कोविड
महामारी के कारण बच्चों में हुए लर्निंग लॉस से पूरा देश वाकिफ है। देशभर के लगभग
सभी राज्य शिक्षा के क्षेत्र में हुए इस नुकसान की भरपाई अपने-अपने तरीके से करने
के लिए प्रयासरत हैं। इसी क्रम में शाला खुलने के साथ ही छत्तीसगढ़ समग्र शिक्षा
विभाग द्वारा प्रदेश के उच्च प्राथमिक शालाओं में अक्टूबर 2022 में कक्षा छठवीं से
आठवीं के बच्चों के लिए बेसलाइन आकलन कराया गया। इस आकलन में शाला में दर्ज़ समस्त
छात्र-छात्राओं की उपस्थिति अनिवार्य थी। इस आकलन का प्रत्यक्ष
उद्देश्य था यह पता करना कि
·
कक्षा के कितने बच्चों के साथ
बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान पर कार्य करने की आवश्यकता है?
·
कितने बच्चे पिछली कक्षा की
दक्षता प्राप्त कर लेने के स्तर पर हैं?
·
कितने बच्चे वर्तमान कक्षा
स्तर पर हैं? जिनके साथ उस कक्षा स्तर के अनुरूप कार्य
किया जा सके।
आकलन में गुणवत्ता के
लिए कुछ जरूरी कदम भी उठाए गए थे जैसे- बच्चों की उत्तर पुस्तिकाओं का आकलन दूसरे
संकुल के शिक्षक निष्पक्ष रूप से करेंगे।
बेसलाइन आकलन के 3 महीने पश्चात दिनांक
9 एवं 10 फरवरी 2023 को एंडलाइन आकलन की प्रक्रिया चल रही है। छात्र छात्राओं ने
उत्तर पुस्तिका को अपने अर्जित ज्ञान के अनुरूप भर दिया है। उन उत्तर पुस्तिकाओं
को मूल्यांकन/ आकलन के लिए दूसरे संकुल भेजा जा रहा है। इस आलेख को लिखे जाने तक
संभवतः कुछ उत्तर पुस्तिकाएं आकलित भी की जा चुकी होंगी। सभी लोग एंडलाइन आकलन के
परिणाम का इंतजार भी कर रहे होंगे। परिणाम क्या होगा इसकी भविष्यवाणी किया जा सकता
है। परिणाम आते ही समाचार पत्रों में यह इस तरह छपे होंगे- 'शिक्षकों की मेहनत रंग लाई, 50% बच्चे कक्षा स्तर पर,
40% बच्चे कक्षा पूर्व स्तर एवं 10% बच्चे शुरुआती स्तर पर हैं।'
उम्मीद है इससे भी आकर्षक होगी, जिसके बिना पर
हम सभी शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले लोग शायद फूले न समाए। लेकिन यह परिणाम
बच्चों की वास्तविकता नहीं बल्कि एक छलावा होगा। इस परिणाम के बिना पर हम उन्हें उनकी
वास्तविक स्थिति पर ही छोड़कर आगे बढ़ रहे होंगे।
इस भविष्यवाणी का आधार कोई दिव्य दृष्टि
नहीं बल्कि प्रत्यक्ष अवलोकन है। शाला
भ्रमण के क्रम में उच्च प्राथमिक शाला,
रमपुरा (काल्पनिक नाम) में Endline Assessment को देखने का मौका मिला। विद्यालय
के 2 शिक्षक कक्षा छठवीं, सातवीं, तथा
आठवीं के 110 बच्चों के साथ एंड लाइन आकलन की प्रक्रिया में शामिल हो रहे थे। 3
कक्षा पर दो ही शिक्षक होने से थोड़े परेशान दिखे। फिर भी व्यवस्थित देखरेख का
प्रयास कर रहे थे। शाला पहुंचने पर बहुत ही कम समय लेते हुए वस्तुस्थिति से अवगत
हुआ और एंड लाइन आकलन की प्रक्रिया को समझने के उद्देश्य से कक्षा में समय बिताने
की अनुमति प्रधान पाठक से लेते हुए तीनों कक्षाओं में आधे-आधे घंटे समय व्यतीत
किया। तीनों ही कक्षाओं के प्रश्नों
की प्रकृति ऐसी थी जो बच्चों को संबंधित विषय के समझ के आधार पर लिखने को प्रेरित
करते थे। कुछ सवाल स्मरण से भी संबंधित थे। शाला
के बच्चे चूंकि मुझसे पहले से परिचित थे, क्योंकि कक्षा
में उन लोगों के साथ कई बार कार्य किए हुए थे, को, मेरी उपस्थिति से कोई विशेष समस्या होती नहीं दिखी। कक्षा कक्ष कदाचार
मुक्त नहीं था। एक ही कक्षा में अगल-बगल बैठे बच्चे एक दूसरे की उत्तर पुस्तिका को
आसानी से देख कर लिख रहे थे। उन्हें समझाने का कई बार प्रयास किया कि एक दूसरे का
देख कर न लिखें, जिनको जितना आता है, अपने
मन से उतना ही लिखें। इन निर्देशों का कुछ बच्चों पर असर दिखा, अधिकांश पर बिल्कुल नहीं। एन-केन प्रकार से तय समय तक सभी बच्चे एक दूसरे
की मदद से उत्तर पुस्तिका भर चुके थे।
भोजन अवकाश के दौरान प्रधान पाठक सर से
जब इस संदर्भ में बात हुई कि, इस तरह के आकलन, जिसमें बच्चे एक दूसरे की उत्तर पुस्तिका देखकर लिख ले रहे हैं, इससे तो शायद ही निकल कर आ पाए कि कौन से बच्चे सीखने के किस स्तर पर हैं?
