हम इस
मुगालता में जीते हैं कि पुलिस, सेना हमारी रक्षा के लिए होते
हैं। वास्तविकता यह है कि ये Real life कटप्पा हैं। सत्ता
यदि बोल दे कि किसान हमारी सत्ता के लिए खतरा हैं तो उन्हें अपने अधिकार, सुविधा की मांग कर रहे निहत्थे निर्दोष किसानों को लाठीचार्ज, आंसूगैस के गोले फायर कर रौंदते देर नहीं लगती। जैसा आज 23 सितंबर 2018 को अपनी मांग के लिए हरिद्वार से चलकर
दिल्ली आए किसानों के साथ हुआ। इन्हें दिल्ली में घुसने तक नहीं दिया गया।
अब सत्ता के दलाल दलील देंगे कि उन्हें बैरिकेट तोड़ने, कानून हाथ में लेने की क्या जरूरत थी ???
लेकिन इसका जवाब देने में उनके मुंह में दही जम जाएगा कि आखिर पिछले 4 वर्षों के दौरान सरकार इनको वे सुविधाएं क्यों नहीं दे रही जिससे ये किसान
आंदोलन करने को मजबूर हो रहे हैं। आखिर इन किसानों का कसूर क्या था जो दिल्ली की
सीमा में इन्हें घुसने नहीं दिया गया? लोकतंत्र में हर किसी
को अपनी मांग के लिए विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार प्रत्येक नागरिक को है। सोचने
वाली बात है कि आखिर क्या कारण है जो लगातार ये किसान सैकड़ों हज़ारों किलोमीटर
कष्टदायक यात्रा कर आपके संसद द्वार तक आते हैं, अपनी मांगों
से अवगत कराने के लिए आपसे मिलने की गुहार लगाते हैं, आपका
ध्यान आकर्षित करने के लिए मरे चूहे, कच्चे मांस खाते हैं,
मानव मूत्र से लेकर वृष्टा तक खाते हैं। आंदोलन की असफलता में फिर से
नया आंदोलन खड़ा करते हैं। बावजूद इसके आप इतने निर्दयी बने बैठे हैं कि आपके कान
पर जूं तक नहीं रेंगता।
आखिर पिछली सरकार से इनकी इच्छाएं पूर्ण नहीं हुई तभी तो मजबूर होकर
अपनी मांग पूरी करने के लिए आपको मौका दिया। लेकिन सत्ता में आकर अब आप भी वही काम
कर रहे हैं। तो फिर पिछली सरकार में और आपमें क्या अंतर है???? दोनों तो एक ही थाली के चट्टे बट्टे साबित हो रहे हैं।
इसमें कोई हैरत की बात नहीं होगी जो सत्ता के दलाल, गोबरबुद्धि लोग इन किसानों को किसी पार्टी, विचारधारा
से जोड़ते हुए इन्हें कांग्रेसी, वामपंथी, माओवादी समर्थक और न जाने क्या क्या साबित कर देंगे।