Saturday, 13 September 2025

कभी कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग ने एक साथ सरकार चलाया था।

1946 में ब्रिटिश हुकूमत के समय हमारे देश में एक अंतरिम (अस्थायी) सरकार बनी थी। उद्देश्य था - आजादी से पहले भारत में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू करना। ब्रिटिश सरकार ने भारत को आजादी देने के लिए एक कैबिनेट मिशन जिसे क्रिप्स मिशन भी कहा जाता है, को भारत भेजा। इस आयोग ने एक संविधान सभा बनाने और तब तक एक अंतरिम सरकार चलाने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव के तहत 1946 में प्रांतीय विधानसभाओं में चुनाव कराए गए। कुल 1585 सीटों पर चुनाव हुए।

कांग्रेस पार्टी को 923 सीट, मुस्लिम लीग को 425 सीट एवं अन्य पार्टियों या स्वतंत्र उम्मीदवार को 237 सीट मिली। कांग्रेस को गैर मुस्लिम क्षेत्रों में बहुमत मिला तो वही मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों में 90% से ज्यादा सीट पर जीत दर्ज की। इससे मुस्लिम लीग को मुसलमानों के एक मात्र प्रतिनिधि होने का अभिमान आ गया।  

इस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे काँग्रेस पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया। इस तरह 2 सितंबर 1946 को कांग्रेस पार्टी की अगुवाई में अंतरिम सरकार बनी। तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड वेवेल एवं उनके पश्चात् लॉर्ड माउंटबेटेन इस अंतरिम (अस्थायी) सरकार की अध्यक्ष थे। जबकि जवाहर लाल नेहरू इसके उपाध्यक्ष थे। यह सरकार 15 अगस्त 1947 तक स्थायी सरकार बनने तक चली।

मजेदार बात यह है कि इस सरकार में पक्ष और विपक्ष (कांग्रेस और मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि) दोनों शामिल किए गए थे। एक सिख प्रतिनिधि को भी शामिल किया गया था। सभी प्रतिनिधियों को कुछ इस प्रकार से जिम्मेदारियां प्राप्त थी -

·       जवाहरलाल नेहरू (कांग्रेस) के पास विदेशी मामलों की जिम्मेदारी थी।

·       सरदार वल्लभ भाई पटेल (कांग्रेस) के पास गृह विभाग था।

·       डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद (कांग्रेस) के पास खाद्य एवं कृषि विभाग की जिम्मेदारी थी।

·       सी राजगोपालाचारी (कांग्रेस) के पास शिक्षा विभाग को संभालने की जिम्मेदारी थी।

·       जॉन मथाई (कांग्रेस) के पास उद्योग एवं आपूर्ति विभाग, रफ़ी अहमद किदवई (कांग्रेस) के पास संचार विभाग,  

·       बल्देव सिंह (सिक्ख प्रतिनिधि) को रक्षा विभाग संभालने की जिम्मेदारी दी गई थी।

अक्टूबर 1946 में मुस्लिम लीग के कुछ सदस्यों को भी ब्रिटिश सरकार द्वारा अंतरिम सरकार में शामिल कर लिया गया और उन्हें भी कुछ विभागों की जिम्मेदारी दी गई। जो इस प्रकार थे –

·       लियाकत अली खान (मुस्लिम लीग) को वित्त विभाग

·       अब्दुर रब निश्तर को डाक एवं हवाई विभाग

·       आई आई चुंदरीगर को वाणिज्य विभाग

·       जोगेंद्र नाथ मंडल को विधि (law) विभाग एवं गजनफर अली खान को स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी मिली।

यहाँ पर सवाल उठता है कि 1946 की अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के नेताओं को शामिल क्यों किया गया था? इसके पीछे का तर्क क्या था? इसके पीछे 2 मुख्य कारण थे –

