Thursday, 2 October 2025

सोनम वांगचुक : Rote Learning से Learn By Doing की ओर ले जाने वाला शिक्षाविद

दिनांक 24 सितंबर 2025 को लेह-लद्दाख के लोगों द्वारा किया जा रहा है आंदोलन अचानक से हिंसक हो जाता है। लेह लद्दाख के लोगों द्वारा अपनी मांगों के समर्थन में किया जा रहा है ये आंदोलन कोई नया आंदोलन नहीं था, बल्कि यह 5 अगस्त 2019 को कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद से ही चलना शुरू हो गया था। भूख हड़ताल जैसे तरीकों से चलाया जा रहा है यह आंदोलन शांतिपूर्ण था, इसीलिए भी स्थानीय मीडिया को छोड़कर राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों की नज़र इस ओर नहीं गई, गई भी तो भी कोई खास प्रमुखता नहीं मिली। इस हिंसा के लिए लेह-लद्दाख के अति चर्चित शिक्षा सुधारक व क्लाइमेट एक्टिविस्ट के नाम से मशहूर सोनम वांगचुक को जिम्मेदार माना जाता है। वे पिछले 5 वर्षों से लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने एवं पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए गांधीवादी आदर्शों पर चलते हुए अपनी मांगों के समर्थन में शांतिपूर्ण आंदोलन करते रहे थे।[i] इस हिंसक आंदोलन के दौरान भी वे भूख हड़ताल पर थे।

एक शांतिपूर्ण आंदोलन के हिंसक रूप ले लेने से 4 लोगों की मौत एवं 80 से अधिक लोग घायल हो जाते हैं।[ii] हिंसा से चिंतित होकर सोनम वांगचुक भूख हड़ताल खत्म कर देते हैं। इसी क्रम में पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। उनके खिलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत मामला दर्ज कर उन्हें जोधपुर (राजस्थान) जेल भेज दिया जाता है। साथ ही सोनम वांगचुक के NGO ‘Himalayan Institute of Alternatives Ladakh’ का FCRA लाइसेंस रद्द कर उनपर वित्तीय अनियमितताओं एवं विदेशी फंड के गलत इस्तेमाल के आरोप लगाया जाता है।[iii]    

इसके पश्चात् केंद्र सरकार समर्थित मीडिया चैनलों (जिसे गोदी मीडिया के नाम से जाना जाता है) आईटी सेल ने सोनम वांगचुक की छवि पर कीचड़ उछालने के लिए शैक्षणिक उद्देश्यों को लेकर पाकिस्तान, बांग्लादेश की यात्रा से संबंधित फोटो/विडिओ, अनसन के दौरान किए जा रहे संवादों को गलत तरीके से प्रस्तुत कर उल-जुलूल आरोप लगाने लग जाते हैं। मज़े की बात यह है कि जिस फोटो/विडिओ का ये इस्तेमाल करते हैं, वह सभी सोनम वांगचुक के सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म से ही लिए गए। सोचने वाली बात यह है कि गलत इरादे से यदि कोई व्यक्ति पाकिस्तान या बांग्लादेश की यात्रा करता है, तो वह इससे संबंधित फोटो या वीडियो क्यों साझा करेगा? वह तो इसे यात्रा को गुप्त रखना चाहेगा। सोनम वांगचुक जैसे तार्किक व्यक्ति से ऐसी उम्मीद तो बिल्कुल भी नहीं की जा सकती है।

इनकी रिपोर्टिंग ऐसी है कि आपको लगेगा सोनम वांगचुक ने लद्दाख के युवाओं (जिसे ये Gen-Z संबोधित करते हैं) ने सड़क पर हिंसा फैलाने का आह्वान किया हो।[iv] हालांकि अच्छी बात यह है कि पत्रकारिता की लाज रखने वाले बहुत सारे निष्पक्ष पत्रकारों ने गोदी मीडिया की इस हरकत की चीर फाड़ करते हुए इनकी घटिया हरकतों को लोगों के सामने ला दिया। इनके द्वारा साझा किए जा रहे फोटो वीडियो की वास्तविकता जानने के लिए रवीश कुमार, ध्रुव राठी आदि के बनाये हुए वीडियो देखा जा सकता है।

कौन हैं सोनम वांगचुक

हम सभी ने राजकुमार हिरानी के लेखन-निर्देशन में 2009 ई. में बनी कॉमेडी-ड्रामा ‘थ्री इडियट’ फ़िल्म देखी होगी। उस फ़िल्म में एक करेक्टर फुनसुक वांगड़ू का है, जो लेह-लद्दाख में एक स्कूल चलाता है, बच्चों को नए नए आविष्कार करने के लिए प्रेरित करता है। फुनसुक वांगड़ू का ये करेक्टर सोनम वांगचुक से ही प्रेरित था। फ़िल्म में उनके कई वास्तविक आविष्कारों को दिखाया गया था।[v]

