संत रामपाल की एक पुस्तक 'ज्ञान
गंगा' पढ़ रहा हूँ। उनका भक्त बनने के लिए नहीं बल्कि आखिर
किन शिक्षाओं के बिना पर ऐसे तथाकथित साधु-संत अपने असीमित भक्त बनाते हैं जो उनकी
बातों को आंख कान मूंदकर स्वीकार कर लेते हैं? इस अध्ययन के
दौरान दिमाग में एक सवाल चल रहा है, कि कितना आसान है लोगों
को मूर्ख बनाना, उनसे अपनी बात मनवाना। यकीन मानिए मैं एक आम
आदमी हूं। लेकिन सामने वाले व्यक्ति को यदि मैं विश्वास दिला दूं कि पिछले 25
वर्ष से हिमालय में रहकर, तप-साधना कर ज्ञान
अर्जित किया हूं तो वह व्यक्ति शीघ्र ही मेरा भक्त बन जाएगा। और यदि मैं उससे कहूं
कि मंदिर के आगे बैठे भिखारी के बारे में मनगढ़ंत बात बताऊँ कि पिछले जन्म में उसने
अपने गुरु के सिखाए बातों को मानने से इंकार कर दिया इसीलिए इस जन्म में वह दर-दर
की ठोकर खा रहा है। उस भिखारी के बारे में मेरे द्वारा कही गई बात में भले ही नाम
मात्र की भी सत्यता नहीं हो लेकिन इस बात की पूरी गारंटी है कि वह मेरा भक्त आंख
कान मूंदकर बन जाएगा क्योंकि मैंने उसके दिमाग में यह बात भर दी कि मैं एक सिद्ध
व्यक्ति हूं और यदि तुम मेरी बात नहीं माने तो अगले जन्म में तुम्हारा भी यही हाल
होगा।
अर्थात किसी को अपना
भक्त बनाने के लिए सबसे मजबूत आधार डर होता है। यह डर कुछ भी हो सकता है, भगवान या परमात्मा द्वारा दिए जाने वाले तथाकथित दंड का डर, अगले जन्म में विकृत रूप में पैदा होने का डर आदि। ‘ओ माय गॉड’ फिल्म के अंतिम दृश्य में भी इस डर के दम
पर यह जाने वाले व्यवसाय को दिखाने का प्रयास किया गया है जब धर्मगुरु जाते जाते
एक संवाद बोलता है ' these are not god loving people, these are god
fearing people.