Thursday, 1 October 2020

महात्मा गांधी का पत्रकारिता जीवन

मोहनदास करमचंद गांधी जिन्हें भारतवासी महात्मा गांधी के नाम से संबोधित करती हैन केवल एक लोकप्रिय राजनेतासमाज सुधारकदार्शनिक थेबल्कि एक मंझे हुए पत्रकार भी थे। पहली बार वे पत्रकारिता के संपर्क में तब आए जब 1888 ई. में कानून की पढ़ाई की क्रम में वे लंदन गए थे। लंदन में वे अपने राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले के संपर्क में आए जो उस समय लंदन से ‘इंडिया’ पत्रिका निकालते थे। 1890 में इस पत्रिका से जुड़कर उन्होंने संवाददाता का काम किया। इसके अतिरिक्त 'लंदन वेजिटेरियन सोसाइटीके संपर्क में आकर शाकाहारभारतीय रीति रिवाजत्योहार पर आधारित कई आलेख लिखे।[i] 7 फरवरी 1891 ई. को गांधीजी का पहला आलेख ' इंडियन वेजीटेरियनशीर्षक से प्रकाशित हुई।[ii] इसी के साथ ही गांधी जी के स्वतंत्र पत्रकारिता जीवन की शुरुआत होती है।

          40 वर्षों तक लगातार पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय रहते हुए गांधी जी ने समाचार सामग्री का प्रूफ रीडिंगसंवाददाता से लेकर संपादक के रूप में योगदान दिया। सम्पूर्ण पत्रकारिता जीवन में वे छह पत्र-पत्रिकाओं जैसे 'इंडियन ओपिनियन' 'यंग इंडिया' 'नवजीवनतथा ' हरिजन(अंग्रेजी)' 'हरिजन सेवक (हिंदी)' 'हरिजन बंधु (गुजराती)के संपादन तथा लेखन से जुड़े रहे। वे तीन अंग्रेजी भाषी साप्ताहिक पत्र 'इंडियन ओपिनियन (1903-1915) 'यंग इंडिया (1919-1931) तथा हरिजन (1933-1942 तथा पुनः 1946- जनवरी 1948) के संपादन से जुड़े रहे। इसके अतिरिक्त अनेक समाचार पत्रों जैसे 'प्रजाबंधु' 'अमृतबाजार पत्रिका' 'द हिंदू' ‘द बॉम्बे क्रॉनिकल’ ‘काठियावाड़ टाइम्स’ 'द सर्च लाइट' 'बिहार समाचारआदि पत्रिकाओं को दिये साक्षात्कार के माध्यम से अपनी आवाज़ जनता तक पहुंचाया।

          इंडियन ओपिनियन के प्रथम अंक से पता चलता है कि गांधीजी पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य 'सेवामानते थे।[iii] 1915 ई. में जब वे दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे तो 1918 से ‘इंडियन ओपिनियन’ के प्रकाशन की ज़िम्मेदारी संभाल रहे अपने द्वितीय पुत्र मणिलाल को समय-समय पर पत्र के माध्यम से पत्रकारिता के गुर सिखाते रहते थे। अपने पुत्र को निर्देश देते हुए वे कहते हैं कि ‘कभी भी क्रोध में आकर किसी के खिलाफ तीक्ष्णचुभने वाली भाषा में कुछ भी गलत नहीं लिखना चाहिए। यदि ऐसी गलती हो जाए तो अपनी गलती स्वीकार कर लेना चाहिए[iv]  

          गांधीजी पत्रकारिता को जन सामान्य लोगों को समकालीन इतिहास से परिचित कराने तथा साक्षर बनाने का सर्वप्रमुख माध्यम मानते थे। यही कारण है कि दक्षिण अफ्रीका से लेकर भारतीय स्वतंत्रता की प्राप्ति तक उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से राजनीतिकसामाजिकआर्थिकसांस्कृतिक तथा धार्मिक विषयों पर लगातार लेखन करते हुए जनता को जागृत किया। उनकी पत्रकारिता के उद्देश्यों में शामिल था - विभिन्न धर्मसंप्रदायजाति के लोगों के बीच आपसी भाईचारा विकसित करनाजातिगत भेदभाव सहित अस्पृश्यता का निवारण करनागरीबी उन्मूलनरूढ़ीवादी परंपराओं से स्त्रियों को मुक्त करनाब्रिटिश सरकार के दमनकारी शासन से मुक्ति दिलाना आदि। इन मुद्दों के प्रति उनकी सक्रियता ने उन्हें समस्त धर्मावलंबियोंगरीब जनतास्त्रियोंकामगारोंअस्पृश्य सहित समस्त देशवासियों के बीच लोकप्रिय बनाया।[v] पत्रकारिता ने उनके अनेक उद्देश्योंआंदोलनों जैसे स्वदेशी आंदोलनसत्याग्रहहरिजन उद्धार आदि को गति प्रदान की।

