Wednesday, 15 March 2017

आरक्षण खत्म करने का मूलमंत्र

हमारे देश के कुछ/अधिकांश बुद्धिजीवी वर्ग पश्चिमी देशों जैसे अमेरिका, जापान, इंग्लैंड आदि देशों का उदाहरण देते हुए कहते मिल जाएंगे कि इन देशों में जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था नहीं है इसलिए यहाँ के लोग प्रगतिशील, विकसित हैं तथा इन लोगों के सम्मान का आधार इनकी काबिलियत है । लेकिन ये बुद्धिजीवी आपको कभी ये नहीं बताएँगे कि इन देशों में संभवतः कोई मनुस्मृति जैसी वर्ण या जाति व्यवस्था को बढ़ावा देने वाले text नहीं हैं इसलिए यहाँ काबिलियत के आधार पर लोगों का सम्मान किया जाता है । हालांकि इनमें से कुछ देश अभी भी नस्ल या वर्ग आधारित भेदभाव से मुक्त नहीं हैं । बल्कि श्वेत-अश्वेत के आधार पर भेदभाव व्याप्त है । जहां तक बात हमारे देश भारत की है तो हिंदू धर्म में मनुस्मृति व अन्य संस्कृत धर्मग्रंथ इस वर्ण या जातीय आधारित भेदभाव को बढ़ावा देते हैं । आजादी के 6 दशक बाद भी प्रजातंत्रात्मक व्यवस्था में रहने के बाद भी हम राजतंत्र को छोड़ नहीं पाए हैं । जब तक हिंदू राजतंत्र था तबतक हिंदू धर्मग्रंथ के आधार पर सामाजिक व्यवस्था जायज थी । लेकिन आज हम 6 दशकों से प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जी रहे हैं जो मनुस्मृति पर आधारित न होकर भारतीय संविधान पर आधारित है । 
भारतीय संविधान कोई धर्मविशेष शासनव्यवस्था की वकालत नहीं करता है । बल्कि सभी धर्म, जाति व जेंडर इसकी नज़र में समान हैं । लेकिन विडम्बना ये है कि वर्ण, जाति के आधार पर निर्मित नफरत के कीड़े हमारे दिलो-दिमाग पर हजारों वर्षों से इस प्रकार कूट-कूट कर भरे हैं कि दिलो-दिमाग से जाने का नाम ही नहीं लेते । वर्ण आधारित या जातिगत भेदभाव के स्थान पर भारतीय संविधान प्रदत्त समानता का अधिकार का अनुसरण/पालन यदि सही तरीके से किया जाय तो आरक्षण की कोई जरूरत ही नहीं रहेगी । पश्चिमी देशों की तरह हमारे यहाँ भी लोगों को काबिलियत के आधार पर सम्मान मिलने लगेगा ।