सांप्रदायिक बयानबाजी
कर देश को हिंसा की आग में झोंक देने वाले, मोब लिंचिंग
जैसी घटनाओं के रोकथाम के लिए बुद्धिजीवियों द्वारा प्रधानमंत्री को खत लिखने से
नाराज गोबरबुद्धि लोगों के अंदर अचानक एक घटना ने इंसानियत जागा दिया। यह घटना थी
मुर्शिदाबाद में एक कथित आरएसएस कार्यकर्ता की पत्नी व पुत्र सहित हत्या। इंसानियत
जागा तो जागा उन लोगों को भी यह लोग कोसने लगे जिन्होंने मॉब लिंचिंग जैसी घटना को
रोकने मैं नाकाम मोदी सरकार का ध्यान इस और दिलाने के लिए खत लिखा, यह कहते हुए कि अब कहां मर गए मॉब लिंचिंग पर हंगामा करने वाले लोग। दरअसल
इन लोगों का खून उबाल इसलिए नहीं मार रहा था कि पश्चिम बंगाल में एक ही परिवार के
तीन लोगों की नृशंश हत्या हुई है बल्कि इसके पीछे कारण एक अफवाह था, वह अफवाह पूरे तीन-चार दिनों तक व्हाट्सएप, फेसबुक,
ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल होता रहा। इस अफवाह के
अनुसार मुर्शिदाबाद के कुछ मुसलमानों ने इस कथित आरएसएस कार्यकर्ता की हत्या की।
कई पोस्ट में तो कुछ मुस्लिम युवकों के नाम तक लिखें देखने को मिले। तीन-चार दिनों
के बाद ही यह साफ हो पाया कि इस हत्याकांड के पीछे कौन लोग जिम्मेदार हैं तथा क्या
कारण था? और जब से इस हत्याकांड के कारण का पश्चिम बंगाल
पुलिस द्वारा पर्दाफाश हुआ इन गोबरबुद्धियों के जुबान से लेकर लेखनी पर ताला लग
गया। वह तो लगना ही था क्योंकि इस झूठ को फैलाने का उनका उद्देश्य कुछ और ही था।
यकीन मानिए अगले वर्ष तक यदि पश्चिम बंगाल में चुनाव होता तो आज तक मामला कुछ और
ही होता। ये तो भला हो पश्चिम बंगाल पुलिस का जिसने इतनी जल्दी से घटना के कारणों
का खुलासा कर दिया अन्यथा सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहे झूठ देश के कोने कोने में
किस तरह आग लगा सकते थे, मुझे लगता है यह बताने की जरूरत
नहीं है।