Tuesday, 24 November 2015

गंदगी कपड़ों में नहीं बल्कि हमारे दिमाग में होती है

मनुस्मृति के श्लोक संख्या 3/56 में लिखा है यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताअर्थात जहाँ भी नारियों की पूजा / सम्मान होती है वहाँ देवताओं का निवास होता है । यदि हम मनुस्मृति में लिखे इस बात को सच मन लेते हैं तो पिछले दो दशकों से जिस तरह उत्तर प्रदेश, दिल्ली सहित पूरे भारत में काफी तेज़ी से नारियों के छेड़-छाड़, अपमान, घरेलू हिंसा, बलात्कार की घटनाएं बढ़ रही है, इन्हें देखकर तो यही लगता है कि संभवतः हमारे देश से सभी धर्मों के देवी देवता यहाँ से स्थानान्तरण प्रमाण पत्र बनवाकर हमारे देश को छोडकर कहीं और जाकर अपना निवास स्थान बना लिए होंगे । इसीलिए तो नारियों के प्रति आज के समाज की सोच को बदलने, उनके खोये/पितृसत्तात्मक समाज द्वारा अतिक्रमित अधिकारों की रक्षा के लिए या नारी इज्ज़त से छेड़-छाड़ करने वाले बलात्कारियों के विनास करने के लिए इतने घोर कलयुग में भी पालनकर्ता विष्णु और संहारकर्ता महेश तो बहुत दूर खुद स्त्री रूप में मुख्यतः स्त्रियों द्वारा ही पूजे जानेवाली दुर्गा, पार्वती, काली, वैष्णवी आदि कोई भी देवियाँ अवतार लेकर इनकी रक्षा के लिए भी नही आ रहे है । जबकि हिंसा की शिकार महिलाओं का एक बहुत बड़ा तबका पूरे वर्ष  खुद की रक्षा के मनोकामना पूर्ति हेतु मंदिरों या पूजाघरों के चक्कर लगाते थकते नहीं । इतना ही नहीं अपनी रक्षा/सलामती की दुआ मांगने के लिए काफी पैसे खर्च कर ये महिलाएं वैष्णो देवी, ज्वाला देवी मंदिर, विन्ध्याचल और ना जाने कहाँ-कहाँ आती-जाती रहती है । रक्षा करने के वादे के बदले ये उन्हें कुछ दान (रिश्वत) भी देती हैं जिनके बारे में ये खुद कहती हैं कि इनके पास धन-धान्य की कोई कमी नहीं । इसके बावजूद जब भी कभी इनपर कोई विपदा आती है तो लाख मदद की गुहार लगाने के बावजूद कोई भी देवी देवता मदद के लिए नही आते । इसके पीछे दो कारण हो सकते हैं - पहला तो ये कि या तो इन देवी देवताओं का कोई अस्तित्व ही नहीं है या दूसरा ये कि ये सचमुच हमारे देश से स्थानांतरित होकर कहीं और चले गए । तभी तो द्रोपदी को चीर हरण से बचाने वाले कृष्ण खुद अपने राज्य उत्तरप्रदेश में चीरहरण, बलात्कार जैसी घटनाओं को रोक नहीं पा रहे हैं । हमारे देश का पितृसत्तात्मक समाज पुरुषवादी मद में चूर होकर खुद को स्त्री जाति का संरक्षक बताने के नाम पर हजारों वर्षों से शोषण करता आ रहा है । इतने जुल्म सितम करने के बावजूद फिर भी थोड़ी खुशी हो रही है कि आज की तारीख में हमारे समाज का पढ़ा लिखा पुरुष वर्ग स्त्रियों के शोषण, छेड़-छाड़, बलात्कार जैसी घिनौनी घटना के विरुद्ध स्त्रियों के साथ एकजुट