Friday, 11 June 2021

हमारे देश में प्राचीन भारतीय सामाजिक व्यवस्था का अध्ययन कब से शुरू हुआ?

 

प्राचीन भारत की सामाजिक व्यवस्था का आधुनिक अध्ययन (history के ethics को ध्यान में रखते हुए) British East India Company के प्रयासों से शुरू हुआ। 1757 ई. के प्लासी की लड़ाई के बाद बंगाल और बिहार क्षेत्र जब कंपनी शासन के अधीन हो गए तो शासन चलाने के लिए इस अध्ययन की आवश्यकता पड़ी। चूंकि East India Company एक विदेशी जाति (हिंदुस्तानी) की संस्कृति तथा व्यवस्थाओं से परिचित हुए बिना उस पर व्यवस्थित रूप से शासन नहीं कर सकती थी। इसलिए उन्होंने Indology को बढ़ावा दिया। इसी क्रम में 1776 ई. में 'A Code of Gentoo laws', पुस्तक प्रकाशित हुई, 1794 ई. में Indology के जन्मदाता सर विलियम जॉन्स द्वारा मनुस्मृति का अंग्रेजी अनुवाद किया गया, 1798 ई. में एच टी कोलब्रुक ने एक निबंध 'Enumeration of Indian Classes' लिखा।

          इन उपरोक्त रचनाओं की मदद लेते हुए 1818 ई. में साम्राज्यवादी इतिहासकार सर जेम्स मिल ने एक पुस्तक 'The History of India' लिखा जिसमें उन्होंने हिंदू वर्ण व्यवस्था का विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया। सिर्फ वर्ण व्यवस्था ही नहीं बल्कि उस समय की अनेक कुरीतियां जैसे सती प्रथा (मुख्यतः ब्राह्मणों के बीच यह प्रथा प्रचलित थी जिसमें पति की मृत्यु के पश्चात उसकी विधवा को पति की चिता पर ही जीवित अवस्था में ही जला दिया जाता था), आजीवन वैधव्य (जिन कुलों में सती प्रथा प्रचलित नहीं था वहाँ की विधवाओं को आजीवन कठोर वैधव्य जीवन जीने को मजबूर कर दिया जाता था, वे दूसरा विवाह नहीं कर सकती थी), बाल विवाह (यह प्रथा अधिकांश वर्ण-जातियों में प्रचलित थी जिसमें कन्या का विवाह उसके मासिक आने के आयु में या उसके पूर्व कर दिया जाता था, यह बेमेल विवाह भी होता था जिसमें वर की उम्र वधू से दुगनी या तीन गुणी होती थी) आदि ने East India Company के Indology में रुचि रखने वाले अधिकारियों को इस दिशा में खोज करने के लिए प्रेरित किया। इसके आधार पर या प्रत्युत्तर में अनेक प्राच्यवादी, साम्राज्यवादी, राष्ट्रवादी इतिहासकारों द्वारा अनेक प्राचीन भारतीय सामाजिक व्यवस्थाओं का अध्ययन किया गया।  

          इस क्रम में शूद्रों के बारे में सर्वप्रथम वी. एस. शास्त्री ने 1922 ईस्वी में एक छोटा सा निबंध लिखा जिसमें उन्होंने 'शूद्र' शब्द के दार्शनिक आधार की चर्चा किए हैं। उनके अनुसार शूद्र वैदिक अनुष्ठान करने के अधिकारी हैं। तत्पश्चात 1946 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने शूद्रों की उत्पत्ति के संबंध में लिखा।

 

संदर्भ :

·       शर्मा रामशरण (2013) शूद्रों का प्राचीन इतिहास' राजकमल प्रकाशन, पृष्ठ 9