Tuesday, 31 December 2024

सामाजिक अध्ययन की कक्षा और मानचित्र का उपयोग

मानचित्र सामाजिक अध्ययन शिक्षण में उपयोग किया जाने वाला सर्व प्रमुख शिक्षण सहायक सामग्री है। कक्षा छठवीं, सातवीं, आठवीं के सामाजिक विज्ञान पाठ्यपुस्तक का शायद ही कोई ऐसा अध्याय हो, जिसका प्रत्यक्ष जुड़ाव मानचित्र से न हो। ऐसा इसलिए कि ये मानचित्र सामाजिक अध्ययन को न केवल रुचिकर बनाते हैं बल्कि तथ्यों को समझने में, उसे स्थायित्व प्रदान करने में हमारे मन मस्तिष्क की मदद भी करते हैं। उदाहरण के लिए यदि आप बच्चे को समझाएँ कि ‘पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा उत्तमाशा अंतरीप होते हुए 1498 ईस्वी में हिंदुस्तान के कालीकट बंदरगाह पर पहुंचा’। यह तथ्य आपके मन-मस्तिष्क में 5 से 10 साल रह सकता है। बाद में इसके धूमिल हो जाने की पूरी संभावना है। लेकिन इसी तथ्य को यदि मानचित्र की सहायता से बच्चों को बताया जाए तो इसके मन मस्तिष्क में दीर्घकाल तक बने रहने की पूरी संभावना होती है। क्योंकि इस तथ्य को बच्चे ने देखते हुए अर्जित किया।

मानचित्र पृथ्वी के किसी भूभाग की पैमाने से मापकर बनाई गई चित्र होती है। भूगोलविद उस भूभाग के मानचित्र को इस तरह से बनाते हैं जैसे उस भू-भाग को ऊपर आसमान से देखा जा रहा है। बच्चे सामान्यतः इस तथ्य से अवगत नहीं होते हैं। हममें से अधिकांश शिक्षकों की भी स्थिति ऐसी ही होती है। क्योंकि ऐसे तथ्यों से हम अपने विद्यार्थी जीवन में परिचित हो ही नहीं पाए, किसी प्रशिक्षण में भी शायद ही बताई जाती हो। ऐसे में हमारा दायित्व बनता है कि छात्र जीवन में हमें मानचित्र अध्ययन करने में जो चुनौतियां आईं, हमारे बच्चों को उन चुनौतियों का सामना न करना पड़े। मानचित्र अध्ययन के दौरान बच्चों को सबसे ज्यादा समस्या उस मानचित्र में उसके दिशा निर्धारण में होती है। अक्सर दिशाओं को समझने में वे भ्रमित हो जाते हैं। वे भ्रमित न हों इसके लिए हम कुछ बातों का ध्यान रख सकते हैं-  

·       उच्च-प्राथमिक शालाओं के प्रत्येक कक्षा (छठवीं, सातवीं, आठवीं) में पाठ्यपुस्तकों के विषयवस्तु अनूरूप भौतिक (Physical), राजनीतिक (Political) एवं कुछ थीमैटिक (Thematic) मानचित्र अनिवार्य रूप से होने ही चाहिए। ताकि सालों भर मानचित्र से बच्चों का सामना होता रहे। लगातार उन मानचित्रों को पढ़ने हेतु (शुरुआत में दिशा निर्धारण) मार्गदर्शित करते रहें।

·       कक्षा में जब मानचित्र पर कार्य करने की शुरुआत कर रहे हों तो बच्चों को मानचित्र दीवार पर कील के सहारे लटका कर नहीं, बल्कि कक्षा के फर्श पर फैला कर बताएं। कुछ दिन इस तरीके से काम करने के बाद बच्चे यह समझ बना पाएंगे कि दीवार पर टंगी मानचित्र की स्थिति ऐसी होती हैं जैसे उसे आसमान से देखा जा रहा हो।

·        यदि संभव हो तो थ्री आयामी मानचित्र का उपयोग करें। इससे बच्चो को पर्वत, पठार, मैदान, नदियों के बहाव की दिशा (पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण) आदि को समझने में बच्चों को सुविधा होगी।

 

अध्ययन हेतु प्रयुक्त ग्रंथ/पत्र/पत्रिकाएं

·       शैक्षणिक संदर्भ, वर्ष 17, अंक 98 (मूल क्रमांक 155) नवंबर-दिसंबर 2024  

Monday, 30 December 2024

इतिहासकार जीवाश्म की सहायता से पृथ्वी पर किसी के जीवन का इतिहास का पता कैसे लगाते हैं?

