Thursday, 2 October 2025

सोनम वांगचुक : Rote Learning से Learn By Doing की ओर ले जाने वाला शिक्षाविद

दिनांक 24 सितंबर 2025 को लेह-लद्दाख के लोगों द्वारा किया जा रहा है आंदोलन अचानक से हिंसक हो जाता है। लेह लद्दाख के लोगों द्वारा अपनी मांगों के समर्थन में किया जा रहा है ये आंदोलन कोई नया आंदोलन नहीं था, बल्कि यह 5 अगस्त 2019 को कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद लद्दाख के केंद्रशासित प्रदेश बनने के बाद से ही चलना शुरू हो गया था। भूख हड़ताल जैसे तरीकों से चलाया जा रहा है यह आंदोलन शांतिपूर्ण था, इसीलिए भी स्थानीय मीडिया को छोड़कर राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों की नज़र इस ओर नहीं गई, गई भी तो भी कोई खास प्रमुखता नहीं मिली। इस हिंसा के लिए लेह-लद्दाख के अति चर्चित शिक्षा सुधारक व क्लाइमेट एक्टिविस्ट के नाम से मशहूर सोनम वांगचुक को जिम्मेदार माना जाता है। वे पिछले 5 वर्षों से लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने एवं पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए गांधीवादी आदर्शों पर चलते हुए अपनी मांगों के समर्थन में शांतिपूर्ण आंदोलन करते रहे थे।[i] इस हिंसक आंदोलन के दौरान भी वे भूख हड़ताल पर थे।

एक शांतिपूर्ण आंदोलन के हिंसक रूप ले लेने से 4 लोगों की मौत एवं 80 से अधिक लोग घायल हो जाते हैं।[ii] हिंसा से चिंतित होकर सोनम वांगचुक भूख हड़ताल खत्म कर देते हैं। इसी क्रम में पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है। उनके खिलाफ़ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत मामला दर्ज कर उन्हें जोधपुर (राजस्थान) जेल भेज दिया जाता है। साथ ही सोनम वांगचुक के NGO ‘Himalayan Institute of Alternatives Ladakh’ का FCRA लाइसेंस रद्द कर उनपर वित्तीय अनियमितताओं एवं विदेशी फंड के गलत इस्तेमाल के आरोप लगाया जाता है।[iii]    

इसके पश्चात् केंद्र सरकार समर्थित मीडिया चैनलों (जिसे गोदी मीडिया के नाम से जाना जाता है) आईटी सेल ने सोनम वांगचुक की छवि पर कीचड़ उछालने के लिए शैक्षणिक उद्देश्यों को लेकर पाकिस्तान, बांग्लादेश की यात्रा से संबंधित फोटो/विडिओ, अनसन के दौरान किए जा रहे संवादों को गलत तरीके से प्रस्तुत कर उल-जुलूल आरोप लगाने लग जाते हैं। मज़े की बात यह है कि जिस फोटो/विडिओ का ये इस्तेमाल करते हैं, वह सभी सोनम वांगचुक के सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म से ही लिए गए। सोचने वाली बात यह है कि गलत इरादे से यदि कोई व्यक्ति पाकिस्तान या बांग्लादेश की यात्रा करता है, तो वह इससे संबंधित फोटो या वीडियो क्यों साझा करेगा? वह तो इसे यात्रा को गुप्त रखना चाहेगा। सोनम वांगचुक जैसे तार्किक व्यक्ति से ऐसी उम्मीद तो बिल्कुल भी नहीं की जा सकती है।

इनकी रिपोर्टिंग ऐसी है कि आपको लगेगा सोनम वांगचुक ने लद्दाख के युवाओं (जिसे ये Gen-Z संबोधित करते हैं) ने सड़क पर हिंसा फैलाने का आह्वान किया हो।[iv] हालांकि अच्छी बात यह है कि पत्रकारिता की लाज रखने वाले बहुत सारे निष्पक्ष पत्रकारों ने गोदी मीडिया की इस हरकत की चीर फाड़ करते हुए इनकी घटिया हरकतों को लोगों के सामने ला दिया। इनके द्वारा साझा किए जा रहे फोटो वीडियो की वास्तविकता जानने के लिए रवीश कुमार, ध्रुव राठी आदि के बनाये हुए वीडियो देखा जा सकता है।

कौन हैं सोनम वांगचुक

हम सभी ने राजकुमार हिरानी के लेखन-निर्देशन में 2009 ई. में बनी कॉमेडी-ड्रामा ‘थ्री इडियट’ फ़िल्म देखी होगी। उस फ़िल्म में एक करेक्टर फुनसुक वांगड़ू का है, जो लेह-लद्दाख में एक स्कूल चलाता है, बच्चों को नए नए आविष्कार करने के लिए प्रेरित करता है। फुनसुक वांगड़ू का ये करेक्टर सोनम वांगचुक से ही प्रेरित था। फ़िल्म में उनके कई वास्तविक आविष्कारों को दिखाया गया था।[v]

