Sunday, 12 January 2025

रामकृष्णा परमहंस का जीवन दर्शन

दक्षिणेश्वर के परमहंस के नाम से विश्वविख्यात रामकृष्णा परमहंस की गणना आधुनिक भारत के सर्वप्रमुख सन्यासियों में की जाती है। उनकी महानता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रवींद्र नाथ टैगोर द्वारा 1915 में गांधीजी को महात्मा शब्द से संबोधित करने के दो दसक पूर्व ही संस्कृत के महान विद्वान फादर मैक्स मूलर ने 1896 में अपने लिखे एक लेख में उन्हें महात्मा कहकर संबोधित करते हैं (A real Mahatma)[i]   

रामकृष्ण परमहंस देवी काली के एक समर्पित भक्त थे, जिनका जन्म 20 फरवरी 1833 ई. को हुगली जिले के कमरपुरकर गाँव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका वास्तविक नाम गदाधर था। उनके बड़े भाई कलकत्ता के दक्षिणेश्वर में पंडिताई का काम करते थे। दक्षिणेस्वर में ही एक धनाद्य महिला ने एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया। उस मंदिर के लिए पुजारी की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी उस महिला ने गदाधर के बड़े भाई को सौंपी। उन्होंने अपने भाई (गदाधर) को समझाकर उस मंदिर का पुजारी बना दिया। यहीं से गदाधर के जीवन में भक्ति-भाव अपने चरम की ओर जाने लगे। नियमित पूजा-पाठ के साथ-साथ वे चिंतन-मनन की ओर भी अग्रसर होने लगे। उनके मन में माता काली के दर्शन की आकांक्षा दिनों दिन बढ़ने लगी।

काली माता के दर्शन के लिए उनकी व्याकुलता चरम पर थी। कहा जाता है कि माता के दर्शन न होने से वे घोर निराश हो गए थे, एक दिन मंदिर में माता के खड़ग से अपना सिर काटने का जब प्रयास किया तो एकाएक माँ काली ने प्रत्यक्ष रूप से प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए। दर्शन के पश्चात उनकी स्थिति ऐसी हो गयी कि पल-पल में ही वे गंभीर समाधि में चले जाते थे। गदाधर (रामकृष्ण) को इस अवस्था से बाहर निकालने के लिए उनका विवाह कर दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि विवाह के पश्चात भी रामकृष्णा परमहंस ने अपनी पत्नी को माता तुल्य ही माना और ब्रह्मचर्य पर विजय प्राप्त किया।

चिंतन-मनन की प्रवृत्ति ने उन्हें इस्लाम की ओर भी आकर्षित किया। इस्लाम धर्म के अनुभव जानने के लिए वे मुस्लिम भी बन गए। उनका कहना था कि किसी को यदि जानना है तो गहराई में समर्पण से कूद जाओ। मुसलमान बनकर घोर साधना करने के पश्चात उन्होंने घोषणा की - इस्लाम धर्म वेदांत के बहुत समीप है’। 

अध्ययन हेतु प्रयुक्त ग्रंथ

राजस्वी एम आई, ‘विश्वगुरु विवेकानंद’ फिंगरप्रिंट प्रकाशन, नई दिल्ली, 2019

Muller F Max ‘Ramkrishna: His life and sayings’ Niyogi books, new Delhi, 2019



[i] Muller F Max ‘Ramkrishna: his life and sayings’ Niyogi books, new Delhi, 2019, page no 11


स्वामी विवेकानंद और आज के सन्यासी

 “महाराज, मैं आपको अपनी चिलम नहीं दे सकता”। वह बोला।

“भाई? स्वामी जी ने चौंककर कहा।

“ क्योंकि मैं जाति का भंगी (मेहतर) हूँ। आप कुलीन वंश के सन्यासी और ... “।

स्वामी जी का हाथ स्वयं ही पीछे हट गया और वे अपने रास्ते पर बढ़ चले। अभी वे 10 कदम ही चले थे कि मस्तिष्क में विस्फोट सा हुआ। ‘जिसे जाति कुल और धन का अभिमान हो, वह कभी सन्यासी नहीं हो सकता’। परमहंस के शब्द जैसे उन्हीं के स्वर में चेतना से टकरा रहे थे। ‘यह महीने क्या किया! जाति का क्यों अभिमान तो मुझमें शेष रह गया, तभी तो मैंने उसे अछूत की चिलम न पकड़ी। मेरा ज्ञान और गुरु का उपदेश मुझे कैसे विस्मृत हो गया? ठहर आत्माभिमान! अभी तुझे ठीक करता हूँ’। स्वामीजी तत्काल उस मेहता के पास पहुंचे और उसके पास बैठकर बड़े आराम से चिलम पी और आत्माभिमान का दमन किया।

