सामान्य परिचय
पृथ्वीराज
चौहान (तृतीय) जिसे राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता है, मध्यकाल (12वीं
शताब्दी) में दिल्ली तथा अजमेर क्षेत्र में शासन करने वाला अंतिम हिंदू राजा के
रूप में जाना जाता है। उसके राज्य का विस्तार वर्तमान भारत के राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के कुछ
भाग,
हिमाचल प्रदेश तथा पंजाब तक था। पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1168 ई. में हुआ था। एक
युद्ध में अपने पिता सोमेश्वर चौहान की मृत्यु के बाद 1179 ई. में वह अजमेर का
राजा बना। राजा बनते ही उसने अपने पिता के हत्यारे भीमदेव सोलंकी, जो गुजरात क्षेत्र का
शासक था, पर आक्रमण कर उसे मार डाला। उसकी बहादुरी से खुश होकर उसके
नाना टापरा वंश के अनंगपाल तृतीय जो दिल्ली (तत्कालीन ढिल्लिका) के शासक थे, ने पृथ्वीराज को अपना उत्तराधिकारी
बनाया क्योंकि उनके कोई पुत्र नहीं थे।
व्यक्तिगत जीवन तथा राजा जयचंद से शत्रुता
कन्नौज
के गहड़वाल राजपूत राजा जयचंद की पृथ्वीराज चौहान से दुश्मनी थी। ऐसा माना जाता है
कि दोनों राजाओं के बीच या दुश्मनी किसी राज्य या क्षेत्र को लेकर नहीं, बल्कि लोकप्रियता को
लेकर थी। तराइन के प्रथम युद्ध में विजय के बाद जिस तरह से पृथ्वीराज चौहान की जय
जयकार हुई, जयचंद के मन में पृथ्वीराज चौहान के प्रति ईर्ष्या की भावना
आ गई। यही कारण है कि जयचंद ने जब अपनी पुत्री संयोगिता/संयुक्ता के विवाह के लिए
स्वयंवर का आयोजन किया था तो अलग-अलग राज्यों से सभी राजकुमारों को निमंत्रित किया, पृथ्वीराज चौहान को
छोड़कर। पृथ्वीराज चौहान से उसकी इतनी दुश्मनी थी कि उसने उसे बेज्जत करने के लिए
उसकी मूर्ति बनाकर स्वयंवर स्थल के बाहर चौकीदार के रूप में खड़ा कर दिया था। पृथ्वीराज
रासो के अनुसार संयोगिता को पृथ्वीराज चौहान की बहादुरी पर मोहित होकर उसी से
विवाह करने की इच्छा रखती थी। इसलिए संयोगिता ने सभी राजकुमारों को छोड़कर पृथ्वीराज
की मूर्ति के गले में माला डाल दी। तत्पश्चात मूर्ति के पीछे छिपे पृथ्वीराज चौहान
संयोगिता को उठाकर दिल्ली ले आया। पृथ्वीराज चौहान की कुल 11 पत्नियां थी। इनमें
से संयोगिता सबसे छोटी थी। इन 11 पत्नियों से 21 संतानों के होने का उल्लेख मिलता
है। इनमें से संयोगिता के पुत्र को छोड़कर बाकी दसों रानियों से 20 पुत्रियां थी। पृथ्वीराज
चौहान के संतानों के नाम ज्ञात होते हैं – गोविन्दराज, अक्षय, रेंसी आदि।
मुहम्मद गौरी से संघर्ष
वर्तमान अफगानिस्तान स्थित गौर के शासक
मुहम्मद (मुहम्मद गौरी) अपने राज्य का विस्तार करते हुए पृथ्वीराज चौहान के राज्य
के बिलकुल नजदीक भटिंडा तक आ गया था। अपने राज्य के लिए संभावित खतरे को देखते हुए
पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गौरी पर आक्रमण कर दिया। 1191 ई. में तरायन नामक स्थान
पर दोनों पक्षों के बीच युद्ध हुआ जिसमें मुहम्मद गौरी पराजित हुआ। वह पृथ्वीराज चौहान
द्वारा कैद कर लिया गया गया। चुकी पृथ्वीराज चौहान की छवि एक बहादुर लेकिन उदार
