जुलाई 2020 में केंद्र की बीजेपी सरकार द्वारा संसद में बिना किसी बहस के चुपके से 3 किसान बिल पारित करवाए गए। कुछ ही दिनों में राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाने के पश्चात इसे कानून का रूप मिल गया। यह तीन कृषि कानून थे
1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण)
अधिनियम - 2020
2. कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और
कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020
3. आवश्यक वस्तुएं संशोधन अधिनियम 2020
दिसंबर
2021 में वापस ले लिए गए। 1 वर्ष से अधिक चले इस आंदोलन से होने वाले संभवत नुकसान
को देखते हुए। इस पूरे वर्ष केंद्र सरकार और उसके समर्थक जहां कृषि कानून के लाभ
गिनाते रहे वहीं किसानों का एक बड़ा वर्ग इस कृषि कानून को किसानों के लिए कम
व्यापारियों के लिए ज्यादा लाभदायक बता रहे थे। देश के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप
में मेरा भी अवलोकन यही कहता है कि यह तीनों कृषि कानून किसानों के लिए थे ही नहीं
बल्कि व्यापारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए इसे बनाया गया था।
यदि हम पहले कानून कृषक उपज
व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम 2020 की बात करें तो इसके द्वारा
किसानों को अपनी मर्जी से फसल बेचने की स्वतंत्रता दी गई। किसान अपनी फसल को देश
के किसी भी हिस्से में किसी भी व्यक्ति, दुकानदार, संस्था, व्यापारी आदि को भेज सकते थे। मेरा जहां तक
मानना है कि इस कानून से किसानों को कोई खास लाभ तो नहीं लेकिन व्यापारियों को
पूरा लाभ जरूर था। मेरे ऐसा मानने का आधार यह है कि वर्तमान में हमारे देश में
किसानों की स्थिति इतनी उन्नत नहीं है कि अपनी उपज को दूसरे राज्य जाकर बेच सकें।
उन्नत स्थिति के साथ-साथ समय का भी मसला है। हां,
इसके विपरीत व्यापारियों के
पास इतना समय और ट्रांसपोर्ट चार्ज जरूर होता है कि वह उत्तर प्रदेश की उपज को
गुजरात, महाराष्ट्र या तमिलनाडु में बेच सकें। इस हिसाब से यह कानून
विशुद्ध रूप से व्यापारियों के लिए साबित होता है ना कि किसानों के लिए।
दूसरा कानून जो
कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम 2020 है। यह
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से संबंधित था। इस बिल से भी किसानों को नहीं बल्कि
व्यापारियों को ही लाभ होता। इसमें कोई शक नहीं कि कंपनियां शुरुआत में किसानों को
कांटेक्ट फार्मिंग के प्रति लुभाने के लिए लोकलुभावन स्कीम लाती। जैसा टेलीकॉम
सेक्टर में जिओ तथा अन्य कंपनियों ने लाइफ टाइम फ्री वैधता की बात कर कुछ वर्षों
बाद रिचार्ज के नाम पर जनता को लूट रहे हैं। इस बात की पूरी गारंटी है कि इस
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसान नाम मात्र के जमीन मालिक होते। उस जमीन पर पूरा
वर्चस्व कांटेक्ट करने वाली निजी कंपनी का होता। उपज बढ़ाने के लिए अनाप-शनाप
केमिकल फर्टिलाइजर उपयोग कर 10 से 20 साल में किसानों की जमीन बंजर बना दिए जाते।
जिस पर उद्योग लगाने के अलावा किसानों के पास कोई चारा नहीं होता। ऐसे में उसके
पास उद्योग लगाने के पैसे तो होते नहीं, तो उसकी मजबूरी का फायदा कांटेक्ट करने वाली
कंपनी उठाते। 2014 में सत्ता में आने के साथ ही बीजेपी सरकार ने मुट्ठी भर पूंजी
पतियों को किसानों की भूमि आसानी से दिलाने के लिए भूमि अधिग्रहण बिल लेकर आए थे।
लेकिन इसके देशव्यापी विरोध ने सरकार को यह बिल वापस लेने के लिए मजबूर कर दिया।
इस कानून द्वारा किसानों की जमीन को अप्रत्यक्ष रूप से लेने का प्रावधान किया जा रहा
था।
तीसरा कानून जो आवश्यक वस्तु संशोधन
अधिनियम 2020 था, किसानों को किसी भी उपज का असीमित भंडारण करने की छूट देता
था। इससे पहले किसी भी खाद्य वस्तु का एक निश्चित सीमा में ही भंडारण करने का
प्रावधान था। पहले और दूसरे कानून की तरह इस कानून का भी सीधा संबंध व्यापारियों
के हित से था ना कि किसानों के। इस कानून द्वारा किसान अब किसी भी वस्तु का असीमित
भंडारण कर सकते थे। कहने को तो यह कानून किसानों के लिए था लेकिन इसका फायदा तो
व्यापारी ही उठा सकते थे। पंजाब और हरियाणा को छोड़ दिया जाए तो हमारे देश के
किसानों की स्थिति दयनीय ही है। उनके लिए खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है। ऐसे
में उनके पास किसी भी खाद्य वस्तु का भंडारण करने का साधन नहीं है जिससे कि उचित
समय पर भंडारन गृह से कोई खास खाद्य वस्तु बाजार में उच्च दाम में बेचा जा सके।
लेकिन बड़े-बड़े व्यापारियों के पास खाद्य वस्तुओं के भंडारण हेतु गोदाम की कोई
कमी नहीं है। यदि है भी तो बड़े-बड़े गोदाम बनाना इन व्यापारियों के लिए कोई खास
समस्या नहीं है। इसे हम एक उदाहरण के माध्यम से समझ सकते हैं। यदि मैं एक व्यापारी
के रूप में देशभर के किसानों से ₹10 किलो के हिसाब से कोई खाद्य पदार्थ खरीद कर
इसका भंडारण अपने गोदाम में कर लूं। और इसे मैं बेचू ही नहीं। बाजार में कृत्रिम
किल्लत पैदा कर मार्केट रेट जब 50 से ₹100 किलो तक पहुंच जाए तो थोड़ा-थोड़ा कर
निकालूं। इससे एक व्यापारी के रूप में मुझे फायदा होगा या उन किसानों को जिससे मैंने
₹10 किलो के हिसाब से वह खाद्य पदार्थ खरीदे।
इन
बातों से स्पष्ट है कि यह तीनों कानून केवल व्यापारी हितों को ध्यान में रखते हुए
लाए गए थे।