जेएनयू में तथाकथित ‘देश विरोधी नारे
लगने’ की घटना के बाद देशद्रोही,
देशभक्त, राष्ट्रवाद शब्द विमर्श का मुद्दा बन गया था।
जेएनयू में इन मुद्दों पर अनेकों दिन तक खुले सत्र में चर्चा आयोजित हुए जिसमें प्रोफेसर
अपूर्वानंद के साथ-साथ देश भर के अकादमिक जगत के साथ-साथ सामाजिक, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने विचार प्रेषित किए। लगभग समस्त
मीडिया संस्थान भी इस विमर्श पर कई दिनों
तक पैनल बनाकर चर्चा करते रहे। इन चर्चाओं में देशभक्ति के सर्टिफिकेट बांटने वाले
गला फाड़-फाड़ कर चिल्लाते नज़र आए कि पाकिस्तान हमारा शत्रु है। उसके प्रति हमदर्दी
दिखाने वाला भारतीय चाहे वह हिंदू, मुसलमान या किसी भी धर्म
का हो, देशद्रोही है। इस दौरान कई गड़े मुर्दे भी उखड़े जिसपर
जान-बूझकर विमर्श कर हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया गया। जैसे भारत व
पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच के समय भारतीय मुसलमानों की बड़ी संख्या द्वारा
पाकिस्तानी टीम को सपोर्ट करना, उनकी जीत पर पटाखे फोड़कर
जश्न मनाना, शाहिद अफरीदी, शोएब अख्तर
सहित अन्य पाकिस्तान के स्टार क्रिकेट खिलाड़ियों के प्रशंसक होने को मीडिया
पैनलिस्ट ने देशद्रोही कार्य करार दे दिया। ऐसा कर उन पैनलिस्टों ने एक धारणा बना दी
कि आपने यदि किसी भी मामले में पाकिस्तान का पक्ष लिया तो आप देशद्रोही करार दिये
जाएंगे। मुसलमानों से घृणा करने वाले इन नफरत के सौदागरों ने इस्लामी झंडे को
पाकिस्तानी झंडा बताकर उनके पाकिस्तानी समर्थक होने,
देशद्रोही होने का काफी दुष्प्रचार किया। मेरे कहने का ये तात्पर्य नहीं है कि हमारे
ही देश में रहकर हमारे ही देश के खिलाफ कोई ऐसा काम करे जिससे देश की सुरक्षा को खतरा
हो, को देशद्रोही नहीं कहा जाए बल्कि मैं ज़ोर देकर कहता हूँ कि
हमारे देश का कोई भी व्यक्ति चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान देश के इज्जत, प्रतिष्ठा की बेला में अपने देश भारत को छोड़कर यदि पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, नेपाल या
अन्य देशों का पक्ष ले, अपने देश की खुफिया सूचनाएँ दुश्मन देश
को पहुंचाए तो बेशक उन्हें देशद्रोही कहा जाए।
लेकिन ये नियम कानून सभी के लिए हो। किसी
को कोई रियायत नहीं मिले। सरकार भी खुद इसे अमल में लाए। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ
कि सरकार भी इस मुद्दे पर काफी ढुलमुल रही है। हाल ही में असम में चुनाव जीतने के
बाद केंद्र व कई राज्यों की बीजेपी सरकार जिस प्रकार पाकिस्तानी, बांग्लादेशी हिंदू नागरिकों के साथ व्यवहार कर रही है, उनकी देशभक्ति पर भी प्रश्नचिन्ह उठता है। हाल ही में गृह मंत्रालय ने सिटिज़न
एक्ट 2016 में संशोधन करते हुए देश के 7 राज्यों के गृह सचिवों व जिलाधिकारियों को
यह शक्ति दी है कि इस एक्ट के सेक्शन 6 के तहत पाकिस्तान,
बांग्लादेश व अफगानिस्तान से बिना वैध दस्तावेज़ के आए बौद्ध,
ईसाई, हिंदु, जैन, पारसी आदि अल्पसंख्यक धर्मावलम्बियों को इन देशों की सीमा से लगे राज्य भारतीय
नागरिकता के सर्टिफिकेट दे सकते हैं यदि वह 6 वर्ष भारत में रह चुका है। पहले यह
अवधि 11 वर्ष थी, 2016 में संशोधन के
बाद इसे घटाकर 6 वर्ष कर दिया गया।[i]
हैरत की बात यह है कि इसमें इस्लामी धर्मावलम्बी शामिल नहीं हैं। एक तरफ केंद्र
सरकार 1971 ई. के बाद भारतीय सीमा में बिना इजाजत आए बंग्लादेशी शरणार्थियों जिसमें
अधिकांश मुस्लिम हैं, को घुसपैठिए, देश
की सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए भारतीय नागरिकता देने से इनकार कर असम, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों से उन्हें वापस अपने देश बांग्लादेश भेजना
चाहती है तो वहीं हिंदू बांग्लादेशी शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने की बात