इंजीनियरिंग की पढ़ाई किए सोनम वांगचुक के कार्यों ने देश-दुनिया के लोगों को प्रभावित किया। यही कारण है कि देश-विदेश के लोगों/संस्थाओं के साथ कार्य से प्राप्त अनुभवों को सेमीनार, चर्चा जैसे अलग-अलग आयोजनों के माध्यम से साझा करने हेतु देश-विदेश की यात्रा भी करते रहते हैं। शिक्षा और पर्यावरण के क्षेत्र में इनके उल्लेखनीय योगदान हैं। दोनों ही क्षेत्र के योगदान एक दूसरे से गुंथे हुए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में दिए गए योगदान से प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से मानव समाज के साथ साथ पर्यावरण का हित भी जुड़ा होता है। शिक्षा के क्षेत्र में सोनम वांगचुक के कार्यों को यहाँ संक्षेप में जानने समझने का प्रयास आइए करते हैं।

Students Educational and Cultural Movement of Ladakh(SECML) के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में योगदान

जब हमारे देश में पारंपरिक शिक्षा प्रणाली (जिसमें स्मरण को महत्त्व दिया जाता है) प्रमुखता से प्रचलित था, तब इस प्रणाली से अलग हटकर सोनम वांगचुक ने व्यावहारिक शिक्षा देने के उद्देश्य से लेह के ‘फे’ गाँव में 1988 ई. एक स्कूल Students Educational and Cultural Movement of Ladakh (SECML) शुरू किया था।[vi] इस स्कूल की शुरुआत विशेष रूप से उन बच्चों के लिए की गई थी जो 10 वीं कक्षा में फेल हो जाने के कारण आगे बढ़ नहीं पाते थे या किसी अन्य कारणों से अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते थे, या आर्थिक रूप से कमजोर होते थे।

बच्चों को व्यावहारिक ज्ञान देने की वकालत करने वाली इस संस्था ने शुरुआत में बच्चों के लिए कार्य किया ही। कालान्तर में सरकारी विद्यालयों में शैक्षिक सुधार के लिए भी कार्य किया। वर्ष 1998 ई. में जब लद्दाख के 95 % छात्र/छात्राएं 10वीं कक्षा में फेल हो गए थे तो इस संस्था ने सरकार के साथ मिलकर सरकारी विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की योजना बनाई। 2007 तक संस्था ने स्थानीय सरकार के साथ मिलकर शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन लाने का कार्य किया।[vii] संस्था के शिक्षा सुधार हेतु प्रयास का ही फल था कि 2003-2006 के बीच 50% छात्र/छात्राएं 10वीं की परीक्षा में सफल हुए। इस दौरान संस्था ने शिक्षा क्षेत्र के सक्रिय भागीदारी के बदौलत कई समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान दिलाया। जैसे –

·      पाठ्यपुस्तकों के बच्चों की मातृभाषा में न होने के कारण बच्चों को होने वाली समस्याएँ (प्राथमिक शालाओं में पाठ्यपुस्तक की भाषा उर्दू में, जबकि उच्च प्राथमिक शालाओं में भाषा अंग्रेजी होती थी। इसके विपरीत बच्चों की भाषा लद्दाखी होती थी)

·      पाठ्यपुस्तकों में स्थानीय संदर्भ के शामिल न होने से बच्चों को होने वाली समस्याएं (पाठ्यपुस्तक दिल्ली से प्रकाशित होते थे जिसमें अलग अलग राज्यों के संदर्भ तो होते थे। लेकिन लेह-लद्दाख के नहीं, इससे बच्चे उस पाठ से जुड़ाव महसूस नहीं करते थे)

·      शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था न होने से शिक्षा की गुणवत्ता पर होने वाले प्रभाव (शिक्षक शिक्षा के उद्देश्य, तकनीक आदि से परिचित नहीं होते थे)  

·      शिक्षकों के प्रत्येक दो वर्षों में होने वाले स्थानांतरण से होने वाली समस्या (प्रत्येक दो वर्ष में शिक्षकों को स्थानांतरित कर दिया जाता था)

·      अभिभावकों का स्कूल से जुड़ाव[viii]

संस्था ने शिक्षा के क्षेत्र की समस्याओं से न केवल स्थानीय सरकार को परिचित कराया बल्कि उस समस्या के समाधान के लिए भी प्रयास किया। उपरोक्त समस्याओं के समाधान के लिए संस्था ने 1994 में Operation New Hope (ONH) कार्यक्रम चलाया। उद्देश्य था –

·      Village Education Committee (VECs) बनाकर ग्राम समुदाय को स्कूल से जोड़ना।

·      शिक्षकों को गतिविधि आधारित प्रशिक्षण देना ताकि सीखने की प्रक्रिया को रुचिकर बनाया जा सके।

·      लद्दाख के स्थानीय परिवेश एवं भाषा को ध्यान में रखते हुए शिक्षण सामग्री का निर्माण करना/कराना।

