Monday 9 December 2019

चमत्कार : लोगों को ठगने का हथकंडा


चमत्कार। एक ऐसी युक्ति जो सीधे-साधे भोले-भाले लोगों को किसी भी धार्मिक मान्यताओं को मानने के लिए मजबूर करती है। यह चमत्कार कितना सत्य है कितना मिथक? यह हमारी आपकी आस्था पर निर्भर करता है। आप चाहे किसी भी धर्म-संप्रदाय से संबंधित हो, आस्था की नजर से यदि देखेंगे तो प्रत्येक जगह आपको चमत्कार के प्रसंग मिलेंगे। लेकिन यदि थोड़ी आलोचनात्मक नजरिए को अपनाएं तो यह चमत्कार या तो आपको विज्ञान के खेल लगेंगे या आपको ठगने के हथकंडे। सर्वाधिक चमत्कार के किस्से संस्कृत ग्रन्थों में या तो आपको त्रेता युग के मिलेंगे या द्वापर युग के।
          एक उदाहरण लेते हैं त्रेता युग में राम उनकी वानर सेना द्वारा निर्मित रामसेतु को। रामायण, महाभारत, रामचरितमानस सहित अनेक ग्रंथों की माने तो अपनी पत्नी सीता को लंका के राजा रावण की कैद से मुक्त कराने के लिए राम ने भारत और श्रीलंका के बीच के समुद्र पार करने के उद्देश्य से रामसेतु बनाई। इस सेतु के निर्माण में राम की सेना में प्रयुक्त वानरों को लगाया गया था। यह भी कहा जाता है कि जिस पत्थर पर राम लिख दिया जाता था वह पत्थर तैरने लगता था। इसे हम राम नाम का चमत्कार मान सकते हैं। लेकिन अब सवाल उठता है कि आज यह चमत्कार क्यों नहीं दिखता। आज राम सेतु समुद्र में डूबा हुआ क्यों है? यदि राम वास्तव में चमत्कारी हैं, यदि राम नाम में वास्तव में शक्ति है तो राम द्वारा निर्मित रामसेतु के पत्थर अभी भी बिना डूबे सही सलामत होते। लेकिन आज ऐसा नहीं है।
          एक और उदाहरण लेते हैं राम भक्त हनुमान जी की। विष्णु, राम, हनुमान आदि देवताओं की उपासना करने वाले भक्तों का मानना है कि हनुमान से बढ़कर ना कोई राम भक्त हुआ है और ना होगा। अहिरावण और महिरावण जब राम और लक्ष्मण को अपने बस में कर लिया था तो परम राम भक्त हनुमान जी ने ही राम और लक्ष्मण को उसके कब्जे से मुक्त कराया था। संजीवनी बूटी लाकर हनुमान ने ही लक्ष्मण की जान बचाई थी। लेकिन आश्चर्य की बात है कि राम जन्मभूमि पर स्थित मंदिर को तोड़कर जब एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा वहां मस्जिद बनाई जा रही थी तब राम भक्त हनुमान कहां थे? क्यों वे अपने परम देवता राम के मंदिर को टूटने से बचा नहीं सके?
          ऐसा ही एक उदाहरण छत्तीसगढ़ के दामखेड़ा नामक स्थान पर देखने को मिला जो कबीरपंथ के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। ऐतिहासिक दृष्टि से यदि कबीर जी का अवलोकन करें तो वे एक समाज सुधारक थे जो अपने विचारों से अनर्गल कर्मकांडों/कृत्यों का खंडन करते थे, लेकिन दामखेड़ा में कबीर जी की जीवन प्रदर्शिनी देखकर हम आप सभी यही कहेंगे कि कबीर जी भी कोई चमत्कारी पुरुष थे।  
          ऐसे ही अनेक सवाल हैं जिसके जवाब ना आपको पौराणिक ग्रंथों में मिलेंगे ना ही कोई देवी-देवता इसे बताने के लिए आएंगे। क्योंकि... चमत्कार केवल किसी देवी देवता को लोकप्रिय बनाने का हथकंडा मात्र है और कुछ नहीं।

