल, शौचालय, स्वच्छ हवादार कमरे, पुस्तकालय आदि पर विशेष रूप से ध्यान देते हुए भवन से लेकर कई प्रकार की आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध करवाया गया। इसी क्रम में समाज के लोगों को संगठित करने के लिए वनभोज कार्यक्रम, होली मिलन समारोह का आयोजन हो रहा है। जिसमें प्रति वर्ष एक बार सैकड़ों की संख्या में शामिल होकर लोग एक जगह बैठकर एक दूसरे से घुलते मिलते हुए अप्रत्यक्ष रूप से संगठित होकर रहने का संदेश दे रहे हैं। 

इसी कड़ी में एक कदम आगे बढ़ते हुए दांगी युवा शक्ति ने वर्ष 2019 से लगातार शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले विशेष रूप से 10वीं एवं 12वीं कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होने वाले, सरकारी, गैर सरकारी क्षेत्रों में अपने अथक मेहनत से नौकरी प्राप्त करने वाले युवा-युवतिओं को सम्मानित कर, उनका हौसला बढ़ाकर उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने का हरसंभव लगातार प्रयास किया जा रहा है। युवा प्रतिभाओं को निखरने का पर्याप्त मौका मिले इसका भी ध्यान रखते हुए शिक्षा सेमिनार को इस सम्मान कार्यक्रम का एक अनिवार्य हिस्सा बनाया गया। दांगी समाज के ही मोटिवेशनल स्पीकर श्री अनुराग दांगी पिछले 6 साल से लगातार समाज के युवाओं को मार्गदर्शित करने का कार्य करते रहे हैं। इसी कड़ी में इस वर्ष 2025 में भी ‘दांगी युवा शक्ति’ द्वारा लगातार छठवीं बार प्रतिभा सम्मान समारोह सह शिक्षा सेमिनार का आयोजन किया गया। 

कार्यक्रम को सफल बनाने में पूरे समाज का योगदान रहा।  संगठन से जुड़े ऊर्जावान कार्यकर्ताओं ने दांगी समाज के लोगों से इस नेक कार्य में सहयोग करने की अपील की गई, जिसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला। जमुई जिले में निवासरत दांगी बंधुओं के साथ-साथ देश के अलग-अलग राज्यों में सरकारी, गैर सरकारी क्षेत्र में अपनी सेवाएं देने वाले सैकड़ों युवाओं ने कार्यक्रम के सफल संचालन हेतु आर्थिक सहयोग किया।  

पिछले वर्ष शुरू की गई परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इस वर्ष भी दीप प्रज्वलित करने के स्थान पर वृक्षारोपण कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई। इस शुरुआत के माध्यम से अधिक से अधिक पेड़ लगाने एवं बचाने का प्रत्यक्ष सन्देश समाज एवं पूरी दुनिया को दिया गया। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए दांगी समाज के लोगों ने शिक्षा एवं संगठन के मजबूती पर अपनी-अपनी राय रखी। इसके बाद मोटीवेशनल स्पीकर अनुराग दांगी ने उपस्थित दाँगी युवाओं को जीवन में सफल होने के सूत्रों से परिचित कराया। अनुराग दांगी ने युवाओं से एआई (आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस) के उपयोग से अपने जीवन जीने के तरीके, पढ़ाई-लिखाई, प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी को आसान करने के तरीकों को अपनी पुस्तक ‘एआई ब्रह्मास्त्र’ का जिक्र करते हुए उनका ज्ञानवर्द्धन किया। इसके पश्चात उन्होंने टाइम मैनेजमेंट स्किल पर युवाओं को जागरूक करते हुए अनुशासनपूर्ण जीवन जीने के तरीके से परिचित कराया। युवाओं को उन्होंने मोटिवेट किया कि वर्तमान समय में जीवन में कुछ अच्छा करने के लिए पढ़ाई के साथ-साथ आजीविका कमाने के लिए युवाओं को अपने अंदर आवश्यक कौशल विकसित करने चाहिए। उचित समय प्रबन्धन द्वारा ही युवा अपने अंदर ये कौशल विकसित कर सकते हैं। साथ ही युवाओं को यह भी संदेश दिया कि सरकारी नौकरी प्राप्त करने की दिशा में बढ़ने के साथ-साथ खुद में ऐसे कौशल भी विकसित करें जो रोजगार प्राप्ति में सहायक हो। मातृभाषा हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी को भी आत्मसात करने की अपील उन्होंने युवाओं से की ताकि वर्तमान समय के साथ युवा कदमताल कर सके।  

