हममें से प्रत्येक अभिभावक अपने
बच्चों को डॉक्टर,
इंजीनियर, वैज्ञानिक से लेकर बड़े-बड़े अधिकारी तक बनते देखना
चाहते हैं । उस मुकाम तक उन्हें पहुंचाने के लिए अभिभावक अपने खून पसीने की कमाई
को पानी की तरह बहाने से भी नहीं चूकते । वह भी बिना सुनिश्चित किए कि इन सपनों को
पूरा करने के लिए आवश्यक प्रतिभा उनके बच्चे में है या नहीं । ऐसे में यदि वांछित
परिणाम नहीं आते हैं तो अभिभावकों के साथ-साथ छात्र-छात्राओं का निराश-हताश होना
स्वाभाविक है । इसी हताशा में, गुस्से में कई अभिभावक अपने
बच्चे के साथ मार-पीट भी कर देते हैं । जिससे डर के कारण ऐसे अभिभावकों के बच्चे
खुदखुशी करने से भी नहीं चूकते । जैसा कि कुछ दिनों पूर्व ही मध्य प्रदेश में
12वीं के परिणाम आने के बाद दिखा, जब राज्य भर से एक ही दिन
बारहवीं के 11 छात्रों ने परीक्षा परिणाम से नाखुश होकर ख़ुदकुशी कर ली । मध्य
प्रदेश इकलौता राज्य नहीं है बल्कि पूरे देश की यही कहानी है । नवीनतम उदाहरण
बिहार राज्य का ही देखें, जहां बिहार इंटर काउंसिल की 2017 की 12वीं की परीक्षा में मात्र 30 प्रतिशत बच्चे सफल हुए जबकि 70 प्रतिशत असफल । विज्ञान, कला,
वाणिज्य तीनों संकायों के परिणाम निराश करनेवाले रहे । झारखंड में तो इसी वर्ष
(2017) के 12वीं के परिणाम में 33 इंटरमिडिएट कॉलेज के एक भी छात्र-छात्राएँ पास
नहीं हुए । तीनों संकायों का परीक्षा परिणाम 50-60 प्रतिशत के बीच रहा । परिणाम से
असंतुष्ट बच्चों के साथ-साथ अभिभावक के चेहरे पर कैरियर खराब होने की हदस, भय, शर्मिंदगी को आसानी से देखा जा सकता था । इस
दौरान समाचार पत्रों में अनेक आत्महत्या की खबरें भी आई । हालांकि विभिन्न राज्यों
की सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए अंक की जगह ग्रेड व्यवस्था भी लागू किया ।
बावजूद इसके ए + की अपेक्षा बी या सी ग्रेड लाने वाले बच्चों को मुंह छिपाते, शर्मिंदगी का एहसास करते आसानी से देखा जा सकता है । परीक्षा परिणाम जारी
करने से पूर्व राज्य के मुख्यमंत्री छात्र-छात्राओं से कम अंक आने के कारण निराश न
होने की अपील करते हैं । बावजूद इसके न तो छात्र-छात्राओं के आत्महत्या दर में कमी
आती है और न ही असफल होने के अवसाद से वे मुक्त हो पाते हैं । इंजीनियरिंग व
मेडिकल की तैयारी के लिए प्रसिद्ध राजस्थान का कोटा से तो समय-समय पर ख़ुदकुशी का
खबरें आती ही रहती है । ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस असफलता के लिए जिम्मेदार
कौन है ? कोचिंग संस्थान, बच्चा या
अभिभावक । हालांकि अधिकांश अभिभावक खुद को बचाने के लिए यह व्यर्थ सा दलील देते
हैं कि ‘अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए हमने सब कुछ किया । जितने
कोचिंग की उसे आवश्यकता थी हमने फीस की बिना परवाह किए उपलब्ध कराया’ । ऐसा कहकर वे इस असफलता का ठीकरा अपने बच्चे, कोचिंग
संस्थान पर फोड़कर खुद को पाक-साफ साबित कर सकते हैं । लेकिन वास्तविकता यह है कि इनसे
भी अधिक दोषी अभिभावक खुद हैं । अपने बच्चे के प्रतिभा को जाने समझे बिना ही, उसके व्यक्तित्व की कमियों को नज़रअंदाज़ करते हुए बच्चे को अपने सपने पूरा
