जमना
लाल बजाज की नगरी वर्धा से गांधी जी के सेवाग्राम आश्रम जाने के मार्ग पर बस स्टैंड
के नजदीक दुर्गा टॉकीज के सामने स्थित है ऐतिहासिक लक्ष्मी
नारायण मंदिर। अपनी दादी
सदीबाई की इच्छा पर प्रसिद्ध उद्योगपति जमनालाल बजाज जी ने 1905 ई. में इस मंदिर का
निर्माण करवाया। 22 महीने की मेहनत के बाद 1907 में लक्ष्मी तथा विष्णु की प्रतिमा
स्थापित होने के साथ ही इस मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। 113 वर्ष प्राचीन यह
ऐतिहासिक मंदिर हमारे देश का पहला ऐसा मंदिर है जो आज के समय में अप्रासंगिक हिंदू
सामाजिक व्यवस्था को तोड़ने का गवाह बना। जमना लाल बजाज के प्रयास से 19 जुलाई 1928 ई. में इस मंदिर को अस्पृश्यों के लिए खोल दिया गया। विनोवा भावे के नेतृत्व में अस्पृश्यों के एक समूह ने मंदिर में प्रवेश कर
पूजा किया।[1] वह
भी ऐसे समय में जब डॉ. भीमराव अम्बेडकर नाशिक स्थित काला राम मंदिर में 2 मार्च
1930 को प्रवेश के लिए संघर्ष कर रहे थे। भारत छोड़ो
आंदोलन शुरू करने के लिए मुंबई जाने से पूर्व गांधी जी भी यहाँ आए थे। गर्भगृह में
स्थापित लक्ष्मी नारायण की मूर्ति कभी गहनों-आभूषणों से लदे होते थे। लेकिन 1944
ई. में ये आभूषण चोरी हो जाने के बाद गांधीजी की सलाह पर इन्हें आभूषण मुक्त कर
दिया गया।[2]
वर्तमान
समय में यह मंदिर जमनालाल बजाज फ़ाउंडेशन द्वारा संचालित किया जाता है।