Friday 29 April 2016

देश को आवश्यकता है जल संरक्षण क्रांति की

विगत दो वर्षों में जलवायु परिवर्तन, अल-निनो प्रभावस्वरूप कम बारिश होने के कारण दक्षिण पूर्वी एशियाई देश थाईलैंड[1] सहित भारत के मराठवाड़ा, विदर्भ, बुंदेलखंड, क्षेत्र सहित 12 राज्यों की 35 करोड़[2] जनता भयानक पेय जल संकट व सूखे की चपेट में है । दोनों ही देशों के जलश्रोत, नदी-तालाब लगातार सूखते जा रहे हैं । थाईलैंड इस सूखे से निपटने के लिए जहां फायर ब्रिगेड की मदद से पानी अपने नागरिकों तक पहुंचा रही है । वहीं भारत सरकार द्वारा भी सूखा प्रभावित क्षेत्रों में रेलमार्ग द्वारा पानी पहुंचाने के साथ-साथ इस आपदा से निपटने हेतु 10,000 करोड़ रुपए भी जारी किए गए हैं ।[3] ऐसे सूखे की स्थिति में चैत्र मास में ही रेकॉर्ड तोड़ गर्मी “एक तो कड़वा करेला ... दूजा नीम चढ़ा” वाली कहावत को चरितार्थ कर रही है । भीषण गर्मी, लू के थपेड़ों से एक ओर जहां जनजीवन अस्त-व्यस्त  हो गया है वहीं जल संकट और भी विकराल समस्या का रूप लेता जा रहा है । कोलकाता, पटना, नागपुर, वर्धा सहित देश के अन्य शहरों के तापमान पिछले 50 वर्षों के रेकॉर्ड को ध्वस्त कर नए कीर्तिमान बनाने में लगे हैं । अप्रैल महीने में ही देश में तापमान 44, 45, 46 डिग्री छूती जा रही है । ऐसा प्रतीत होता है कि मई-जून माह तक हमारा देश भी विश्व के 10 सबसे गर्म स्थान की सूची में 10 वें स्थान पर काबिज सऊदी अरब के जद्दा (52 डिग्री से.)[4] को भी पीछे छोड़ देगा । इस विकराल जल संकट से अच्छी मानसूनी बारिश वाले राज्य व नदियों का राज्य कहलानेवाले उत्तर प्रदेश व बिहार की स्थिति भी बदहाल है । बिहार के सिमुलतला घाटी (जमुई) का एक कुआं जिसका जलस्तर स्थानीयों के अनुसार पिछले वर्ष तक मानसून आगमन के पूर्व तक 8-10 फुट रहता था आज उसका जलस्तर 20 फुट नीचे चला गया है ।[5] उत्तर प्रदेश का भूजल स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है । जौनपुर, हथरस, वाराणसी का जलस्तर 50 से घटकर जहां 80 फूट हो गया है वहीं आगरा में यह 200-250 फुट नीचे चला गया है । आलू की खेती हेतु वृहत्त पैमाने पर नलकूप के निर्माण से प्रत्येक वर्ष औषतन 1.5 फूट की कमी रेकॉर्ड की गयी है ।[6] मनुष्य के साथ-साथ अन्य जीव जंतुओं के लिए भी यह जल संकट काल बनता जा रहा है । उत्तर प्रदेश के बहराइच जिला स्थित कतरानिया वन्य क्षेत्र के अंतर्गत गेरुवा नदी का पानी सिंचाई विभाग द्वारा निकाल लिए जाने से संरक्षित डोल्फिन जो विलुप्ति के कगार पर है, के अस्तित्व पर संकट हो गया है ।[7] पूरे देश के अन्य भागों से चीतल, हिरण सहित हिंसक तेंदुओं के पानी की तलाश में गाँव में घुसने की खबर भी आती रहती है ।
          आश्चर्य की बात है कि जिस पृथ्वी का 70 प्रतिशत भाग पानी से भरा है उन्हीं पृथ्वीवासियों को आज पानी की एक एक बूंद के लिए तरसना पड़ रहा है । महाराष्ट्र के लातूर, अहमदनगर में पानी के लिए लोग आपस में झगड़ रहे हैं । सरकार को स्थिति नियंत्रित करने के लिए धारा 144 लगानी पड़ी ।[8] मध्य प्रदेश के सूखा प्रभावित क्षेत्र डिंदौरी क्षेत्र के भँवरखंडी गाँव के ग्रामीणों को कुएं में उतरकर चम्मच से पानी भरने की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है ।[9] पानी के लिए इस प्रकार तरसने के लिए जिम्मेदार भी हम स्वयं ही हैं । बहुत कम लोगों को पता है कि इस 70 प्रतिशत भाग का मात्र 2 प्रतिशत ही मानव प्रयोग के लायक है जो हमें कुछ वर्षा जल के रूप में नदियों द्वारा तो कुछ भू जल के रूप में मिलता है । ऐसे में अपने निजी स्वार्थ के लिए लगातार पेड़ पौधों को काटकर एक तरफ वर्षा के लिए प्रतिकूल जलवायु का निर्माण कर रहे हैं तो दूसरी तरफ उद्योग धंधों के विकास के नाम पर भू जल का वृहत पैमाने पर दोहन करते जा रहे हैं । सेव गंगा मूवमेंट के एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश के विभिन्न उद्योगों में साफ पानी की खपत 600 करोड़ घन लीटर है ।[10] जिसकी आपूर्ति नदियों व भू-जल स्त्रोतों से की जाती है । जिस तरह हमारी नीतियाँ उद्योग धंधों के विकास की है, आने वाले 20-25 वर्षों में इसके खपत में अप्रत्याशित होने की पूरी संभावना है । ऐसे विकास को रोका भी नहीं जा सकता । अतः पेय जल व घटते भू-जल स्तर के लिए प्रबंधन करना हमारे समक्ष ये एक बहुत बड़ी चुनौती है । इस संदर्भ में सरकार के साथ साथ हम नागरिकों को गंभीर चिंतन करने की आवश्यकता है ।
          मौसम वैज्ञानिकों के इस वर्ष अच्छे संकेत मिलने के बाद सूखे की इस विकट परिस्थिति से निपटने के लिए सभी प्रभावित राज्य अपने-अपने स्तर पर मानसून आने से पूर्व खेत तालाब बनाने के साथ-साथ अनेक योजनाएँ बनाना शुरू भी कर दिये हैं । केंद्र सरकार भी प्रभावित राज्यों को आपदा प्रबंधन के नाम पर 10000 करोड़ की राशि स्वीकृत कर राहत दिया है । लेकिन इन पैसों व अस्थायी योजनाओं से जल संकट को अस्थायी रूप से हल तो किया जा सकता है लेकिन स्थायी नहीं । ऐसी स्थिति में जल संरक्षण क्रांति ही एकमात्र स्थायी व प्रभावी तकनीक है जिसे अपनाकर भू-जल स्तर को नियंत्रित व बढ़ाया जा सकता है । जिस प्रकार भूकंप से होने वाली क्षति से बचने के लिए भवन निर्माण के समय ही भूकंप रोधी तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है वैसे ही केंद्र या राज्य सरकार द्वारा एक कानून लाया जाना चाहिए जिसमें यह प्रावधान हो कि “बिना जल संरक्षण तकनीक इस्तेमाल किए कोई भी भवन का नक्शा पास न किया जाएगा” । साथ ही हम नागरिकों का भी यह कर्तव्य बनता है बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए अपने-अपने घरों में “वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम” अनिवार्य रूप से लगाएँ । हरित क्रांति की तरह इसे भी एक क्रांति का रूप देने की आवश्यकता है । अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब जल संकट के कारण हमारा देश भी खाड़ी देशों की श्रेणी में गिना जाने लगेगा ।




