धर्म के ठेकेदारों की मानें तो प्रत्येक घटना के पीछे भगवान, ईश्वर, अल्लाह, खुदा का हाथ होता है। यानी अच्छे काम से लेकर बुरे काम तक सब भगवान, ईश्वर, अल्लाह की मर्जी से होता है। बिना उसकी मर्जी के कोई पत्ता भी नहीं हिलता है। ऐसा कह कर वह धर्म का ठेकेदार सामने वाले के दिमाग में अपने ईश्वर की सर्वोच्चता को स्थापित कर रहा होता है। अप्रत्यक्ष रूप से उस अदृश्य शक्ति से सामने वाले व्यक्ति को इतना डरा दिया जाता है कि इस पर कोई भी सवाल उठाने की हिम्मत नहीं करता। बस सभी लोग गुणगान करने में जुट जाते हैं। हास्यास्पद बात यह है कि सारे काम जब उनकी मर्जी से हो रहे हैं तो फिर स्वर्ग, नरक, जन्नत, जहन्नुम का लालच या डर दिखाने का क्या मतलब? कोई आदमी यदि किसी की हत्या कर रहा है तो वह अपराध कैसे हुआ? वह तो भगवान, ईश्वर, अल्लाह की मर्जी का पालन कर रहा है। ऐसे में गंगा, जमजम स्नान करने, तीर्थ यात्रा या हज करने जैसे फर्जी कर्मकांड करा कर केवल इंसानों के खून पसीने की कमाई लूटने का क्या मतलब?
क्या
झूठ के नाम पर यह लूटपाट, कमाई उन धर्म के ठेकेदारों के
लिए पाप नहीं है? इन पाखंडीयों को खुद के पाप दिखते नहीं,
चले हैं दूसरे का पाप देखने और समाधान करने।