उपस्थित सभी लोग बहुत ही गौर से इनकी बातों को सुन रहे थे। कक्षा दसवीं के उन 10-10 छात्र एवं छात्राओं को सील्ड देकर सम्मानित किया गया जिन्होंने इस परीक्षा को प्रथम दर्जे के साथ पास करने के साथ-साथ 70% से अधिक अंक हासिल किया। इसके पश्चात 50 से अधिक छात्र-छात्राओं को प्रथम दर्जे से पास करने के लिए मेडल देकर सम्मानित किया गया। इसी कड़ी में कक्षा बारहवीं के 10-10 छात्र एवं छात्राओं को शील्ड देकर सम्मानित किया गया, जिन्होंने 12वीं बोर्ड की परीक्षा को 70% से अधिक अंकों के साथ पास किया। एवं 50 से अधिक छात्र एवं छात्राओं को प्रथम दर्जे से पास करने के लिए मेडल देकर सम्मानित किया गया। इसी क्रम में वर्ष 2024 -25 में अपने अथक प्रयास से प्रतियोगिता परीक्षा पास करते हुए सरकारी एवं गैर सरकारी क्षेत्र की सेवाओं में योगदान देने वाले 30 से अधिक युवा-युवतिओं को शील्ड देकर ‘दांगी गौरव सम्मान’ से सम्मानित किया गया। 

इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में चिनवेरिया ग्राम निवासी राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त श्री अर्जुन मंडल, समाजसेवी रवींद्र मंडल, मौजूद थे। साथ ही इस एक दिवसीय कार्यक्रम में दांगी समाज के डॉ. शशिभूषण, वरिष्ठ कॉंग्रेस नेता सुबोध मंडल, डॉ रंजीत कुमार, श्री गोपाल मंडल, श्री शतेंद्र मंडल, श्री प्रदीप कुमार, श्री नागेंद्र नाथ, श्री जंग बहादुर सिंह, श्री निरंजन मंडल, श्री बरुण कुमार, श्री अरुण मंडल, श्री उमेश चंद्र मंडल, डॉ धर्मेंद्र मंडल(आयुर्वेदिक चिकित्सा पदाधिकारी), श्री पुरुषोत्तम चंद्रा, श्री कुमार मुकेश, श्री योगेश कुमार, श्री राजीव नयन एवं सैकड़ों समाज के गणमान्य लोग इस ऐतिहासिक कार्यक्रम का हिस्सा बने।  

पूरे कार्यक्रम को संचालित करने में दांगी युवा शक्ति के सहयोगी अजित कुमार, राजेश कुमार, चंद्रशेखर कुमार, अवध बिहारी, अरुण कुमार, आदित्य कुमार, नवीन कुमार, प्रेम सिंह दांगी, रुपेश कुमार, बलराम कुमार, राजीव कुमार आदि ने योगदान दिया।



Monday, 23 June 2025

बायकॉट बॉलीवुड : कितना सार्थक?

अपने विचारों को लाखों करोड़ों लोगों तक पहुंचने के लिए वर्तमान समय में सोशल मीडिया एक सशक्त माध्यम बनता जा रहा है। फेसबुक व्हाट्सएप ट्विटर (वर्तमान X) पर अपने फॉलोवर बढ़ाओ, अपने विचार प्रेषित करो और लाखों करोड़ों लोगों तक इसे फैला दो। वरदान के साथ-साथ यह प्रगति अभिशाप भी है। पिछले कुछ वर्षों में हमारे देश की एक अग्रणी फ़िल्म इंडस्ट्री ‘बॉलीवुड’ के बहिष्कार करने का ट्रेंड बनाया जा रहा है। प्रसिद्ध एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद कंगना रनौत से लेकर अलग-अलग लोगों के द्वारा ‘नेपोटिज़्मपर विमर्श करने के पश्चात् ‘बॉयकॉट बॉलीवुड’ का ट्रेंड कुछ ज्यादा ही विस्तृत हो गया है। नेपोटिज़्म की आड़ में रणबीर कपूर, हृतिक रोशन, आलिया भट्ट, और स्टारकिड होने के नाते इन्हें लगातार अपनी फिल्मों में मौके देने वाले करण जौहर से लेकर उन सभी स्टार किड्स वो भी घसीटा गया जिन्होंने अपनी अभिनय दक्षता से लोगों के दिलो-दिमाग में एक अमिट छाप छोड़ते हुए फिल्मी दुनिया में अपना एक अलग मुकाम हासिल किया।