Wednesday 16 October 2019

मुर्शिदाबाद घटना को सांप्रदायिक रंग देने की नाकाम कोशिश


सांप्रदायिक बयानबाजी कर देश को हिंसा की आग में झोंक देने वाले, मोब लिंचिंग जैसी घटनाओं के रोकथाम के लिए बुद्धिजीवियों द्वारा प्रधानमंत्री को खत लिखने से नाराज गोबरबुद्धि लोगों के अंदर अचानक एक घटना ने इंसानियत जागा दिया। यह घटना थी मुर्शिदाबाद में एक कथित आरएसएस कार्यकर्ता की पत्नी व पुत्र सहित हत्या। इंसानियत जागा तो जागा उन लोगों को भी यह लोग कोसने लगे जिन्होंने मॉब लिंचिंग जैसी घटना को रोकने मैं नाकाम मोदी सरकार का ध्यान इस और दिलाने के लिए खत लिखा, यह कहते हुए कि अब कहां मर गए मॉब लिंचिंग पर हंगामा करने वाले लोग। दरअसल इन लोगों का खून उबाल इसलिए नहीं मार रहा था कि पश्चिम बंगाल में एक ही परिवार के तीन लोगों की नृशंश हत्या हुई है बल्कि इसके पीछे कारण एक अफवाह था, वह अफवाह पूरे तीन-चार दिनों तक व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल होता रहा। इस अफवाह के अनुसार मुर्शिदाबाद के कुछ मुसलमानों ने इस कथित आरएसएस कार्यकर्ता की हत्या की। कई पोस्ट में तो कुछ मुस्लिम युवकों के नाम तक लिखें देखने को मिले। तीन-चार दिनों के बाद ही यह साफ हो पाया कि इस हत्याकांड के पीछे कौन लोग जिम्मेदार हैं तथा क्या कारण था? और जब से इस हत्याकांड के कारण का पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा पर्दाफाश हुआ इन गोबरबुद्धियों के जुबान से लेकर लेखनी पर ताला लग गया। वह तो लगना ही था क्योंकि इस झूठ को फैलाने का उनका उद्देश्य कुछ और ही था। यकीन मानिए अगले वर्ष तक यदि पश्चिम बंगाल में चुनाव होता तो आज तक मामला कुछ और ही होता। ये तो भला हो पश्चिम बंगाल पुलिस का जिसने इतनी जल्दी से घटना के कारणों का खुलासा कर दिया अन्यथा सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहे झूठ देश के कोने कोने में किस तरह आग लगा सकते थे, मुझे लगता है यह बताने की जरूरत नहीं है।

Friday 11 October 2019

सोसल मीडिया के छद्मी इतिहासकार वर्ग


सोशल मीडिया के इस स्वर्णिम दौर में हमारे देश में ऐसे-ऐसे तथाकथित इतिहासकार दिन दूनी रात चौगुनी रूप से अस्तित्व में आ रहे हैं जो यह मानते हैं कि भारतीय इतिहास श्री परशुराम, श्री राम, श्री कृष्ण, गुरु गोविंद सिंह, राजा पोरस, विक्रमादित्य, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य, आचार्य चाणक्य, राजा भोज, पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, शिवाजी, राजा सूरजमल, राव तुलाराम यादव, राजा छत्रसाल बुंदेला, वीर अहीर देवायत बोदार, पेशवा बाजीराव, भील राणा पूंजा, रानी लक्ष्मीबाई, बंदा सिंह बहादुर, भगत सिंह आदि से ही निर्मित है। 

