काँग्रेस के भ्रष्टाचार व घोटालों से भरे कार्यकाल से ऊबकर, भारतीय जनमानस ने नरेंद्र मोदी जी के
नेतृत्व में एनडीए सरकार को जब प्रचण्ड बहुमत द्वारा 26 मई 2014 को केंद्रीय सत्ता
की कमान सौंपी तो यह अपेक्षा की जा रही थी कि अन्ना हज़ारे,
बाबा रामदेव का आंदोलन रंग लाएगा । भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए कोई प्रभावी
कानून लाया जाएगा । स्विस बैंक सहित अन्य विदेशी बैंकों में व्यापारियों, नेताओं, अभिनेताओं, भ्रष्ट
अधिकारियों के जमा काला धन पर हमारे देश का अधिकार होगा । हमारे बैंक के खाते में
15 लाख आए या न आए लेकिन इस कमर तोड़ महंगाई से मुक्ति जरूर मिलेगी । साहूकारों, बैंकों के कर्ज़ तले दबकर आत्महत्या करते किसानों को भी नए सरकार से काफी
उम्मीदें थी । क्योंकि देशवासियों ने अपना मुखिया बिलकुल ऐसे ही चुना जैसे प्राचीन
भारतीय राजतंत्रात्मक व्यवस्था में जनता ने अराजकता पूर्ण स्थिति से खिन्न होकर शिशुनाग वंश
के संस्थापक शिशुनाग तथा पाल वंश के संस्थापक गोपाल को अपने राजा के रूप में चुना
।[1] इतिहासकारों के अनुसार ये
दोनों ही शासक अपने प्रजा की अपेक्षाओं पर खरे उतरे । अब प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी जी भारतीय जनमानस की अपेक्षाओं पर कितना खरे उतरे हैं अभी कहना थोड़ी जल्दबाज़ी
होगी ।
लोकसभा चुनाव 2014 के दौरान अपने
चुनावी घोषणापत्र में बीजेपी “सबका साथ, सबका विकास” करने के साथ-साथ “एक भारत, श्रेष्ठ
भारत” बनाने की बात कर देशवासियों का दिल जीतने का प्रयास काफी सफल रहा ।[2] फलस्वरूप अपने स्थापना काल के
तीन दसक बाद पहली बार लोकसभा चुनाव 2014 में (1999 के 183 सीट की अपेक्षा) 282 सीट
लाकर पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई । अपने सहयोगी पार्टियों को मिला कर 336 सीट
के साथ एनडीए के नाम से केंद्र में सरकार बनाने के पश्चात इसी वर्ष महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड, जम्मू
कश्मीर विधानसभा चुनाव में पार्टी को सुखद समाचार मिले । 288 सीट वाले महाराष्ट्र विधानसभा
चुनाव में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 2009 के चुनाव में मिले 46 सीट की
अपेक्षा 2014 में 122 सीट पर जीत दर्ज़ की ।[3] हरियाणा में 2009 के 4/90 की
अपेक्षा 2014 में 47/90 सीट मिले ।[4] झारखंड में 2009 की अपेक्षा
2014 में 19 सीट[5]
व उड़ीसा में भी 4 सीटों का फायदा हुआ ।[6] इस दौरान की लोकप्रियता का पता इस बात से लगाया जा सकता
है कि 2016 तक देश के 8 राज्यों में बीजेपी की बहुमत सरकार है जबकि अन्य 6 राज्यों
में एनडीए गटबंधन की सरकार है[7] । इस तरह वर्तमान समय में यह
देश की सबसे लोकप्रिय सरकार है । लेकिन पिछले 2 वर्ष के दौरान सत्ता के मद में चूर
होकर जिस तरह पार्टी के कद्दावर नेता व कार्यकर्ता विधानसभा चुनाव को देखते हुए हिंदू
वोटों के ध्रुवीकरण के लिए लव जिहाद, गौ हत्या, धर्मांतरण, मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या, वंदे मातरम, राष्ट्रवाद आदि के नाम पर अनर्गल
बयानबाजी व हँगामा कर मुसलमानों, इसाइयों व वामपंथियों पर हमला
