उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी कश्मीर के पुंछ sector में आतंकियों से लड़ते हुए शहादत को
प्राप्त हुए फौजी प्रेम सागर जी के परिजनों से मिलने 12 मई को देवरिया गए । वह भी
अपने मन से नहीं बल्कि शहीद के परिवारवालों की जिद्द थी कि जबतक मुख्यमंत्री नहीं
आते वी अंतिम संस्कार नहीं करेंगे । अंततः मुख्यमंत्री द्वारा मिलने का आश्वासन
मिलने के बाद शहीद का अंतिम संस्कार किया गया । मुख्यमंत्री के इस मुलाक़ात की सबसे
अजीब बात ये थी कि यात्रा के दो दिन पूर्व ही स्थानीय प्रशासन ने संसाधन विहीन, बिना प्लास्टर, मिट्टी के खुरदरी फर्श वाली घर में
रंगरोगन कर, सोफा, टेबल, कालीन बिछाकर, अलग से एसी लगाकर तैयार कर दिया ।
मुश्किल से आधे घंटे रुके होंगे मुख्यमंत्री जी । जाने के साथ ही तुरंत ये सभी
सामान हटा ली गयी ।
मेरे कहने का ये अर्थ नहीं
कि सरकारी खर्चे से जुटाए गए इन सामानों को प्रशासन को शहीद के घर ही छोड़ देना
चाहिए । वैसे यदि छोड़ भी दिया जाय तो इसमें कोई बुराई नहीं । कोई अनर्थ नहीं हो
जाता । लेकिन अफसोस इस बात की है कि ऐसा कर इन्होनें शहीद प्रेम सागर जी के
साथ-साथ उनके परिवार की गरीबी का मज़ाक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी । आखिर एक
मुख्यमंत्री को एक शहीद के बिना plaster बिना रंगरोगन के मिट्टी के फर्श वाले घर में बिना कालीन
बिछाए,
बिना AC के मिलने में उनके कपड़े में कितना मिट्टी लग जाता, कितना पसीना आ जाता ? आखिर क्या जरूरत थी इस दिखावे की ? वह भी सादगी की मिशाल दिये जानेवाले, सांसारिक सुखों को त्यागे एक योगी को !!!
थोड़ी देर के लिए यदि यह भी
मान लिया जाय कि यह व्यवस्था संबन्धित क्षेत्र के नौकरशाहों ने किया...
मुख्यमंत्री को तो शहीद के परिवार के आर्थिक स्थिति के जानकारी भी नहीं होगी । इस
बात तो इसके लिए भी जिम्मेदार एक नेता ही होता है । वह नेता या उसके चेले अपनी शान
में कोई कमी नहीं होने देने के लिए नौकरशाहों को जैसे आदेश देते हैं । अधिकारी उस
अनुसार मजबूर होकर काम करते हैं । नहीं तो transfer, demotion झेलने के लिए तैयार ही रहे । वीआईपी culture
की तरह गरीबी का मज़ाक उड़ानेवाले ऐसे कार्यों पर भी आवाज़
उठाने,
रोक लगाने की आवश्यकता है ।