इनका नाम लेते-लेते वे यह भी भूल जाते हैं कि भारतीय इतिहास इनके साथ-साथ शक, यवन, कुषाण, चोल, चेर, पाण्ड्य, सातवाहन, पाल, प्रतिहार, राष्ट्रकूट, मौखरी, सल्तनतकालीन अफगान शासकों, विजयनगर, बहमनी के साथ-साथ मुगलकालीन तुर्क शासकों आदि सहित ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल, वायसराय आदि से भी निर्मित है। हद तो इस बात की है कि जिन आदिवासियों को यह हिंदू समाज का हिस्सा बताते हैं, उस समुदाय के, कुछ भी राजाओं को छोड़कर अन्य किसी का नाम नहीं लेते। बिरसा मुंडा, तिलका मांझी, सिद्धू कान्हू जैसे नामी-गिरामी सहित हजारों- लाखों ने जितनी शिद्दत से ब्रिटिश शासकों के अमानवीय नीतियों का विरोध करते हुए, उन्हें नाकों चने चबवा दिए, यह सभी उनके भारतीय इतिहास निर्माताओं में शामिल नहीं हैं। इनके योगदानों को कोई इतिहासकार भी नकार नहीं सकता। इनके द्वारा चिन्हित भारतीय इतिहास के महानायकों में शायद ही कोई तथाकथित अस्पृश्य वर्ग से कोई मिले।
          दरअसल इतिहास के साथ ऐसे छेड़छाड़ करने का इनका उद्देश्य केवल मुसलमानों तथा वामपंथी विचारधारा के लेखकों को नीचा दिखाना। इनको यह लगता है कि केवल वामपंथी लेखक ही हैं जो भारतीय इतिहास में मुसलमानों, ईसाइयों को सम्मिलित करने का काम करते हैं। लेकिन इन्हें यह नहीं पता कि मार्क्सवादी इतिहास लेखन को छोड़ दिया जाए तो इतिहास लेखन की अन्य धाराओं जैसे प्राच्यवादी, साम्राज्यवादी, राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने, और वर्तमान में सांप्रदायिक इतिहास लेखन करने वाले इतिहासकार भी उपरोक्त वर्णित सभी राजवंशों, शासकों आदि का उल्लेख करते हैं।
          सच तो यह है कि इन सोशल मीडिया पर जागृत इन छद्म इतिहासकारों का इतिहास तो छोड़िए, अध्ययन से भी कोई लेना देना नहीं होता। इनका काम केवल इस तरह के फालतू के विमर्श को बढ़ावा देते हुए हिंदू मुसलमान, हिंदू ईसाई, स्वर्ण-दलित, के बीच की लड़ाई को सुलगाते रहना है। कोई बात नहीं आप यह सांप्रदायिक आग सुलगाते रहो, हमलोग आपको बेनकाब कर आपका मुंह काला करते रहेंगे।