करने, सवर्णों को गोलबंद करने के लिए आरक्षण पर बवाल किए हैं, इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा । परिणामस्वरूप एक ओर जहां 2015 के बिहार
विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 2010 की अपेक्षा 38 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा[8] वहीं दूसरी ओर दिल्ली विधानसभा
चुनाव में 2013 के चुनाव में 31 सीट लाकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी बीजेपी
केवल 3 सीट पर ही जीत दर्ज़ कर पाई । 2016 विधानसभा चुनाव में भी असम के 126 सीटों
में 86 सीट को छोड़कर सभी जगह से निराशा ही हाथ लगी । तमिलनाडु में जहां पार्टी का खाता
भी नहीं खुल पाया वहीं पश्चिम बंगाल में 294 सीट में केवल 3 व केरल के 140 सीटों
वाले में से केवल 1 सीट से ही संतोष करना पड़ा ।
उपर्युक्त चुनाव परिणाम से
स्पष्ट है कि बीजेपी की लोकप्रियता दिनों-दिन घटती ही जा रही है । अपने चुनावी
घोषणापत्र में बीजेपी काँग्रेस के 10 वर्ष के कार्यकाल को “गिरावट के दसक” के रूप
में यह कहते हुए वर्णित करती है कि ‘इस दौरान शासन, अर्थव्यवस्था,
सीमापार घुसपैठ, भ्रष्टाचार, घोटाले, महिलाओं के साथ होनेवाले अपराध आदि समस्याओं से निपटने में गिरावट ही आई
है’ ।[9] आज एनडीए शासन के सवा दो वर्ष
बीतने के बाद कहा जा सकता है कि बीजेपी भी इसी गिरावट की दिशा में अग्रसर है ।
अर्थव्यवस्था की बात करें तो पूरे देश में महंगाई चरम पर है,
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दामों में प्रति बैरल आधे से भी अधिक गिरावट
आने के बावजूद काँग्रेस काल की अपेक्षा 10 रुपए में कमी आई है । डॉलर के मुक़ाबले
रुपया काँग्रेस काल से भी कमजोर हो गया है । पाकिस्तान की ओर से न ही घुसपैठ में
कोई कमी आई है न ही चीन अपनी आँखें दिखाना बंद किया है । हालांकि ऐसा भी नहीं है
कि इस दौरान बीजेपी सरकार ने कोई उपलब्धि हाशिल नहीं की है । लेकिन उपलब्धि जहां
दहाई अंकों में है तो मानवाधिकार उल्लंघन, पार्टी या सहायक
संगठन कार्यकर्ताओं द्वारा सांप्रदायिक, जातिगत टिप्पणी, भेदभाव जैसे आलोकप्रिय कार्य सैकड़ों में । आम जनता के मूलभूत आवश्यकताओं
जैसे शिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी के
स्थान पर भारत माता की जय, वंदे मातरम,
गौ माता, राष्ट्रवाद, जाति व धर्म के
नाम पर भेदभाव टीका-टिप्पणियों को मुद्दे बनाकर देश को विकास नहीं विनाश के पथ पर
ले जा रही है । इन्हीं टिप्पणियों, भेदभाव से आज हमारा
संवैधानिक रूप से धर्मनिरपेक्ष देश “एक भारत, श्रेष्ठ भारत”
नहीं बल्कि स्वतंत्रता पूर्व के धर्म-जाति पर आधारित विभक्त भारत बनने के कगार पर
है । आगामी चुनाव को देखते हुए मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र कैराना (उत्तर प्रदेश) में
हिंदुओं के विस्थापन संबंधी झूठे आंकड़े दिखाकर हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़काने की साजिश
। ऊना (गुजरात) में गौरक्षकों द्वारा मृत गायों के खाल उतारते दलितों की बर्बर
पिटाई, मुस्लिम अतिवाद व गौ हत्या को ढाल बनाकर पार्टी समर्थित
संगठन के कार्यकर्ता जिस प्रकार मुसलमान, दलित के साथ
बर्बरतापूर्ण व्यवहार कर हैं और सरकार भी अप्रत्यक्ष रूप से उनका सहयोग कर रही है, इन क्रियाकलापों से “सबका साथ-सबका विकास” का नहीं,