जीवाश्म से तात्पर्य है इतिहास के किसी काल खंड में मौजूद रहे किसी भी जीव जंतु के अवशेष। यह अवशेष उनकी हड्डी, अंडे से लेकर उनके मल तक हो सकते हैं। इसका अध्ययन ‘पैलियॉनटोलॉजी’ कहलाता है।

जीवाश्म विज्ञानी इन जीवाश्मों का अवलोकन, अध्ययन कर उनसे संबंधित विभिन्न प्रकार के जानकारियों जैसे उनके शारीरिक संरचना, खाने (शाकाहारी या मांसाहारी), उम्र, वजन, उनके व्यवहार, को संकलित करते हैं। इतिहासकार कई जीवाश्मों के अध्ययन से प्राप्त इन तथ्यों का उपयोग कर, उसकी व्याख्या कर उस करोड़ों साल पूर्व विलुप्त हो चुके जीव-जंतु के इतिहास का पता लगाते हैं। जीवाश्म विज्ञानी वर्तमान में बैक्टीरिया से लेकर डायनासोर जैसे विशाल जीव जंतुओं के जीवाश्मों का पता लगा चुके हैं। इन जीवाश्मों का यदि हम गहराई से अवलोकन करें तो हम पाते हैं कि केवल उन्हीं जीव जंतुओं के जीवाश्म मिलते हैं जिनकी हड्डियाँ या अन्य शारीरिक अंग जैसे खोपड़ी मजबूत थी। 

Sunday, 29 December 2024

धर्मांतरण (Religious Conversion) रोकने हेतु उपयुक्त उपाय

 धर्मांतरण हमारे देश में धार्मिक विवाद का एक प्रमुख कारण है। इस कार्य को ईसाई मिशनरी प्रमुखता से अंजाम देते रहे हैं विशेष रूप से ब्रिटिश काल से। इन ईसाई मिशनरियों के मुख्य target होते हैं तथाकथित हिंदू समाज के तथाकथित दलित और आदिवासी जनता। तरह तरह के प्रलोभन देकर वे भोली भाली जनता को ईसाई धर्म में धर्मांतरण करते हैं। अपने धर्म की ओर लोगों को आकर्षित करने के लिए हमारे देश के ऐसे क्षेत्र जहाँ बुनियादी सुविधाएं जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य आदि नहीं पहुँच पाए हैं, में उपलब्ध कराकर खुद को उनके लिए सरकार से बेहतर साबित कर अपने धर्म की ओर लाने का प्रयास करते हैं।

अधिकांश धर्मांतरित करने वाले व्यक्ति की गणना हिंदू वर्णव्यवस्था के अंतर्गत शुद्र या अस्पृश्य जातियों, जनजातियों में की जाती है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा जीवन के अंतिम पड़ाव में बौद्ध धर्म अपना लेने के बाद से अस्पृश्य जातियों से संबंधित उनके अनुयायी प्रति वर्ष नागपुर में बौद्ध धर्म भी अपना कर बौद्ध धर्मावलंबियों की संख्या लगातार बढ़ा रहे हैं। हिंदू कट्टरपंथियों को यह धर्मांतरण फूटी आंख नहीं सुहाती है। विशेष रूप से ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण। झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ आदि में जैसे ही इन्हें खबर मिलती है, ये पहुँच जाते हैं, उस धर्मान्तरित व्यक्ति के शुद्धिकरण के लिए।