Saturday 28 September 2019

तीन शिक्षकों ने मिलकर बदल दी स्कूल की तस्वीर


ट्रेन के दरवाजे से झांकते यह बच्चे किसी रेलवे स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में नहीं, बल्कि अपने स्कूल में हैं। और यह स्कूल है छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिला स्थित नरी संकुल में। नरी संकुल के सिंघनपुरी ग्राम स्थित प्राथमिक शाला के 3 शिक्षकों ने अपनी मेहनत तथा निजी राशि से एक ऐसे कार्य को कर दिखाया है जिसकी प्रशंसा करते संकुल के शिक्षक थकते नहीं।
इन 3 शिक्षकों के नाम हैं - अनीश दास मानिकपुरी (प्रभारी प्रधान पाठक) अजय प्रताप सिंह भारद्वाज एवं देव कुमार ध्रुव। सिंघनपुरी ग्राम स्थित इस प्राथमिक शाला में कुल 78 बच्चे हैं।
          इन तीनों शिक्षकों की नियुक्ति एक साथ 2009 में हुई थी। तत्पश्चात इन तीनों शिक्षकों ने अपने स्कूल की स्थिति को सुधारने का बीड़ा उठाया। प्रभारी प्रधान पाठक अनीश दास मानिकपुरी जी के अनुसार कवर्धा स्थित उच्च प्राथमिक शाला कृतबांधा में कार्यरत एक शिक्षक खेमूराम मरकाम से उन्हें यह आइडिया प्राप्त हुआ जिन्होंने स्वयं अपने स्कूल को रेलगाड़ी के डिब्बे के रूप में सँवारने का कार्य किया। इन शिक्षकों ने अपने लगातार प्रयास से इसे पिछले वर्ष 2018 में रेलगाड़ी की प्रतिकृति के रूप में ला पाए। इससे पूर्व उन्होंने पिछले 8 वर्षों से शाला संबंधी अनेक मुद्दों पर कार्य किया। जैसे बच्चों को अनुशासित करना, अपने यूनिफॉर्म को साफ सुथरा कर सही तरीके से पहनना सिखाना, उनके शुद्ध शुद्ध पढ़ने लिखने पर काम करना, बच्चों को भयमुक्त वातावरण देते हुए उनमें अभिव्यक्ति क्षमता का विकास करना आदि। 
अपने शाला में इस तरह के बदलाव लाने में शाला के शाला प्रबंधन समिति, ग्रामीणों, संकुल समन्वयक, संकुल के कई शिक्षक आदि का भी पर्याप्त योगदान रहा, जिनसे आवश्यक मार्गदर्शन प्राप्त हुआ लेकिन सर्वाधिक योगदान स्वयं इन तीनों शिक्षकों (अनीश दास मानिकपुरी, अजय प्रताप सिंह भारद्वाज, देव कुमार ध्रुव) का रहा, जिन्होंने शाला को इस रूप में लाने के लिए अपनी मेहनत के साथ-साथ अपने हिस्से से निजी धन भी लगाए।
बच्चों के साथ प्रभारी प्रधान पाठक अनीश दास मानिकपुरी (मध्य)
देव कुमार ध्रुव (बाएँ) अजय प्रताप सिंह भारद्वाज (दाएँ) 


इस संदर्भ में बताते हुए प्रभारी प्रधान पाठक अनीश दास मानिकपुरी कहते हैं,
"हमारे पास आर्थिक संसाधन बहुत कम थे, जिसके लिए हम तीनों शिक्षक ने विचार किया कि क्यों न इस कार्य को हम स्वयं करें ताकि खर्च का दायरा सीमित हो जाए। इसके लिए मात्र एक श्रमिक रखा गया, जिसके साथ काम करते हुए हम तीनों ने पूरे शाला की पुताई में योगदान दिया”।
अपने शाला को इस रूप में लाने के बाद अब तीनों शिक्षक अपनी शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार लाने पर कार्य कर रहे हैं। इसके लिए न केवल अपनी शाला को प्रिंट रिच बना रहे हैं, संकुल के अन्य प्रतिभाशाली, अनुभवी शिक्षकों की मदद ले रहे हैं बल्कि अपने शिक्षण तकनीक को बेहतर करने के लिए लगातार अजीम प्रेमजी फाउंडेशन, बेमेतरा के भाषा, गणित, पर्यावरण अध्ययन के प्रशिक्षण कार्यक्रम से भी जुड़ रहे हैं। शाला में कार्यरत सहायक शिक्षक अजय प्रताप सिंह भारद्वाज बताते हैं कि
पिछले कुछ वर्षों से वे लगातार इस दिशा में प्रयासरत है कि हमारी शाला से भी नवोदय विद्यालय के लिए बच्चे चुनकर जा सकें। हालांकि अभी तक सफलता तो नहीं मिली है लेकिन लगातार प्रयासरत हैं”।
शाला में कार्यरत सहायक शिक्षक देव कुमार ध्रुव खेल के माध्यम से बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास को लेकर लगातार प्रयत्नशील रहे हैं। उनका मानना है कि 
"बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें इनडोर व आउटडोर खेल के साथ जोड़ना भी आवश्यक है"।
इस दिशा में उनके प्रयास का ही प्रतिफल है कि इंडोर व आउटडोर खेल सामग्री शाला में अच्छी संख्या में उपलब्ध है। खेल के दौरान वे स्वयं बच्चों के साथ सक्रिय रहते हैं। विशेष रूप से लुप्त हो रहे पारंपरिक खेल को भी बढ़ावा दे रहे हैं।