इनके साथ-साथ इन बायकॉट गैंग के शिकार बने पिछले तीन दशक से बॉलीवुड के साथ-साथ हिंदी फ़िल्म को देश-विदेश तक पहचान दिलाने में एक महत्वपूर्ण योगदान देने वाले खान तिकड़ी (शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान)। आमिर खान की फ़िल्म लाल सिंह चड्ढा की रिलीज के दौरान बायकॉट बॉलीवुड गैंग कुछ ज्यादा ही सक्रिय दिखे। आमिर खान की यह फ़िल्म एक हॉलीवुड फ़िल्म की रीमेक थी, जिसे दर्शक ओटीटी प्लैटफॉर्म पर पहले ही देख चूके थे। जिससे कि दर्शकों को थिएटर की ओर खींचने में यह फ़िल्म सफल नहीं रही। हालांकि यह झूठ फैलाने में बॉयकॉट बॉलीवुड गैंग जरूर सफल रहे कि हमारे प्रयास से आमिर खान की फ़िल्म फ्लॉप हो गयी। झूठ इस सेंस में कहा जा सकता है कि इसी गैंग ने कंगना रनौत की धाकड, तेजस से लेकर इमर्जेन्सी फिल्मों के लिए खूब फील्डिंग की, लेकिन ये सभी फ़िल्में दर्शक मिलने के लिए तरसती रही। इससे यह साबित हो गया कि किसी फ़िल्म के चलने या ना चलने का बॉयकॉट बॉलीवुड गैंग से किसी प्रकार का लेना देना नहीं है। दर्शकों को जिस फ़िल्म में मनोरंजन मिलेगा, कहानी से लेकर अभिनय अच्छी मिलेंगी उसे वे देखने जाएंगे ही। आप कितना भी बायकॉट बायकॉट चिल्ला लीजिए। शाहरुख खान की फ़िल्म पठान और जवान ने इसे साबित कर दिखाया।

मजेदार बात यह है कि कंगना रनौत, विवेक अग्निहोत्री, अनुपम खेर आदि की फ़िल्में बॉलीवुड की धरती पर ही निर्मित होती हैं। लेकिन इस दौरान यह गैंग चूहे के बिल में घुसे नजर आएँगे। इसका सीधा सा मतलब निकलता है कि इनकी नजर बॉलीवुड में अपनी योग्यता से पैर जमाए मुस्लिम अभिनेताओं के फिल्मों के बॉयकॉट करने पर केवल होती है। चाहे वो समाज को एक अच्छा संदेश देने वाला ही क्यों न हो? इन्हें सांप सूंघ जाता है जब 'ओ माई गॉड' फ़िल्म की बात आती है। क्योंकि उसमें इनकी सोच को ओछी साबित करने वाला नायक (परेश रावल) इनके धर्म से संबंधित है। P K फ़िल्म का नायक मुस्लिम है इसलिए उसपर ही हमला करना है।

अलग अलग नाम से प्रोफाइल बनाते हुए बॉयकॉट बॉलीवुड का ट्रेंड चलाने वाले लोगो के फेसबुक वॉल पर पी के फ़िल्म का वह सीन अक्सर देख जाता है जिसमे पी के शिव का वेश धरे एक थियेटरकर्मी को परेशान कर रहे होते हैं। वे इसे हिंदू आस्था पर हमला कहते हुए आमिर खान को गन्दी गन्दी गालियाँ दे रहे होते हैं। आखिर इसमें आमिर खान का क्या कसूर? आमिर खान तो केवल उस स्क्रिप्ट को अभिनय के माध्यम से प्रदर्शित या जीवंत कर रहे होते हैं, जिसे फ़िल्म के लेखक एवं डायरेक्टर ने जीवंत करने की जिम्मेदारी दी है। हैरत की बात यह है कि ऐसा अभिनय करने के लिए आमिर खान को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है लेकिन पीके फ़िल्म की कहानी लिखने वाले लेखक राजकुमार हीरानी या अभिजीत जोशी को कुछ नहीं बोलते। क्योंकि लेखक हिंदू धर्म से संबंधित है। इन ‘बायकॉट बॉलीवुड गैंग’ वालों को यह लगता है कि बॉलीवुड अब हिंदू धर्म की महत्ता को दिखानेवाले फ़िल्में नहीं बनाते हैं बल्कि उनका अपमान करने से संबंधित फिल्मों को बनाने पर ज़्यादा ज़ोर देते हैं। ‘बायकॉट बॉलीवुड गैंग’ इस बात को भूल जाते हैं, या शायद उन्हें यह जानकारी ही नहीं हो कि बॉलीवुड का ये बायकॉट करते हैं उसी बॉलीवुड ने शुरुआत से लेकर आज तक हजारों की संख्या में भगवान की भक्ति की चाशनी में डुबाने वाले फिल्में भी दी है। जय संतोषी माँ फ़िल्म के बाद एक काल्पनिक देवी के आपको देशभर में लाखों मंदिर देखने को मिल जाएंगे। जय माँ वैष्णो देवी फ़िल्म आने के बाद वैष्णो देवी यात्रियों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।