          प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात जब ब्रिटिश सरकार होमरूल देने के वादे से मुकर कर भारतीयों पर रौलट एक्ट लगा दिया तो गुस्से में आकर गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार की खिलाफत करने के लिए 7 अप्रैल 1919 से एक गैर पंजीकृत साप्ताहिक पत्र 'सत्याग्रह' का प्रकाशन प्रारंभ किया। जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद उन्होंने इसका प्रकाशन बंद कर छोटे-छोटे पम्पलेट निकालना शुरू किया। इसी बीच कुछ गुजराती नौजवानों ने अंग्रेजी भाषी साप्ताहिक पत्र 'यंग इंडिया' निकालना शुरू किया तथा गांधीजी को इसके संपादन के लिए तैयार कर लिया। दक्षिण अफ्रीका से भारत आने के पश्चात यहां से भारत में उनके पत्रकारिता जीवन की शुरुआत होती है जिसके बदौलत उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यगरीबीअस्पृश्यता से लड़ने मेंसुषुप्त देशवासियों को जगानेउनमें राष्ट्रीयता की भावना भरने जैसे कार्यों में योगदान दिया।

          गांधीजी के आलेख के पाठक मुख्यतः किसान तथा बुनकर या अन्य कारीगर होते थे जो अधिक पढ़े लिखे नहीं होते थे। इसे ध्यान में रखते हुए अपने लेखन की भाषा को उन्होंने सरल बनाया ताकि आम जनों द्वारा उसके अर्थ को आसानी से समझा जा सके। वैकल्पिक पत्रकारिता के पक्षधर होने के साथ-साथ वे समाचारपत्र से धन उगाही करने के सख्त खिलाफ थे। वे प्रेस की स्वतंत्रता के हिमायती थे तथा इस पर किसी भी प्रकार का सरकारी नियंत्रण नहीं होने देना चाहते थे।

          आजादी के 7 दसक बाद आज जिस तरह पत्रकारिता टीआरपी के माध्यम से न केवल धन उगाही का माध्यम बनता जा रहा हैसरकारी दखल से पत्रकार सरकारी प्रवक्ता बनते जा रहे हैं। इनके माध्यम से समाज में सांप्रदायिकता का जहर घोला जा रहा है। ऐसे विषम परिस्थिति में वर्तमान पत्रकारिता जगत को आवश्यकता है गांधीजी के पत्रकारिता संबंधी विचारों से प्रेरणा लेने की। इन्हें अपनाने की। अन्यथा वह दिन दूर नहीं कि जिस पत्रकारिता को गांधी जी देशवासियों को जगाने का एक सशक्त माध्यम मानते थे वह देशवासियों की बर्बादी का कारण बन जाएगा।



[i] Bhattacharya S.N., ‘Mahatma Gandhi The Journalist’ Asia Publishing House, New Delhi, 1965, Page No. 5

[ii] Ibid. Page No. 2

[iii] Gandhi M.K., ‘An Autobiography of the story of my experiments with truth’ Penguin Books, London, page no. 221

[iv] https://www.thehindu.com/todays-paper/tp-miscellaneous/tp-others/mahatma-gandhi-as-journalist/article27939749.ece

[v] K. Dr. Puttaraju, ‘Mahatma Gandhi as a writer, editor and Journalist’ International Journal of Acadamic Research, October-December 2014, ISSN: 2348-7666, Page No. 44-45 

मूलतः 18 अक्टूबर 2020 के educational news दैनिक समाचारपत्र में प्रकाशित