किन के साथ बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान पर कार्य करेंगे,
कौन बच्चे कक्षा स्तर के हैं?
उपरोक्त बातों को लेकर कि बेसलाइन आकलन
का शिक्षक, स्कूल या बच्चों को कितना फायदा हुआ? हमने उच्च प्राथमिक शाला के अन्य शिक्षक एवं संकुल समन्वयक से भी बातचीत
की। बैहरसरी संकुल के पूर्व समन्वयक एवं वर्तमान में उच्च प्राथमिक शाला सिरवाबांदा
में पदस्थापित शिक्षक श्री नरेंद्र कुमार निषाद सर का कहना था कि बेसलाइन आकलन के
रिजल्ट के संदर्भ में शिक्षक या स्कूल को कुछ बताया ही नहीं गया है। उनके बच्चों
की शैक्षणिक स्थिति कैसी है यदि यह पता होता तो उनके स्तर की पहचान कर उसके अनुरूप
हम उनके साथ कार्य करने का प्रयास कर रहे होते। इसी संदर्भ में पिकरी संकुल
समन्वयक श्री सुखनंदन आदिल सर से जब बात हुई तो उनका कहना था कि बेसलाइन आकलन के
परिणाम सरकार द्वारा जारी कर दिए गए हैं। बेसलाइन से प्राप्त स्थिति के अनुसार
हमने बच्चों के साथ काम किया और उनके शैक्षणिक स्तर में बदलाव देखने को मिल रहा है।
उनसे जब यह पूछा कि बेसलाइन आकलन एवं इंडलाइन आकलन की प्रक्रिया क्या थी? तो उन्होंने भी बिल्कुल वही प्रक्रिया बताई जो उच्च प्राथमिक शाला, नगपुरा के प्रधान पाठक ने बताए थे। इस संदर्भ में दोनों शिक्षकों से जब
बात हुई कि इस इस प्रक्रिया से बच्चों के वास्तविक स्थिति का पता कैसे लगाया जा
सकता है जब वे अपने साथी के कॉपी को देखकर लिख ले रहे हैं? संकुल
समन्वयक के साथ-साथ शिक्षक नरेंद्र निषाद सर के पास भी इस प्रश्न का कोई जवाब नहीं
था।
तीन शिक्षकों से हुई इस
आकलन प्रक्रिया संबंधी बातचीत के पश्चात सभी शिक्षक इस बात पर तो सहमत दिखे कि ‘ऐसे प्रक्रिया से बच्चों की वास्तविक स्थिति तो निकलने से रही’।
उपरोक्त परिणाम संबंधी भविष्यवाणी हमने एक
शाला के एंडलाइन आकलन की प्रक्रिया के प्रत्यक्ष अवलोकन के आधार पर निकाला है। हो
सकता है कि अन्य शाला के शिक्षक खुद के विवेक से आकलन प्रक्रिया को बेहतर बनाया
हो। वहाँ एक साथ बैठाने के बावजूद सभी बच्चे निगरानी में प्रश्नों के उत्तर अपनी
समझ के अनुसार दे रहे हों। बावजूद इसके प्रश्नों की प्रकृति को देखकर कहा जा सकता
है कि यह समझ बनाना बहुत ही मुश्किल है कि बच्चा समझ के साथ पढ़ पा रहा है या
नहीं। प्रश्नों की प्रकृति मुख्यतः लिखने की दक्षता जांच करने से थी। छठी कक्षा के
हिंदी के आकलन पत्र को देखें तो उसमें ऐसा कोई प्रश्न नहीं दिखा जिसमें बच्चों को
कोई प्रसंग पढ़वा कर यह देखा जा रहा है कि बच्चा उसे पढ़कर अपनी समझ बना पा रहा है
या नहीं,
या समझ के साथ पढ़ पा रहा है या नहीं।
यहां एक बात तो साफ है कि आकलन की इस
प्रक्रिया से बच्चों की वास्तविक स्थिति का पता नहीं लगाया जा सकता है? यह शिक्षा विभाग के आर्थिक संसाधन की बर्बादी मात्र है। ऐसा कहने का यह
तात्पर्य नहीं है कि आकलन किस प्रक्रिया को बंद कर दिया जाए। लेकिन हमें इस ओर भी
सोचने की आवश्यकता है कि जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कोई कार्यक्रम शुरू किया
गया है, उसकी पूर्ति हो रही है या नहीं। यदि नहीं हो रही है,
तो उसके लिए कमी कहां रह जा रही है? यहां कमी
सिर्फ शिक्षक या प्रधान पाठक की नहीं है बल्कि उन्हें इस कार्य के लिए दिशा-निर्देश
देने वाली समग्र शिक्षा का भी कहा जा सकता है।