Monday 19 August 2019

प्राचीन काल में हमारे देश में समय गणना कैसे की जाती थी ? (Time Measurement in Ancient India)

वर्तमान समय में मंदिरों में प्रयुक्त की जाने वाली घंटी कभी (मध्यकाल में) समय बताने के लिए प्रयुक्त किया जाता था। आर्यभट्ट लिखित ग्रंथ से पता चलता है कि प्राचीन काल (मौर्य काल) में प्रत्येक घड़ी/पहर की गणना एक जलघड़ी से की जाती थी। (जो वर्तमान के रेत घड़ी की तर्ज़ पर काम करता था।) प्रत्येक पहर की जानकारी उतनी संख्या में ढोल या शंख बजाकर दी जाती थी। मध्यकाल में शंख व ढोल का स्थान घंटे ने ले लिया। फिरोजशाह तुगलक के काल से समय की जानकारी घंटा बजाकर दी जाने लगी। मुगल बादशाह बाबर की आत्मकथा से पता चलता है कि उसके आगमन काल में समय/घड़ी/पहर बताने वाले इस यंत्र को घड़ियाल नाम से संबोधित किया जाता था तथा इसे बजाने के लिए नियुक्त अधिकारी को घड़ियाली नाम से जाना जाता था। 

संदर्भ ग्रंथ


  • Sharma S R (1994) : Indian Astronomical and time measuring instruments : A Catalogue in Preparation, Indian Journal of History of Science 29(4)

Sunday 11 August 2019

प्राचीन संस्कृत साहित्य में वर्णित 64 कलाएं (64 Art Forms mentioned in Ancient Sanskrit Texts)