होकर इसके खिलाफ आवाज उठा रहे हैं , ऐसी घटनाओं पर लगाम लगे इसके लिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं लेकिन शर्मनाक बात तो यह है कि जागरुक करने के बावजूद भी बलात्कार जैसी घटनाएं कम होने के विपरीत बढती ही जा रही है । राष्ट्रीय राजधानी से लेकर देश के अन्य छोटे-बड़े नगर गाँव कश्बों तक ... हर जगह स्त्री जाति इस प्रकार के घटनाओं की शिकार हो रही है । क्यों ? आखिर क्या कारण है इसके ? हमारे देश का चिंतनशील सभ्य समाज लगातार इसके कारणों पर नए नए शोध द्वारा इसकी वजहों को हमारे सामने ला रहे हैं कोई लड़कियों के जीन्स पहनने को बलात्कार की वजह मानते हैं तो कोई आज के युवा पीढ़ी विशेषकर लड़कियों द्वारा पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण करने को , तो कोई मांसाहार को । अभी हाल ही में कर्नाटक विधानसभा की एक कमेटी छेड़छाड़ एवं बलात्कार की बढ़ रही घटनाओं के लिए मोबाइल फोन को जिम्मेदार माना है ।
इतना ही नहीं कर्नाटक के लिंगायत संप्रदाय के धर्मगुरु माथे महादेवी भी लड़कियों के तंग कपड़े को जिम्मेदार मानते हैं । वे कहते हैं कि “लड़कियां जितने भड़काऊ कपड़े पहनेंगी, रेप के मामले उतने ही बढ़ते जाएंगे । लड़कियों को पश्चिम के कपड़े त्याग देने चाहिए और ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जिससे उनकी संस्कृति झलके । लड़कियों के चुस्त कपड़े अपराधियों को रेप करने के लिए उकसाते हैं” ।[1] इस तरह जिसे देखो वो लड़कियों के पहनावे पर उंगली उठाने के लिए तैयार रहता है । लेकिन कोई भी पुरुषवादी गंदी मानसिकता को छेड़छाड़ या बलात्कार की वजह मानने को तैयार नहीं । होंगे भी कैसे ? पितृसत्तात्मक व्यवस्था के पुरुषवादी मानसिकता के जो ठहरे ! भला कोई अपना दहि खट्टा कहता है क्या ? इस विषय पर शोध के दौरान जब एक सज्जन से बलात्कार जैसी घटनाओं के तीव्रता से फैलने का कारण पूछा तो उन्होनें उत्तर दिया कि आजकल की लड़कियों द्वारा प्रयुक्त होने वाले छोटे व बदन दिखाऊ कपड़े जो पुरुषों को उत्तेजित कर देती हैं, इस तरह की घटना के लिए जिम्मेदार हैंठीक है थोड़ी देर के लिए माना उनकी बात को ...लेकिन बदायूं रेप कांड जिनकी तस्वीरें संभवतः हम सभी के अचेतन मन में जरूर बसा होगा ... उन्होनें कौन सी बदन दिखाऊ या भड़काऊ कपड़े पहने थी । उनकी बातें कुछ हद तक मेट्रो शहरों की लड़कियों पर फिट बैठ सकती है लेकिन यदि हम गाँव की बात करें तो यहाँ की लड़कियाँ तो अपनी और परिवार की मर्यादा को समाज में बनाये रखने के लिए ऐसा कोई पोशाक नहीं पहनती जिससे उनका बदन दिखे, बल्कि इनके कपड़े से सालीनता झलकती है । ऐसे में गाँव की  लड़कियों को तो ऐसी हिंसा का शिकार नही होना चाहिए । फिर भी ...