[1] http://www.bbc.com/hindi/multimedia/2016/04/160427_thaidrought_dunia_ik?ocid=socialflow_facebook
[2] जनसत्ता 26 अप्रैल 2016 नई दिल्ली संस्करण, पृष्ठ सं. 5
[3] जनसत्ता 27 अप्रैल 2016 नई दिल्ली संस्करण, पृष्ठ सं. 7 
[4] http://gulfnews.com/guides/going-out/travel/the-10-hottest-places-in-the-world-1.1529139
[5] हिंदुस्तान 17 अप्रैल, 2016, भागलपुर संस्करण, पृष्ठ सं. 4
[6] हिंदुस्तान 20 अप्रैल, 2016, भागलपुर संस्करण, पृष्ठ सं. 15
[7] जनसत्ता 24 अप्रैल 2016 नई दिल्ली संस्करण, पृष्ठ सं. 5
[8] http://www.dnaindia.com/india/report-maharashtra-drought-section-144-lifted-from-water-crisis-hit-latur-2200584
[9] http://www.bhopalsamachar.com/2016/04/blog-post_388.html
[10] https://scontent.fbom1-1.fna.fbcdn.net/v/t1.0-9/12794448_1592412234347433_1913284798964185448_n.jpg?oh=4c51906f808fb3813b5e3ff3a1ed6c0f&oe=57AA81A9