इंजीनियरिंग की पढ़ाई किए सोनम वांगचुक के कार्यों ने देश-दुनिया के लोगों को प्रभावित किया। यही कारण है कि देश-विदेश के लोगों/संस्थाओं के साथ कार्य से प्राप्त अनुभवों को सेमीनार, चर्चा जैसे अलग-अलग आयोजनों के माध्यम से साझा करने हेतु देश-विदेश की यात्रा भी करते रहते हैं। शिक्षा और पर्यावरण के क्षेत्र में इनके उल्लेखनीय योगदान हैं। दोनों ही क्षेत्र के योगदान एक दूसरे से गुंथे हुए हैं। शिक्षा के क्षेत्र में दिए गए योगदान से प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से मानव समाज के साथ साथ पर्यावरण का हित भी जुड़ा होता है। शिक्षा के क्षेत्र में सोनम वांगचुक के कार्यों को यहाँ संक्षेप में जानने समझने का प्रयास आइए करते हैं।

Students Educational and Cultural Movement of Ladakh(SECML) के माध्यम से शिक्षा के क्षेत्र में योगदान

जब हमारे देश में पारंपरिक शिक्षा प्रणाली (जिसमें स्मरण को महत्त्व दिया जाता है) प्रमुखता से प्रचलित था, तब इस प्रणाली से अलग हटकर सोनम वांगचुक ने व्यावहारिक शिक्षा देने के उद्देश्य से लेह के ‘फे’ गाँव में 1988 ई. एक स्कूल Students Educational and Cultural Movement of Ladakh (SECML) शुरू किया था।[vi] इस स्कूल की शुरुआत विशेष रूप से उन बच्चों के लिए की गई थी जो 10 वीं कक्षा में फेल हो जाने के कारण आगे बढ़ नहीं पाते थे या किसी अन्य कारणों से अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते थे, या आर्थिक रूप से कमजोर होते थे।

बच्चों को व्यावहारिक ज्ञान देने की वकालत करने वाली इस संस्था ने शुरुआत में बच्चों के लिए कार्य किया ही। कालान्तर में सरकारी विद्यालयों में शैक्षिक सुधार के लिए भी कार्य किया। वर्ष 1998 ई. में जब लद्दाख के 95 % छात्र/छात्राएं 10वीं कक्षा में फेल हो गए थे तो इस संस्था ने सरकार के साथ मिलकर सरकारी विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की योजना बनाई। 2007 तक संस्था ने स्थानीय सरकार के साथ मिलकर शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन लाने का कार्य किया।[vii] संस्था के शिक्षा सुधार हेतु प्रयास का ही फल था कि 2003-2006 के बीच 50% छात्र/छात्राएं 10वीं की परीक्षा में सफल हुए। इस दौरान संस्था ने शिक्षा क्षेत्र के सक्रिय भागीदारी के बदौलत कई समस्याओं की ओर सरकार का ध्यान दिलाया। जैसे –

·      पाठ्यपुस्तकों के बच्चों की मातृभाषा में न होने के कारण बच्चों को होने वाली समस्याएँ (प्राथमिक शालाओं में पाठ्यपुस्तक की भाषा उर्दू में, जबकि उच्च प्राथमिक शालाओं में भाषा अंग्रेजी होती थी। इसके विपरीत बच्चों की भाषा लद्दाखी होती थी)

·      पाठ्यपुस्तकों में स्थानीय संदर्भ के शामिल न होने से बच्चों को होने वाली समस्याएं (पाठ्यपुस्तक दिल्ली से प्रकाशित होते थे जिसमें अलग अलग राज्यों के संदर्भ तो होते थे। लेकिन लेह-लद्दाख के नहीं, इससे बच्चे उस पाठ से जुड़ाव महसूस नहीं करते थे)

·      शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था न होने से शिक्षा की गुणवत्ता पर होने वाले प्रभाव (शिक्षक शिक्षा के उद्देश्य, तकनीक आदि से परिचित नहीं होते थे)  

·      शिक्षकों के प्रत्येक दो वर्षों में होने वाले स्थानांतरण से होने वाली समस्या (प्रत्येक दो वर्ष में शिक्षकों को स्थानांतरित कर दिया जाता था)

·      अभिभावकों का स्कूल से जुड़ाव[viii]

