धर्म हमारे शरीर पर ढका अदृश्य लबादा है जो हमें जीवन जीने
की कला सिखाता है । भौगोलिक स्थितियों के अनुसार इसके नियम-कानून, रीति-रिवाज में भिन्नता होती है । समाज में अशांति फैलाने
के लिए जिम्मेदार हमारा धर्म नहीं बल्कि किसी भी धर्म (हिन्दु, मुसलमान सहित समस्त धर्म) के वे कट्टर, मूर्ख या स्वार्थी लोग हैं जो मैं/हम बड़ा/श्रेष्ठ, मैं/हम या हमारे धर्म/रीति-रिवाज अच्छा ... जैसे फर्जी
विमर्श फैलाकर धर्म के नाम पर रायता फैलाने का काम करते हैं । कहने को तो ये लोग अपने-अपने
धर्म के प्रचारक/संरक्षक हैं लेकिन इस प्रयोजन हेतु हिंसा को स्थान देकर उस धर्म
को सबसे अधिक बदनाम यही लोग करते हैं ।