प्राचीन संस्कृत ग्रंथ शुक्र
नीति में 64 कलाओं का उल्लेख मिलता है। यह 64 कलाएं हैं –
1. गीत
2. वाद्य
3. नृत्य
4. आलेख्य
5. विशेषकच्छेद्य (मस्तक पर तिलक लगाने के लिए कागज
पत्ती आदि काटकर आकार या सांचा बनाना
6. तंडूलकुसुमवलिविकार (देव पूजन आदि के अवसर पर
तरह-तरह के रंगे हुए चावल, जौ आदि वस्तुओं को तथा रंग बिरंगी फूलों को
विविध प्रकार से सजाना),
7. पुष्पास्तरण
8. दसनवसनांगराग (दांत, वस्त्र, शरीर के अवयवों को
रंगना)
9. मणिभूमिका कर्म (घर के फर्श के कुछ भागों को मोती, मणि आदि रत्नों से जड़ना)
10.
शयनरचन
(पलंग लगाना)
11.
उदकवाद्य
(जलतरंग)
12.
उदकाघात
(दूसरों पर हाथों या पिचकारी से जल की चोट मारना)
13.
चित्राश्व
योगा (जड़ी बूटियों के योग से विविध चीजें ऐसे तैयार करना या ऐसी औषधि तैयार करना अथवा
ऐसे मंत्रों का प्रयोग करना जिनसे शत्रु निर्बल हो यह उसकी हानि हो)
14.
माल्यग्रथनविकल्प
(माला गूथना)
15.
शेखरकापीड़
योजन (स्त्रियों की चोटी पर पहनने के विविध अलंकारों के रूप में पुष्पों को गूथना)
16.
नेपथ्यप्रयोग
(शरीर को वस्त्र, आभूषण, पुष्प आदि से सुसज्जित करना)
17.
कर्णपत्रभंग
(शंख, हाथी
दांत आदि के अनेक तरह के कान के आभूषण बनाना)
18.
गंधयुक्ति
(सुगंधित धूप बनाना)
19.
भूषणयोजन
20.
इंद्रजाल
(जादू के खेल)
21.
कौचुमार
योग (बल या वीर्य बढ़ाने वाली औषधियां बनाना)
22.
हस्तलाघव
(हाथों के काम करने में फुर्ती और सफाई)
23.
विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकार
क्रिया (तरह-तरह के शाक, कढ़ी, रस, मिठाई आदि बनाने की क्रिया)
24.
पानकरसरागासव
योजन (विविध प्रकार के शरबत, आसव आदि बनाना)
25.
सूचीवानकर्म
(सुई का काम, जैसे - सीना, रफ्फू करना, कसीदा काढ़ना, मौजे, गंजी का बुनना)
26.
सूत्रकीड़ा
(धागे या डोरियों से खेलना, जैसे कठपुतली का खेल)
27.
वीणाडमरुकवाद्य
28.
प्रहेलिका
(पहेलियां जानना)
29.
प्रतिमाला
(श्लोक आदि कविता पढ़ने की मनोरंजक रीति, अंताक्षरी)
30.
दुर्वाचक
योग (ऐसे श्लोक आदि पढ़ना जिनका अर्थ तथा उच्चारण दोनों कठिन हो)
31.
पुस्तक
वाचन
32.
नाटकाख्यायिका
दर्शन
33.
काव्यसमस्या-पूरण
34.
पट्टिकावेत्रवानविकल्प
(पीढ़ा, आसन, कुर्सी, पलंग, मोढ़ा आदि चीजें बेंत
वगैरे वस्तुओं से बनाना)
35.
तक्षकर्म
(लकड़ी, धातु आदि वस्तुओं को अभीष्ट विभिन्न आकारों में काटना)
36.
तक्षण
(बढ़ई का काम)
37.
वास्तु
विद्या
38.
रूप्य
रत्न परीक्षा (सिक्के, रत्न आदि को परीक्षित करना)
39.
धातुवाद
(पीतल आदि धातुओं को मिलाना, शुद्ध करना आदि)
40.
मणिरागाकर
ज्ञान (मणि आदि का रंगना, खान आदि के विषय का ज्ञान)
41.
वृक्षायुर्वेदयोग
42.
मेषकुक्कुटलावकयुद्ध
विधि (मेंढ़े, मुर्गे, तीतर आदि को लड़ाना)
43.
शुक
सारिकाप्रलापन (तोते मैना आदि को बोली सिखाना)
44.
उत्सादनसंवहन-
केशमर्दन- कौशल (हाथ पैरों से शरीर दाबना, केशो का मिलना,
उनका मैल दूर करना)
45.
अक्षरमुष्टिका
कथन (अक्षरों को ऐसी युक्ति से कहना कि उस संकेत का जानने वाला ही उनका अर्थ समझे, दूसरा नहीं)
46.
म्लेच्छितविकल्प
(ऐसे संकेत से लिखना जिसे उस संकेत को जानने वाला ही समझे)
47.
देश
भाषा विज्ञान
48.
पुष्पशकटीका
49.
निमित्तज्ञान
(शकुन जानना)
50.
यंत्रमातृका
(विविध प्रकार के मशीन, कल-पुर्जे आदि बनाना)
51.
धारणमातृका
(सुनी हुई बातों का स्मरण रखना)
52.
संपाद्य
53.
मानसी
काव्य क्रिया (किसी श्लोक में छोड़े हुए पद को मन से पूरा करना)
54.
अभिधान
कोष
55.
छंदोंज्ञान
56.
क्रियाकल्प
(काव्यालंकारों का ज्ञान)
57.
छलितक
योग (रूप और बोली छिपाना)
58.
वस्त्रगोपन
(शरीर के अंगों को छोटे या बड़े वस्त्रों से यथा योग्य ढकना)
59.
द्युतविशेष
60.
आकर्षक्रीड़ा
(पासों से खेलना)
61.
बालकृड़नक
62.
वैनयिकी
विद्या (अपने और पराए से विनय पूर्वक शिष्टाचार करना)
63.
वैजयिकीविद्या
(विजय प्राप्त करने की विद्या अर्थात शस्त्र विद्या) तथा
संदर्भ ग्रंथ –
उपाध्याय, आचार्य बलवीर (1953) : आर्य संस्कृति, शारदा मंदिर प्रकाशन, बनारस, पृष्ठ सं. 115-117