1946 में
ब्रिटिश हुकूमत के समय हमारे देश में एक अंतरिम (अस्थायी) सरकार बनी थी। उद्देश्य
था - आजादी से पहले भारत में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू करना। ब्रिटिश
सरकार ने भारत को आजादी देने के लिए एक कैबिनेट मिशन जिसे क्रिप्स मिशन भी कहा
जाता है, को भारत भेजा। इस आयोग ने एक संविधान सभा बनाने और तब तक एक अंतरिम सरकार
चलाने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव के तहत 1946 में प्रांतीय विधानसभाओं में
चुनाव कराए गए। कुल 1585 सीटों पर चुनाव हुए।
कांग्रेस
पार्टी को 923 सीट, मुस्लिम लीग को 425 सीट एवं अन्य पार्टियों या स्वतंत्र उम्मीदवार
को 237 सीट मिली। कांग्रेस को गैर मुस्लिम क्षेत्रों में बहुमत मिला तो वही
मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों में 90% से ज्यादा सीट पर जीत दर्ज की।
इससे मुस्लिम लीग को मुसलमानों के एक मात्र प्रतिनिधि होने का अभिमान आ गया।
इस
चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने सबसे बड़ी
पार्टी बनकर उभरे काँग्रेस पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया। इस
तरह 2 सितंबर 1946 को कांग्रेस पार्टी की अगुवाई में अंतरिम सरकार बनी। तत्कालीन
वायसरॉय लॉर्ड वेवेल एवं उनके पश्चात् लॉर्ड माउंटबेटेन इस अंतरिम (अस्थायी) सरकार
की अध्यक्ष थे। जबकि जवाहर लाल नेहरू इसके उपाध्यक्ष थे। यह सरकार 15 अगस्त 1947
तक स्थायी सरकार बनने तक चली।
मजेदार
बात यह है कि इस सरकार में पक्ष और विपक्ष (कांग्रेस और मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि)
दोनों शामिल किए गए थे। एक सिख प्रतिनिधि को भी शामिल किया गया था। सभी
प्रतिनिधियों को कुछ इस प्रकार से जिम्मेदारियां प्राप्त थी -
·
जवाहरलाल नेहरू (कांग्रेस) के
पास विदेशी मामलों की जिम्मेदारी थी।
·
सरदार वल्लभ भाई पटेल (कांग्रेस)
के पास गृह विभाग था।
·
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद (कांग्रेस)
के पास खाद्य एवं कृषि विभाग की जिम्मेदारी थी।
·
सी राजगोपालाचारी (कांग्रेस) के
पास शिक्षा विभाग को संभालने की जिम्मेदारी थी।
·
जॉन मथाई (कांग्रेस) के पास
उद्योग एवं आपूर्ति विभाग, रफ़ी अहमद किदवई (कांग्रेस) के पास संचार विभाग,
·
बल्देव सिंह (सिक्ख प्रतिनिधि)
को रक्षा विभाग संभालने की जिम्मेदारी दी गई थी।
अक्टूबर 1946 में मुस्लिम
लीग के कुछ सदस्यों को भी ब्रिटिश सरकार द्वारा अंतरिम सरकार में शामिल कर लिया
गया और उन्हें भी कुछ विभागों की जिम्मेदारी दी गई। जो इस प्रकार थे –
·
लियाकत अली खान (मुस्लिम लीग) को
वित्त विभाग
·
अब्दुर रब निश्तर को डाक एवं
हवाई विभाग
·
आई आई चुंदरीगर को वाणिज्य
विभाग
·
जोगेंद्र नाथ मंडल को विधि (law) विभाग एवं गजनफर अली खान को स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी मिली।
यहाँ पर सवाल उठता है
कि 1946 की अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के नेताओं को शामिल क्यों किया गया था?
इसके पीछे का तर्क क्या था? इसके पीछे 2 मुख्य कारण थे –
1.
चुनाव के दौरान कांग्रेस
पार्टी दावा करती थी कि वह पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करती है। लेकिन मुस्लिम बहुल
क्षेत्रों पर (विशेष रूप से जो मुसलमानों के लिए आरक्षित थे) मुसलिम लीग के शत
प्रतिशत बहुमत ने यह साबित कर दिया कि ‘कांग्रेस मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं
करती है’। इस चुनाव के परिणाम ने मुसलिम लीग एवं कांग्रेस को बराबरी की स्थिति पर
ला खड़ा कर दिया। एक को मुसलमानों का बहुमत प्राप्त था तो दूसरे को गैर मुसलमानों
का। ऐसे में ब्रिटिश सरकार को दोनों ही पी पार्टियों के प्रतिनिधियों को अंतरिम
सरकार में शामिल करने का निर्णय लेना पड़ा। शुरुआत में मुस्लिम लीग चूंकि पाकिस्तान
की मांग पर अड़ी थी। इसीलिए कांग्रेस के साथ सरकार में शामिल होने को तैयार नहीं थी।
लेकिन बाद में राजनीतिक दबाव एवं सत्ता में हिस्सेदारी की चाह ने अक्टूबर 1946 में
अंतरिम सरकार में शामिल होने के लिए मजबूर होना पड़ा।
2.
दूसरा एक महत्वपूर्ण कारण यह था
कि उस दौरान मुस्लिम लीग के सर्वोच्च नेता मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान
की मांग काफी बलवती थी। ऐसी स्थिति में ब्रिटिश के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी शुरुआती
विरोध के बाद मजबूरन चाहने लगी कि यदि मुस्लिम लीग को सरकार में हिस्सा दिया जाए
तो शायद वह विभाजन की मांग से पीछे हट जाएगी या नरम पड़ जाएगी। इसलिए कांग्रेस ने
भी पी अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग को शामिल करने के फैसले का कोई खास विरोध नहीं
किया।
कांग्रेस के नेताओं को
उम्मीद थी कि मुस्लिम लीग से सहयोग मिलेगी, लेकिन हुआ इसका उल्टा। मुस्लिम लीग के
लियाकत अली को कांग्रेस ने वित्त विभाग दिया। लेकिन लियाकत अली ने अलग अलग विभागों
के वित्तीय आवंटन में बार बार अड़चन लगाने के साथ साथ कई अन्य मौकों पर पी ऐसे
कार्य किए जिससे कांग्रेस को अपनी नीतियों के लागू करने में अड़चन आया। अधिकांश
मौकों पर मुसलिम लीग केवल यह दिखाने का असफल प्रयास करती रही कि मुसलमानों का
वास्तविक रहनुमा मुस्लिम लीग है, कांग्रेस नहीं। इस प्रकार अंतरिम सरकार में रहते
हुए भी मुस्लिम लीग तोड़फोड़ की राजनीति करती रही। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के
नेताओं को यह लगने लगा कि विभाजन ही अंतिम रास्ता बचा है।
उपरोक्त घटनाओं का यदि हम विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने देश को विभाजित होने के प्रयासों को रोकने का हर संभव प्रयास किया, मुस्लिम लीग को सरकार में जगह दी सिर्फ इसलिए कि पाकिस्तान का राग अलापना ये छोड़ दें। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और मजबूरन उसे देश विभाजन को स्वीकार करना पड़ा।