प्राचीन, मध्य होते हुए हम आधुनिक काल में प्रवेश कर गए हैं जहां हम खुद को अपने
पूर्वजों से सभ्य व बुद्धिमान होने का दावा करते हैं लेकिन स्त्रियों के प्रति
हमारी सोच वही प्राचीनकाल वाली ही है, आधुनिक नहीं हो पाई
है। इस संकीर्ण सोच का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज भी हम इनको नीचा
दिखाने के लिए सैकड़ों निम्न दर्जे के लोकोक्तियाँ, मुहावरे प्रयुक्त
करने से नहीं चूकते। इनमें से एक है – “दो स्त्रियां कभी आपस में चुप नहीं बैठ
सकती”। अर्थात किसी भी स्थान पर यदि दो स्त्रियां मिल जाएं तो वे कुछ न कुछ
बात निकाल ही लेती हैं अपना टाइम पास करने के लिए। हद तो इस बात की है कि उनकी
बातचीत को बातचीत नहीं, बल्कि चुगली करने के रूप में देखा
जाता है। इस बातचीत को समाज की तरह यदि आप भी स्वस्थ संवाद न मानकर चुगली मानते
हैं तो आप भी समाज की तरह मानसिक रूप से विकृत हैं। क्योंकि चुगली करने पर किसी
खास जेंडर का एकाधिकार नहीं होता है। दो बातचीत पसंद पुरुष यदि एक जगह मिल जाएँ और
राजनैतिक या सामाजिक मुद्दों पर बातचीत करते हुए किसी पार्टी, विचारधारा की आलोचना करें तो उसे चुगली नहीं माना जाता। यदि इसे चुगली ही
माना जाए तो स्त्रियाँ इस मामले में भी दूसरे नंबर पर होगी। अव्वल स्थान पर वे
पुरुष वर्ग होंगे जो चौक-चौराहों पर कैमरे की तरह हमेशा यह ताकते रहते हैं कि
किसकी बहू-बेटी कहां आ-जा रही है? क्या पहन रही है? कोई दिखी नहीं कि अपने साथियों से कानाफूसी शुरू।
यदि दो स्त्रियाँ लंबे समय तक बात भी
करती है तो इसमें गलत क्या है? पितृसत्तात्मक समाज ने जब निजी
क्षेत्र या गृह कार्य स्त्रियों के, और पुरुषों को बाहरी
दुनिया का ठेका दे दिया। ऐसे में लगातार झाड़ू-पोछा, बर्तन, दो से तीन टाइम खाना बनाने, बच्चों की देखभाल करने आदि कार्य से निवृत्त होकर दो स्त्रियाँ यदि आपस
में मिलकर अपने निजी क्षेत्र संबंधी कुछ बात कर ही लेती हैं तो इसमें गलत क्या है?
कोई दावा के साथ कह भी नहीं कर सकता कि दोनों मिलकर किसी की बुराई
ही करती हैं। एक समय था, जब आप उसे पढ़ाई-लिखाई, सामाजिक कार्य, राजनीति से दूर रखते थे, उस दौरान इस बात की थोड़ी-बहुत संभावना रहती होगी। लेकिन आज वह समय नहीं
बल्कि कुछ और है। भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार से लेकर अनेक
प्रकार के अधिकार का उपयोग कर आज वे सार्वजनिक क्षेत्रों में भी पुरुषों को टक्कर
दे रही हैं। इस स्तर की यदि दो स्त्रियां आपस में मिलती हैं तो आप की तरह ही वह भी
सामाजिक बदलाव, राजनीतिक घटनाक्रम से लेकर अन्य कई प्रकार के
सार्थक बातचीत करती हैं। अतः जरूरत है हम आप को स्त्रियों को देखने के अपने नजरिए
में परिवर्तन लाने की। इस संकीर्ण सोच से खुद को उबारने की।
(मूलतः पटना से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र 'एजुकेशनल न्यूज़' के 4 अगस्त 2020 के अंक में प्रकाशित)