प्राचीन संस्कृत ग्रंथ शुक्र नीति में 64 कलाओं का उल्लेख मिलता है। यह 64 कलाएं हैं –
1.     गीत
2.     वाद्य
3.     नृत्य
4.     आलेख्य
5.     विशेषकच्छेद्य (मस्तक पर तिलक लगाने के लिए कागज पत्ती आदि काटकर आकार या सांचा बनाना
6.      तंडूलकुसुमवलिविकार (देव पूजन आदि के अवसर पर तरह-तरह के रंगे हुए चावल, जौ आदि वस्तुओं को तथा रंग बिरंगी फूलों को विविध प्रकार से सजाना),
7.     पुष्पास्तरण
8.     दसनवसनांगराग (दांत, वस्त्र, शरीर के अवयवों को रंगना)
9.     मणिभूमिका कर्म (घर के फर्श के कुछ भागों को मोती, मणि आदि रत्नों से जड़ना)
10.                        शयनरचन (पलंग लगाना)
11.                        उदकवाद्य (जलतरंग)
12.                        उदकाघात (दूसरों पर हाथों या पिचकारी से जल की चोट मारना)
13.                        चित्राश्व योगा (जड़ी बूटियों के योग से विविध चीजें ऐसे तैयार करना या ऐसी औषधि तैयार करना अथवा ऐसे मंत्रों का प्रयोग करना जिनसे शत्रु निर्बल हो यह उसकी हानि हो)
14.                        माल्यग्रथनविकल्प (माला गूथना)
15.                        शेखरकापीड़ योजन (स्त्रियों की चोटी पर पहनने के विविध अलंकारों के रूप में पुष्पों को गूथना)
16.                        नेपथ्यप्रयोग (शरीर को वस्त्र, आभूषण, पुष्प आदि से सुसज्जित करना)
17.                        कर्णपत्रभंग (शंख, हाथी दांत आदि के अनेक तरह के कान के आभूषण बनाना)
18.                        गंधयुक्ति (सुगंधित धूप बनाना)
19.                        भूषणयोजन
20.                        इंद्रजाल (जादू के खेल)
21.                        कौचुमार योग (बल या वीर्य बढ़ाने वाली औषधियां बनाना)
22.                        हस्तलाघव (हाथों के काम करने में फुर्ती और सफाई)
23.                        विचित्रशाकयूषभक्ष्यविकार क्रिया (तरह-तरह के शाक, कढ़ी, रस, मिठाई आदि बनाने की क्रिया)
24.                        पानकरसरागासव योजन (विविध प्रकार के शरबत, आसव आदि बनाना)
25.                        सूचीवानकर्म (सुई का काम, जैसे - सीना, रफ्फू करना, कसीदा काढ़ना, मौजे, गंजी का बुनना)
26.                        सूत्रकीड़ा (धागे या डोरियों से खेलना, जैसे कठपुतली का खेल)
27.                        वीणाडमरुकवाद्य
28.                        प्रहेलिका (पहेलियां जानना)
29.                        प्रतिमाला (श्लोक आदि कविता पढ़ने की मनोरंजक रीति, अंताक्षरी)
30.                        दुर्वाचक योग (ऐसे श्लोक आदि पढ़ना जिनका अर्थ तथा उच्चारण दोनों कठिन हो)
31.                        पुस्तक वाचन
32.                        नाटकाख्यायिका दर्शन
33.                        काव्यसमस्या-पूरण
34.                        पट्टिकावेत्रवानविकल्प (पीढ़ा, आसन, कुर्सी, पलंग, मोढ़ा आदि चीजें बेंत वगैरे वस्तुओं से बनाना)
35.                        तक्षकर्म (लकड़ी, धातु आदि वस्तुओं को अभीष्ट विभिन्न आकारों में काटना)
36.                        तक्षण (बढ़ई का काम)
37.                        वास्तु विद्या
38.                        रूप्य रत्न परीक्षा (सिक्के, रत्न आदि को परीक्षित करना)
39.                        धातुवाद (पीतल आदि धातुओं को मिलाना, शुद्ध करना आदि)
40.                        मणिरागाकर ज्ञान (मणि आदि का रंगना, खान आदि के विषय का ज्ञान)
41.                        वृक्षायुर्वेदयोग
42.                        मेषकुक्कुटलावकयुद्ध विधि (मेंढ़े, मुर्गे, तीतर आदि को लड़ाना)
43.                        शुक सारिकाप्रलापन (तोते मैना आदि को बोली सिखाना)
44.                        उत्सादनसंवहन- केशमर्दन- कौशल (हाथ पैरों से शरीर दाबना, केशो का मिलना, उनका मैल दूर करना)
45.                        अक्षरमुष्टिका कथन (अक्षरों को ऐसी युक्ति से कहना कि उस संकेत का जानने वाला ही उनका अर्थ समझे, दूसरा नहीं)
46.                        म्लेच्छितविकल्प (ऐसे संकेत से लिखना जिसे उस संकेत को जानने वाला ही समझे)
47.                        देश भाषा विज्ञान
48.                        पुष्पशकटीका
49.                        निमित्तज्ञान (शकुन जानना)
50.                        यंत्रमातृका (विविध प्रकार के मशीन, कल-पुर्जे आदि बनाना)
51.                        धारणमातृका (सुनी हुई बातों का स्मरण रखना)
52.                        संपाद्य
53.                        मानसी काव्य क्रिया (किसी श्लोक में छोड़े हुए पद को मन से पूरा करना)
54.                        अभिधान कोष
55.                        छंदोंज्ञान
56.                        क्रियाकल्प (काव्यालंकारों का ज्ञान)
57.                        छलितक योग (रूप और बोली छिपाना)
58.                        वस्त्रगोपन (शरीर के अंगों को छोटे या बड़े वस्त्रों से यथा योग्य ढकना)
59.                        द्युतविशेष
60.                        आकर्षक्रीड़ा (पासों से खेलना)
61.                        बालकृड़नक
62.                        वैनयिकी विद्या (अपने और पराए से विनय पूर्वक शिष्टाचार करना)
63.                        वैजयिकीविद्या (विजय प्राप्त करने की विद्या अर्थात शस्त्र विद्या) तथा
64.                        व्यायाम विद्या।




संदर्भ ग्रंथ – 
उपाध्याय, आचार्य बलवीर (1953) : आर्य संस्कृति, शारदा मंदिर प्रकाशन, बनारस, पृष्ठ सं. 115-117

Tuesday 6 August 2019

खुशी की आड़ में स्त्रियों की इज्जत पर हमले क्यों?


