Monday, 27 January 2020

इंटरनेट : नागरिकों का मूल अधिकार


वैश्वीकरण के इस दौर में इंटरनेट किसी भी देश के नागरिकों की प्रमुख आवश्यकता बन गई है। सूचना प्राप्ति से लेकर संचार हेतु प्रमुख माध्यम के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है। संचार के साथ-साथ कई बार इसका प्रयोग अनावश्यक अपवाह उड़ाने के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है। यही कारण है कि किसी क्षेत्र में दंगा भड़कने, उपद्रव के दौरान केंद्र या राज्य सरकार इंटरनेट को बंद कर देती है। हालांकि दंगा भड़कने जैसी स्थिति में इस पर रोक लगाना आवश्यक हो जाता है। लेकिन कई बार सरकार जनता की आवाज को दबाने के लिए भी इसका दुरुपयोग करती है। जैसा कुछ दिनों पूर्व तक कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने, जम्मू कश्मीर को राज्य की जगह 2 केंद्र शासित राज्य बनाने के विरोध में कश्मीर की जनता द्वारा उग्र आंदोलन होने की संभावना को देखते हुए केंद्र सरकार ने वहां इंटरनेट पर पाबंदी लगा दी। कोई भी सरकार यदि इंटरनेट पर रोक लगाती है तो यह हमारे मौलिक अधिकारों का हनन है। कश्मीर में इंटरनेट पर लगी पाबंदी समीक्षा करते हुए सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की पीठ ने इस मामले पर दिए गए अपने फैसले में 10 जनवरी 2020 को कहा इंटरनेट संविधान का अनुच्छेद 19 के तहत लोगों का मौलिक अधिकार है अर्थात या जीने के हक जैसा ही जरूरी है।

आइए जानते हैं अनुच्छेद 19 के संबंध में
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 भारत के नागरिकों के लिए मौलिक अधिकारों की बात करता है। अनुच्छेद 19(1) के तहत यह हमारे मौलिक अधिकार हैं- सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, बिना हथियार किसी जगह शांतिपूर्ण इकट्ठा होने, संघ या संगठन बनाने, कहीं भी स्वतंत्र रूप से घूमने, भारत के किसी भी हिस्से में रहने या बसने, कोई भी व्यवसाय, पेशा अपनाने या व्यापार करने का अधिकार।
सरकार को भी अधिकार है इंटरनेट रोकने का।
हालांकि संविधान प्रदत्त जीवन जीने का अधिकार होने के बावजूद सरकार अपने क्षेत्र में स्थिति को नियंत्रण में करने के लिएकुछ समय के लिए इंटरनेट पर रोक लगा सकती है। ऐसे में दो प्रमुख कानून सरकार के लिए ढाल का काम करते हैं। इनमें से पहला है - कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर - 1973 (सीआरपीसी), इंडियन टेलीग्राफ एक्ट- 1885 और 2017 का टेंपरेरी सस्पेंशन ऑफ टेलीकॉम सर्विसेज(पब्लिक इमरजेंसी या पब्लिक सेफ्टी) रूल्स। इन दोनों कानून के आधार पर ही सरकारी एजेंसी भारत के जिलों या राज्यों में इंटरनेट बंद करने का फैसला लेती है। इसकी एक पूरी प्रक्रिया है। केंद्र या राज्य के गृह सचिव इंटरनेट पर रोक करने का आदेश देते हैं। यह आदेश एसपी या उसके ऊपर के रैंक के अधिकारी के माध्यम से सेवा प्रदाता को भेजा जाता है।