वास्तविकता तो ये है जनाब कि गंदगी हमारे (पुरुषों के) दिमाग में होती है लड़कियों के पहनावे में नहीं । और इस गंदगी को बढ़ाने सबसे अधिक पुरुष वर्ग ही उत्तरदायी है क्योंकि आज के दौर में हमारे देश का युवा पुरुष वर्ग अश्लील या सेक्स-उत्तेजना बढ़ाने वाली गानों, फिल्मों, 3जी के जमाने में उपलब्ध सस्ते इन्टरनेट पर प्रचुर मात्र में उपलब्ध पोर्न साईट एवं पत्र-पत्रिकाओं की दुकानों पर चोरी-छिपे बिकनेवाली अश्लील साहित्यों की तरफ काफी तेज़ी से खींचे चले जा रहे हैं जिससे इनकी मानसिकता दिनों-दिन इस क़दर विक्षिप्त-विकृत होती जा रही है कि पल भर में ही किसी स्त्री को देखकर ये उन्हें उनके दिलो दिमाग में बैठे अश्लील साहित्य या फिल्मों के किसी दृश्य की स्त्री पात्र के रूप में उस महिला को देखकर कल्पना के सागर में दुबकी लगाने लगते हैं । हमेशा इसी तरह की बातें मन में चलने के कारण उनकी मानसिक स्थिति और विकृत होती जाती है जिससे उनके मन में हमेशा सेक्स की इच्छा शांत करने के लिए कुछ भी कर गुजरने के प्रयास में लगे रहते हैं, अपने स्वार्थ की पूर्ति में वे इस तरह मानसिक पागलपन के शिकार हो जाते हैं कि उनमें सही-गलत का फैसला लेने की क्षमता नही रह जाती । उन्हें इस बात का आभास नहीं रहता कि जिनके साथ वे ये हिंसा कर रहे हैं वो भी किसी के घर की बहु/बेटी है वो भी किसी परिवार की  इज्जत है । यदि कोई हमारे रक्त संबंधी बहु बेटियों की तरफ नज़र उठा कर देखता है तो खून खौल उठता है जबकि हम किसी के बहु बेटी कि तरफ देखें तो .... नयनसुख !
जब तक हम स्त्रियों के प्रति हैवानियत भरी नज़र से देखना बंद नही करेंगे तब तक बलात्कार जैसी घटनाओं पर काबू पाना और स्त्री को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने की बातें करना बेईमानी होगा । क्योंकि बलात्कारी मानसिक रूप से विक्षिप्त होते हैं जिन्हें फांसी जैसी सजा भी अपने हवस की पूर्ती की  इच्छा के सामने बौनी लगती है । यहाँ पर एक महत्वपूर्ण सवाल पैदा होता है कि जो पुरुषवादी मानसिकता हमें विरासत में मिलती हैं उसे कैसे बदलें । उत्तरस्वरूप बस यही कहा जा सकता है कि एक व्यक्ति द्वारा पारिवारिक रक्त से संबन्धित स्त्रियों को जिस नज़र से देखा जाता है उसी नज़र से यदि वह व्यक्ति पूरी नारी जाति को देखने लगे तो स्त्रियों के प्रति उसकी मानसिकता बदल सकती है । बुद्ध की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारकर अपनी मानसिकता बदल सकते हैं जिसमे बुद्ध अपने भिक्षुओं को यह सलाह देते हैं कि जब भी आपको किसी स्त्री से मिलने का अवसर प्राप्त हो तो आप उन्हें केवल अपनी बहन या पुत्री के रूप में देखें । इस प्रकार पुरुषवादी मानसिकता को सुधारकर बलात्कार, छेड़छाड़ जैसी घटनाओं पर यथासंभव काबू पाया जा सकता है ।
साकेत बिहारी
पीएच. डी.  स्त्री अध्ययन
सत्र 2014 -15
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)
                                                                                   ई मेल – lord.saket2002@gmail.com
(मुंबई से प्रकाशित मासिक पत्रिका "अदम्य हुंकार" में मेरा ये आलेख अक्तूबर 2014 के अंक में प्रकाशित हुआ )








[1] http://www.jagran.com/news/national-legalize-prostitution-to-reduce-crime-against-women-mate-mahadevi-11703325.html?src=fb