Wednesday 16 October 2019

मुर्शिदाबाद घटना को सांप्रदायिक रंग देने की नाकाम कोशिश


सांप्रदायिक बयानबाजी कर देश को हिंसा की आग में झोंक देने वाले, मोब लिंचिंग जैसी घटनाओं के रोकथाम के लिए बुद्धिजीवियों द्वारा प्रधानमंत्री को खत लिखने से नाराज गोबरबुद्धि लोगों के अंदर अचानक एक घटना ने इंसानियत जागा दिया। यह घटना थी मुर्शिदाबाद में एक कथित आरएसएस कार्यकर्ता की पत्नी व पुत्र सहित हत्या। इंसानियत जागा तो जागा उन लोगों को भी यह लोग कोसने लगे जिन्होंने मॉब लिंचिंग जैसी घटना को रोकने मैं नाकाम मोदी सरकार का ध्यान इस और दिलाने के लिए खत लिखा, यह कहते हुए कि अब कहां मर गए मॉब लिंचिंग पर हंगामा करने वाले लोग। दरअसल इन लोगों का खून उबाल इसलिए नहीं मार रहा था कि पश्चिम बंगाल में एक ही परिवार के तीन लोगों की नृशंश हत्या हुई है बल्कि इसके पीछे कारण एक अफवाह था, वह अफवाह पूरे तीन-चार दिनों तक व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल होता रहा। इस अफवाह के अनुसार मुर्शिदाबाद के कुछ मुसलमानों ने इस कथित आरएसएस कार्यकर्ता की हत्या की। कई पोस्ट में तो कुछ मुस्लिम युवकों के नाम तक लिखें देखने को मिले। तीन-चार दिनों के बाद ही यह साफ हो पाया कि इस हत्याकांड के पीछे कौन लोग जिम्मेदार हैं तथा क्या कारण था? और जब से इस हत्याकांड के कारण का पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा पर्दाफाश हुआ इन गोबरबुद्धियों के जुबान से लेकर लेखनी पर ताला लग गया। वह तो लगना ही था क्योंकि इस झूठ को फैलाने का उनका उद्देश्य कुछ और ही था। यकीन मानिए अगले वर्ष तक यदि पश्चिम बंगाल में चुनाव होता तो आज तक मामला कुछ और ही होता। ये तो भला हो पश्चिम बंगाल पुलिस का जिसने इतनी जल्दी से घटना के कारणों का खुलासा कर दिया अन्यथा सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहे झूठ देश के कोने कोने में किस तरह आग लगा सकते थे, मुझे लगता है यह बताने की जरूरत नहीं है।

Friday 11 October 2019

सोसल मीडिया के छद्मी इतिहासकार वर्ग


सोशल मीडिया के इस स्वर्णिम दौर में हमारे देश में ऐसे-ऐसे तथाकथित इतिहासकार दिन दूनी रात चौगुनी रूप से अस्तित्व में आ रहे हैं जो यह मानते हैं कि भारतीय इतिहास श्री परशुराम, श्री राम, श्री कृष्ण, गुरु गोविंद सिंह, राजा पोरस, विक्रमादित्य, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य, आचार्य चाणक्य, राजा भोज, पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, शिवाजी, राजा सूरजमल, राव तुलाराम यादव, राजा छत्रसाल बुंदेला, वीर अहीर देवायत बोदार, पेशवा बाजीराव, भील राणा पूंजा, रानी लक्ष्मीबाई, बंदा सिंह बहादुर, भगत सिंह आदि से ही निर्मित है। 

इनका नाम लेते-लेते वे यह भी भूल जाते हैं कि भारतीय इतिहास इनके साथ-साथ शक, यवन, कुषाण, चोल, चेर, पाण्ड्य, सातवाहन, पाल, प्रतिहार, राष्ट्रकूट, मौखरी, सल्तनतकालीन अफगान शासकों, विजयनगर, बहमनी के साथ-साथ मुगलकालीन तुर्क शासकों आदि सहित ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल, वायसराय आदि से भी निर्मित है। हद तो इस बात की है कि जिन आदिवासियों को यह हिंदू समाज का हिस्सा बताते हैं, उस समुदाय के, कुछ भी राजाओं को छोड़कर अन्य किसी का नाम नहीं लेते। बिरसा मुंडा, तिलका मांझी, सिद्धू कान्हू जैसे नामी-गिरामी सहित हजारों- लाखों ने जितनी शिद्दत से ब्रिटिश शासकों के अमानवीय नीतियों का विरोध करते हुए, उन्हें नाकों चने चबवा दिए, यह सभी उनके भारतीय इतिहास निर्माताओं में शामिल नहीं हैं। इनके योगदानों को कोई इतिहासकार भी नकार नहीं सकता। इनके द्वारा चिन्हित भारतीय इतिहास के महानायकों में शायद ही कोई तथाकथित अस्पृश्य वर्ग से कोई मिले।
          दरअसल इतिहास के साथ ऐसे छेड़छाड़ करने का इनका उद्देश्य केवल मुसलमानों तथा वामपंथी विचारधारा के लेखकों को नीचा दिखाना। इनको यह लगता है कि केवल वामपंथी लेखक ही हैं जो भारतीय इतिहास में मुसलमानों, ईसाइयों को सम्मिलित करने का काम करते हैं। लेकिन इन्हें यह नहीं पता कि मार्क्सवादी इतिहास लेखन को छोड़ दिया जाए तो इतिहास लेखन की अन्य धाराओं जैसे प्राच्यवादी, साम्राज्यवादी, राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने, और वर्तमान में सांप्रदायिक इतिहास लेखन करने वाले इतिहासकार भी उपरोक्त वर्णित सभी राजवंशों, शासकों आदि का उल्लेख करते हैं।
          सच तो यह है कि इन सोशल मीडिया पर जागृत इन छद्म इतिहासकारों का इतिहास तो छोड़िए, अध्ययन से भी कोई लेना देना नहीं होता। इनका काम केवल इस तरह के फालतू के विमर्श को बढ़ावा देते हुए हिंदू मुसलमान, हिंदू ईसाई, स्वर्ण-दलित, के बीच की लड़ाई को सुलगाते रहना है। कोई बात नहीं आप यह सांप्रदायिक आग सुलगाते रहो, हमलोग आपको बेनकाब कर आपका मुंह काला करते रहेंगे।