राजस्वी एम. आई ‘विश्वगुरु विवेकानंद’ फिंगरप्रिंट प्रकाशन, नई दिल्ली, 2019 को पढ़ते हुए एहसास हुआ कि आज स्वामी विवेकानंद को आदर्श मानने वाले लगभग सभी सन्यासी आज के समय में भयानक जातीय कुंठा से ग्रसित मिलेंगे, जो किसी तथाकथित अस्पृश्य व्यक्ति को मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते बर्दास्त नहीं कर सकते, ये सभी यदि स्वामी विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस के विचारों से प्रेरणा ले तो वह दिन दूर नहीं जब ‘अस्पृश्यता’ को हम ‘सती प्रथा’ की तरह इतिहास की किताबों में पढ़ा करेंगे।   

राष्ट्रीय युवा दिवस पर देश के युवा भी इस प्रेरणा को ग्रहण करें।

Sunday, 5 January 2025

चन्द्रमा (Moon) क्यों चमकता है?

रात के अंधेरे में अलग अलग नामों वाले आकाशीय पिंड जैसे ग्रह, उपग्रह, तारे आदि अक्सर चमकते नजर आते हैं। किसी अन्य ग्रह से यदि हमारी पृथ्वी को भी देखा जाए तो यह भी चमकती नज़र आएगी। आखिर इनके चमकने का कारण क्या है? उत्तर है ये सभी आकाशीय पिंड दो कारणों से चमकते हैं-

1.     उन आकाशीय पिंडों का हाइड्रोजन-हीलियम जैसे गैसों से निर्मित होना।

2.     किसी तारे से आ रही प्रकाश का परावर्तन।

    पहले कारण को हम सूर्य का उदाहरण लेते हुए समझ सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि सूर्य 70% हाइड्रोजन 28% हीलियम और 2% अन्य गैसों से बना हुआ है। सूर्य की सतह पर मौजूद हाइड्रोजन गैस नाभिकीय संलयन (Nuclear fusion – किसी भी तत्व के दो ऐटम का आपस में जुड़ जाना) प्रक्रिया से हीलियम गैस बनाती है। इस अभिक्रिया के दौरान आउटकम के रूप में काफी विशाल मात्रा में उर्जा, प्रकाश निकलता है। इस कारण सूर्य चमकता है, और हम कह पाते हैं कि सूर्य का अपना प्रकाश स्रोत है।

    दूसरे कारण को हम चंद्रमा का ही उदाहरण लेते हुए समझते हैं। चंद्रमा पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है। इसे उपग्रह के नाम से इसलिए संबोधित किया जाता है कि यह सूर्य की परिक्रमा न कर, पृथ्वी की परिक्रमा करती है। चन्द्रमा 4000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से 27.3 दिनों में पृथ्वी की एक परिक्रमा पूर्ण करता है। पृथ्वी की तरह ही यह ठोस चट्टानों से निर्मित आकाशीय पिंड है। पृथ्वी की तरह ही यह हाइड्रोजन हिलियम आदि गैसों से निर्मित नहीं है। सूर्य से निकलने वाले प्रकाश इसकी सतह पर पड़कर पृथ्वी पर प्रतिबिंबित होते हैं, इस कारण यह हमें चमकता हुआ दिखाई पड़ता है। इसका आधा हिस्सा जब सूर्य के सामने रहता है, तो सूर्य का प्रकाश इस से परावर्तित होकर हमारे पृथ्वी पर पड़ता है, हमारे आँखों की रेटिना से टकराता है। इससे यह आकाशीय पिंड चमकता हुआ दिखाई पड़ता है।

अध्ययन हेतु प्रयुक्त सामग्री 

1.     https://www.youtube.com/watch?app=desktop&v=IP7ahJsKGA4&t=283s

2. https://navbharattimes.indiatimes.com/world/science-news/what-is-the-sun-made-of-elements-of-sun-how-sun-is-formed-and-produce-energy-hindi/articleshow/91830430.cms