इन्हें इस बात का ज्ञान नहीं है कि समय के साथ  फ़िल्म बनाने के ट्रेंड्स परिवर्तित होते रहे हैं, दर्शकों द्वारा कभी भक्ति फ़िल्में पसंद की जाती थी, उस समय की फ़िल्में ऐसी बनी। फिर पारिवारिक प्रेम केंद्रित फ़िल्में बनीं, इसी तरह प्रेम कहानी में सुखद अंत वाली फ़िल्में आईं, डाकुओं पर केंद्रित फ़िल्में आई। और भी अनगिनत ट्रेंड देखने को मिलते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक लोगों के दिलोदिमाग पर अंधविश्वास हावी था तब तक अंधविश्वास में डुबाने वाली फिल्में बनी। जब आम लोगों के साथ-साथ फिल्मों की पटकथा  लिखने वाले लेखक तार्किक सोच वाले बने तब से फ़िल्म बनाने के ट्रेंड में बदलाव आया। हॉलीवुड फ़िल्मों के साइंस फ्रिक्शन फिल्मों में रुचि लेने वाले लोगों को यदि बॉलीवुड फ़िल्म देखने की और लुभाना है, तो उसे कुछ ना कुछ यह बहुत कुछ साइंस फ्रिक्शन या तार्किक चीजों को अपनी फ़िल्म में स्थान देना पड़ेगा।  

Pk फ़िल्म को ही देखें तो बहुत ही तार्किक बातों पर आधारित यह फ़िल्म थी। लेकिन बॉयकॉट बॉलीवुड गैंग को यह फूटी आंख नहीं सुहाती, उन्हें तो वही अंधविश्वास में डूबी, अंधविश्वास परोसती फ़िल्में ही पसंद आती है। केवल अंधविश्वासियों, और जिनकी दुकान अंधविश्वास के भरोसे चलती है उसी को बॉलीवुड के इस trend से मिर्ची लगती है।

2 दिन पूर्व ही आमिर खान की नई फ़िल्म ‘सितारे जमीन पर’ रिलीज हुआ है। गैंग पूरी तरह सक्रिय है ‘बॉयकॉट बॉलीवुड’ ट्रेंड चलाने के लिए। उम्मीद करते हैं फ़िल्म अच्छी हो, अच्छी कमाई करते हुए इन धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोगों के मुँह काला करें।

Thursday, 19 June 2025

सम्राट अशोक के जनहित के कार्य

 चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित मौर्य वंश के तीसरे सम्राट के रूप में अशोक की गिनती एक ऐसे महान भारतीय सम्राट के रूप में की जाती है जिन्होंने लगभग 268 ईसा पूर्व से 232 ईसा पूर्व के बीच शासन किया। अपने दादा चन्द्रगुप्त मौर्य एवं पिता बिंदुसार की विरासत को बढ़ाते हुए अपने शासनकाल में इसे एक नई ऊँचाई (चरमोत्कर्ष) तक पहुंचाया। उस दौरान अशोक के राज्य को ‘मगध साम्राज्य’ के नाम से जाना जाता था। अशोक ने अपने कुशल नेतृत्व से भगत साम्राज्य का विस्तार पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में बांग्लादेश तक, उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में चोल राज्य तक किया।

अशोक के शासनकाल को राजनीतिक एकता को बढ़ावा देने के साथ-साथ उत्तम प्रशासनिक व्यवस्था, धार्मिक, सांस्कृतिक विकास के लिए भी जाना जाता है। अपने 36 वर्ष के शासन के दौरान लगभग संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप पर उन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया। शुरुआत में यह विस्तार जहाँ अपने बाहुबल के दम पर, तो वहीं बाद में अहिंसा और करुणा के दम पर। सम्राट अशोक आपकी प्रशंसा उनके साम्राज्य विस्तार कौशल से कहीं ज्यादा उनके न्यायोचित कानून व्यवस्था, उत्तम प्रशासनिक व्यवस्था व जनहित कार्यों के लिए की जाती है। उनके कार्य आज भी अनुकरणीय हैं –

भारत और पाकिस्तान के अलग-अलग स्थान से प्राप्त अभिलेख, शिलालेखों से पता चलता है कि उन्होंने लोगों को नैतिकता और सदाचार का पालन करने के लिए प्रेरित किया। सत्य, अहिंसा, करुणा आदि महत्वपूर्ण मूल्यों को बढ़ावा दिया, गरीबों तथा असहायों की सहायता करने के लिए योजनाएं बनाए, समाज में एकता और सौहार्द को बढ़ावा दिया। अलग-अलग अवसरों पर की जाने वाली जानवरों की हत्या पर रोक लगाया। साथ ही उन पशुओं के लिए चिकित्सा सुविधाएं भी शुरू की। अपने राज्य में न्यायपूर्ण व्यवस्था के लिए उन्होंने न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति की जो निष्पक्ष और न्यायपूर्ण तरीके से निर्णय देते थे। न्याय सभी वर्गों के लिये समान होता था चाहे वह किसी भी वर्ग या जाति का हो। अपने साम्राज्य के लोगों के जीवन को सुधारने और उनकी भलाई के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए - मनुष्य तथा जानवरों के लिए चिकित्सा सुविधाएँ स्थापित किया। उनके लिए अस्पताल बनवाए, चिकित्सा सेवाओं को बढ़ावा दिया। सड़कों तथा कई नवीन मार्गों का निर्माण करवाया जिससे व्यापार व्यवस्था सुदृढ़ हुई, लोगों की सुविधा के लिए उन मार्गों पर विश्राम गृह तथा पेड़ों की छाया के लिए पेड़ लगवाए। सिंचाई तथा पेयजल की सुविधा के लिए नहरों तथा जलाशयों का निर्माण करवाया।