(Women Express Newspaper 30/04/2016 के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित)




Wednesday 27 April 2016

10 दिवसीय वर्कशॉप हेतु कोलकाता भ्रमण

School of Women’s Studies, Jadavpur University, Kolkata एवं Sachetna द्वारा Feminist Research Methodology विषय पर आजोजित 10 दिवसीय कार्यशाला हेतु कोलकाता भ्रमण पर अपने साथी मित्र मनीष सिंह के साथ चला । Selection Committee ने हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से हम दोनों सहित पूरे भारत से 25 को चुना । 6 – 17 अप्रैल तक चलनेवाले इस 10 दिनों के काफी व्यस्ततम कार्यशाला में दो दिन छुट्टी के रूप में मिले – एक रविवार तथा दूसरा अम्बेडकर जयंती । इस छुट्टी के पल में हमें कोलकाता की खूबसूरती यहाँ के विरासत को देखने समझने का मौका मिला । पहले रविवार को जबरदस्त सूर्यदेव के प्रकोप को चिढ़ाते हुए भारत के पहले मेट्रो सेवा कोलकाता मेट्रो के सफर का आनंद लिया । इस दौरान कोलकाता में कम खर्च में सफर करने का तिलिस्म का भी अध्ययन किया । निष्कर्ष निकाला कि सभी औटोवाले को एक निश्चित दूरी के लिए ही permit दिया जाता है । दूसरे route में वह नहीं जा सकता । हर route का अधिकतम किराया 10 रुपया निर्धारित है । मित्र मनीष के साथ जादवपुर विश्वविद्यालय से ऑटो द्वारा टोलीगंज मेट्रो स्टेशन से पार्क स्ट्रीट जाकर काफी बारीकी से Indian Museum का अध्ययन किया क्योंकि दोनों ही इतिहास पृष्ठभूमि से संबंधित थे । तत्पश्चात फुटपाथ के लाइफ को देखते लस्सी, नींबू पानी, चिकेन बिरयानी का आनंद लेते हुए आधे घंटे के सफर में यहाँ से थोड़ी ही दूर स्थित विक्टोरिया मेमोरियल हॉल पहुंचा । इसकी भव्यता व अंदर museum स्थित अनेक संधि-पत्र, ब्रिटिश गवर्नर जनरल की आदमकद प्रतिमा देख मन पुलकित हो उठा । एक डेढ़ घंटे में घूमकर वापसी में कालीघाट भी देखने पहुंचा जहां स्थानीय पंडितों की मनमानी देखकर काफी हैरत हुई । दोनों ने बाहर बाहर से ही मंदिर के architecture को देख वापस अपने अस्थायी निवास अलुमिनी असोशिएशन, जादवपुर विश्वविद्यालय के गेस्ट हाउस कमरा नंबर 204 लौट पड़ा । और भी बहुत कुछ देखना बाकी था लेकिन थकावट मिटाकर अगले दिन वर्कशॉप भी attain करना था । कोलकाता को देखने का दूसरा मौका मिला 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती के दिन । जादवपुर विश्वविद्यालय स्थित बस स्टैंड से मित्र मनीष के साथ एसी 01 बस से हावड़ा ब्रिज पहुँचकर हुगली नदी के तट पर बैठकर हावड़ा ब्रिज व हुगली नदी के मनोरम दृश्य का आनंद लिया । हुगली नदी स्थित स्टीमर के सफर का भरपूर आनंद लेते हुए दक्षिणेश्वर काली मंदिर के लिए रवाना हुआ । हुगली नदी में हाथ मुंह धोकर माँ काली का दर्शन कर स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित बेलुर मठ पहुंचा । बेलुर मठ की भव्यता व हुगली के विहंगम दृश्य काफी मनमोहक हैं । यहाँ आकर ऐसा प्रतीत हुआ कि यदि कोलकाता आकर बेलुर मठ नहीं देखा तो आपका कोलकाता आना व्यर्थ है । हुगली के किनारे घंटों बैठकर हमने पुरवा हवा का आनंद लिया । तत्पश्चात अपने सराय की ओर निकल पड़े । 13 दिनों का यह कोलकाता प्रवास ताउम्र याद रहेगा विशेष रूप से भोजन crisis के लिए । workshop के बाद हमें काफी भटकना पड़ता था रात्रि भोजन के लिए, तब कहीं जाकर डोसा, चाउमीन, एग रोल, मोमो मिलता था । रोटी खाना तो जैसे सपना था ।
Indian museum kolkata with manish singh 
Victoria Memorial Kolkata with Manish Singh  
at Victoria Memorial

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