Sunday, 17 January 2016

उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल आगामी चुनाव और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण

वर्ष 2016 में पश्चिम बंगाल तथा 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को देखते हुए वोटों के ध्रुवीकरण के लिए जिसे देखो अपने-अपने राग आलापने लगे हैं । कोई धर्म के नाम पर तो कोई जाति के नाम पर । उदाहरण के लिए दलितों की प्रमुख नेत्री मानी जानेवाली उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती अपने प्रमुख प्रतिद्वंदी बीजेपी तथा सपा पर हमला बोलते हुए मुलायम सिंह यादव को डॉ. राममनोहर लोहिया की समाजवादी विचारधारा के खिलाफ काम करने का आरोप लगा रही हैं तो वहीं बीजेपी पर राम मंदिर निर्माण के नाम पर उन्माद फैलाने का आरोप लगा रही हैं ।[1] साथ ही यह भी जानकर कि उनका दलित वोट बैंक खिसक रहा है, सवर्णों का वोट हाशिल करने के उद्देश्य से सवर्ण गरीबों को आर्थिक आधार पर आरक्षण[2] प्रदान करने की मांग करने के साथ-साथ उन्होनें अवसरवादी राजनीति का एक मिशाल प्रस्तुत किया है । ये बातें हैरान करती हैं कि क्या ये वही मायावती हैं जो राजनीति व समाज से सवर्ण प्रभुत्व खत्म करने के लिए एक समय नारा दिया करती थी “तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार” ! मुलायम सिंह यादव बिहार विधानसभा में लालू-नितीश की पिछड़ों-अतिपिछड़ों की राजनीति से सीख लेते हुए अपने वोटबैंक को बनाने के लिए 24 नवम्बर को पार्टी कार्यालय में 17 अतिपिछड़ी जातियों का सम्मेलन कराकर उन्हें अपने पाले में गोलबंद करने के लिए लगे हुए हैं । धर्म की राजनीति की बात करें तो बाबरी मस्जिद विध्वंश/राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का मामला जबकि सुप्रीम कोर्ट में अभी लंबित ही चल रहा है । इसके बावजूद बीजेपी ने हिंदुओं को भावनात्मक रूप से आकर्षित करने के लिए अभी से ही राम मंदिर का राग आलापना शुरू कर दिया है । ऐसा माहोल बनाया जा रहा है कि जैसे इन्हें अंदर की बात पता हो कि 2016 में राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आ ही जाएगा । इस कार्य में ख्याति प्राप्त बीजेपी नेता और पेशे से वकील सुब्रहण्यम स्वामी की लोकप्रियता को भी भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ा जा रहा है । हाल ही में पश्चिम बंगाल में हुए एक कार्यक्रम में आर.एस.एस प्रमुख मोहन भागवत जी द्वारा राम मंदिर निर्माण का राग अलापने के बाद विश्व हिंदू परिषद के प्रवीण तोगड़िया राम मंदिर निर्माण में प्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री का नाम लेकर विवाद को लगातार बढ़ाते जा रहे हैं ।[3] अब विवाद जब खड़ा हुआ ही है तो हम किसी से कम नहीं के तर्ज़ पर, इस विवाद में कूदते हुए AIMIM (ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहदा मुस्लिमीन) के नेता असदुद्दीन ओवेसी ने तो बाबरी मस्जिद गिराए जाने के 23वीं वर्षी पर यहाँ तक कह दिया कि अयोध्या में मंदिर नहीं हम मस्जिद ही बनाएँगे ।[4] समाजवादी पार्टी के आजम खान भी अयोध्या में मस्जिद बनवाने की बात करते हुए कहते हैं, “अगर बाबरी मस्जिद (अयोध्या में) उसी जगह बनती है तो भारत के मुसलमान भाजपा को सत्ता में लाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे ।[5] हमेशा से ही बातचीत द्वारा इस मसले को हल करने की सलाह देने वाले बाबरी मस्जिद के पक्षकार हाशिम अंसारी भी अब खीझकर कहते हैं कि मंदिर मस्जिद का विवाद अब बातचीत से हल नहीं हो सकता । उच्चतम न्यायालय का जो फैसला होगा, उसे हम केवल मानेंगे ।[6] इस विवादित स्थान पर मंदिर बनेगा या मस्जिद ये तो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद ही पता चल पाएगा लेकिन दोनों ही धर्मों के कट्टरपंथी नेता देश का सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ कर अपना स्वार्थ निकालने के लिए इस मुद्दे पर सियासत करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं । सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने में पश्चिम बंगाल स्थित माल्दा की घटना, जिसमें में 3 जनवरी को हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी द्वारा मुहम्मद साहब पर अभद्र कमेंट करने के विरोध स्वरूप मुसलमानों द्वारा थाना जला दिये जाने की बात सामने आई थी, को भी प्रयुक्त किया जा रहा है । जबकि वास्तविकता यह है कि थाने जलाए जाने की घटना का इस विरोध प्रदर्शन से नहीं बल्कि इसका संबंध माल्दा से संचालित होनेवाली जाली नोटों के कारोबार तथा अफीम व ड्रग्स के अवैध कारोबार से था । काफी गहराई से पड़ताल करने के बाद न्यूज़ 24 ने यह रिपोर्ट प्रकाशित की ।[7] इसके बावजूद इस घटना को नोएडा के दादरी से जोड़ते हुए सांप्रदायिक माहोल बिगाड़ने का खूब प्रयास किया गया । पश्चिम बंगाल की बात करें तो मुस्लिम जनसंख्या जो पश्चिम बंगाल के कुल आबादी का 27 % हैं को भी लुभाने का बखूबी प्रयास कर रही हैं । जो आजतक दिल्ली से बांग्लादेशी नारीवादी लेखिका तस्लीमा नसरीन को बुला नहीं पायी, वो मुसलमानों को लुभाने के लिए पाकिस्तानी ग़ज़ल गायक गुलाम अली के कार्यक्रम आयोजित करवा रही हैं ।[8]
          क्या विडम्बना है कि बड़े-बड़े मंच से असहिष्णुता पर बात करते हुए प्रधानमंत्रीजी बोलते हैं कि हमें एक दूसरे के नज़रिये और परंपराओं का ख्याल रखना चाहिए ।[9] इसके बावजूद सांप्रदायिक माहोल को खराब करने वाले ऐसे राजनीति, बयानबाजी पर रोक लगाने के लिए खुद प्रधानमंत्री या अन्य सक्षम लोगों का कोई स्टेटमेंट तक नहीं आता है । ऐसा प्रतीत होता है केंद्र व राज्य सरकार को देश के माहौल खराब होने से कोई लेनदेना ही नहीं है । निजी स्वार्थ, जातिगत राजनीति करनेवाले नितीश कुमार, मायावती, मुलायम सिंह यादव को जनता लोकसभा चुनाव में सबक सीखा चुकी है । इसके बावजूद भी पिछली गलतियों से यदि इनलोगों ने सबक नहीं लिया तो एक बार फिर से इन्हें वो दिन देखने पड़ सकते हैं जैसा शीर्ष पर पहुँचने के बावजूद माहोल को खराब करने का खामियाजा बीजेपी दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में 3 सीट व बिहार में 243 में से 57 सीट लाकर बीजेपी भुगत चुकी है