राजा की थी। यही कारण है कि तराइन के प्रथम युद्ध में पराजित मोहम्मद गौरी को उसने
अपने दरबारियों के मना करने के बावजूद माफ कर छोड़ दिया। यह उदारता पृथ्वीराज
चौहान के लिए घातक सिद्ध हुई। इसके 1 वर्ष के अंदर ही मुहम्मद गौरी ने अपनी सेना
का पुनर्गठन कर पृथ्वीराज चौहान के राज्य पर पुनः आक्रमण कर दिया। दोनों पक्षों के
बीच यह लड़ाई पुनः 1192 ई. में तरायन के मैदान में हुई। धोखे के दम पर लड़े गए इस
युद्ध में मुहम्मद गौरी विजयी हुआ तथा पृथ्वीराज चौहान को उसके दरबारी कवि
चंदबरदाई के साथ सिरोही नामक स्थान पर युद्धबंदी बनाकर गौर ले जाया गया। ऐसा कहा
जाता है कि पृथ्वीराज चौहान को जब गौरी के सामने लाया गया तो गुस्से से वह उसे
लगातार घूरे जा रहा था। मुहम्मद गौरी द्वारा नज़रें नीचे करने के आदेश पर भी जब वह
उसे घूरता रहा तो उसने पृथ्वीराज चौहान को अंधा करवा दिया। पृथ्वीराज चौहान
तीरंदाजी का माहिर खिलाड़ी था। किसी व्यक्ति को बिना देखे उसके आवाज की दिशा भांपकर
लक्ष्य भेद सकता था। चंदबरदाई ने बदला लेने के लिए उसके इस कौशल का प्रयोग किया।
चंदबरदाई ने एक दोहे के माध्यम से पृथ्वीराज को मुहम्मद गौरी की स्थिति बताई।
पृथ्वीराज ने तीर चलाया जो गौरी के गले में जाकर लगा। गौरी की तत्काल मृत्यु हो
गई। यातनाओं से बचने के लिए पृथ्वीराज तथा चंदबरदाई ने एक दूसरे की हत्या कर दी।
इस तरह दिल्ली के अंतिम हिंदू राजा
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु हो गई। इसके पश्चात अगले 700 वर्षों (1857 ई.) तक
मुस्लिम शासन तथा 1947 तक ब्रिटिश सरकार के अधीन रहा। पृथ्वीराज चौहान की वीरता
भरे जीवन को 2 पुस्तकों के माध्यम से जाना जा सकता है – चंदबरदाई लिखित ‘पृथ्वीराज रासो’ तथा जयानक लिखित ‘पृथ्वीराज विजय’।
पृथ्वीराज चौहान का दरबार
पृथ्वीराज
चौहान का दरबार वीर सामंतों से भरा था। इनमें से नौ के नाम प्राप्त होते हैं- कन्ह, चामुंडराय, हरि सिंह, वीर सिंह, गुरुराम, सनकनी, कनक राय, राम राय, कैमास।[1] इनमें
से तीन पृथ्वीराज चौहान के विशेष विश्वासपात्र थे- कन्ह, गुरुराम तथा कैमास।
पृथ्वीराज की अनुपस्थिति में राज्य के शासन कार्य की जिम्मेदारी कैमास के कंधों पर
ही होती थी।
पृथ्वीराज चौहान कालीन सामाजिक – धार्मिक स्थिति
प्राचीन
काल की तरह मध्यकालीन सामाजिक व्यवस्था भी वर्ण पर आधारित थी। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र। इनके
अतिरिक्त भी एक अन्य श्रेणी थी जिसे चांडाल, मलेच्छ, आदि उपनामों से जाना जाता था। चांडाल यहीं के
मूल निवासियों को, जबकि मलेच्छ यवनों (तुर्की-फारस, शक-कुषाण लोगों) या
विदेशी आक्रमणकारियों को कहा जाता था। अल्बेरूनी, इब्न बतूता, चंदबरदाई, कर्नल टाड, आदि विदेशी यात्रियों, इतिहासकारों के यात्रा
वृतांत/लेखन में तत्कालीन सामाजिक स्थिति का वर्णन मिलता है। पृथ्वीराज चौहान कालीन
सामाजिक – धार्मिक स्थिति को तेजपाल सिंह धामा की एक पुस्तक ‘पृथ्वीराज चौहान एक
पराजित विजेता’ से जानी जा सकती है। इसमें पृथ्वीराज चौहान के नाना दिल्ली के
राजा अनंगपाल तथा फारस के एक शासक मोहम्मद कुतुबुद्दीन के ज्येष्ठ पुत्र कयामत खान
