Tuesday 3 July 2018

हिंदी/हिंदी पत्रकारिता के विकास में सरस्वती पत्रिका का योगदान

एक सर्वविदित तथ्य है कि किसी भी भाषा को समृद्ध करने में उस भाषा की साहित्यिक विधाएँ अर्थात उस भाषा में लिखित कविता, कहानी, निबंध, यात्रा संस्मरण आदि महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्राचीन काल से लेकर बीसवीं सदी तक इन विधाओं ने संस्कृत, फारसी भाषी साहित्य को समृद्ध करने का कार्य किया। पत्रकारिता क्षेत्र के दिनों दिन बढ़ती लोकप्रियता, या यूं कहें कि दिन-प्रतिदिन की खबरों को अपनी भाषा में जानने की लोगों की उत्सुकता ने अनेक क्षेत्रीय भाषाओं को समृद्ध करने का कार्य किया। हिंदी को भी क्षेत्रीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक लाने में पत्रकारिता व उसके प्रमुख स्तंभों की काफी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ब्रिटिश काल से शुरू हुई पत्रकारिता के साथ-साथ हिंदी भाषा को राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने में 'सरस्वती पत्रिका' का विशेष योगदान रहा है। सरस्वती पत्रिका के योगदान पर नज़र डालने से पूर्व एक संक्षिप्त नज़र औपनिवेशिक काल में पत्रकारिता एवं हिंदी पत्रकारिता के उद्भव, विकास व स्थिति पर डालना आवश्यक है ताकि इसके योगदान का थोड़ा तुलनात्मक अध्ययन भी किया जा सके।

पत्रकारिता का एक संक्षिप्त इतिहास

          वैश्विक जगत में पत्रकारिता की शुरुआत 131 ई. पूर्व रोम से मानी जाती है। वैश्विक जगत में पत्रकारिता की शुरुआत 131 ई. पूर्व रोम से मानी जाती है। इस दैनिक समाचार पत्र का नाम था - Acta Dieurna. इसका हिंदी अर्थ है - दिन की घटनाएं। वास्तव में यह पत्थर या धातु की पट्टी होता था जिस पर प्रतिदिन के समाचार अंकित किए जाते थे। ये पट्टियाँ रोम के प्रमुख स्थानों पर रखी जाती थी, इनमें वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति, नागरिकों की सभाओं के निर्णय, लड़ाइयों के निर्णय मुख्यतः अंकित किए जाते थे।[i] मध्यकाल में भी यूरोप के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में पत्रकारिता उद्देश्यों की पूर्ति के लिए 'सूचना पत्र' निकाले जाने का उल्लेख मिलता है। सूचना पत्र में कारोबार, क्रय-विक्रय, मुद्रा के उतार-चढ़ाव संबंधी सूचनाएं हाथ से लिखे जाते थे।

          इसी क्रम में 16 वीं शताब्दी के अंत में यूरोप के शहर स्ट्रॉसबर्ग के एक व्यापारी ने धनवान ग्राहकों के लिए सूचना पत्र हाथ से लिखवा कर प्रकाशित करने का काम शुरू किया। चूंकि हाथ से लिखने का काम काफी महंगा और धीमा होता था, ऐसे में 1605 ईसवी में उसने छापे की मशीन खरीद कर (इसका आविष्कार 15 वीं शताब्दी के मध्य में योहन गुटनबर्ग द्वारा किया जा चुका था) समाचार पत्र छापने लगा। इस समाचार पत्र का उसने नाम दिया - रिलेशन। इसे विश्व का सबसे पहला मुद्रित अखबार माना जाता है। इस छापे की मशीन के अविष्कार ने पत्रकारिता को मोड़ देने का कार्य किया। भारत में भी इसका प्रभाव दिखा। भारत का पहला अखबार 1776 ईस्वी में प्रकाशित हुआ। ईस्ट इंडिया कंपनी का भूतपूर्व अधिकारी विलियम बोल्ट के पास इसके प्रकाशन का जिम्मा था। ईस्ट इंडिया कंपनी एवं सरकार से संबंधित समाचार को यह समाचार पत्र प्रसारित करता था। जेम्स ऑगस्टस हिक्की के समय से पत्रकारिता का एक अलग ही रूप देखने को मिलता है। जेम्स हिकी के काल से समाचार पत्र में स्वतंत्र अभिव्यक्ति का समावेश देखने को मिलता है। इससे पूर्व यह सरकार की गतिविधियों की सूचना देने भर तक सीमित था। या यों कहें कि सत्तारूढ़ सरकार के मुखपत्र होते थे।

          ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी गेम्स ऑगस्टस हिक्की ने 1780 ईस्वी में 'बंगाल गजट' नाम से अखबार प्रकाशन शुरू किया। इसके प्रकाशन के साथ ही भारत में पत्रकारिता की शुरुआत होती है।

हिंदी पत्रकारिता का संक्षिप्त इतिहास  

हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत 30 मई 1826 ई. से होती है जब युगल किशोर शुक्ल, जो हिंदी भाषी क्षेत्र कानपुर के रहने वाले थे और वकालत करने कलकत्ता (वर्त-;मान कोलकाता) में रहते थे, के सम्पादन में कोलकाता से हिंदी का प्रथम समाचार-पत्र उदन्त मार्तंड का प्रकाशन शुरू हुआ।[ii] यह एक साप्ताहिक अखबार था जिसमें विभिन्न नगरों की सरकारी गतिविधियों के साथ-साथ वैज्ञानिक खोजों से संबंधित समाचार प्रकाशित होते थे। चूंकि यह एक गैर हिंदी प्रदेश से प्रकाशित होता था, जहां इसके पाठक कम संख्या में होते थे। अधिकांश पाठक हिंदी भाषी क्षेत्र के होते थे। उन तक भेजने के लिए डाक संचार एक प्रमुख साधन था, जो काफी खर्चीला था। तत्कालीन ईस्ट इंडिया कंपनी सरकार से डाक खर्च में मदद नहीं मिलने के कारण आर्थिक आभाव में डेढ़ वर्ष के दौरान कुल 79 अंक निकलने के पश्चात 4 दिसंबर 1827 को इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया।[iii] इसी समाचार पत्र प्रकाशन के लिए प्रत्येक वर्ष 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। उदन्त मार्तंड के पश्चात अनेक हिंदी पत्र-पत्रिकाएँ जैसे बंगदूत, बनारस अखबार, सुधाकर, बुद्धि प्रकाश, समाचार सुधावर्षण, पयामे आजादी, बाल बोधिनी, हरिश्चंद्र मैगजीन, हिंदोस्तान आदि निकाली गई। 1867 ई. में भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने प्रारंभ में मासिक, तथा बाद में साप्ताहिक प्रकृति की पत्रिका ‘कवि वचनसुधा’ निकाला जो प्रसिद्ध कवियों की कविताओं का प्रकाशन करती थी। इसके प्रकाशन के साथ ही हिंदी पत्रकारिता के नए युग का आरंभ माना जाता है। इसके कुछ वर्ष पश्चात 1873 ई. में भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी ने ही हिंदी की मासिक पत्रिका ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ निकाला जिसमें पुरातत्व, उपन्यास, कविता, आलोचना, ऐतिहासिक, राजनीतिक, साहित्यिक, दार्शनिक लेख-कहानियाँ तथा व्यंग्य प्रकाशित होते थे। तत्पश्चात 1874 ई. में उन्होंने (भारतेन्दु हरिश्चंद्र) महिलाओं के लिए मासिक पत्रिका ‘बाल-बोधिनी’ पत्रिका निकाला,  1877 ई. को बालकृष्ण भट्ट के संपादकत्व में प्रयाग से ‘हिंदी प्रदीप’ मासिक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इस पत्रिका ने हिंदी पत्रकारिता को एक नई दिशा प्रदान की। इसमें नाटक, साहित्य, इतिहास, दर्शन से संबन्धित खबरें रहती थी जो राष्ट्रीयता, निर्भीकता तथा तेजस्विता के स्वर से लैश होती थी। यही कारण है कि ब्रिटिश सरकार इसपर कड़ी नज़र रखती थी। कोलकाता से भारत मित्र (1878) हिंदी का पहला पत्र था जो हजारों की संख्या में छपता था। इनके अतिरिक्त सार सुधा निधि (1879), सज्जन किर्ति सुधाकर (1879), उचित वक्ता (1880), भारतीय जीवन (1884) आदि औपनिवेशिक काल में प्रकाशित होने वाली प्रमुख हिंदी भाषी पत्र पत्रिकाएँ थी।