जम्मू कश्मीर और लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेश बनने की खुशी में एक गोबर्बुद्धि चहक चहक कर बोल रहा था
"अब तो कश्मीर में अपना भी ससुराल होगा।"
मैंने पूछा - "क्या बात कर रहे हो? यानि अब कश्मीरी युवक तुम्हारे बहनोई बन सकेंगे"???
ऐसे मुझे घूर कर देखा कि क्या बताऊँ ...
गाली देना तो चाहा लेकिन कुछ बोला नहीं पाया, क्योंकि उसकी अक्ल ठिकाने आ चुकी थी।
********************************
दरअसल उमंग का ठिकाना नहीं होता जब हम किसी को जबरन अपना शत्रु मान उसकी बहु/बेटियों की इज्जत को इज्जत नहीं बल्कि हलवा समझ लेते हैं। लेकिन जब बात खुद के बहु, बेटी की आती है तो खून खौल उठता है। दूसरे की बहु, बेटियों को मौज की चीज समझनेवालों कभी खुद को उस बहु/बेटी के भाई, पिता की जगह रख कर देखिये औकात पता चल जाएगा।
जिस स्त्री की इज्जत को आप, हम और हमारा समाज अपने इज्जत के साथ जोड़कर देखता है उसकी इज्जत कीजिये। कुछ भी बोलने से पहले थोड़ा दिमाग लगाया कीजिये कि आप क्या बोल रहे हैं? जश्न में अपनी खुशी का इजहार कीजिये किसी की इज्जत मत उछालिए।