(जो अनंगपाल के पास अपनी पत्नी शाह बानो व पुत्री शबाना के साथ शरणार्थी के रूप
में आता है) के बीच एक बातचीत का वर्णन है। अनंगपाल जब कयामत खान से शुद्धिकरण कर
मुसलमान से हिंदू बन जाने की बात करते हैं तो कयामत खान के जवाब में तत्कालीन
सामाजिक स्थिति की झलक मिलती है। कयामत खान के अनुसार,
“क्षमा करें महाराज ! मैं परिवार समेत इस्लाम त्यागकर हिंदू
धर्म अपना तो लूँगा लेकिन हिंदू बनने के बाद मेरी पुत्री से कोई भी हिंदू युवक
उससे विवाह नहीं करेगा, बल्कि उसे मुसलमानी कहकर जीवनभर अपमानित किया
जाएगा। हिंदुओं में जाति प्रथा एक सामाजिक बुराई का रूप ले चुकी है,
जाति प्रथा के दुष्परिणाम हम स्वयं भुगत चुके हैं। जहां मैं पैदा हुआ उस देश का
नाम फारस है। हमारे देश में 50 वर्ष पूर्व सभी हिंदू ही थे लेकिन शूद्र वर्ण के
लोगों की संख्या अधिक थी, ब्राह्मण लोग उसे अछूत समझकर प्रताड़ित करते
रहते थे। शूद्रों ने अपमान की अग्नि में जलते हुए इस्लाम कबूल कर लिया। ब्राह्मण
लोग जाटों को अश्लील शब्दों से अपमानित करते थे इस कारण क्षत्रिय जाटों ने इस्लाम
कबूलकर सारे ब्राह्मणों को मौत के घाट उतार दिया। हमें जाटवंशी होने पर गर्व है
लेकिन कभी हमारे पूर्वज जातिप्रथा मानने वाले हिंदू थे। ऐसा विचारने पर हमें शर्म
आती है। चमार, भंगी आदि तो हिंदू धर्म के अभिन्न अंग और रक्षक
हैं, लेकिन उच्च वर्ण के हिंदू उनसे अत्यंत घृणा करते हैं। हम
यवनों को तो हिंदू मलेच्छ कहकर पुकारते हैं और शूद्रों से भी निकृष्ट समझते हैं।
इन सब बातों को देखते हुए हिंदू धर्म अपनाकर हमें क्या गौरव हासिल होगा?”[2]
उपरोक्त
बातों से पता चलता है पृथ्वी राज चौहान के समकालीन समाज व्यवस्था जातिगत
भेदभावपूर्ण थी। पश्चिमोत्तर सीमा प्रदेशों के जाट, भंगी, चमार आदि जातियाँ इससे बुरी तरह प्रताड़ित थी।
इस क्षेत्र में इस्लाम धर्म के आगमन (जो सैद्धान्तिक रूप से भाईचारे के सिद्धान्त
पर आधारित माना जाता है) से उन्हें एक सहारा मिला। इससे पता चलता है कि तत्कालीन
तथाकथित हिंदुओं का इस्लाम धर्मांतरण जबरन नहीं बल्कि स्वेच्छिक था। जैसे पहले जाट
जाति से संबंधित रहे कयामत खान के पूर्वजों ने हिंदू से इस्लाम धर्मांतरण किया।
पृथ्वीराज चौहान कालीन धार्मिक व्यवस्था
की यदि हम बात करें तो तत्कालीन समाज हिंदू धर्म प्रधान था। मोहम्मद गौरी के आगमन
के साथ ही अनेक सूफी संतों का भी आगमन हुआ जिसने इस्लाम के प्रचार प्रसार में काफी
योगदान दिया। तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की पराजय के साथ ही उसकी
11 पत्नियां मोहम्मद गौरी के कब्जे में आ गए, पृथ्वीराज चौहान के कट्टर समर्थकों का मानना है
कि युद्ध में मिली पराजय के साथ ही उसकी रानियों ने जौहर कर लिया। जबकि पृथ्वीराज
चौहान तथा तराइन के युद्ध पर अध्ययन करने वाले एक शोधार्थी करण वर्मा तत्कालीन
लिखित ग्रंथ प्रबंध कोष के आधार पर कहते हैं कि पराजय के पश्चात मोहम्मद गौरी ने
पृथ्वीराज चौहान की सभी रानियों के साथ ना केवल बलात्कार किया बल्कि अनेक रानियों
