सोशल मीडिया के इस
स्वर्णिम दौर में हमारे देश में ऐसे-ऐसे तथाकथित इतिहासकार दिन दूनी रात चौगुनी
रूप से अस्तित्व में आ रहे हैं जो यह मानते हैं कि भारतीय इतिहास श्री परशुराम, श्री राम, श्री कृष्ण, गुरु
गोविंद सिंह, राजा पोरस, विक्रमादित्य,
सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य, आचार्य चाणक्य, राजा भोज, पृथ्वीराज
चौहान, महाराणा प्रताप, शिवाजी,
राजा सूरजमल, राव तुलाराम यादव, राजा छत्रसाल बुंदेला, वीर अहीर देवायत बोदार,
पेशवा बाजीराव, भील राणा पूंजा, रानी लक्ष्मीबाई, बंदा सिंह बहादुर, भगत सिंह आदि से ही निर्मित है।
इनका नाम लेते-लेते वे यह भी भूल जाते हैं
कि भारतीय इतिहास इनके साथ-साथ शक, यवन, कुषाण, चोल, चेर, पाण्ड्य, सातवाहन, पाल,
प्रतिहार, राष्ट्रकूट, मौखरी,
सल्तनतकालीन अफगान शासकों, विजयनगर, बहमनी के साथ-साथ मुगलकालीन तुर्क शासकों आदि सहित ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर
जनरल, वायसराय आदि से भी निर्मित है। हद तो इस बात की है कि
जिन आदिवासियों को यह हिंदू समाज का हिस्सा बताते हैं, उस
समुदाय के, कुछ भी राजाओं को छोड़कर अन्य किसी का नाम नहीं
लेते। बिरसा मुंडा, तिलका मांझी, सिद्धू
कान्हू जैसे नामी-गिरामी सहित हजारों- लाखों ने जितनी शिद्दत से ब्रिटिश शासकों के
अमानवीय नीतियों का विरोध करते हुए, उन्हें नाकों चने चबवा
दिए, यह सभी उनके भारतीय इतिहास निर्माताओं में शामिल नहीं
हैं। इनके योगदानों को कोई इतिहासकार भी नकार नहीं सकता। इनके द्वारा चिन्हित
भारतीय इतिहास के महानायकों में शायद ही कोई तथाकथित अस्पृश्य वर्ग से कोई मिले।
दरअसल इतिहास के साथ ऐसे छेड़छाड़ करने
का इनका उद्देश्य केवल मुसलमानों तथा वामपंथी विचारधारा के लेखकों को नीचा दिखाना।
इनको यह लगता है कि केवल वामपंथी लेखक ही हैं जो भारतीय इतिहास में मुसलमानों, ईसाइयों को सम्मिलित करने का काम करते हैं। लेकिन इन्हें यह नहीं पता कि
मार्क्सवादी इतिहास लेखन को छोड़ दिया जाए तो इतिहास लेखन की अन्य धाराओं जैसे
प्राच्यवादी, साम्राज्यवादी, राष्ट्रवादी
इतिहासकारों ने, और वर्तमान में सांप्रदायिक इतिहास लेखन
करने वाले इतिहासकार भी उपरोक्त वर्णित सभी राजवंशों, शासकों
आदि का उल्लेख करते हैं।
सच तो यह है कि इन सोशल मीडिया पर जागृत
इन छद्म इतिहासकारों का इतिहास तो छोड़िए, अध्ययन से भी
कोई लेना देना नहीं होता। इनका काम केवल इस तरह के फालतू के विमर्श को बढ़ावा देते
हुए हिंदू मुसलमान, हिंदू ईसाई, स्वर्ण-दलित,
के बीच की लड़ाई को सुलगाते रहना है। कोई बात नहीं आप यह
सांप्रदायिक आग सुलगाते रहो, हमलोग आपको बेनकाब कर आपका मुंह
काला करते रहेंगे।