बल्कि “हिंदुओं का साथ – सवर्णों का विकास” का संदेश दिया जा रहा है । इसी नारे का
ही परिणाम है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात आज हमारा देश सबसे बड़ा दलित आंदोलन
का गवाह बन रहा है । ऊना घटना के विरोध में गुजरात के दलितों ने मृत पशुओं के शवों
के निस्तारण से इनकार कर दिया है ।[10] छत्तीसगढ़ के राजनांदगाँव में
भी आदिवासियों ने उनकी सांस्कृतिक भावनाओं के खिलाफ नारे लगानेवाले
ब्राह्मणवादियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है । इसी वर्ष 12 मार्च को एक समूह ने
मार्च निकालते हुए “महिषासुर के औलादों को, जूते मारो सालों
को” जैसे भड़काऊ नारा दिया था । बावजूद इसके प्रदेश की बीजेपी
सरकार आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर पायी है ।[11] ईसाई धर्मावलम्बी भी इन सरकार
समर्थित संगठन से पीड़ित हैं जिन्हें बजरंगदाल के कार्यकर्ता धर्मपरिवर्तन कराने के
आढ़ में मार पीट करते हैं । इसमें कोई शक नहीं कि ये मिशनरी आदिवासियों को ईसाई
बनाते हैं लेकिन दलित व आदिवासी जबरन नहीं बल्कि ऊना जैसी घटना से आहत होकर
अस्पृश्यता, शोषण से मुक्ति पाने के लिए स्वेच्छा से बौद्ध[12], ईसाई
या इस्लाम[13]
धर्मांतरण करते हैं । इससे भी बड़ा कड़वा सत्य यह है कि इन क्रियाकलापों के
परिणामस्वरूप हिंदू धर्म भी दो धड़ों में विभाजित हो गया है – जयिष्णु हिंदू धर्म
एवं सहिष्णु हिंदू धर्म । जयिष्णु हिंदू
धर्म का तात्पर्य आक्रामक हिंदू धर्म से है जबकि सहिष्णु का अर्थ है सहनशील और
क्षमाशील । जयिष्णु हिंदू धर्म के ये अनुयायी सहिष्णु हिंदू धर्म के अनुयायियों को
उतना ही नापसंद करते हैं जितना कि मुसलमानों, दलितों, इसाइयों, वामपंथियों,
आदिवासियों व सेकुलरों को । इतने वर्गों को नापसंद करने की स्थिति में बीजेपी के
“सबका साथ – सबका विकास” नारे की हक़ीक़त को समझा जा सकता है ।
साकेत बिहारी
शोधार्थी – पीएच.डी
म.गां.अं.हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
(दैनिक समाचार पत्र "वुमेन एक्सप्रेस" के 02/08/2016 के संपादकीय में प्रकाशित)
[2] http://www.bjp.org/images/pdf_2014/full_manifesto_english_07.04.2014.pdf
[3] http://www.mapsofindia.com/assemblypolls/maharashtra/election-results.html
[4] http://www.mapsofindia.com/assemblypolls/haryana/election-results.html
[5] http://www.elections.in/jharkhand/
[6] http://www.mapsofindia.com/assemblypolls/odisha/election-results.html
[7] http://www.oneindia.com/feature/states-of-india-ruled-by-congress-bjp-after-assembly-elections-2016-2105534.html
[8] http://www.elections.in/bihar/
[9] http://www.bjp.org/images/pdf_2014/manifesto_hindi_2014_07.04.2014.pdf
[10] http://www.jansatta.com/rajya/ahmedabad/gujarat-dalits-refuse-to-dispose-dead-cattle/125292/
[11] https://www.forwardpress.in/2016/07/mahishasur-ka-apaman_sanjeev-chandan/
[12] http://timesmedia24.com/hindi/the-event-will-follow-a-buddhist-dalits-angry-una-gujarat-1000/
[13] http://www.bbc.com/hindi/india/2016/07/160728_dalit_conversion_to_islam_ts.shtml