·      शिक्षकों को स्कूल में समर्पण भाव से कार्य करने हेतु प्रेरित करना।

वर्ष 2007 तक इस संस्थान ने शिक्षा के क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के साथ-साथ शालाओं में शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने का हर संभव प्रयास किया। 2007 में लेह के जिलाधिकारी के साथ विवाद के पश्चात् संस्था पर लगाए गए ‘Anti National’ गतिविधियों के आरोप के बाद शिक्षकों की गुणवत्ता पर इस संस्था ने कार्य करना बंद कर दिया। वर्ष 2013 में कोर्ट ने इन आरोपों को बेबुनियाद पाते हुए सोनम वांगचुक को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।

यह संस्थान वर्तमान में भी कार्यरत है। यहाँ रहना, खाना, पढ़ाई सभी या तो निःशुल्क होती है, या इसके लिए बहुत ही न्यूनतम पैसे लिए जाते हैं। जीवन जीने के लिए आवश्यक कौशल व मूल्य जैसे जिम्मेदारी, समस्या समाधान, सामूहिक सहयोग, आत्मनिर्भरता, योजना निर्माण एवं क्रियान्वयन, नेतृत्व कौशल जैसे बिंदुओं पर कार्य किया जाता है। बच्चों में जिन कौशल को विकसित करने की बात भारत सरकार ने हाल-फिलहाल में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से की गई है, उस पर सोनम वांग्चुक 1990 के दशक से ही कार्य कर रहे हैं। समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु या संस्था लगातार प्रयासरत है।

Students Educational and Cultural Movement of Ladakh(SECML) एक तरह से महात्मा गाँधी के नई तालीम की तर्ज पर विकसित किया गया यह स्कूल है, जहाँ बच्चों को 21वीं सदी के नागरिक के रूप में विकसित करने की योजना पर कार्य किया जा है। यह स्कूल यहाँ के छात्र/छात्राओं के द्वारा ही चलाया जाता है। खाना बनाने, साफ सफाई, बिजली-पानी की देखरेख के साथ-साथ अन्य कई कार्य यहाँ के छात्र/छात्राओं के द्वारा ही किये जाते हैं।

‘सूर्य की गर्मी को संरक्षित कर ठंडे इलाकों में रहने लायक घर बनाना’ ‘पानी के संरक्षण के लिए कृत्रिम ग्लेशियर बनाना’ ‘ग्रीन हाउस फार्मिंग’ जैसे परियोजना कार्य में सोनम वांग्चुक के साथ-साथ यहाँ के छात्र/छात्राओं की भूमिका को पूरी दुनिया जानती है।

Himalayan Institute of Alternative Ladakh’ (HIAL) के माध्यम से शिक्षा, पर्यावरण के क्षेत्र में योगदान

सोनम वांगचुक ने 2017 में ‘Students Educational and Cultural Movement of Ladakh(SECML) से प्राप्त अनुभवों के आधार पर Himalayan Institute of Alternative Ladakh’ (HIAL) नामक एक गैर सरकारी संगठन (NGO) एवं संस्थान की स्थापना की जो पर्यावरण के क्षेत्र में नवाचार के साथ-साथ सामाजिक कार्यों (सामाजिक जागरूकता) को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। करके सीखने (Learning by Doing) के एप्रोच पर यह संस्था कार्य करती है। सोनम वांगचुक इसे ‘रेजिस्टर्ड चैरिटेबल ट्रस्ट’ की संज्ञा देते हैं। सोनम वांग्चुक के अनुसार इस संस्था से अभी तक 400 से अधिक छात्र/छात्राएं पढ़ाई पूरी कर चूके हैं। इस संस्था ने पानी संकट से निपटने के लिए ‘आइस स्तूप प्रोजेक्ट’  जैसी सफल पहल की है।[ix] संस्थान के उल्लेखनीय कार्य के लिए हिमाचल प्रदेश के शिक्षा मंत्री इस संस्था की तारीफ कर चूके हैं।[x]

लेह लद्दाख में हुए हिंसा के लिए सोनम वांगचुक कितने जिम्मेदार हैं, उनपर NSA लगाना कितना जायज है? यह तो अदालत ही तय करेगी। लेकिन उपरोक्त आधार पर यदि हम सोनम वांगचुक के कार्यों को विष्लेषित करें तो उनके कार्य उन्हें एक दूरदर्शी सोच वाला, एक अद्भुत शिक्षाविद, पर्यावरण हितैषी, विदेशों में भारतीयता का मान-सम्मान को बढ़ाने वाला, देश के प्रति कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति के रूप में स्थापित करते हैं। उम्मीद करते हैं कि जिस तरह 2007 में इनपर लगे Anti-National गतिविधियों में लिप्त होने के आक्षेप से 2013 में मुक्त हुए और शिक्षा के क्षेत्र में पुनः लेखनीय योगदान देना शुरू किए। वैसे ही वर्तमान में भारत सरकार द्वारा लगाये गए आक्षेपों से शीघ्र ही मुक्त होकर देश को एक सकारात्मक दिशा में ले जाने में योगदान दे रहे होंगे।