Tuesday 9 October 2018

गुजराती व हिंदी भाषियों के बीच तनाव


बिहार के एक मजदूर ने अपने lust के वशीभूत होकर गुजरात में ठाकोर जाति के एक 14 महीने की बच्‍ची से बलात्कार किया। कोई शक नहीं कि बहुत ही घटिया व जघन्य अपराध किया उसने। मुझे कोई हमदर्दी नहीं उस बलात्कार के आरोपी से। बहुत ही कठोर सजा में हम भी मांग करते हैं, और वैसे भी पोक्सो एक्ट के तहत उसे फांसी की सज़ा होनी ही है।

लेकिन इस एक मजदूर की गलती की सज़ा करोड़ों कामगारों को देना किसी भी दृष्टि से जायज नहीं है। उस एक मजदूर के आधार पर आप लाखों, करोड़ों को जज नहीं कर सकते। आपके इस स्टैंड के आधार पर सोचें तो पिछले कुछ वर्षों से मोदी टाइटल के आधे दर्जन गुजरातियों के भ्रष्टाचार के मामले जिस तरह सामने आए हैं, उस हिसाब से तो पूरा गुजराती समाज भ्रष्टाचारी साबित हो जाता है। ऐसी स्थिति में यदि देश के सभी क्षेत्रों से गुजरातियों को भ्रष्टाचारी का ठप्पा लगा समस्त उद्यमों से निकाल दिया जाए तो आपको या किसी भी गुजराती भाई को भी ये ज्यादती लगेगी। फिर आप भी मेरी ही दलील देंगे कि कुछेक के आधार पर...

सर्वविदित है कि बलात्कार एक जघन्य अपराध है। लेकिन इसपर केवल प्रवासी मजदूरों का पेटेंट नहीं है। इन प्रवासि मजदूरों पर उंगली उठाने से पहले कभी अपने गिरेबां में भी झांक लीजिये। आत्म ग्लानि होने लगेगी। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2015 में गुजरात में दर्ज मामलों में 99.4% पीड़िता के सगे संबंधी ही निकले। यानि आपके अपने ही सगे, संबंधी लोग आपके बहु बेटियों से बलात्कार करते रहे उस समय आपके मुंह से इनका विरोध करने की एक आवाज़ नहीं निकली। गज़ब ...

यदि बलात्कारी होने की सज़ा किसी को खदेड़ना है तो इनसे पहले आपको अपने गुजराती बलात्कारी सगे संबंधियों को पहले खदेडिये क्योंकि 2 वर्ष पहले वे इस जघन्य अपराध को अंजाम दे चुके हैं। नहीं तो ये राष्ट्रीय एकता खंडित करने वाली गृहयुद्ध को बढ़ावा देने वाली पॉलिटिक्स बंद कीजिए। बाला साहेब ठाकरे, राज ठाकरे बनना बंद कीजिए।

ये मत भूलिए कि आज यदि आपका state इतना विकसित है तो इसमें आपसे भी ज्यादा इन प्रवासी मजदूरों के खून पसीने का योगदान है। गुजरात जितना आपका है उतना ही इनका भी। ये अमन पसंद मजदूर हैं, इन्हें केवल आजीविका कमाने से लेना देना होता है। ओवर ड्यूटी से इन्हें फुरसत कहाँ जो राह चलते किसी का बलात्कार या छेड़छाड़ को अंजाम दें।

बाकी जिस सत्तारूढ़ सरकार से आपको शह मिल रही है आपकी विरोधी होने के बाद भी वह केवल आपको अप्रत्यक्ष रूप से इसलिए सपोर्ट कर रही है ताकि मीडिया का ध्यान राफेल सौदे से इधर आ सके।


Tuesday 2 October 2018

निजी कंपनियां देश की संपत्ति कर रही बर्बाद

जरा सोचिये

एक सरकार अरबों रुपये खर्च कर कोई जनोपयोगी योजना शुरू करती है। योजना की शुरुआत करने में करोड़ों रुपयों की हेराफेरी की बात से इनकार नहीं किया जा सकता।