आखिर कारण क्या है इस धर्मांतरण का? और अधिकांश धर्मांतरण तथाकथित हिंदुओं के ही क्यों होते हैं? क्या तथाकथित हिंदू बहुसंख्यक हैं, इसलिए हिंदू धर्मांतरण की ही खबरें हमें मिल पाती हैं? कोई मुस्लिम व्यक्ति के ईसाई बनने के उदाहरण देखने को मिलते हैं क्या? उत्तर है संभवतः नहीं। अपवाद स्वरूप कुछ उदाहरण हो सकते हैं। इतिहासकार इरफान हबीब मध्यकालीन भारत पर लिखे अपनी पुस्तक में बताते हैं कि दलित जातियों को मुस्लिम शासकों से मिले स्नेह के कारण वे स्वेच्छा से इस्लाम में धर्मांतरित हुए। कुछ हद तक ये बात तार्किक लगती है। संभवतः यही मुख्य कारण हैं लोगों के ईसाई धर्मांतरण के। जिन इलाकों में ईसाई धर्मांतरण अधिक हुआ है वहां से भी जातिगत भेदभाव व खराब आर्थिक स्थिति इस बात पर मुहर लगाते हैं। यही कारण है कि अपने सामाजिक-आर्थिक स्थिति से असंतुष्ट लोग धर्मांतरण का रास्ता अपनाते हैं। हालांकि ये चमत्कार से रोगी को ठीक करने के लिए शिविर आयोजित करते हैं, जो कि केवल एक पाखंड, झूठ होता है और कुछ नहीं।

वैसे तो भारतीय संविधान अपने नागरिको को अपनी पसंद के धर्म चुनने की आजादी देती है, लेकिन धर्मांतरण रोकने वाले लोग इन नियमों से अनजान होते हैं। यदि हिंदू धर्म के तथाकथित उच्च जातियों के लोग SC, ST के साथ जाति के नाम पर भेदभाव ऐसे ही करते रहे, जैसा भारतीय संविधान बनने के पूर्व करते रहे थे, तो धर्मांतरण रुकने से रहा। लोग चोरी छिपे आज या कल धर्मांतरण करेंगे ही, क्योंकि उन्हें लगता है कि जीस नए धर्म को ये लोग अपनाने जा रहे हैं, वह उन्हें समानता का अधिकार देता है। हालांकि यह बात एक मृग मरीचिका जैसी है। इस्लाम हों या ईसाई इन लोगों को मूल धर्म वाले अलग नजर से ही देखते हैं। तथाकथित हिंदू समाज के तथाकथित उच्च जाति के लोग इन सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों को घृणा की नजर से यदि देखना बंद कर दें, धर्मांतरण रुक जाएगा। किसी को शुद्धिकरण की आवश्यकता भी नहीं रह जाएगी।

Saturday, 28 December 2024

भारतीय रेल में Bio-Toilet व्यवस्था कब लागू हुई?

 Facebook पर एक पार्टी क समर्थक के किए post पढ़ रहा था। जिसमें वे कह रहे थे कि '70 साल तक भारतीय रेल की पटरी पर टट्टी बहती रहती थी, *** सरकार ने इससे निजात दिलाया है'। थोड़ी देर के लिए मुझे ये सही लगी और अच्छी भी लगी। फिर थोड़ा doubt हुआ। google पर registered अलग-अलग websites से मदद लिया तो पता चला कि जिस bio - toilet के कारण भारतीय रेल की पटरी लगभग टट्टी मुक्त हुई है उसका सबसे पहला use ग्वालियर-वाराणसी बुंदेलखंड एक्सप्रेस में जनवरी 2011 में किया गया था। इस project की शुरुआत भारतीय रेल द्वारा 2009 में किया गया और 2011 में इसे क्रियान्वित कर लिया गया। दोनों ही कार्य यू पी ए (कॉंग्रेस पार्टी की बहुलता वाले) के कार्यकाल में सम्पन्न हुए।

CAG की report में भी इसे पढ़ा जा सकता है।