Monday 17 June 2019

हिंदू धर्म में भी है शौच से शुद्धि के कड़े विधान

शौच को सामान्यतः विश्व के सभी धर्मों में व्यक्ति को कुछ क्षणों के लिए अपवित्र करने का कारक माना गया है। कुछ धर्म संप्रदाय इसे प्रतिदिन की लगातार कुछ समय अंतराल पर चलने के क्रिया मानते हुए इससे शुद्ध होने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं बनाया बल्कि समान्यतः पानी और मिट्टी का प्रयोग कर हाथ धोकर या स्नान कर किसी धार्मिक कार्य के लिए पुनः शुद्ध हुआ जा सकता है। लेकिन कुछ ऐसे धर्म-संप्रदाय हैं जो शौच के बाद शुद्धता को लेकर काफी जटिल नियम रखते हैं। उदाहरण के लिए यदि हम इस्लामिक धर्मावलंबियों को यदि देखें तो शौच अशुद्धता का काफी ख्याल रखते हुए उन्हें देखा जा सकता है। जैसे खड़े होकर पेशाब नहीं करना (ताकि पेशाब के छींटे पहने हुए कपड़े पर न पड़े)। पेशाब करने के बाद पानी या मिट्टी से हाथ, लिंग धोना। हालांकि कितनी मुस्लिम जनसंख्या इस नियम का पालन करती है? क्या अशराफ़ के साथ-साथ अजलाफ़ या पस्मान्दा मुस्लिमों के बीच यही नियम प्रचलित है या श्रेणी अनुसार कुछ कम ज्यादा है? यह शोध का विषय हो सकता है। 
          यहाँ मामला यह है कि इस्लामिक धर्मावलंबियों के शौच संबंधी इन कड़े नियमों को मानने की परंपरा पर हम (हिंदू सहित अन्य धर्मावलंबी) अप्रत्यक्ष रूप से कितना हंसते हैं? हिंदुत्व के अज्ञानी मूढ़ ठेकेदारों को अक्सर इस बात के लिए मज़ाक बनाते देखा जा सकता है। जाहिल से लेकर और क्या-क्या नहीं बोलते। (ऐसा समझना एक मानवीय प्रक्रिया है जो स्वाभाविक है। हो सकता है मुस्लिम धर्मावलंबियों को किसी हिंदू परंपरा पर भी हंसी आती होगी)
          जबकि इसके समान ही या कहें कि इससे भी कठोर शौच विधि हमारे हिंदू धर्म में भी है। लेकिन कितनों को पता है? पौराणिक ग्रन्थों में इन कठोर नियमों का उल्लेख मिलता है। अग्नि पुराण के अध्याय 156, श्लोक संख्या 14 के अनुसार एक गृहस्थ को शौच के बाद 5 बार अपने गुदा में, 10 बार बाएं हाथ मेंफिर 7 बार दोनों हाथ मेंएक बार लिंग मेंतथा पुनः दो तीन बार हाथों में मिट्टी लगा कर धोना चाहिए। ब्रह्मचारीवानप्रस्थी सन्यासियों के लिए यह शौच का विधान सीधे 4 गुना रखा गया है। 
            दोनों धर्मावलम्बियों के शौच नियमों में अंतर बस इतना है कि उन्हें कुरान या अन्यत्र वर्णित इन सभी विधि विधान को देखने पढ़ने का मौका मिलाइसलिए उनके बीच यह रिवाज आज भी प्रचलन में है। इसके विपरीत शायद ही कुछ हिंदू धर्मावलंबी लोग होंगे जो अग्नि पुराण पढ़ा होअधिकांश तो इनके नाम से भी वाकिफ नहीं होंगे। कुछ हिंदू धर्म गुरुओं को भी शायद शौच संबंधी ये नियम पता हों तो भी वे इसका पालन नहीं कर पाते होंगे। यदि पढ़े होते तो यकीनन उनके इस रिवाज का मज़ाक बनाने की हिम्मत नहीं कर पाते।
          खैर जहां तक मैं मानता हूँ आज के समय में कोई जरूरत नहीं इन ढकोसलों को मानने की। छोटे वाले शौच के बाद पानी, बड़े वाले शौच के बाद मिट्टी/राख़/डेटोल प्रयोग कीजिये और अपने काम में लगे रहिए।      

Sunday 16 June 2019

क्या छठ पूजा गलत तिथि को मनाया जाता रहा है?


पौराणिक ग्रंथ अग्नि पुराण के 33वें अध्याय के अनुसार किसी मांग की द्वितीय तिथि लक्ष्मी की उपासना के लिए पवित्र दिन होता है। इसी प्रकार गौरी उपासना के लिए तृतीया, गणेश के लिए चतुर्थी, सरस्वती तथा नाग देवताओं के लिए पंचमी, स्वामी कार्तिकेय के लिए षष्ठी, सूर्य के लिए सप्तमी, मातृदेवियों के लिए अष्टमी, दुर्गा के लिए नवमी, नाग या यमराज के लिए दसमी, विष्णु के लिए एकादशी, श्रीहरि के लिए द्वादशी, कामदेव के लिए त्रयोदशी, शिव के लिए चतुर्दशी, ब्रह्मा की उपासना के लिए पूर्णिमा तथा अमावस्या पवित्र तिथि हैं।[i]

          इस आधार पर यदि बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में कार्तिक मास में षष्ठी व्रत या पूजा, जैसे सूर्य उपासना के 4 दिवसीय त्योहार के रूप में मनाया जाता है को देखें तो या तो ऐसा प्रतीत होता है कि षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाला यह त्योहार इस तिथि को मनाना गलत है, क्योंकि नियमानुसार सूर्य उपासना की तिथि सप्तमी है, जबकि षष्ठी तिथि का संबंध कार्तिकेय की उपासना से है।
           यदि इस त्यौहार को सूर्य उपासना के रूप में मनाया जाता है तो इसे षष्ठी नहीं बल्कि सप्तमी तिथि को मनाया जाना चाहिए।


[i] अग्नि पुराण, अध्याय 33, श्लोक सं. 1-3