Tuesday, 21 March 2023

हमारे देश का संविधान 26 नवंबर 1949 तक बनकर तैयार हो गया था। ऐसे में इसे 26 जनवरी 1950 की तिथि को ही लागू क्यों किया गया? उसी दिन या इस दो महीने के बीच की किसी अन्य तिथि क्यों नहीं?

शालायी बच्चों को भारतीय संवैधानिक मूल्यों से परिचय कराने, उन मूल्यों के साथ जीने के कौशल विकसित करने के क्रम में बेमेतरा जिले के एक शासकीय उच्च प्राथमिक शाला जाना हुआ। कक्षा छठवीं-आठवीं के बच्चों के साथ होने वाली इस बातचीत के दो चरण थे। पहले चरण में बच्चों को भारतीय संविधान की प्रस्तावना एवं उनमें उल्लेखित संवैधानिक अवधारणाओं एवं मूल्यों से संबंधित प्रदर्शित कैलेंडर का अवलोकन, अध्ययन करना था, तत्पश्चात मन में उपजे सवालों को एक कागज में लिखना भी था, ताकि दूसरे चरण में कक्षा में बैठकर उनपर बातचीत किया जा सके। बच्चों की ओर से कई प्रकार के सवाल आए। इसी क्रम में एक ऐसा भी सवाल आया जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। सवाल था – हमारे देश का संविधान 26 नवंबर 1949 तक बनकर तैयार हो गया था। ऐसे में इसे 26 जनवरी 1950 की तिथि को ही लागू क्यों किया गया”? उस पर्ची पर सवाल पूछने वाले का नाम नहीं लिखा हुआ था, बाद में बच्चों से पूछा भी कि यह सवाल किसकी जिज्ञासा है? लेकिन कोई स्वीकार करने को तैयार नहीं हुआ। सवाल की प्रकृति को देखकर ऐसा लगा कि शायद उसी शाला के किसी शिक्षक की ओर से ये सवाल आया हो? यह सोचकर कि इस विषय पर मेरी कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं है, मैंने उस सवाल पर फिर कभी किसी दिन बातचीत करने की बच्चों और शाला के शिक्षकों से सहमति ली। कई प्रामाणिक पुस्तकों का अध्ययन करने के पश्चात इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि नवनिर्मित भारतीय संविधान को लागू करने के लिए 26 जनवरी 1950 की तिथि चुनना कोई संयोग नहीं था, बल्कि इसके पीछे एक विशिष्ट बात छिपी थी।

          आजाद हिंदुस्तान (भारत) के संचालन हेतु संविधान निर्माण के लिए 9 दिसंबर 1946 ई. में ही भारतीय प्रतिनिधियों से निर्मित कमेटी गठित कर ली गई थी। इस कमेटी ने 2 वर्ष 11 महीने 18 दिन तक 114 बैठकों में लगातार चर्चा, विमर्श करने के पश्चात इस नवनिर्मित विश्व के सबसे बड़े लिखित संविधान को अंतिम रूप 26 नवंबर 1949 को दिया था। लेकिन कमेटी ने इसे लागू करने के लिए 26 जनवरी 1950 की तिथि निर्धारित की। इसके पीछे कारण था इस तिथि (26 जनवरी) की विशिष्टता। इस विशिष्टता को समझने के लिए संविधान लागू होने के 20 वर्ष पूर्व अर्थात 1929-30 ई. के कुछ घटनाक्रम को समझना पड़ेगा। दिसंबर 1929 ई. में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन रावी नदी के किनारे लाहौर में हुआ, जिसके अध्यक्ष पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। हालांकि प्रारंभ में गांधीजी को इस अधिवेशन के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था, लेकिन उन्होंने अपनी जगह जवाहरलाल नेहरू को इसका अध्यक्ष बनाया।[i] 1908 ई. से लेकर इस अधिवेशन तक भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस पार्टी ब्रिटिश सरकार से डोमिनियन स्टेटस (औपनिवेशिक स्वराज) की मांग कर रही थी। इस अधिवेशन के दौरान ही जनवरी 1930 ई. के पहले सप्ताह में यह प्रस्ताव पारित हुआ कि इसी महीने के आखिरी रविवार (26 जनवरी की तिथि) तक ब्रिटिश सरकार यदि भारत को डोमिनियन स्टेटस नहीं देती है तो भारत खुद को पूरी तरह स्वतंत्र (पूर्ण स्वराज) घोषित कर देगा। अर्थात इस अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस पार्टी ने अपना लक्ष्य औपनिवेशिक स्वराज से पूर्ण स्वराज घोषित किया। ब्रिटिश सरकार ने निर्धारित तिथि तक जब इस मांग को नहीं माना तो भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने 26 जनवरी 1930 को भारत के पूर्ण स्वतंत्रता के लक्ष्य की घोषणा कर दी। इस तिथि को पहली बार देश के अनेक भागों में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया।[ii] साथ ही कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के साथ-साथ हिंदुस्तान के अलग-अलग भागों के नागरिकों ने शांतिपूर्वक तथा पूर्णनिष्ठा के साथ गांधीजी द्वारा तैयार किए गए पूर्ण स्वराज के शपथ को दुहराते हुए आजादी हेतु प्रयास करने का संकल्प लिया। 1930 ई. के पश्चात 1947 ई. तक सभी कांग्रेसी कार्यकर्ता प्रतिवर्ष 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते रहे। इसी क्रम में जब अंग्रेजों ने भारतीय उपमहाद्वीप को छोड़ने का फैसला किया तो उन्होंने सत्ता हस्तांतरण के लिए 15 अगस्त 1947 का दिन निर्धारित किया। हालांकि उनके द्वारा भी इस कार्य के लिए 15 अगस्त की तिथि चुने जाने के पीछे एक रोचक कारण था। दरअसल 15 अगस्त अंग्रेजों के लिए एक यादगार दिन था। 2 वर्ष पूर्व अर्थात 1945 ई. में 15 अगस्त की तिथि को ही द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों के गुट, जिसमें ब्रिटेन भी शामिल था, के समक्ष जापानी सेना ने आत्मसमर्पण किया। इसलिए ब्रिटिश अधिकारियों के लिए यह एक विशिष्ट दिन था। चूंकि मामला देश की आजादी का था इसलिए भारतीय राजनेताओं को 15 अगस्त 1947 की प्रस्तावित तिथि को स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं हुई। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 26 जनवरी की तिथि थोड़ी धूमिल पड़ती जा रही थी, क्योंकि इसका स्थान 15 अगस्त की तिथि ने ले लिया था। इस तिथि की महत्ता बरकरार रहे यह सोचकर संविधान निर्माण समिति द्वारा 26 जनवरी 1950 ई. की तिथि को भारतीय संविधान लागू करने की तिथि घोषित की गई।