करने के आग में झोंक दिया । आपकी अकर्मण्यता के कारण आपके लाखों रुपए के साथ-साथ
आपके बच्चे का बहुमूल्य समय दोनों बर्बाद हुआ । कोचिंग संस्थान में आपके बच्चे के
अलावा सैकड़ों-हजारों छात्र होते हैं । अतः किसी एक छात्र विशेष पर ज्यादा ध्यान
नहीं दिया जा सकता । यदि कोई देते भी हैं तो ये केवल उंगलियों पर गिने जा सकनेवाले
संस्थान हैं । हालांकि पाठ्यचर्या पूरा कराने के एवज में ये आपसे मोटा पैसा लेते
हैं और पूरी भी कराते हैं । लेकिन आपके बच्चे के ज्ञान-समझ में वृद्धि हुई या नहीं, इससे इन्हें कोई विशेष मतलब नहीं होता । प्रवेश परीक्षा के नाम पर ये
संस्थान प्रतिभाशाली लड़कों को ऐसे चुनते हैं जैसे दूध से मक्खन निकाल लिया जाता है
। यदि आपका बच्चा इन संस्थानों में चयनित नहीं हो पाता है तो उसका अवसाद से
ग्राषित होना स्वाभाविक है । इसी अवसाद के कारण भी आपका बच्चा ख़ुदकुशी जैसा गलत
कदम भी उठा लेता है ।
ऐसी
स्थिति से निपटने के लिए ‘ग्राफोलोजी’ एक प्रभावी तकनीक है । अभिभावक अपने बच्चों के लिखावट का विश्लेषण करवाकर
उसके व्यक्तित्व में छिपे गुणों, कमजोरियों को जानकर, उसका ग्राफोथेरपी पद्धति से उपचार अर्थात हैंड राइटिंग में आवश्यक
परिवर्तन कर उसमें आत्मविश्वास, एकाग्रता, सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर, अवचेतन मन में
व्याप्त भय, तनाव को दूर कर सकते हैं । इस तकनीक से बच्चे की
इच्छाशक्ति को सीमित/असीमित किया जा सकता है । अपने लक्ष्य के प्रति भूख को बढ़ाकर
उन्हें प्रतियोगी, कमजोरियों को नियंत्रित कर उन्हें
सबल-समर्थ, जिद्दी व गुस्सैल व्यवहार को सुधारकर संवेदनशील, मानसिक रूप से भी बीमार बच्चे को स्वस्थ बनाया जा सकता है । इस तरह इस
तकनीक से अभिभावक अपने धन के साथ-साथ बच्चों के बहुमूल्य समय व जीवन को बर्बाद
होने से रोक सकते हैं ।
यहाँ
एक सवाल उठना लाजमीं है कि आखिर किसी व्यक्ति के हैंड राइटिंग से उसके व्यक्तित्व
का पता कैसे लगाया जा सकता है ?
पहली-पहली बार सुनने में यह ऐसे ही अविश्वसनीय व कौतूहल का विषय लोगों के समक्ष हो
जाता है जैसे कोई योग-प्राणायाम से अनभिज्ञ व्यक्ति को कहता है कि योग और
प्राणायाम से हम रोगमुक्त होकर दीर्घायु हो सकते हैं । लेकिन आज हम इस यथार्थ से
भली-भांति परिचित हैं । हैंड राइटिंग विश्लेषण कराने के बाद आपके लिए भी यह तकनीक विश्वसनीय
हो जाता है । ग्राफोलोजी भी योग की तरह आपके व्यक्तित्व,
मन-मस्तिष्क में मौजूद कमियों को पूरा कर आपको मानसिक रूप से स्वस्थ बनाता है ।
हैंड
राइटिंग विश्लेषण या ग्राफोलोजी कोई नया विषय नहीं है । बल्कि आज से लगभग 400 वर्ष
पूर्व से ही यूरोपीय देशों में इसका लगातार अध्ययन-अध्यापन किया जाता रहा है ।
इटली के डॉ. केमिल्लो बाल्डी ने 1622 ई. में सर्वप्रथम इस विषय पर एक पुस्तक लिखी ‘हाउ टू जज द नेचर एंड द करेक्टर ऑफ अ पर्सन
फ़्रोम हिज लेटर’ । इसी क्रम में 1800 ई. में जर्मनी में ‘जर्मन ग्राफोलोजी सोसाइटी’ स्थापित हुआ । 1920 ई.
