Saturday, 23 January 2016

विचारधारा की लड़ाई ने लील ली रोहित वेमुला की ज़िंदगी

अगस्त 2015 में दिल्ली विश्वविद्यालय में नकुल सिंह साहनी एवं नेहा दीक्षित निर्मित, मुजफ्फरनगर दंगों के लिए उत्तरदायी कारणों की पड़ताल करती डोक्यूमेंट्री फिल्म “मुजफ्फरनगर बाकी है” के प्रदर्शन का जब बीजेपी समर्थित छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यी छात्रों ने फिल्म को हिन्दुत्व के खिलाफ[1] बताते हुए विरोध किया तो वहीं जेएनयू, हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा सहित पूरे देश के अनेक विश्वविद्यालयों के छात्रों विशेषकर दलित तथा वामपंथी छात्र संगठनों ने प्रदर्शन का समर्थन करते हुए अपने-अपने संबन्धित संस्थानों में एक साथ फिल्म का स्क्रीनिंग किया । 2 घंटे 16 मिनट की इस प्रतिरोधक फिल्म को स्क्रीनिंग के दिन ही लगभग 7 हज़ार लोगों ने काफी रुचि से देखा ।[2] हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में भी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के खिलाफ अंबेडकर स्टूडेंट्स एसोशिएशन के छात्रों द्वारा फिल्म के प्रदर्शन का समर्थन करते हुए इसका प्रदर्शन किया गया । इसके अगले दिन ही एबीवीपी के एक नेता ने इन्हें गुंडा शब्द से संबोधित किया । जिसके लिए बाद में विश्वविद्यालय के सुरक्षा अधिकारियों से उस नेता ने लिखित माफी भी मांगी । इसके अगले ही दिन एबीवीपी नेता सुशील कुमार ने अंबेडकर स्टूडेंट्स असोशिएशन के 30 छात्रों द्वारा खुद के साथ मारपीट किए जाने का आरोप लगाया । घटना की जांच के बाद प्रोक्टोरियल बोर्ड ने यह पाया कि सुशील कुमार को पीटे जाने का कोई प्रमाण नहीं है ।[3] मौके पर मौजूद सुरक्षा गार्ड ने भी कहा कि मारपीट की कोई घटना नहीं हुई है । कोई जख्म का निशान नहीं है ।[4] इसके बावजूद अंतिम रिपोर्ट में बोर्ड ने 5 अंबेडकर स्टूडेंट्स असोशिएशन के छात्रों को एक सेमेस्टर के लिए निलंबित करने का फैसला किया गया । फैसले का विरोध करने के बाद पूर्व वाइस चांसलर ने इस सज़ा को नए कमेटी द्वारा नए सिरे से जांच होने तक के लिए वापस ले लिया । इस दौरान न केवल एक बीजेपी के एमएलसी ने इस घटना को लेकर पूर्व वीसी आरपी शर्मा से मुलाक़ात की । बल्कि बीजेपी सांसद केंद्रीय श्रम मंत्री बंडारु दत्तात्रेय ने 17 अगस्त 2015 को मानव संसाधन मंत्री को हैदराबाद विश्वविद्यालय में जातिवादी, राष्ट्रवादी गतिविधियों के गढ़ बनने से संबंधित पत्र लिखा । इसी बीच 21 सितंबर 2015 को नए वाइस चांसलर प्रो. अप्पा राव आ गए । पूर्व वीसी के वादे के अनुरूप इन्होनें कोई जांच कमेटी नहीं बनाई । लेकिन विश्वविद्यालय की सर्वोच्च कार्यकारी समिति ने अपना फैसला देते हुए पहले से भी सख्त सज़ा देते हुए दिसम्बर 2015 में इन पाँच छात्रों को हॉस्टल से निलंबित करने के साथ-साथ उनकी फ़ेलोशिप भी रोक दी गयी ।[5] इस निर्णय के विरोध में इन छात्रों ने हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की । साथ ही अनेक छात्रों के साथ खुले में भी रह रहे थे । अंततः रविवार 17 जनवरी को इन 5 छात्रों में से एक रोहित वेमुला ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली ।
          आत्महत्या के अगले दिन से ही देशभर के विश्वविद्यालयों में रोहित की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों को सज़ा देने के समर्थन में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया । इसमें बीजेपी सांसद तथा श्रम मंत्री बंडारु दत्तात्रेय तथा स्मृति ईरानी के नाम आने के कारण यह राजनीति का अखाड़ा बन गया है । बीजेपी वाले एक ओर जहां एबीवीपी तथा केंद्रीय मंत्री का पक्ष लेते हुए उन्हें बचाने की कोशिश कर रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर रोहित को याक़ूब मेनन के फांसी का विरोध करने, बीफ फेस्टिवल का समर्थन करने के कारण उसे राष्ट्रविरोधी करार दे रहे हैं । लेकिन ऐसा कर वे मुद्दे को उलझाना चाहते हैं । ये जो कुछ भी बता रहे हैं वो सही हो सकता है लेकिन इन तथ्यों का रोहित की मौत से कोई लेना देना नहीं है । ये इक्सक्यूज बिलकुल वैसा ही है जैसे नाथुराम गोडसे ने गांधी जी की हत्या की । क्यों की ? तो इसलिए कि उनका अपने सहयोगी मनु और आभा के साथ संबंध था (नए अध्ययन के अनुसार) ।