1.     चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी दावा करती थी कि वह पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करती है। लेकिन मुस्लिम बहुल क्षेत्रों पर (विशेष रूप से जो मुसलमानों के लिए आरक्षित थे) मुसलिम लीग के शत प्रतिशत बहुमत ने यह साबित कर दिया कि ‘कांग्रेस मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है’। इस चुनाव के परिणाम ने मुसलिम लीग एवं कांग्रेस को बराबरी की स्थिति पर ला खड़ा कर दिया। एक को मुसलमानों का बहुमत प्राप्त था तो दूसरे को गैर मुसलमानों का। ऐसे में ब्रिटिश सरकार को दोनों ही पी पार्टियों के प्रतिनिधियों को अंतरिम सरकार में शामिल करने का निर्णय लेना पड़ा। शुरुआत में मुस्लिम लीग चूंकि पाकिस्तान की मांग पर अड़ी थी। इसीलिए कांग्रेस के साथ सरकार में शामिल होने को तैयार नहीं थी। लेकिन बाद में राजनीतिक दबाव एवं सत्ता में हिस्सेदारी की चाह ने अक्टूबर 1946 में अंतरिम सरकार में शामिल होने के लिए मजबूर होना पड़ा।   

2.     दूसरा एक महत्वपूर्ण कारण यह था कि उस दौरान मुस्लिम लीग के सर्वोच्च नेता मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान की मांग काफी बलवती थी। ऐसी स्थिति में ब्रिटिश के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी शुरुआती विरोध के बाद मजबूरन चाहने लगी कि यदि मुस्लिम लीग को सरकार में हिस्सा दिया जाए तो शायद वह विभाजन की मांग से पीछे हट जाएगी या नरम पड़ जाएगी। इसलिए कांग्रेस ने भी पी अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग को शामिल करने के फैसले का कोई खास विरोध नहीं किया।  

कांग्रेस के नेताओं को उम्मीद थी कि मुस्लिम लीग से सहयोग मिलेगी, लेकिन हुआ इसका उल्टा। मुस्लिम लीग के लियाकत अली को कांग्रेस ने वित्त विभाग दिया। लेकिन लियाकत अली ने अलग अलग विभागों के वित्तीय आवंटन में बार बार अड़चन लगाने के साथ साथ कई अन्य मौकों पर पी ऐसे कार्य किए जिससे कांग्रेस को अपनी नीतियों के लागू करने में अड़चन आया। अधिकांश मौकों पर मुसलिम लीग केवल यह दिखाने का असफल प्रयास करती रही कि मुसलमानों का वास्तविक रहनुमा मुस्लिम लीग है, कांग्रेस नहीं। इस प्रकार अंतरिम सरकार में रहते हुए भी मुस्लिम लीग तोड़फोड़ की राजनीति करती रही। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के नेताओं को यह लगने लगा कि विभाजन ही अंतिम रास्ता बचा है।

उपरोक्त घटनाओं का यदि हम विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने देश को विभाजित होने के प्रयासों को रोकने का हर संभव प्रयास किया, मुस्लिम लीग को सरकार में जगह दी सिर्फ इसलिए कि पाकिस्तान का राग अलापना ये छोड़ दें। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और मजबूरन उसे देश विभाजन को स्वीकार करना पड़ा।

Friday, 12 September 2025

ग्रहण के दुष्प्रभाव संबंधी मिथ्या धारणाओं को तोड़ने की बेला

पिछले दिनों 7 सितंबर 2025 को एक खगोलीय घटना ‘चंद्र ग्रहण’ हुई थी। इसके कुछ दिनों के बाद आने वाले 21 सितंबर 2025 को एक अन्य खगोलीय घटना ‘सूर्य ग्रहण’ देखने को मिलने वाली है। यह इस साल का दूसरा सूर्यग्रहण होगा। इससे पूर्व 29 मार्च को आंशिक सूर्यग्रहण देखने को मिला था। जो भारत में नहीं दिखा था। 21 सितंबर को होने वाला सूर्यग्रहण भी आंशिक सूर्य ग्रहण ही है, साथ ही यह भी भारत में नहीं दिखेगा।  बावजूद इसके हमारे देश के अंधविश्वास फैलाने वाले बहुत से मीडिया संस्थान इससे होने वाले दुष्प्रभाव से बचने के उपाय बताने के कार्य में लग गए हैं।