जिन मूल्यों को अपनाने और उनके साथ जीने की बात अशोक करते हैं, उससे पहले उन्होंने खुद अपनाया, उनके साथ जिया फिर लोगों को भी इसे अपनाने के लिए प्रेरित किया। एक कट्टर हिंसक शासक से एक अहिंसा का समर्थक बनने का सफर आकस्मिक नहीं था। कलिंग (वर्तमान में उड़ीसा राज्य में स्थित) के युद्ध में सम्राट अशोक की जीत हुई, लेकिन इस युद्ध में हुई हिंसा और रक्तपात नहीं उन्हें प्रभावित किया। तत्पश्चात उन्होंने अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित बौद्ध धर्म अपना लिया और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए बौद्ध धर्म को अपने सूझबूझ से भारत के साथ-साथ श्रीलंका तक फैलाने का काम किया।

सम्राट अशोक के कार्यों का गहराई से विश्लेषण करें तो उनके कार्य आज भी अनुकरणीय हैं।

Saturday, 7 June 2025

व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी है आरंभिक शिक्षा

हमारे देश में कई ऐसे बुद्धिजीवी लोग हैं जिन्हें हमारी शिक्षा और उससे संबंधित नौकरी हेतु चयन की प्रक्रिया से शिकायत है। इनमें से एक हमारे मित्र भी हैं जो लगभग सात वर्षों से हमारे देश के युवाओं को चिकित्सा क्षेत्र में ले जाने हेतु आवश्यक प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कराते हैं। मेडिकल जगत को ही ध्यान में रखते हुए उनकी जो शिकायत है उसे यहाँ रखा जा रहा है,

‘हमारे देश में बच्चों को एक डॉक्टर बनने के लिए क्या-क्या करना होता है? उन्हें कक्षा नर्सरी से लेकर कक्षा 8 वीं तक कई प्रकार के विषय पढ़ने पड़ते हैं। भले ही इस दौरान आप कक्षा में टॉप पर क्यों ना रहे हों! ढेर सारे मैडल क्यों ना जीते हों? वे सभी के सभी धरे रह जाते हैं जब आप बारहवीं में आते हैं। बारहवीं पास कर लेने के बाद आपको एक इम्तिहान देना होता है ताकि आपका MBBS के लिए चयन हो जाए। इसकी तैयारी के लिए आप वही सब रटेंगे जो आपने बारहवीं में रटा था। इसके पश्चात यदि इस कोर्स में आपका चयन हो जाता है, तब अब तक आपने (नर्सरी से कक्षा 8 वीं तक) जो भी रटा था, इतनी मेहनत की, इतना दिन रात जगे, सब कुछ किया, वो सब अब किसी काम का नहीं होगा। अब आपको कुछ सालों तक डॉक्टर की पढाई करनी होगी, फिर उस पढाई के बाद आपकी ट्रेनिंग होगी। तब जा कर आप डॉक्टर बनेंगे। अब सवाल ये आता है कि जब डॉक्टर की पढाई करवाकर और फिर ट्रेनिंग देकर आपको डॉक्टर बनता है ये सिस्टम तो फिर वो आपको सीधे इसके लिए क्यूँ नहीं चयनित कर लेता है वो आपको कक्षा एक से लेकर 12वीं तक क्यूँ इतनी मेहनत करवाता है? तो इसका जवाब ये मिलता है कि इतने सारे लोग हैं, लाखों बच्चे हैं, सबको डॉक्टर बनना है, और सबको ऐसे ले लिया तो फिर इतने डॉक्टर किस काम के होंगे? इसलिए बनाना कम है, कम्पटीशन इसीलिए रखा जाता है.. सरकार इसीलिए सीट का कोटा बनती है.. ये नहीं कि आपके पास प्राइवेट कॉलेज है और आप दस लाख डॉक्टर अपने यहाँ से एक साल में निकाल दें.. फिर डॉक्टर की कोई वैल्यू नहीं रह जायेग। समझ रहे हैं आप इस खेल को? इसलिए आपसे कक्षा 12 तक कत्थक डांस करवाया जाता है। बाद में डाक्टरी की ट्रेनिंग होती है। उस कत्थक डांस का आपके भविष्य से कोई लेना देना नहीं होता है। वो ज्ञान किसी काम का नहीं होता है। मेरे अपने जीवन में वो कुछ भी कभी काम नहीं आया जो मैंने 12वीं तक पढ़ा।  और आप इस ज्ञान को इतना सीरियसली ले कर बैठे रहते हैं और अपने दो बच्चों को पढ़ाने में अपना सारा जीवन “नष्ट” कर देते हैं। वो ज्ञान जो किसी काम का नहीं उसमें आप “बीस” साल तक स्वयं पागल बने रहते हैं और अपने बच्चों को मानसिक उत्पीडन की हद तक पागल किये रहते हैं.. इस पर आपको सोचना चाहिए।

