मानचित्र सामाजिक अध्ययन शिक्षण में उपयोग किया जाने वाला सर्व प्रमुख शिक्षण सहायक सामग्री है। कक्षा छठवीं, सातवीं, आठवीं के सामाजिक विज्ञान पाठ्यपुस्तक का शायद ही कोई ऐसा अध्याय हो, जिसका प्रत्यक्ष जुड़ाव मानचित्र से न हो। ऐसा इसलिए कि ये मानचित्र सामाजिक अध्ययन को न केवल रुचिकर बनाते हैं बल्कि तथ्यों को समझने में, उसे स्थायित्व प्रदान करने में हमारे मन मस्तिष्क की मदद भी करते हैं। उदाहरण के लिए यदि आप बच्चे को समझाएँ कि ‘पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा उत्तमाशा अंतरीप होते हुए 1498 ईस्वी में हिंदुस्तान के कालीकट बंदरगाह पर पहुंचा’। यह तथ्य आपके मन-मस्तिष्क में 5 से 10 साल रह सकता है। बाद में इसके धूमिल हो जाने की पूरी संभावना है। लेकिन इसी तथ्य को यदि मानचित्र की सहायता से बच्चों को बताया जाए तो इसके मन मस्तिष्क में दीर्घकाल तक बने रहने की पूरी संभावना होती है। क्योंकि इस तथ्य को बच्चे ने देखते हुए अर्जित किया।
मानचित्र
पृथ्वी के किसी भूभाग की पैमाने से मापकर बनाई गई चित्र होती है। भूगोलविद उस भूभाग
के मानचित्र को इस तरह से बनाते हैं जैसे उस भू-भाग को ऊपर आसमान से देखा जा रहा
है। बच्चे सामान्यतः इस तथ्य से अवगत नहीं होते हैं। हममें से अधिकांश शिक्षकों की
भी स्थिति ऐसी ही होती है। क्योंकि ऐसे तथ्यों से हम अपने विद्यार्थी जीवन में परिचित
हो ही नहीं पाए, किसी प्रशिक्षण में भी शायद ही बताई जाती हो। ऐसे में हमारा
दायित्व बनता है कि छात्र जीवन में हमें मानचित्र अध्ययन करने में जो चुनौतियां
आईं, हमारे बच्चों को उन चुनौतियों का सामना न करना पड़े। मानचित्र अध्ययन के दौरान
बच्चों को सबसे ज्यादा समस्या उस मानचित्र में उसके दिशा निर्धारण में होती है। अक्सर
दिशाओं को समझने में वे भ्रमित हो जाते हैं। वे भ्रमित न हों इसके लिए हम कुछ
बातों का ध्यान रख सकते हैं-
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उच्च-प्राथमिक शालाओं के प्रत्येक
कक्षा (छठवीं, सातवीं, आठवीं) में पाठ्यपुस्तकों के विषयवस्तु अनूरूप भौतिक (Physical), राजनीतिक (Political) एवं कुछ थीमैटिक (Thematic)
मानचित्र अनिवार्य रूप से होने ही चाहिए। ताकि सालों भर मानचित्र से बच्चों का सामना
होता रहे। लगातार उन मानचित्रों को पढ़ने हेतु (शुरुआत में दिशा निर्धारण) मार्गदर्शित
करते रहें।
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कक्षा में जब मानचित्र पर कार्य
करने की शुरुआत कर रहे हों तो बच्चों को मानचित्र दीवार पर कील के सहारे लटका कर
नहीं, बल्कि कक्षा के फर्श पर फैला कर बताएं। कुछ दिन इस तरीके से काम करने के बाद
बच्चे यह समझ बना पाएंगे कि दीवार पर टंगी मानचित्र की स्थिति ऐसी होती हैं जैसे
उसे आसमान से देखा जा रहा हो।
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यदि संभव हो तो थ्री आयामी मानचित्र का उपयोग
करें। इससे बच्चो को पर्वत, पठार, मैदान, नदियों के बहाव की दिशा (पूर्व, पश्चिम, उत्तर,
दक्षिण) आदि को समझने में बच्चों को सुविधा होगी।
अध्ययन
हेतु प्रयुक्त ग्रंथ/पत्र/पत्रिकाएं
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शैक्षणिक संदर्भ, वर्ष 17, अंक
98 (मूल क्रमांक 155) नवंबर-दिसंबर 2024