          इसी क्रम में मदन मोहन मालवीय जी ने अपने सम्पादन में हिंदोस्तान (1885) निकला, जो हिंदी क्षेत्र से प्रकाशित होने वाला प्रथम सम्पूर्ण हिंदी दैनिक पत्र था। इसी क्रम में शुभचिंतक (1887), हिंदी बंगवासी(1896), साहित्य सुधानिधि(1893), नागरी प्रचारिणी पत्रिका (1896) प्रकाशित हुई। इन सभी पत्रिका का मुख्य उद्देश्य सामाजिक व जातीय उन्नयन के साथ-साथ अंग्रेजी के खिलाफ हिंदी भाषा का प्रचार करना था। क्योंकि 1867 ई. तक विदेशी (अंग्रेजी) शिक्षा के कारण परंपरागत विचारधारा लुप्त होती जा रही थी। इस तरह 1868 ई. से शुरू हुआ हिंदी पत्रकारिता का युग 1900 ई. तक अपने उद्देश्य प्राप्ति में लगा रहा। हिंदी पत्रकारिता का यह युग हिंदी गद्य निर्माण का युग माना जाता है। इस युग के पत्रों में राजनीति साहित्य, व्यंग्य, ललित निबंधों की संख्या अधिक रहती थी। इस युग को भारतेन्दु युग कहा जाता है।

हिंदी पत्रकारिता की इसी कड़ी में 1900 ई. में सरस्वती नामक हिन्दी पत्रिका का इलाहाबाद से प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में इसका नाम बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है। क्योंकि अपने प्रकाशन प्रारंभ होने से लेकर 1980 में बंद होने के 80 वर्षों के दौरान हिंदी भाषा को विस्तार देने में इस पत्रिका की महत्वपूर्ण भूमिका रही। यह अपने समय की सबसे युगांतकारी हिन्दी पत्रिका थी जो अपनी छपाई, सफाई, कागज तथा चित्रों के कारण शीघ्र ही काफी लोकप्रिय हुई। इलाहाबाद से प्रकाशित इस पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ में चिंतामणी घोष ने किया। प्रारंभ में इस पत्रिका को ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ का अनुमोदन प्राप्त था जो बाद में समाप्त हो गया। इसके संपादक मण्डल में बाबू राधाकृष्ण दास, बाबू कर्तिका प्रसाद खत्री, जगन्नाथदास रत्नाकर, किशोरिदास गोस्वामी तथा बाबू श्यामसुंदर दास थे। 1903 ई. में इसके सम्पादन का कार्यभार आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के जिम्मे आ गया। 1920 ई. तक वे इस पत्रिका के संपादक रहे। इस दौरान इलाहाबाद के अतिरिक्त झाँसी तथा कानपुर से भी इसका प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इस पत्रिका को प्रकाशित करने का मुख्य उद्देश्य हिंदी भाषी क्षेत्र में राष्ट्रीय व सांस्कृतिक जागरण करने के साथ-साथ हिंदी रसिकों के मनोरंजन व उनके हिंदी भाषा के सरस्वती भंडार की वृद्धि करना था। इसके पद्य, गद्य, नाटक, पत्र, हास्य, परिहास, कौतुक, पुरावृत्त, विज्ञान, शिल्पकला, सभी संपादक के व्यक्तित्व की घोषणा करते हैं। इस पत्र में साहित्य, पुरातत्व, चरित्र चर्चा, विज्ञान, आलोचना, विवेचन और प्रकीर्ण ये सात शीर्षक होते थे। पत्रिका की भाषा त्रुटिरहित तथा व्याकरणसम्मत होने के कारण इसे विशेषरूप से प्रसिद्धि मिली। जून 1980 ई. में निसीथ राय के सम्पादन के दौर में इसका प्रकाशन बंद हो गया।

          इस प्रकार 19वीं सदी में हिंदी पत्रकारिता का उद्भव व विकास विषम परिस्थितियों में हुआ। इस समय जो भी पत्र पत्रिकाएँ निकलती थी उनके सामने अनेक बाधाएँ आती। कुछ इस बाधा को पार कर जाती तो कुछ बंद हो जाती।

          18वीं शताब्दी में अपने शुरुआत से लेकर भारत की आजादी के पूर्व तक जहां हिंदी पत्रकारिता को बढ़ावा देने वाले गिने-चुने पत्र-पत्रिकाएँ हुआ करते थे, आजादी के बाद इनकी संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हुई। यही कारण है कि 1956 में इनकी संख्या बढ़कर लगभग 1000, तथा 1982-83 में 5000 हो गई। इन पत्रिकाओं के लगातार योगदान से ही आज हिंदी पत्रकारिता संस्था हिंदी भाषी राज्यों के अतिरिक्त लगभग प्रत्येक गैर हिंदी-भाषी राज्यों में सक्रिय है।