इसमें कोई दो राय नहीं कि ये Anti Romeo
Squad सार्वजनिक क्षेत्र में प्रगतिशील Women Class को फिर से घर की चहारदिवारी में कैद कर सकती है । इसलिये
इसके स्थान पर समय समय पर व जगह जगह पर, हो सके तो High School, Intermediate व Degree Level पर उत्तर प्रदेश सरकार व केन्द्र सरकार को Gender Sensetization Workshop व Sex and Gender Education जैसे Programme Organize करने चाहिए । सभ्यता संस्कृती के बचाव के नाम
पर पुरानी राजतन्त्रात्मक सामंती व्यवस्था में लौटने से अच्छा है कि समय की
मांग के अनुसार चला जाय ।
Saturday, 25 March 2017
Anti Romio Squad formation का एक पहलू ये भी
Anti Romeo Squad Planning उत्तर प्रदेश सरकार और Telecom कम्पनियों की सोची समझी साजिश है । संस्कृती का बचाव तो Secondry Issue है । Primary Issue तो है प्रेमी-प्रेमिका को पार्क के बदले
घर में ही कैद करना, ताकि facebook, skypee आदि online apps पर Face to Face बात करवाकर Telecom कम्पनियों को फायदा पहुंचाया जा सके । वाह योगी जी इसे कहते हैं एक तीर
से दो शिकार. संस्कृती की रक्षा भी हो गयी और telecom कम्पनियों का फायदा भी ।
Wednesday, 15 March 2017
आरक्षण खत्म करने का मूलमंत्र
हमारे देश के कुछ/अधिकांश बुद्धिजीवी वर्ग पश्चिमी देशों जैसे अमेरिका, जापान, इंग्लैंड आदि देशों का उदाहरण देते हुए कहते मिल जाएंगे कि इन देशों में जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था नहीं है इसलिए यहाँ के लोग प्रगतिशील, विकसित हैं तथा इन लोगों के सम्मान का आधार इनकी काबिलियत है । लेकिन ये बुद्धिजीवी आपको कभी ये नहीं बताएँगे कि इन देशों में संभवतः कोई मनुस्मृति जैसी वर्ण या जाति व्यवस्था को
बढ़ावा देने वाले text नहीं हैं इसलिए यहाँ काबिलियत के
आधार पर लोगों का सम्मान किया जाता है । हालांकि इनमें से कुछ देश अभी भी नस्ल या वर्ग आधारित भेदभाव से मुक्त नहीं हैं । बल्कि श्वेत-अश्वेत के आधार पर भेदभाव व्याप्त है । जहां तक बात हमारे देश भारत की है तो हिंदू धर्म में मनुस्मृति व अन्य
संस्कृत धर्मग्रंथ इस वर्ण या जातीय आधारित भेदभाव को बढ़ावा देते हैं । आजादी के 6 दशक बाद भी प्रजातंत्रात्मक व्यवस्था में रहने के बाद भी हम राजतंत्र को छोड़ नहीं पाए हैं । जब तक हिंदू राजतंत्र था तबतक हिंदू धर्मग्रंथ के आधार पर सामाजिक व्यवस्था जायज थी । लेकिन आज हम 6 दशकों से प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जी रहे हैं जो मनुस्मृति पर आधारित न होकर भारतीय संविधान पर आधारित है ।
भारतीय संविधान कोई धर्मविशेष शासनव्यवस्था की वकालत नहीं करता है । बल्कि सभी धर्म, जाति व जेंडर इसकी नज़र में समान हैं । लेकिन विडम्बना ये है कि वर्ण, जाति के आधार पर निर्मित नफरत के कीड़े हमारे दिलो-दिमाग पर हजारों वर्षों से इस प्रकार कूट-कूट कर भरे हैं कि दिलो-दिमाग से जाने का नाम ही नहीं लेते । वर्ण आधारित या जातिगत भेदभाव के स्थान पर भारतीय संविधान प्रदत्त समानता का अधिकार का अनुसरण/पालन यदि सही तरीके से किया जाय तो आरक्षण की कोई जरूरत ही नहीं रहेगी । पश्चिमी देशों की तरह हमारे यहाँ भी लोगों को काबिलियत के आधार पर सम्मान मिलने लगेगा ।
भारतीय संविधान कोई धर्मविशेष शासनव्यवस्था की वकालत नहीं करता है । बल्कि सभी धर्म, जाति व जेंडर इसकी नज़र में समान हैं । लेकिन विडम्बना ये है कि वर्ण, जाति के आधार पर निर्मित नफरत के कीड़े हमारे दिलो-दिमाग पर हजारों वर्षों से इस प्रकार कूट-कूट कर भरे हैं कि दिलो-दिमाग से जाने का नाम ही नहीं लेते । वर्ण आधारित या जातिगत भेदभाव के स्थान पर भारतीय संविधान प्रदत्त समानता का अधिकार का अनुसरण/पालन यदि सही तरीके से किया जाय तो आरक्षण की कोई जरूरत ही नहीं रहेगी । पश्चिमी देशों की तरह हमारे यहाँ भी लोगों को काबिलियत के आधार पर सम्मान मिलने लगेगा ।
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