इनकी बातों का विश्लेषण किया जाए तो इनका यह मानना है कि बच्चों को पहली से आठवीं या बारहवीं तक पढ़ाई के नाम पर अलग अलग विषय पढ़ा कर इनका समय बर्बाद किया जाता है। जबकि ये होना चाहिए कि जिस बच्चे को मेडिकल जगत की और जाना है, उसे शुरुआत से ही मेडिकल से संबंधित पढ़ाई दिया जाना चाहिए। एक तरीके से वे प्रत्येक बच्चों को उस तरह की शिक्षा दिए जाने की बात करते हैं जैसे किसी के खेल में रुचि रखने वाले बच्चों को बचपन से ही उस खेल की ट्रेनिंग में शामिल कर दिया जाता है।

यहाँ इस बात पर गौर किया जाना चाहिए कि एक खेल के लिए बच्चों को ट्रेंड करना और चिकित्सा जगत में सेवा के लिए किसी बच्चे को प्रशिक्षित करना, दोनों अलग-अलग मायने रखते हैं। किसी भी खेल की अपनी अलग अलग स्तर की बारीकियां हैं। उन बारीक कौशलों (skills) को आत्मसात करने के बाद ही कोई उस क्षेत्र में सफल हो पाता है। ऐसे ही चिकित्सा जगत जैसे क्षेत्र में सफल रूप से सेवा देने के लिए जो आवश्यक कौशल होना चाहिए उसका विकास नर्सरी से आठवीं या बारहवीं कक्षा तक प्रमुखता से किया जाता है।

यदि हम केवल आंगनबाड़ी का ही उदाहरण लें तो तीन से 6 साल की अवस्था के दौरान ही बच्चों के शारीरिक विकास के साथ-साथ बौद्धिक विकास, भाषाई विकास, सामाजिक एवं भावनात्मक विकासरचनात्मक विकास से संबंधित कौशल पर गहराई से कार्य किया जाता है। इन पांच क्षेत्रों से संबंधित कौशल का विकास बच्चो में आठवीं से लेकर बारहवीं तक होता ही रहता है, जीवन पर्यंत भी होता है। पहली से 12 तक की शिक्षा बच्चों में अलग अलग प्रकार के भाषाई कौशल (समझ के साथ सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना, सोचना, विचार करना, मौखिक व लिखित रूप से अपने विचार अभिव्यक्त करना) गणितीय कौशल (तर्क करना/लगाना, दैनिक जीवन से संबंधित जोड़ने, घटाने, गुणा, भाग करने संबंधी गणितीय समस्याओं का समाधान करना) का विकास करने के लिए अति आवश्यक है। इसी तरह विज्ञान व सामाजिक विज्ञान से संबंधित कौशल जैसे किसी घटना का कार्य कारण संबंध जानना, किसी घटना का विश्लेषण करना, सर्वे करना, अवलोकन करना आदि कौशल/दक्षताऐं यदि आपमें नहीं होगा तो मेडिकल प्रवेश परीक्षा तक निकालने आपके लिए नाको चने चबाने जैसा है। एमबीबीएस करने के बारे में सोचना तो छोड़ ही दीजिए। उपरोक्त कौशल के बिना मेडिकल से लेकर इंजीनियर बनने की पढ़ाई केवल उच्चारण कर पढ़ने भर मात्र होंगे। इसलिए पहली से 12वीं तक की पढ़ाई आपके डॉक्टर के रूप में तैयार होने के लिए नींव तैयार करती है। इसमें value & disposition कौशल भी शामिल है। बिना इसके आपमे humanity आ ही नहीं सकती।

इसलिए अपने बच्चों को डॉ, इंजीनियर बनाने के सपने बाद में देखिए पहिले ये देखिए कि पहली से लेकर 12वीं कक्षा तक के अपेक्षित कौशल आपके बच्चे में हैं या नहीं। यदि नहीं है तो उसपर काम करने की आवश्यकता है।

कोई भाषा न श्रेष्ठ होती है न हीन

सोशल मीडिया फेसबुक पर ‘सरकारी स्कूल’ नामक पेज द्वारा साझा किए गए एक पोस्ट पढ़ने को मिला जो राजस्थान के एक जन सुनवाई से संबंधित था। राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर उस जन सुनवाई में थे। वहाँ एक छात्रा मंत्रीजी से अंग्रेजी भाषा में एक प्रश्न पूछती है जिसे सुनकर मंत्रीजी अपने कान पकड़ लेते हैं और छात्रा से कहते हैं कि ‘आप हिंदी में प्रश्न पूछें’। इसपर छात्रा बोलती हैं कि ‘आप तो शिक्षा मंत्री हो ...’।