          यहाँ एक रोचक बात और यह है कि भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस ने ब्रिटिश सरकार से 1908 ई. से ही जिस डोमिनियन स्टेटस (उपनिवेशिक साम्राज्य) की मांग की थी एवं 1929-30 ई. में जिस पूर्ण स्वराज की बात की थी, दोनों एक साथ पूरी हुई। कहने का तात्पर्य यह है कि 15 अगस्त 1947 ई. की तिथि को भारत को ब्रिटिश प्रभुत्व से स्वतंत्रता मिली। सर्वोच्च पद वायसराय खत्म हुआ लेकिन एक नए पद गवर्नर जनरल का सृजन हुआ। यह पद ब्रिटिश क्राउन के अधीन होता था। लॉर्ड माउंटबेटन भारत के अंतिम वायसराय होने के साथ-साथ स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल बने। वे 1947-48 ई. तक इस पद पर बने रहे। तत्पश्चात चक्रवर्ती राज गोपालाचारी पहले एवं अंतिम भारतीय गवर्नर जनरल बने। ऐसा इसलिए हुआ कि स्वतंत्रता के समय भारतीय संविधान निर्माण की प्रक्रिया चल रही थी। इसलिए इसके लागू होने के पूर्व अर्थात 25 जनवरी 1950 ई. तक गवर्नर जनरल का पद ही सर्वोच्च पद बना रहा। 26 जनवरी 1950 से राष्ट्रपति पद प्रभावी होने के साथ ही डोमिनियन स्टेटस खत्म हुआ। डोमिनियन स्टेटस से तात्पर्य था - आंतरिक प्रशासन जैसे विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका, सैनिक, विदेशी मामले भारतीयों के द्वारा संचालित किए जाएंगे, लेकिन राजा ब्रिटिश साम्राज्य का होगा। इस तरह 26 जनवरी 1950 ई. से राष्ट्रपति पद प्रभावी होने के साथ भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, लोकतांत्रिक गणराज्य बना। चूंकि इससे पूर्व हमारे देश में राजतंत्रात्मक व्यवस्था थी जिसमें राजा का पद वंशानुगत होता था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात यदि यही व्यवस्था रहती तो विविध जाति, धर्म, संप्रदाय के मेल से निर्मित नवीन भारत के लोगों के साथ न्याय नहीं होता। अतः इस व्यवस्था के स्थान पर प्राचीन भारत की ही एक अन्य व्यवस्था गणतन्त्र को चुना गया। राजतंत्र के विपरीत इस व्यवस्था में राजा का पद वंशानुगत न होकर जनता के बीच से चुने जाते थे। इस व्यवस्था में राजा के पद को राष्ट्रपति के नाम से संबोधित किया गया। यही कारण है कि इस तिथि को गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। संविधान सभा द्वारा डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत के प्रथम राष्ट्रपति को चुना गया। यह स्वतंत्र भारत का सर्वोच्च संवैधानिक पद था। इससे पूर्व डोमिनियन स्टेटस में गवर्नर जनरल का पद सर्वोच्च होता था।

          26 जनवरी 1950 से इस पद के अस्तित्व में आते ही हमारे देश में गणतंत्रात्मक व्यवस्था लागू हुआ, ब्रिटिश साम्राज्य का डोमिनियन स्टेटस खत्म हुआ।



[ii] https://zeenews.india.com/hindi/india/up-uttarakhand/trending-news/our-constitution-implemented-on-26-january-know-everything-pcup/834996

 

अध्ययन हेतु प्रयुक्त अन्य स्त्रोत

गुहा रामचंद्र (2012) भारत गांधी के बाद: दुनिया के विशालतम लोकतंत्र का इतिहासपेंग्विन बुक्स, गुरूग्राम