कर रही है। इसी प्रकार राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार पाकिस्तान से आए विस्थापित
हिंदू परिवारों के प्रति हमदर्दी दिखाते हुए रियायति दर पर आवासीय भूमि आवंटित
करने की बात करती हैं। राजस्थान में पाकिस्तानी विस्थापितों के लिए काम करने वाली एक
स्वयंसेवी संस्था सीमांत लोक संगठन के अनुसार राजस्थान में कुल 5 लाख पाकिस्तानी हिंदू
विस्थापित बसे हैं।[ii] यहाँ
सवाल यह उठता है कि जब बिना वैध दस्तावेज़ के साथ हमारे देश में रह रहे बांग्लादेशी
यदि देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं तो इन 5 लाख हिंदू पाकिस्तानी के प्रति सरकार की
सोच इतनी सकारात्मक रखते हुए उन्हें अपने देश में क्यों बसाना चाहते हैं? जबकि ये 5 लाख विस्थापित हिंदू ऐसे देश पाकिस्तान से संबंधित हैं जिन्हें
हम दुश्मन देश मानते हैं। इस दृष्टि से तो इनसे देश की सुरक्षा को बांग्लादेशियों से
भी अधिक खतरा है। कोई भी आतंकी हिंदू शरणार्थी बनकर पाकिस्तान के लिए नापाक हरकतों
को अंजाम दे सकता है। पाकिस्तान के मुक़ाबले बांग्लादेश से तो ऐसी कोई शत्रुता ही
नहीं है। एक समुदाय/धर्मावलम्बी के साथ राष्ट्रीयता के आधार पर व्यवहार, तो दूसरे के साथ धार्मिकता के आधार पर व्यवहार ! सिर्फ इसलिए कि जिसे बाहर
भेजने की बात कर रहे हैं वे मुसलमान हैं जिन्हें सरकार की विचारधारा के लोग अपना
शत्रु समझते हैं। और जिसको बसाने की बात कर रहे हैं वे हिंदू हैं। उनके प्रति
हमदर्दी केवल इसलिए है कि दोनों का धर्म एक है।
जब पाकिस्तानियों व बांग्लादेशियों के
साथ उनकी राष्ट्रीयता नहीं बल्कि धर्म के आधार पर ही व्यवहार करना है तो फिर ये देशभक्ति
का ढोंग करने का क्या मतलब??? जिन बांग्लादेशियों के प्रति आप घृणा
सूचक शब्द घुसपैठिए प्रयुक्त करते हैं, यदि वह हिंदू बांग्लादेशी
हो, जिस पाकिस्तानी के खिलाफ आप दिनरात जहर उगलते हैं यदि वे
हिंदू पाकिस्तानी हों तो वह घुसपैठी, जासूस या आतंकी नहीं हो
सकता क्या? फिर उन्हें हमारे देश में बसने की पूरी इज्जत के
साथ इजाजत क्यों है? उन्हें वापस क्यों नहीं भेजा जाता।
यदि सरकार में बैठे लोग सचमुच
देशभक्त हैं तो किसी भी देश के नागरिक, चाहे वह अमेरिकी, बांग्लादेशी
या पाकिस्तानी हो, उसे उसकी राष्ट्रीयता के आधार पर
धार्मिकता की परवाह किए बिना उन्हें एक विदेशी के रूप में देखते हुए व्यवहार करना चाहिए।
सिटीजन एक्ट 1955 में फिर से संसोधन कर यह कानून बनाया जाय कि बिना वैध दस्तावेज़ के
भारत आए विदेशियों को बसने की इजाजत नहीं दी जा सकती। विशेष रूप से देश की सुरक्षा
को देखते हुए पाकिस्तान के लोगों को, चाहे वह किसी भी धर्म के
हों। नहीं तो सरकार में बैठे लोगों को खुल कर इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि वह
देशभक्त नहीं बल्कि देशभक्त की खाल ओढ़े हिंदू व संबंधित संप्रदाय के धर्मभक्त हैं।
और इस धर्मभक्ति के लिए देशभक्ति भी कुर्बान है। वैसे
आपकी इस धर्मभक्ति से एक बात तो स्पष्ट है कि पाकिस्तान या बांग्लादेश के
मुसलमानों से हमदर्दी दिखाने वाले हमारे देश के मुसलमान और आपमें कोई अंतर नहीं
है। दोनों को अपने धर्मावलंबी प्रिय हैं चाहे वह किसी देश के हों। इसलिए अगली बार उनके पाकिस्तानी मुस्लिमों के प्रति
हमदर्दी दिखाने पर उंगली उठाने से पहले अपने गिरेबां में झांक लेना।
साकेत बिहारी
अजीम प्रेमजी फ़ाउंडेशन
[i] http://www.prsindia.org/uploads/media/Citizenship/Citizenship%20(A)%20bill,%202016.pdf
[ii] https://aajtak.intoday.in/story/vasundhra-govt-relaxed-land-allotment-policy-now-pak-hindu-migrants-can-purchase-land-in-rajasthan-1-1034901.html?fbclid=IwAR2-98sw6X6DU2urZTrywHSVv0icQ_1FbmG2GLSsz1FVxZVYvTolWgW-r20