Sunday, 19 December 2021

सहिष्णु या असहिष्णु धर्म नहीं व्यक्ति होता है।

वर्तमान में हमारे देश में एक तरफ बड़ी संख्या में हिंदू धर्मावलंबी खुद को शान से हिंदू कहते हुए अपने ही देश के अन्य नागरिक विशेष रुप से मुसलमान, इसाई धर्मावलंबियों को अपने देश/धर्म के लिए खतरा मानते हैं, और इनके खिलाफ दिन रात आग उगलते रहते हैं। दूसरी तरफ कुछ मुसलमान भी पूरे जोश में हिंदुओं के खिलाफ इतिहास पलट कर देख लेने जैसे अनाप-शनाप बातें उगलते रहते हैं। इस कड़ी में आप उन धर्म या जाति के लोगों को भी शामिल कर सकते हैं जो बिल्कुल इन दोनों के नक्शे कदम पर चलते हैं।

          कोई शक नहीं कि दोनों ही समूह अपने-अपने धार्मिक समूह के नफरत के सौदागर हैं। इनसे यदि इनके अपने धर्म संबंधी विचार पूछा जाए तो दोनों के जवाब बिल्कुल एक जैसे होंगे। एक कहेगा कि हिंदू जैसा सहिष्णु धर्म दुनिया में और कोई नहीं है। तो दूसरा समूह अपने धर्म को दुनिया का सबसे अधिक अमन, चैन, शांति चाहने वाला धर्म बता देंगे। तीसरा समूह जिसे आप शामिल कर रहे हैं उनका भी जवाब ऐसे ही होने की पूरी गारंटी है। ऐसे लोगों को ही उस धर्म का कट्टरपंथी समूह कहा जाता है। इन्हें सिर्फ अपना ही दही मीठा लगता है। और सामने वाले का खट्टा। यहां दही शब्द से तात्पर्य धर्म से और मीठे का सहिष्णु या अमन चैन पसंद से है। इनको यह नहीं पता होता कि दही किसी की भी हो उसके स्वाद की प्रकृति एक जैसी ही खट्टी होती है। ऐसे में उसे मीठा बतलाना सत्य से मुंह मोड़ना है। इन दोनों समूहों के दही को कोई खट्टा कहे यह उन्हें बर्दाश्त नहीं है। वह मरने और मारने पर उतारू हो जाते हैं। उनका सहिष्णु धर्म तुरंत असहिष्णु हो जाएगा।

          दरअसल उन्हें यह नहीं पता होता कि किसी के प्रति सहिष्णु या असहिष्णु होने का संबंध धर्म से नहीं बल्कि व्यक्ति के व्यक्तित्व से होता है। पूरी दुनिया को यदि वह जाति, धर्म, संप्रदाय, लिंग के आधार पर भेद करने के परीक्षा प्रेम भरी नजर से देखता है तो वह सहिष्णु है। अन्यथा ...