संस्था ने शिक्षा के क्षेत्र की समस्याओं से न केवल स्थानीय सरकार को परिचित कराया बल्कि उस समस्या के समाधान के लिए भी प्रयास किया। उपरोक्त समस्याओं के समाधान के लिए संस्था ने 1994 में Operation New Hope (ONH) कार्यक्रम चलाया। उद्देश्य था –

·      Village Education Committee (VECs) बनाकर ग्राम समुदाय को स्कूल से जोड़ना।

·      शिक्षकों को गतिविधि आधारित प्रशिक्षण देना ताकि सीखने की प्रक्रिया को रुचिकर बनाया जा सके।

·      लद्दाख के स्थानीय परिवेश एवं भाषा को ध्यान में रखते हुए शिक्षण सामग्री का निर्माण करना/कराना।

·      शिक्षकों को स्कूल में समर्पण भाव से कार्य करने हेतु प्रेरित करना।

वर्ष 2007 तक इस संस्थान ने शिक्षा के क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के साथ-साथ शालाओं में शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने का हर संभव प्रयास किया। 2007 में लेह के जिलाधिकारी के साथ विवाद के पश्चात् संस्था पर लगाए गए ‘Anti National’ गतिविधियों के आरोप के बाद शिक्षकों की गुणवत्ता पर इस संस्था ने कार्य करना बंद कर दिया। वर्ष 2013 में कोर्ट ने इन आरोपों को बेबुनियाद पाते हुए सोनम वांगचुक को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया।

यह संस्थान वर्तमान में भी कार्यरत है। यहाँ रहना, खाना, पढ़ाई सभी या तो निःशुल्क होती है, या इसके लिए बहुत ही न्यूनतम पैसे लिए जाते हैं। जीवन जीने के लिए आवश्यक कौशल व मूल्य जैसे जिम्मेदारी, समस्या समाधान, सामूहिक सहयोग, आत्मनिर्भरता, योजना निर्माण एवं क्रियान्वयन, नेतृत्व कौशल जैसे बिंदुओं पर कार्य किया जाता है। बच्चों में जिन कौशल को विकसित करने की बात भारत सरकार ने हाल-फिलहाल में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से की गई है, उस पर सोनम वांग्चुक 1990 के दशक से ही कार्य कर रहे हैं। समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु या संस्था लगातार प्रयासरत है।

Students Educational and Cultural Movement of Ladakh(SECML) एक तरह से महात्मा गाँधी के नई तालीम की तर्ज पर विकसित किया गया यह स्कूल है, जहाँ बच्चों को 21वीं सदी के नागरिक के रूप में विकसित करने की योजना पर कार्य किया जा है। यह स्कूल यहाँ के छात्र/छात्राओं के द्वारा ही चलाया जाता है। खाना बनाने, साफ सफाई, बिजली-पानी की देखरेख के साथ-साथ अन्य कई कार्य यहाँ के छात्र/छात्राओं के द्वारा ही किये जाते हैं।

‘सूर्य की गर्मी को संरक्षित कर ठंडे इलाकों में रहने लायक घर बनाना’ ‘पानी के संरक्षण के लिए कृत्रिम ग्लेशियर बनाना’ ‘ग्रीन हाउस फार्मिंग’ जैसे परियोजना कार्य में सोनम वांग्चुक के साथ-साथ यहाँ के छात्र/छात्राओं की भूमिका को पूरी दुनिया जानती है।

Himalayan Institute of Alternative Ladakh’ (HIAL) के माध्यम से शिक्षा, पर्यावरण के क्षेत्र में योगदान

सोनम वांगचुक ने 2017 में ‘Students Educational and Cultural Movement of Ladakh(SECML) से प्राप्त अनुभवों के आधार पर Himalayan Institute of Alternative Ladakh’ (HIAL) नामक एक गैर सरकारी संगठन (NGO) एवं संस्थान की स्थापना की जो पर्यावरण के क्षेत्र में नवाचार के साथ-साथ सामाजिक कार्यों (सामाजिक जागरूकता) को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। करके सीखने (Learning by Doing) के एप्रोच पर यह संस्था कार्य करती है। सोनम वांगचुक इसे ‘रेजिस्टर्ड चैरिटेबल ट्रस्ट’ की संज्ञा देते हैं। सोनम वांग्चुक के अनुसार इस संस्था से अभी तक 400 से अधिक छात्र/छात्राएं पढ़ाई पूरी कर चूके हैं। इस संस्था ने पानी संकट से निपटने के लिए ‘आइस स्तूप प्रोजेक्ट’  जैसी सफल पहल की है।[ix] संस्थान के उल्लेखनीय कार्य के लिए हिमाचल प्रदेश के शिक्षा मंत्री इस संस्था की तारीफ कर चूके हैं।[x]

