बेमेतरा (छत्तीसगढ़) से 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सहसपुर ग्राम स्थित 13वीं शताब्दी में नागवंशी/गोंड राजाओं द्वारा नागर मंदिर निर्माण शैली में निर्मित शिव मंदिर का आज भ्रमण एक शानदार अनुभव रहा। बेमेतरा दुर्ग राजकीय राजमार्ग पर स्थित यह ऐतिहासिक शिव मंदिर मध्यकालीन वास्तु कला का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। समय के प्रभाव से यह मंदिर धीरे-धीरे खंडित होता जा रहा है।
बावजूद इसके संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग छत्तीसगढ़ इसे
संरक्षित करने का कोई कसर नहीं छोड़ रही। विभाग की ओर से मंदिर के रखरखाव के लिए
एक स्थाई केयर टेकर नियुक्त किया गया है। भोरमदेव (कवर्धा जिला, छत्तीसगढ़) के शिव मंदिर की तरह ही गर्भगृह के अलावा 16 पिलर पर स्थित मंडप और उसके नीचे नंदी की मूर्ति इस मंदिर की मुख्य
विशेषता है। यही विशेषता इसी काल में निर्मित दो अन्य शिव मंदिरों लाखामंडल और
केदारनाथ (दोनों उत्तराखंड) में भी देखने को मिलता है। मंदिर के गर्भ गृह में एक
काले पत्थर से निर्मित शिवलिंग स्थापित है, लेकिन भोरमदेव के
शिव मंदिर की तरह इस मंदिर के बाहरी दीवारों पर मिथुन आकृतियां नहीं है।
बिहार के शिव मंदिरों के विपरीत ना भोरमदेव में न सहसपुर स्थित इस मंदिर में अलग से पार्वती मंदिर देखने को नहीं मिला। जो शोध का एक अच्छा विषय हो सकता है। प्राचीन शिव मंदिर से लगभग 15 - 20 मीटर की दूरी पर ही इस शैली में निर्मित एक अन्य मंदिर भी है जिसे वर्तमान में बजरंगबली का मंदिर कहा जाता है। शुरुआत में ऐसा लगा कि यह बजरंगबली का सबसे प्राचीनतम मंदिरों में से एक हो सकता है। मेरे इस भ्रम को टूटने में ज्यादा समय नहीं लगा जब उस मंदिर के बगल संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग (छत्तीसगढ़) द्वारा लगाए गए एक नीले रंग की बोर्ड पर मेरी नजर पड़ी। इसमें स्पष्ट लिखा था कि परवर्ती काल में ग्राम वासियों द्वारा इस मंदिर में बजरंगबली हनुमान जी की प्रतिमा गर्भगृह में स्थापित कर दिए जाने के कारण इस मंदिर का नाम बजरंगबली मंदिर पड़ गया।
प्राचीन शिव मंदिर की तरह ही एक चबूतरे
पर 8 पिलर पर की सहायता से मंडप बनाया गया है।
संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग (छत्तीसगढ़) की ओर से मंदिर के रखरखाव हेतु
रखे गए केयरटेकर के अनुसार सहसपुर ग्रामीण को छोड़ दिया जाए तो इक्के दुक्के लोग
कभी-कभी इस मंदिर को देखने आ जाते हैं। यदि आप भी ऐतिहासिक स्थलों के भ्रमण का शौक
रखते हैं तो इस ओर भी नजर डाल सकते हैं।