            पोस्ट पर कई लोग अपने-अपने विचार रख रहे थे। अपनी-अपनी समझ के अनुसार अधिकांश मंत्री जी को बुरा-भला कह रहे थे। मैं भी खुद को रोक नहीं पाया। मैंने जो विचार रखे वह मंत्रीजी के पक्ष में जाते दिखे। दरअसल कोई भी व्यक्ति यदि शिक्षा मंत्री है तो यह बिल्कुल भी आवश्यक नहीं है कि उसके पास अंग्रेजी भाषा में अपनी बात अभिव्यक्त करने का या समझने का कौशल (skill) हो ही। वास्तव में वह एक जन प्रतिनिधि है वह भी ऐसे क्षेत्र का जहां के अधिकांश लोग आम बोलचाल में हिंदी या स्थानीय भाषा का इस्तेमाल करते हैं। वह किसी स्कूल के अंग्रेजी विषय का कोई शिक्षक नहीं है जो कोई उससे अंग्रेजी भाषा में ही प्रत्युत्तर मिलने की अपेक्षा रखे।   

प्रश्न पूछने वाली छात्रा की बात की जाए तो ये अच्छी बात है कि निजी स्कूल में पढ़ते हुए उसे अंग्रेजी भाषा सीखने का अवसर मिला जिससे वह अंग्रेजी भाषा में बातचीत करना सीख पाई। उसे लगातार अंग्रेजी बोलने और समझने वाले सहपाठियों का लगातार साथ मिला फलस्वरूप उसके मन में उसी भाषा (अंग्रेजी) में विचार बनने लगे, जिससे अंग्रेजी बोलना प्रश्न पूछने वाले के लिए आसान हो गया। इसके विपरीत मंत्रीजी की परवरिश हिंदी बोलने वालों के बीच हुई इसलिए वह हिंदी में बातचीत करने में ज्यादा सहज हैं।

शिक्षा मंत्री व छात्रा दोनों ही भाषाई कौशल से लैस हैं। सुनकर, समझकर अपने विचार अभिव्यक्त करने की भाषाई कौशल (language skill) या दक्षता छात्रा के साथ-साथ उस मंत्री जी में कूट-कूट कर भरा है। इसलिए वह बोल भी रहे कि प्रश्न हिंदी में पूछो। और हिंदी में प्रश्न पूछने पर हिंदी भाषा में संतोषप्रद उत्तर दिया भी उन्होंने।

अपने विचार यदि कोई धड़ाधड़ अंग्रेजी भाषा में व्यक्त कर रहा है तो इसका यह अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए कि धड़ाधड़ हिंदी बोलने वाला उससे कम है। जैसा कि इस संवाद/रिपोर्ट को लिखने वाले पत्रकार (journalist) ने किया। सब भाषा की एक समान श्रेष्ठता है न कोई किसी से कम है न कोई ज्यादा। 



Friday, 2 May 2025

शिक्षक सेमिनार में कहानी उत्सव कराने वाले शिक्षकों को किया गया सम्मानित

 विकासखण्ड स्त्रोत केंद्र, बेमेतरा एवं अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के संयुक्त योगदान से दिनांक 01 मई 2025 को विकासखण्ड स्त्रोत केंद्र, बेमेतरा के प्रशिक्षण भवन में शिक्षक सेमिनार एवं सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। इस एक दिवसीय आयोजन में ‘विकासखण्ड स्तरीय कहानी उत्सव’ आयोजित करने वाले 176 शिक्षकों में से उन 62 शिक्षकों को सम्मानित किया गया जिन्होंने विकासखण्ड स्त्रोत समन्वयक, बेमेतरा के आग्रह पर अपनी-अपनी शाला/कक्षा के बच्चों को 6 से लेकर 24 सप्ताह तक निरंतर कहानी सुनाते हुए बच्चों में बुनियादी साक्षरता कौशल विकसित कराने हेतु कार्य किया।

          ज्ञात हो कि बेमेतरा विकासखण्ड स्त्रोत समन्वयक श्री राजेन्द्र कुमार साहू ने प्रत्येक बच्चों में FLN (Foundational Literacy & Numeracy) सुनिश्चित कराने की दिशा में कार्य करते हुए सितंबर 2024 में विकासखण्ड स्तरीय कहानी उत्सव (हर सप्ताह एक कहानी) की शुरुआत की थी। इसके अंतर्गत मुस्कान पुस्तकालय से हर सप्ताह एक कहानी एवं उससे संबंधित गतिविधियां (जिसमें भाषा सिखाने के 4 ब्लॉक मॉडल मौखिक भाषा विकास, डिकोडिंग, पठन, लेखन संबंधी गतिविधियों का समावेश होता था) एक बुकलेट संकुल समन्वयकों के माध्यम से साझा की जाती थी। शिक्षक अपनी कक्षा में बच्चों के साथ उन गतिविधियों को कराते थे व इससे संबंधित फोटो/विडिओ व्हाट्सएप समूह में साझा करते थे। सितंबर से मार्च माह तक कुल 26 कहानियाँ उन्होंने साझा किए।  

