Monday 17 June 2019

हिंदू धर्म में भी है शौच से शुद्धि के कड़े विधान

शौच को सामान्यतः विश्व के सभी धर्मों में व्यक्ति को कुछ क्षणों के लिए अपवित्र करने का कारक माना गया है। कुछ धर्म संप्रदाय इसे प्रतिदिन की लगातार कुछ समय अंतराल पर चलने के क्रिया मानते हुए इससे शुद्ध होने के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं बनाया बल्कि समान्यतः पानी और मिट्टी का प्रयोग कर हाथ धोकर या स्नान कर किसी धार्मिक कार्य के लिए पुनः शुद्ध हुआ जा सकता है। लेकिन कुछ ऐसे धर्म-संप्रदाय हैं जो शौच के बाद शुद्धता को लेकर काफी जटिल नियम रखते हैं। उदाहरण के लिए यदि हम इस्लामिक धर्मावलंबियों को यदि देखें तो शौच अशुद्धता का काफी ख्याल रखते हुए उन्हें देखा जा सकता है। जैसे खड़े होकर पेशाब नहीं करना (ताकि पेशाब के छींटे पहने हुए कपड़े पर न पड़े)। पेशाब करने के बाद पानी या मिट्टी से हाथ, लिंग धोना। हालांकि कितनी मुस्लिम जनसंख्या इस नियम का पालन करती है? क्या अशराफ़ के साथ-साथ अजलाफ़ या पस्मान्दा मुस्लिमों के बीच यही नियम प्रचलित है या श्रेणी अनुसार कुछ कम ज्यादा है? यह शोध का विषय हो सकता है। 
          यहाँ मामला यह है कि इस्लामिक धर्मावलंबियों के शौच संबंधी इन कड़े नियमों को मानने की परंपरा पर हम (हिंदू सहित अन्य धर्मावलंबी) अप्रत्यक्ष रूप से कितना हंसते हैं? हिंदुत्व के अज्ञानी मूढ़ ठेकेदारों को अक्सर इस बात के लिए मज़ाक बनाते देखा जा सकता है। जाहिल से लेकर और क्या-क्या नहीं बोलते। (ऐसा समझना एक मानवीय प्रक्रिया है जो स्वाभाविक है। हो सकता है मुस्लिम धर्मावलंबियों को किसी हिंदू परंपरा पर भी हंसी आती होगी)
          जबकि इसके समान ही या कहें कि इससे भी कठोर शौच विधि हमारे हिंदू धर्म में भी है। लेकिन कितनों को पता है? पौराणिक ग्रन्थों में इन कठोर नियमों का उल्लेख मिलता है। अग्नि पुराण के अध्याय 156, श्लोक संख्या 14 के अनुसार एक गृहस्थ को शौच के बाद 5 बार अपने गुदा में, 10 बार बाएं हाथ मेंफिर 7 बार दोनों हाथ मेंएक बार लिंग मेंतथा पुनः दो तीन बार हाथों में मिट्टी लगा कर धोना चाहिए। ब्रह्मचारीवानप्रस्थी सन्यासियों के लिए यह शौच का विधान सीधे 4 गुना रखा गया है। 
            दोनों धर्मावलम्बियों के शौच नियमों में अंतर बस इतना है कि उन्हें कुरान या अन्यत्र वर्णित इन सभी विधि विधान को देखने पढ़ने का मौका मिलाइसलिए उनके बीच यह रिवाज आज भी प्रचलन में है। इसके विपरीत शायद ही कुछ हिंदू धर्मावलंबी लोग होंगे जो अग्नि पुराण पढ़ा होअधिकांश तो इनके नाम से भी वाकिफ नहीं होंगे। कुछ हिंदू धर्म गुरुओं को भी शायद शौच संबंधी ये नियम पता हों तो भी वे इसका पालन नहीं कर पाते होंगे। यदि पढ़े होते तो यकीनन उनके इस रिवाज का मज़ाक बनाने की हिम्मत नहीं कर पाते।
          खैर जहां तक मैं मानता हूँ आज के समय में कोई जरूरत नहीं इन ढकोसलों को मानने की। छोटे वाले शौच के बाद पानी, बड़े वाले शौच के बाद मिट्टी/राख़/डेटोल प्रयोग कीजिये और अपने काम में लगे रहिए।      

Sunday 16 June 2019

क्या छठ पूजा गलत तिथि को मनाया जाता रहा है?


पौराणिक ग्रंथ अग्नि पुराण के 33वें अध्याय के अनुसार किसी मांग की द्वितीय तिथि लक्ष्मी की उपासना के लिए पवित्र दिन होता है। इसी प्रकार गौरी उपासना के लिए तृतीया, गणेश के लिए चतुर्थी, सरस्वती तथा नाग देवताओं के लिए पंचमी, स्वामी कार्तिकेय के लिए षष्ठी, सूर्य के लिए सप्तमी, मातृदेवियों के लिए अष्टमी, दुर्गा के लिए नवमी, नाग या यमराज के लिए दसमी, विष्णु के लिए एकादशी, श्रीहरि के लिए द्वादशी, कामदेव के लिए त्रयोदशी, शिव के लिए चतुर्दशी, ब्रह्मा की उपासना के लिए पूर्णिमा तथा अमावस्या पवित्र तिथि हैं।[i]

          इस आधार पर यदि बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में कार्तिक मास में षष्ठी व्रत या पूजा, जैसे सूर्य उपासना के 4 दिवसीय त्योहार के रूप में मनाया जाता है को देखें तो या तो ऐसा प्रतीत होता है कि षष्ठी तिथि को मनाए जाने वाला यह त्योहार इस तिथि को मनाना गलत है, क्योंकि नियमानुसार सूर्य उपासना की तिथि सप्तमी है, जबकि षष्ठी तिथि का संबंध कार्तिकेय की उपासना से है।
           यदि इस त्यौहार को सूर्य उपासना के रूप में मनाया जाता है तो इसे षष्ठी नहीं बल्कि सप्तमी तिथि को मनाया जाना चाहिए।


[i] अग्नि पुराण, अध्याय 33, श्लोक सं. 1-3