को तत्कालीन सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज़ की सेवा में भी लगाया। ख्वाजा गरीब नवाज़ ने पृथ्वीराज चौहान की सबसे
सुंदर पत्नी मेनल से ना केवल विवाह किया बल्कि उसकी दो पुत्रियों को इस्लाम में
दीक्षित करते हुए अपनी शिष्या के रूप में रखा। ख्वाजा गरीब नवाज मोहम्मद गौरी का सलाहकार था जो
1191 ईस्वी में ही गुप्तचर के रूप में अजमेर आ गया था।
पृथ्वीराज चौहान संबंधी
आम अवधारणाएँ एवं वास्तविकता –
भारतीय
इतिहास में पृथ्वीराज चौहान को एक ऐसे हिंदू राजा के रूप में याद किया जाता है
जिसने विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों का विरोध किया। यही कारण है कि वर्तमान समय
में सांप्रदायिक राजनीति करने वाले कट्टरपंथी हिंदुत्व विचारधारा के लोगों द्वारा
पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप आदि के अपने राज्य की रक्षा हेतु उठाए गए कदम
में नमक मिर्च लगा कर चटपटा बनाने, काफी बढ़ा चढ़ाकर पेश करने की परंपरा बन गई है।
इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि एक ऐतिहासिक चरित्र धीरे-धीरे उस क्षेत्र, राज्य के लोगों द्वारा
देवता समान बना दिया जाता है जिसकी आप बुराई तो दूर,
समालोचना भी नहीं कर सकते। ऐसा
पृथ्वीराज चौहान के साथ भी किया जा रहा है। यहां हम पृथ्वीराज चौहान के संबंध में
स्थापित की जा रही आम अवधारणाओं की पड़ताल करेंगे।
आम अवधारणा -
1. मध्यकालीन भारत में शासन करनेवाला अंतिम हिंदू
राजा था। हिंदुओं व राजपूतों से वह काफी स्नेह रखता था।
वास्तविकता -
{गुजरात का राजा भीमदेव सोलंकी का धर्म हिंदू था, जाति राजपूत थी।
पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर चौहान की जाति भी राजपूत थी, धर्म भी हिंदू था।
बावजूद इसके पृथ्वीराज चौहान के पिता की हत्या भीमदेव सोलंकी ने कर दी थी। बदले की
भावना में पृथ्वीराज चौहान (हिंदू तथा राजपूत) ने भीमदेव सोलंकी की हत्या कर दी।} राज्य विस्तार के क्रम
में पृथ्वीराज चौहान ने अन्य चंदेल राजपूतों के राज्य खजुराहो व महोबा पर भी
आक्रमण कर उसे लूट लिया। यह उदाहरण साबित करता है कि राज्य विस्तार में पृथ्वीराज
चौहान पूर्व के राजाओं की तरह अपने निजी हितों, व्यक्तिगत स्वार्थ को देखता था, एक दूसरे के जाति, धर्म या संबंधी होने
को कोई प्राथमिकता नहीं दी जाती थी। यदि होता तो आपस में इतने तीक्ष्ण युद्ध नहीं
होते। पृथ्वीराज चौहान द्वारा खजुराहो व महोबा की लूटपाट इस मिथक को तोड़ते हैं कि लूटपाट
का काम केवल विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारी शासक ही करते थे। तराइन के प्रथम युद्ध में
मोहम्मद गौरी के खिलाफ पृथ्वीराज चौहान ने अपने पड़ोसी राज्य कन्नौज से सहायता
मांगा। लेकिन न कन्नौज और न ही कोई अन्य राजपूत राजाओं ने पृथ्वीराज चौहान को मदद
देना उचित नहीं समझा। इस आधार पर कहा जा सकता है कि पृथ्वीराज चौहान के बगल के
पड़ोसी देशों से संबंध अच्छे नहीं थे।
आम अवधारणा
2. एक दयालु शासक था जिसने तरायन के प्रथम युद्ध
में पराजित मुहम्मद गौरी को माफ कर दिया।
वास्तविकता
लोगों की एक आम अवधारणा है कि पृथ्वीराज
