मैं अनुच्छेद 35A की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का समर्थन करता हूं। 1947
में विभाजन के बाद कश्मीर क्षेत्र में बसे लाखों लोग, जो शरणार्थियों की चौथी और पांचवी पीढ़ी हैं, आज भी
शरणार्थी के रूप में भारतीय संविधान द्वारा प्रदत मौलिक अधिकारों से वंचित हैं।
हैरत की बात यह है की एक लोकतांत्रिक देश में ये लोग भारतीय नागरिक तो हैं लेकिन
जम्मू कश्मीर के नागरिक नहीं हैं। इन्हें लोकसभा चुनाव में वोट देने का अधिकार तो
है लेकिन अपने राज्य की विधानसभा, पंचायत या अन्य चुनाव में
न वोट डालने का अधिकार है, न राज्य में सरकारी नौकरी पाने का,
न ही राज्य के कॉलेजों में दाखिला लेने का अधिकार है। यह प्रावधान
हमारे देश के नागरिकों के मानवाधिकार का हनन है, इसलिए भारत
सरकार तथा जम्मू कश्मीर सरकार को मिलकर इसे संशोधित करना चाहिए। कम से कम इन
नागरिकों, जिनकी 4-5 पीढ़ियां जम्मू
कश्मीर में रही है, को वहां के नागरिक का दर्जा तो मिलना ही चाहिए।