राजतंत्र से लेकर लोकतंत्रात्मक शासन व्यवस्था में राज्य की सर्वप्रमुख ज़िम्मेदारी
होती है अपने नागरिकों की सुरक्षा करना । काबिलाई शासन व्यवस्था से लेकर राजतंत्रात्मक
व्यवस्था में जनपद या राज्य द्वारा कुछ मामूली कर के बदले अपने नागरिकों को सुरक्षा
देने की शुरुआत हुई । आज गणतंत्रात्मक शासन व्यवस्था में भी सुरक्षा के नाम पर हर
वर्ष हम सरकार को कर या टैक्स देते हैं जिससे सरकार हमारे लिए शिक्षा, स्वास्थ्य व्यवस्था देने के साथ-साथ, पुलिस तथा सेना गठित कर हमें सुरक्षा प्रदान करती है । बावजूद इसके धर्म, जाति, समुदाय रक्षा के नाम पर पिछले 70 वर्षों से अलग-अलग सेना, दल का निर्माण लगातार होता रहा है । इन सेनाओं, दलों
के अपने अलग-अलग स्वार्थ होते है । हैरत की बात तो यह है कि छोटे-छोटे
बच्चों, किशोर-किशोरियों को टारगेट कर उन्हें इस सेना में शामिल किया जाता है । तत्पश्चात अपनी सभ्यता-संस्कृति की जानकारी देने से अधिक दूसरे धर्मों, दूसरे जातियों पर कीचड़ उछालने, उनकी बुराई करने, उनसे नफरत करने की सीख देने के साथ-साथ उनसे लड़ने के लिए अस्त्र-शस्त्र
चलाने का प्रशिक्षण दिया जाता है । जिस स्त्री को वे शिक्षा के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्र चलाने की विधा सीखने से हजारों वर्षों तक दूर रखे थे, आजकल उन्हें सबसे सॉफ्ट टारगेट माना जाता है । इन किशोर-किशोरियों का ऐसा ब्रेनवॉश किया जाता है कि इनकी कोई स्वतंत्र
सोच नहीं रह जाती । जो इन्हें बताया जाता है उससे इतर वे सोच नहीं पाते हैं । स्वार्थ के आगे मानवता भी इन्हें बौनी लगती है । जिस की पूर्ति हेतु ये इतने कट्टर हो जाते हैं कि पुलिस तंत्र भी इनके तांडव के
सामने बेबस नज़र आती है । ऐसे में लोकतंत्र को बचाने हेतु सरकार का ये कर्तव्य होना चाहिए कि धर्म जाति के नाम
पर उग आए समस्त अवांछित निजी सेनाओं, दलों को गैर कानूनी घोषित कर उनपर प्रतिबंध लगाकर नागरिक
पुलिस को सुदृढ़, सुव्यवस्थित करे । सरकार द्वारा यदि इनके महत्वाकांक्षाओं पर नियंत्रण करने हेतु
कारगर कदम उठाया नहीं किया गया तो देश में गृहयुद्ध तो तय है ही । बल्कि इसका फायदा उन पड़ोसी
मुल्कों को हो सकता है जो लगातार हमपर गिद्ध नज़र गड़ाए रहते हैं । इतिहास गवाह है
गृहयुद्ध या अंतर्देशीय युद्ध के घातक परिणामों का । इसलिए ऐसे युद्धानुकूल
परिस्थितियों को दूर करने में ही बुद्धिमानी होगी । अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब
पूरा देश गृह युद्ध की आग में झुलशता नज़र आएगा ।
(वुमेन एक्सप्रेस संपादकीय 25 मई 2017 में प्रकाशित)
(वुमेन एक्सप्रेस संपादकीय 25 मई 2017 में प्रकाशित)