चौहान एक बहुत ही उदार राजा था जिसने तराइन के प्रथम युद्ध में पराजित मोहम्मद
गौरी को क्षमा कर दिया और उसे जाने दिया। इसके विपरीत पृथ्वीराज चौहान के दरबार का
ही एक ऐसा उदाहरण है जो इस अवधारणा को झूठा साबित करता है। यह उदाहरण है उसके
अत्यंत ही विश्वास पात्र सेनापति कैमास की हत्या का। जैसा कि पहले ही बताया जा
चुका है कि पृथ्वीराज चौहान के अनुपस्थिति में कैमास पर राज्य के प्रशासन की
जिम्मेदारी होती थी। पृथ्वीराज
चौहान जब संयोगिता की यादों में खोए, इस विरह को भुलाने के लिए आखेट पर था तो राज्य
प्रबंधन की जिम्मेदारी कैमास के पास था। इन्हीं दिनों करनाट देश की एक राज कुमारी
जिसे वह कर्नाट देश से जीतकर लाया था तथा एक महल में दासी के रूप में रखा था, से उसे प्रेम हो गया।
इस प्रेम प्रसंग की जानकारी जब पृथ्वीराज चौहान की बड़ी रानी द्वारा पृथ्वीराज
चौहान को मिली तो बिना कुछ जाने, सोचे गुस्से में आकर अपने योग्य सामंत कैमास की हत्या कर
दी। उसके दरबारी कवि चंदबरदाई ने भी पृथ्वीराज के इस कृत्य की निंदा करते हैं। इतनी
छोटी सी बात पर बिना कुछ सोचे समझे अपने राज्य के एक योग्य सामंत की हत्या कर देना
साबित करता है कि वह कोई उदार या दयालु राजा नहीं था। राज्य पर आक्रमण कर उस देश के संसाधनों को नष्ट
करने वाले मोहम्मद गौरी को माफ कर देना, जबकि अपने सर्वाधिक योग्य सेनापति के छोटी सी
गलती करने पर मौत के घाट उतार देना, ये एक दयालु राजा की पहचान नहीं कही जा सकती।
आम
अवधारणा
3. पृथ्वीराज चौहान अपने जीवन काल में मुहम्मद गौरी
के अतिरिक्त कभी पराजित नहीं हुआ।
वास्तविकता
वास्तविकता
यह है कि पृथ्वीराज चौहान एक महान वीर हिंदू राजा था जो अपने पराक्रम के बल पर
अपने राज्य का विस्तार किया। लेकिन प्रत्येक युद्ध में वह विजित ही हुआ ऐसा नहीं
है बल्कि 1182 ईस्वी में जब उसने गुजरात के चौलुक्यों पर आक्रमण किया तो चौलुक्य
शासक भीमा द्वितीय द्वारा पराजय झेलना पड़ा।
4. मोहम्मद गौरी पृथ्वीराज चौहान को इस्लाम स्वीकार
करवाने के लिए अनेक प्रकार से यातनाएं दी। इस्लाम स्वीकार नहीं करने पर उसे दीवार
से बांधकर उसके सामने उसकी सबसे छोटी पत्नी संयोगिता के साथ लगातार बलात्कार किया
गया, चौहान ने इस्लाम के साथ साथ उसके धार्मिक ग्रंथ
कुरान पर थूक दिया। गुस्से में आकर मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान का कत्ल कर
दिया।
वास्तविकता
ऐसे
कथन कट्टरपंथियों द्वारा गढ़े जाते हैं मुसलमानों के प्रति नफरत भड़काने के लिए।
वास्तविकता यह है कि सिरोही के पास पकड़े जाने के बाद उस के दरबारी कवि चंदबरदाई
जो पृथ्वीराज चौहान का सामंत भी था, के
साथ युद्ध बंदी के रूप में अपने राज्य गौर ले गया। शब्दभेदी बाण प्रकरण के दौरान
मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद पृथ्वीराज चौहान तथा चंदबरदाई ने आत्माओं से बचने
के लिए एक दूसरे को मार डाला।
संदर्भ ग्रंथ
धामा तेजपाल सिंह (2006)
: पृथ्वीराज चौहान : एक पराजित विजेता, हिंदी साहित्य
सदन प्रकाशन
शर्मा, डॉ. श्रीनिवास : कयमास वध, परिचय एवं प्रतिपाद्य
हांडा, सुशील, ‘पृथ्वीराज चौहान’