(दिल्ली से प्रकाशित दैनिक समाचारपत्र वुमेन एक्सप्रेस के संपादकीय 18/01/2016 में प्रकाशित )




[1] http://www.thehindu.com/news/national/other-states/barring-varanasi-modi-neglecting-rest-of-uttar-pradesh-mayawati/article8111831.ece
[2] वुमेन एक्सप्रेस, “क्या मायावती संघ के एजेंडे को आगे बढ़ा रही हैं” संपादकीय, 5 दिसम्बर 2015
[3] http://khabar.ibnlive.com/news/desh/praveen-togadiya-vhp-prime-minister-narendra-modi-lord-ram-temple-ayodhya-432197.html
[4] http://m.newshunt.com/india/hindi-newspapers/amar-ujala/national/ovaisi-ka-ailan-ayodhya-me-mandir-nahi-masjid-banegi_47009646/c-in-l-hindi-n-amar-ncat-National
[6] वही, पृष्ठ संख्या 7
[7] http://hindi.news24online.com/truth-of-malda-riot-59/#.VpP6i_31Pzw.facebook
[8] http://www.satyagrah.com/politics/west-bengal-mamta-banerjee-ghulam-ali-taslima-nasreen/
[9] http://khabar.ndtv.com/news/india/to-respect-each-others-traditions-and-vision-pm-modi-1265022