Saturday 28 September 2019

तीन शिक्षकों ने मिलकर बदल दी स्कूल की तस्वीर


ट्रेन के दरवाजे से झांकते यह बच्चे किसी रेलवे स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में नहीं, बल्कि अपने स्कूल में हैं। और यह स्कूल है छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिला स्थित नरी संकुल में। नरी संकुल के सिंघनपुरी ग्राम स्थित प्राथमिक शाला के 3 शिक्षकों ने अपनी मेहनत तथा निजी राशि से एक ऐसे कार्य को कर दिखाया है जिसकी प्रशंसा करते संकुल के शिक्षक थकते नहीं।
इन 3 शिक्षकों के नाम हैं - अनीश दास मानिकपुरी (प्रभारी प्रधान पाठक) अजय प्रताप सिंह भारद्वाज एवं देव कुमार ध्रुव। सिंघनपुरी ग्राम स्थित इस प्राथमिक शाला में कुल 78 बच्चे हैं।
          इन तीनों शिक्षकों की नियुक्ति एक साथ 2009 में हुई थी। तत्पश्चात इन तीनों शिक्षकों ने अपने स्कूल की स्थिति को सुधारने का बीड़ा उठाया। प्रभारी प्रधान पाठक अनीश दास मानिकपुरी जी के अनुसार कवर्धा स्थित उच्च प्राथमिक शाला कृतबांधा में कार्यरत एक शिक्षक खेमूराम मरकाम से उन्हें यह आइडिया प्राप्त हुआ जिन्होंने स्वयं अपने स्कूल को रेलगाड़ी के डिब्बे के रूप में सँवारने का कार्य किया। इन शिक्षकों ने अपने लगातार प्रयास से इसे पिछले वर्ष 2018 में रेलगाड़ी की प्रतिकृति के रूप में ला पाए। इससे पूर्व उन्होंने पिछले 8 वर्षों से शाला संबंधी अनेक मुद्दों पर कार्य किया। जैसे बच्चों को अनुशासित करना, अपने यूनिफॉर्म को साफ सुथरा कर सही तरीके से पहनना सिखाना, उनके शुद्ध शुद्ध पढ़ने लिखने पर काम करना, बच्चों को भयमुक्त वातावरण देते हुए उनमें अभिव्यक्ति क्षमता का विकास करना आदि। 
अपने शाला में इस तरह के बदलाव लाने में शाला के शाला प्रबंधन समिति, ग्रामीणों, संकुल समन्वयक, संकुल के कई शिक्षक आदि का भी पर्याप्त योगदान रहा, जिनसे आवश्यक मार्गदर्शन प्राप्त हुआ लेकिन सर्वाधिक योगदान स्वयं इन तीनों शिक्षकों (अनीश दास मानिकपुरी, अजय प्रताप सिंह भारद्वाज, देव कुमार ध्रुव) का रहा, जिन्होंने शाला को इस रूप में लाने के लिए अपनी मेहनत के साथ-साथ अपने हिस्से से निजी धन भी लगाए।
बच्चों के साथ प्रभारी प्रधान पाठक अनीश दास मानिकपुरी (मध्य)
देव कुमार ध्रुव (बाएँ) अजय प्रताप सिंह भारद्वाज (दाएँ) 


इस संदर्भ में बताते हुए प्रभारी प्रधान पाठक अनीश दास मानिकपुरी कहते हैं,
"हमारे पास आर्थिक संसाधन बहुत कम थे, जिसके लिए हम तीनों शिक्षक ने विचार किया कि क्यों न इस कार्य को हम स्वयं करें ताकि खर्च का दायरा सीमित हो जाए। इसके लिए मात्र एक श्रमिक रखा गया, जिसके साथ काम करते हुए हम तीनों ने पूरे शाला की पुताई में योगदान दिया”।
अपने शाला को इस रूप में लाने के बाद अब तीनों शिक्षक अपनी शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार लाने पर कार्य कर रहे हैं। इसके लिए न केवल अपनी शाला को प्रिंट रिच बना रहे हैं, संकुल के अन्य प्रतिभाशाली, अनुभवी शिक्षकों की मदद ले रहे हैं बल्कि अपने शिक्षण तकनीक को बेहतर करने के लिए लगातार अजीम प्रेमजी फाउंडेशन, बेमेतरा के भाषा, गणित, पर्यावरण अध्ययन के प्रशिक्षण कार्यक्रम से भी जुड़ रहे हैं। शाला में कार्यरत सहायक शिक्षक अजय प्रताप सिंह भारद्वाज बताते हैं कि
पिछले कुछ वर्षों से वे लगातार इस दिशा में प्रयासरत है कि हमारी शाला से भी नवोदय विद्यालय के लिए बच्चे चुनकर जा सकें। हालांकि अभी तक सफलता तो नहीं मिली है लेकिन लगातार प्रयासरत हैं”।
शाला में कार्यरत सहायक शिक्षक देव कुमार ध्रुव खेल के माध्यम से बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास को लेकर लगातार प्रयत्नशील रहे हैं। उनका मानना है कि 
"बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें इनडोर व आउटडोर खेल के साथ जोड़ना भी आवश्यक है"।
इस दिशा में उनके प्रयास का ही प्रतिफल है कि इंडोर व आउटडोर खेल सामग्री शाला में अच्छी संख्या में उपलब्ध है। खेल के दौरान वे स्वयं बच्चों के साथ सक्रिय रहते हैं। विशेष रूप से लुप्त हो रहे पारंपरिक खेल को भी बढ़ावा दे रहे हैं।