धर्मांतरण हमारे देश में धार्मिक विवाद का एक प्रमुख कारण है। इस कार्य को ईसाई मिशनरी प्रमुखता से अंजाम देते रहे हैं विशेष रूप से ब्रिटिश काल से। इन ईसाई मिशनरियों के मुख्य target होते हैं तथाकथित हिंदू समाज के तथाकथित दलित और आदिवासी जनता। तरह तरह के प्रलोभन देकर वे भोली भाली जनता को ईसाई धर्म में धर्मांतरण करते हैं। अपने धर्म की ओर लोगों को आकर्षित करने के लिए हमारे देश के ऐसे क्षेत्र जहाँ बुनियादी सुविधाएं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य आदि नहीं पहुँच पाए हैं, में उपलब्ध कराकर खुद को उनके लिए सरकार से बेहतर साबित कर अपने धर्म की ओर लाने का प्रयास करते हैं।
अधिकांश
धर्मांतरित करने वाले व्यक्ति की गणना हिंदू वर्णव्यवस्था के अंतर्गत शुद्र या
अस्पृश्य जातियों, जनजातियों में की जाती है। डॉ. भीमराव
अम्बेडकर द्वारा जीवन के अंतिम पड़ाव में बौद्ध धर्म अपना लेने के बाद से अस्पृश्य
जातियों से संबंधित उनके अनुयायी प्रति वर्ष नागपुर में बौद्ध धर्म भी अपना कर
बौद्ध धर्मावलंबियों की संख्या लगातार बढ़ा रहे हैं। हिंदू कट्टरपंथियों को यह
धर्मांतरण फूटी आंख नहीं सुहाती है। विशेष रूप से ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण।
झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ आदि में जैसे ही इन्हें खबर मिलती है, ये पहुँच जाते हैं,
उस धर्मान्तरित व्यक्ति के शुद्धिकरण के लिए।
आखिर
कारण क्या है इस धर्मांतरण का? और अधिकांश धर्मांतरण
तथाकथित हिंदुओं के ही क्यों होते हैं? क्या तथाकथित हिंदू
बहुसंख्यक हैं, इसलिए हिंदू धर्मांतरण की ही खबरें हमें मिल
पाती हैं? कोई मुस्लिम व्यक्ति के ईसाई बनने के उदाहरण देखने को मिलते हैं क्या?
उत्तर है संभवतः नहीं। अपवाद स्वरूप कुछ उदाहरण हो सकते हैं। इतिहासकार
इरफान हबीब मध्यकालीन भारत पर लिखे अपनी पुस्तक में बताते हैं कि दलित जातियों को
मुस्लिम शासकों से मिले स्नेह के कारण वे स्वेच्छा से इस्लाम में धर्मांतरित हुए।
कुछ हद तक ये बात तार्किक लगती है। संभवतः यही मुख्य कारण हैं लोगों के ईसाई धर्मांतरण
के। जिन इलाकों में ईसाई धर्मांतरण अधिक हुआ है वहां से भी जातिगत भेदभाव व खराब
आर्थिक स्थिति इस बात पर मुहर लगाते हैं। यही कारण है कि अपने सामाजिक-आर्थिक स्थिति
से असंतुष्ट लोग धर्मांतरण का रास्ता अपनाते हैं। हालांकि ये चमत्कार से रोगी को
ठीक करने के लिए शिविर आयोजित करते हैं, जो कि केवल एक पाखंड,
झूठ होता है और कुछ नहीं।
वैसे तो भारतीय संविधान
अपने नागरिको को अपनी पसंद के धर्म चुनने की आजादी देती है, लेकिन धर्मांतरण रोकने
वाले लोग इन नियमों से अनजान होते हैं। यदि हिंदू धर्म के तथाकथित उच्च जातियों के
लोग SC,
ST के साथ जाति के नाम पर भेदभाव ऐसे ही करते रहे, जैसा भारतीय
संविधान बनने के पूर्व करते रहे थे, तो धर्मांतरण रुकने से रहा। लोग चोरी छिपे आज
या कल धर्मांतरण करेंगे ही, क्योंकि उन्हें लगता है कि जीस नए धर्म को ये लोग
अपनाने जा रहे हैं, वह उन्हें समानता का अधिकार देता है। हालांकि यह बात एक मृग मरीचिका
जैसी है। इस्लाम हों या ईसाई इन लोगों को मूल धर्म वाले अलग नजर से ही देखते हैं। तथाकथित
हिंदू समाज के तथाकथित उच्च जाति के लोग इन सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को घृणा की
नजर से यदि देखना बंद कर दें, धर्मांतरण रुक जाएगा। किसी को शुद्धिकरण की आवश्यकता
भी नहीं रह जाएगी।