में अबबी मिकोन ने फ्रांस की राजधानी पेरिस में ‘द
ग्राफोलोजी सोसाइटी’ स्थापित किया । यूरोप, अमेरिका में पहचान बना चुके ग्राफोलोजी आज हमारे देश भारत में भी अपनी
पहचान बनाने की दिशा में प्रयत्नशील है । ग्राफोलोजिस्ट डॉ. मनोज तनूरकर जी के
अनुसार वर्तमान में अमेरिका में 8000 से भी अधिक कंपनियाँ व फ़्रांस में 80 प्रतिशत
से भी अधिक निजी कंपनियाँ किसी भी व्यक्ति को रोजगार देने से पहले उसका व्यक्तित्व
जानने हेतु हैंड राइटिंग विश्लेषण अनिवार्य रूप से करवाती है । भारत में लाने का
श्रेय मोहन बोस जी को जाता है, जिन्होनें 2002 ई. में
कोलकाता इंस्टीट्यूट ऑफ ग्राफोलोजी की स्थापना की । 15 वर्ष बाद भी हमारे देश में इस
तकनीक के विस्तार को गति नहीं मिल पाई है । इसके पीछे मुख्य कारण है यहाँ के लोगों
का भाग्य, किस्मत, नसीब जैसे
सिद्धांतों में विश्वास होना । बावजूद इसके वर्तमान में मोहन बोस जी के अतिरिक्त
सौरभ चक्रवर्ती, समयिता बनर्जी, नूतन
राव, मनोज तनूरकर, सुषमा जैन, अखिलेश आनंद आदि भारत में विस्तार करने हेतु लगातार प्रयासरत हैं ।
इस
वैज्ञानिक तकनीक से किसी भी व्यक्ति को एक खुली पुस्तक की तरह पढ़ा जा सकता है ।
अक्षर के बनावट, आकार व स्पेस के
आधार पर मूल्यांकन कर उस व्यक्ति के गुणों, अवगुणों, उनके आंतरिक व भावनात्मक समस्याओं, छिपे प्रतिभाओं
को, वह कैसा सोचता है या कैसा व्यवहार करता है, को जाना जा सकता है । किसी भी व्यक्ति का हैंड राइटिंग, फिंगर प्रिंट की तरह होता है जो किसी अन्य व्यक्ति के हैंड राइटिंग से
नहीं मिलता । ग्राफोलोजिस्ट नूतन राव जी के अनुसार ‘हैंड
राइटिंग वास्तव में ब्रेन राइटिंग है जो हमारे मन/दिमाग द्वारा लिखा जाता है’ । जब हम किसी अक्षर को सबसे पहले लिखना या बनाना शुरू करते हैं तो
सर्वप्रथम यह सोचते हैं कि इसे कैसे लिखा या बनाया जाय । कुछ अभ्यास के बाद हमारा
दिमाग क्रमशः अक्षर, शब्द या वाक्य निर्माण के इस कार्य को
समझ जाता है । तत्पश्चात हमारे केवल सोचने भर से ही हमारा दिमाग लेखन करनेवाले हाथ
को संकेत भेजने लगता है कि क्या और कैसे लिखना है ? कलम तो
केवल एक साधन है जो हमारी अंगुलियों द्वारा लेखन कार्य संपादित करने में सहयोग
करती है । आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में इस तकनीक का प्रयोग दिमाग व स्नायु तंत्र
से संबन्धित बीमारियों के जांच में प्रयुक्त किया जाता है । डॉ मनोज तनूरकर जी के
अनुसार विवाह हेतु वर-वधू के गुणों के मिलान में यह तकनीक काफी प्रभावी है ।
इस
प्रकार ग्राफोलोजी तकनीक से व्यक्तित्व संबंधी समस्त समस्याओं को पूरी गारंटी के
साथ उपचारित किया जा सकता है । नवीन शोध के अनुसार अब इस तकनीक से अनेक प्रकार की
बीमारियाँ भी ठीक की जा सकती है । बैक बेंचर्स के लिए तो यह एक तरह से वरदान ही
साबित होगी ।
अवध बिहारी
ग्राफोथेरेपिस्ट सह
निदेशक
हस्तलेख ... एन
इंस्टीट्यूट फॉर हैंड राइटिंग एनालिशिस
जमुई (बिहार)
मोब. न. 9334861323, 7004825454
ईमेल - hastlekh.jamui@gmail.com
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ईमेल - hastlekh.jamui@gmail.com
(दैनिक समाचारपत्र वुमेन एक्सप्रेस संपादकीय 07/06/2017 में प्रकाशित)