वैज्ञानिक अध्ययन से जब यह स्पष्ट है कि सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण कोई दैविक नहीं बल्कि एक खगोलीय घटना है जो किसी भी व्यक्ति के जीवन पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं डालते। इस दौरान किए गए कार्य ना अशुभ होते हैं, न ही इस दौरान कोई अपवित्र होता है। फिर भी यह ज्योतिष विज्ञान के जानकार अंधविश्वास फैलाने का कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हैरत की बात यह है कि जिन क्षेत्रों में सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण दिखाई पड़ता है, वहाँ ग्रहण के तथाकथित दुष्प्रभाव से मुक्त होने के कपोल कल्पित उपाय तो बताते ही हैं, इसके साथ-साथ जिन क्षेत्रों में यह ग्रहण नहीं दिखाई पड़ता है, वहाँ के लोगों को भी इसके दुष्प्रभाव का डर दिखाकर उन्हें कर्मकांड जैसे फर्जी गतिविधियों में भी घसीटने का काम करते हैं। भोले भाले लोग भी उनकी बातों में आकर, दुष्प्रभाव के डर को कम करने के लिए बिल्कुल वैसा ही करने लगते हैं, जैसा यह उन्हें बताते हैं।   

यहाँ सवाल उठता है कि आखिर इस अंधविश्वास को फैलाने के पीछे निहित कारण क्या है? जवाब है कि यह अंधविश्वास इसलिए फैला रहे हैं क्योंकि इससे उनकी कमाई जुड़ी है। इस प्रक्रिया का अवलोकन करेंगे तो पता चलता है कि ज्योतिष का कारोबार करने वाले एक जाति के लोग ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने के लिए अलग अलग प्रकार के कर्मकांड कराने का निर्देश देते रहते हैं। इस कर्मकांड को कराने में उनकी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहभागिता रहती है। उस कर्मकांड को कराने के बदले उन्हें दक्षिणा मिलती है। ग्रहण के बाद तथाकथित पवित्र नदियों में स्नान करने का निर्देश उनके द्वारा दिया जाता है। ऐसा इसलिए कि लोग नदियों में स्नान कर आस पास बने मंदिर में जाकर पूजा करेंगे, वहाँ मंदिरों में दान करेंगे, पुजारियों को दान या दक्षिणा देंगे, जिससे उनकी, उनकी कुटुम्बों की कमाई हो रही होगी।

ये लोग 21 वीं सदी में रहकर पांचवीं सदी में जी रहे हैं। ऐसे जीने से उनकी लोगों को ठगकर आजीविका चलती है, इसलिए वे इस प्रकार की व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहते। क्योंकि इससे उनका हित जुड़ा है। लेकिन बाकी लोग तो फोकट में पैसे बर्बाद कर रहे हैं न उस कर्मकांड के लिए आवश्यक सामग्री को खरीदकर, फर्जी कर्मकांड का मेहनताना देकर। हम तथाकथित पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, वहाँ से जल लेकर नजदीक स्थित देवालयों में जाते हैं, वहाँ उस जल को किसी देवी देवता पर ऐसे चढ़ाने के लिए नहीं नहीं कहा जाता, उस पात्र में थोड़ा सा चंदन लगाकर मौजूद जल को किसी मंत्र को पढ़कर संकल्पित करने का ढोंग किया जाता है। उसके बदले 10 20 की मांग की जाती है। कल्पना कीजिए किसी छोटे से नदी के किनारे स्थित छोटे से मंदिर में यदि 100 लोग ही पूजा करने जाते हैं, बदले में 10 वहाँ के पुजारियों को देते हैं तो बैठे-बैठे पूरे दिन के वे कितना कमा लिए?

मज़े की बात यह है कि इस दुनिया में अरबों लोग ऐसे हैं जो इन कर्मकांडों से दूर होकर बिना इस मोहपाश में फंसे बेहतरीन जीवन जी रहे हैं। कर्मकांड करने वालों की तुलना में कहीं ज्यादा सुखी संपन्न जीवन व्यतीत कर रहे होते है।

अब हमें जरूरत है हमारे समाज में सदियों से प्रचलित मिथ्या धारणाओं की पहचान कर, उससे खुद को अलग करने की। सभी प्रकार के धारणाओं पर, उसकी सत्यता पर, वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता पर विचार करने की।