लेकिन सत्ता बदलते ही दूसरी सरकार एक साजिश कर निजी स्वार्थ के लिए उस जनोपयोगी योजना को बंद करवा देती है, उसके जगह पर कुछ और योजना लाने, लागू करने की जुगत लगाती है ताकि इसी बहाने वह भी करोड़ों की राशि का गबन कर सके।

या

निजी एम्बुलेंस सेवा देने वाले लोगों के इशारों पर जान बूझ कर इन सेवाओं को बंद करवाया जाता है। और सत्ता में बैठे लोग अपने कमीशन की उगाही इन निजी एम्बुलेंस कंपनियों से की जाती है।

हर तरफ से नुकसान केवल देश की जनता का होता है। हम जनता को इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाने की आवश्यकता है नहीं तो ये भ्रष्ट नेता लोग पूंजीपतियों के साथ मिलकर एकदिन हमारी आपकी लंगोटी भी खींच ले जाएगी।


किसानों पर बर्बर पुलिस कार्रवाई निंदनीय।


हम इस मुगालता में जीते हैं कि पुलिस, सेना हमारी रक्षा के लिए होते हैं। वास्तविकता यह है कि ये Real life कटप्पा हैं। सत्ता यदि बोल दे कि किसान हमारी सत्ता के लिए खतरा हैं तो उन्हें अपने अधिकार, सुविधा की मांग कर रहे निहत्थे निर्दोष किसानों को लाठीचार्ज, आंसूगैस के गोले फायर कर रौंदते देर नहीं लगती। जैसा आज 23 सितंबर 2018 को अपनी मांग के लिए हरिद्वार से चलकर दिल्ली आए किसानों के साथ हुआ। इन्हें दिल्ली में घुसने तक नहीं दिया गया।

अब सत्ता के दलाल दलील देंगे कि उन्हें बैरिकेट तोड़ने, कानून हाथ में लेने की क्या जरूरत थी ???
लेकिन इसका जवाब देने में उनके मुंह में दही जम जाएगा कि आखिर पिछले 4 वर्षों के दौरान सरकार इनको वे सुविधाएं क्यों नहीं दे रही जिससे ये किसान आंदोलन करने को मजबूर हो रहे हैं। आखिर इन किसानों का कसूर क्या था जो दिल्ली की सीमा में इन्हें घुसने नहीं दिया गया? लोकतंत्र में हर किसी को अपनी मांग के लिए विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार प्रत्येक नागरिक को है। सोचने वाली बात है कि आखिर क्या कारण है जो लगातार ये किसान सैकड़ों हज़ारों किलोमीटर कष्टदायक यात्रा कर आपके संसद द्वार तक आते हैं, अपनी मांगों से अवगत कराने के लिए आपसे मिलने की गुहार लगाते हैं, आपका ध्यान आकर्षित करने के लिए मरे चूहे, कच्चे मांस खाते हैं, मानव मूत्र से लेकर वृष्टा तक खाते हैं। आंदोलन की असफलता में फिर से नया आंदोलन खड़ा करते हैं। बावजूद इसके आप इतने निर्दयी बने बैठे हैं कि आपके कान पर जूं तक नहीं रेंगता।

आखिर पिछली सरकार से इनकी इच्छाएं पूर्ण नहीं हुई तभी तो मजबूर होकर अपनी मांग पूरी करने के लिए आपको मौका दिया। लेकिन सत्ता में आकर अब आप भी वही काम कर रहे हैं। तो फिर पिछली सरकार में और आपमें क्या अंतर है???? दोनों तो एक ही थाली के चट्टे बट्टे साबित हो रहे हैं।

इसमें कोई हैरत की बात नहीं होगी जो सत्ता के दलाल, गोबरबुद्धि लोग इन किसानों को किसी पार्टी, विचारधारा से जोड़ते हुए इन्हें कांग्रेसी, वामपंथी, माओवादी समर्थक और न जाने क्या क्या साबित कर देंगे।