सम्मानित किए गए शिक्षकों में से 7 ने अपने-अपने कार्यानुभव, अलग-अलग थीम पर केंद्रित होकर कार्य करने के अनुभव, कहानी उत्सव में लंबे समय तक सहभागिता से बच्चों के स्तर में आए बदलाव, उनकी शिक्षकीय प्रक्रिया में आए बदलाव को सभी उपस्थित 50 से अधिक शिक्षकों, शिक्षा अधिकारियों के समक्ष Power point Presentation के माध्यम से साझा किया। 

निम्न शिक्षकों ने अपना प्रस्तुतीकरण दिया-

क्रम

शिक्षक का नाम

शाला का नाम

विषयवस्तु

01

भगवती प्रसाद मार्कन्डेय

प्रा. शाला तरके

(चरगवा संकुल)

FLN प्राप्ति हेतु बाल साहित्य (मुस्कान पुस्तकालय) का प्रयोग: 6 माह के अनुभव का सार

02

बबली वैष्णव

प्रा. शाला, मुड़पार (बिलाई संकुल)

कहानी के माध्यम से वर्ण-मात्राओं का ज्ञान: 6 माह के अनुभव का सार

03

रश्मि तिवारी

प्रा. शाला, पड़कीडीह  (झाल संकुल)

सक्रिय पुस्तकालय हेतु कहानी की भूमिका: 6 माह के अनुभव का सार

04

चंद्रहास सोनी

प्रा. शाला, बहुनवागाँव  (पिकरी संकुल)

पुस्तकालय के उपयोग से बच्चों में पढ़ने की आदत का निर्माण: 6 माह के अनुभव का सार

05

किरण खरे

प्रा. शाला, सिंघोरी (सिंघोरी संकुल)

कहानी सुनाना एक कला: 6 माह के अनुभव का सार

06

मनीषा कौशल

प्रा. शाला, नवागाँव (हेमाबंद संकुल)

कहानी के माध्यम से भाषा के 4 ब्लॉक मॉडल पर काम: 6 माह के अनुभव का सार

07

ज्योति किरण साहू

प्रा. शाला, मटका (मटका संकुल)

Story telling with code mix

 

इन सभी शिक्षकों ने साझा की गई कहानियों पर कार्य करते हुए अलग अलग थीम पर केंद्रित रहते हुए अपना प्रस्तुतीकरण दिया। इन शिक्षकों के कार्यों की सराहना करने एवं फीडबैक देने के लिए सेमिनार में तीन पैनालिस्ट (विषय विशेषज्ञ) भी शामिल हुए। ये पैनलिस्ट थे – सुश्री प्रतिभा साहू (शासकीय प्राथमिक शाला, बेरला) सुश्री सावित्री साहु (शासकीय प्राथमिक शाला, जामगाँव, बेरला) श्रीमती मोनिका (सदस्य, अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन, बेरला)। इन सभी ने सभी 7 शिक्षकों की प्रस्तुतीकरण के बाद उनके कार्यों की समीक्षा करते हुए और क्या-क्या बेहतर कर सकते हैं? इसपर बात रखे।  

प्रस्तुतिकरण के बाद सभी प्रतिभागी शिक्षकों को बेमेतरा जिला शिक्षा अधिकारी डॉ. कमल कपूर बंजारे, बेमेतरा जिला मिशन समन्वयक (समग्र शिक्षा) श्री नरेन्द्र वर्मा, सहायक जिला मिशन समन्वयक भूपेन्द्र साहू एवं धनंजय शर्मा, बेमेतरा विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी श्री अरुण खरे, बेमेतरा बीईओ जी एन सिंह बेमेतरा विकासखण्ड स्त्रोत समन्वयक, श्री राजेन्द्र कुमार साहू व अन्य उपस्थित शिक्षा विभाग के अधिकारियों के द्वारा प्रमाण पत्र वितरित किया गया। संकुल अकादमिक समन्वयक डोमेन्द्र पाण्डेय, चुरावन वर्मा, चैतराम सेन, आदि की भी गरिमामय उपस्थिति रही।

सेमिनार से पूर्व प्रतिभागी शिक्षकों को प्रस्तुतीकरण के लिए तैयार करने से लेकर सेमिनार आयोजन में अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन, बेमेतरा के सदस्यों (राघवेंद्र, जयप्रकाश, श्रेया, स्वरूपा, वासु, पवन, साकेत, मनीष एवं कुमुद) की सक्रिय भूमिका रही।