[6] जबकि वास्तविकता ये है कि गोडसे द्वारा गांधीजी की हत्या का कारण पाकिस्तान प्रश्न से संबंधित था । ठीक इसी प्रकार इन छात्रों के निलंबन को मुख्य कारण “मुजफ्फरनगर बाकी है” के दौरान हुई झड़प से है । वो बीफ पार्टी का आयोजन करता था, याक़ूब के फांसी का विरोध करता था ... ये सभी तथ्य मुद्दे को भटकाने के लिए हैं । फिर भी यदि कोई किसी के फांसी की सज़ा का विरोध करता है तो इसमें गलत क्या है ।[7] भगत सिंह के फांसी का हम आज भी विरोध करते हैं भले वो ब्रिटिश सरकार की नज़र में आतंकवादी हों । जबकि ये सर्वविदित है कि बीफ फेस्टिवल का आयोजन एक सांकेतिक प्रतिरोध था ...फासीवादियों के मॉरल पुलिसींग के खिलाफ । ठीक वैसे ही जैसे मॉरल पुलिसींग के खिलाफ केरल से शुरू हुए “किस ऑफ लव” आंदोलन था । जो कि फासीवादी विचारधारा का मुंह चिढ़ाने के लिए आयोजित किया जाता था । राहुल गांधी, दिग्विजय सिंह, अरविंद केजरीवाल सभी इस अखाड़े में अपनी आजमाइश करने में लग गए हैं ।[8] लेकिन इस सियासत में रोहित की मौत का जो मुख्य कारण है उस पर पर्दा डालने की कोशिश की जा रही है । रोहित की मौत का मुख्य कारण ब्राह्मणवादी तथा गैर ब्राह्मणवादी अंबेडकरवादी विचारधारा का टकराव है । ब्राह्मणवादी विचारधारा की गिरफ्त में आज देश का प्रत्येक शिक्षण संस्थान है । विशेषकर केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में तो यह कूटकूट कर भरी है । ब्राह्मणवादी विचारधारा के अनुयायी इन बातों से गुरेज करते हैं कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी वर्ग के बच्चे भी एम. फिल या पीएच.डी स्तर की पढ़ाई करें और उन्हें भी हमारी तरह कॉलेजों, विश्वविद्यालय में नौकरियाँ मिले । वास्तव में ऐसे विचारधारा के लोग इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी राजतंत्रात्मक व्यवस्था का अनुसरण करते हुए मनुस्मृति के बनाए नियमों पर चलते हैं । संविधान प्रदत्त आरक्षण के कारण एससी, एसटी व ओबीसी वर्ग के छात्रों को लेना इनकी मजबूरी है । अन्यथा ऐसी विचारधारा वाले लोग सामान्य वर्ग को छोडकर इन लोगों को देखना भी पसंद नहीं करते । आरक्षण या प्रतिभा के बल पर प्रवेश पाने के बावजूद प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन्हें उनके निम्न जाति से संबंधित होने का एहसास करवाया जाता है । अंबेडकर स्टूडेंट्स असोशिएशन से जुड़े रोहित वेमुला द्वारा हैदराबाद विश्वविद्यालय के कुलपति को दिसम्बर 2015 में लिखे इस पत्र से इस तथ्य की पुष्टि होती है “दलित छात्रों के कमरे में एक रस्सी मुहैया करानी चाहिए । इससे पूर्व भी पत्र व्यवहार में यह भी कहा कि “हमलोगों को इस तरह अपमानित करने की जगह नामांकन के समय ही हमें जहर दे देना चाहिए ।[9] यही कारण है कि पिछले 10 वर्षों में हैदराबाद विश्वविद्यालय के 9 दलित छात्रों ने ख़ुदकुशी को अंजाम दिया । अंबेडकरवादी विचारधारा इनके इन्हीं नीतियों का विरोध करती है । रोहित की घटना पर बेबाकी से राय रखनेवाले अंग्रेजी उपन्यासकार चेतन भगत कहते हैं “राजनीति से मुक्त हो शिक्षा परिसर” । लेकिन जहां तक मेरा विचार है शिक्षा परिसर के राजनीति से मुक्त होने से कुछ भी होने वाला है । यदि मुक्त कराना ही है तो शिक्षा परिसर को जाति या ब्राह्मणवादी विचारधारा से मुक्त कराइये ।
                                         
           (वुमेन एक्सप्रेस के 23/01/2016 के संपादकीय में प्रकाशित) 


                                                                                                                 
         




[1] http://www.newslaundry.com/2015/08/05/muzaffarnagar-baaqi-hai-abvp-says-film-against-hinduism-director-insists-its-only-against-fascist-forces/
[2] http://www.firstpost.com/bollywood/blocked-in-delhi-university-documentary-muzaffarnagar-baaqi-hai-is-a-must-watch-2408662.html
[3] http://www.bbc.com/hindi/india/2016/01/160119_rahulgandhi_rohit_ia
[4] http://www.bbc.com/hindi/india/2016/01/160118_rohit_vemula_apoorvanand_rd
[5] http://www.bbc.com/hindi/india/2016/01/160119_rohith_vemula_profile_pk
[6] https://vinaylal.wordpress.com/tag/gandhis-experiments-in-brahmacharya/
[7] http://www.bbc.com/hindi/india/2016/01/160118_rohit_vemula_apoorvanand_rd
[8]http://www.bbc.com/hindi/india/2016/01/160119_rohith_vemula_political_reactions_ml?ocid=socialflow_facebook
[9] http://www.bbc.com/hindi/india/2016/01/160119_rohith_vemula_profile_pk