लेह लद्दाख में हुए हिंसा के लिए सोनम वांगचुक कितने जिम्मेदार हैं, उनपर NSA लगाना कितना जायज है? यह तो अदालत ही तय करेगी। लेकिन उपरोक्त आधार पर यदि हम सोनम वांगचुक के कार्यों को विष्लेषित करें तो उनके कार्य उन्हें एक दूरदर्शी सोच वाला, एक अद्भुत शिक्षाविद, पर्यावरण हितैषी, विदेशों में भारतीयता का मान-सम्मान को बढ़ाने वाला, देश के प्रति कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति के रूप में स्थापित करते हैं। उम्मीद करते हैं कि जिस तरह 2007 में इनपर लगे Anti-National गतिविधियों में लिप्त होने के आक्षेप से 2013 में मुक्त हुए और शिक्षा के क्षेत्र में पुनः लेखनीय योगदान देना शुरू किए। वैसे ही वर्तमान में भारत सरकार द्वारा लगाये गए आक्षेपों से शीघ्र ही मुक्त होकर देश को एक सकारात्मक दिशा में ले जाने में योगदान दे रहे होंगे।


Saturday, 13 September 2025

कभी कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग ने एक साथ सरकार चलाया था।

1946 में ब्रिटिश हुकूमत के समय हमारे देश में एक अंतरिम (अस्थायी) सरकार बनी थी। उद्देश्य था - आजादी से पहले भारत में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू करना। ब्रिटिश सरकार ने भारत को आजादी देने के लिए एक कैबिनेट मिशन जिसे क्रिप्स मिशन भी कहा जाता है, को भारत भेजा। इस आयोग ने एक संविधान सभा बनाने और तब तक एक अंतरिम सरकार चलाने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव के तहत 1946 में प्रांतीय विधानसभाओं में चुनाव कराए गए। कुल 1585 सीटों पर चुनाव हुए।

कांग्रेस पार्टी को 923 सीट, मुस्लिम लीग को 425 सीट एवं अन्य पार्टियों या स्वतंत्र उम्मीदवार को 237 सीट मिली। कांग्रेस को गैर मुस्लिम क्षेत्रों में बहुमत मिला तो वही मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों में 90% से ज्यादा सीट पर जीत दर्ज की। इससे मुस्लिम लीग को मुसलमानों के एक मात्र प्रतिनिधि होने का अभिमान आ गया।  

इस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे काँग्रेस पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया। इस तरह 2 सितंबर 1946 को कांग्रेस पार्टी की अगुवाई में अंतरिम सरकार बनी। तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड वेवेल एवं उनके पश्चात् लॉर्ड माउंटबेटेन इस अंतरिम (अस्थायी) सरकार की अध्यक्ष थे। जबकि जवाहर लाल नेहरू इसके उपाध्यक्ष थे। यह सरकार 15 अगस्त 1947 तक स्थायी सरकार बनने तक चली।

मजेदार बात यह है कि इस सरकार में पक्ष और विपक्ष (कांग्रेस और मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि) दोनों शामिल किए गए थे। एक सिख प्रतिनिधि को भी शामिल किया गया था। सभी प्रतिनिधियों को कुछ इस प्रकार से जिम्मेदारियां प्राप्त थी -

·       जवाहरलाल नेहरू (कांग्रेस) के पास विदेशी मामलों की जिम्मेदारी थी।

·       सरदार वल्लभ भाई पटेल (कांग्रेस) के पास गृह विभाग था।

·       डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद (कांग्रेस) के पास खाद्य एवं कृषि विभाग की जिम्मेदारी थी।

·       सी राजगोपालाचारी (कांग्रेस) के पास शिक्षा विभाग को संभालने की जिम्मेदारी थी।

·       जॉन मथाई (कांग्रेस) के पास उद्योग एवं आपूर्ति विभाग, रफ़ी अहमद किदवई (कांग्रेस) के पास संचार विभाग,  

·       बल्देव सिंह (सिक्ख प्रतिनिधि) को रक्षा विभाग संभालने की जिम्मेदारी दी गई थी।

अक्टूबर 1946 में मुस्लिम लीग के कुछ सदस्यों को भी ब्रिटिश सरकार द्वारा अंतरिम सरकार में शामिल कर लिया गया और उन्हें भी कुछ विभागों की जिम्मेदारी दी गई। जो इस प्रकार थे –

·       लियाकत अली खान (मुस्लिम लीग) को वित्त विभाग

·       अब्दुर रब निश्तर को डाक एवं हवाई विभाग

·       आई आई चुंदरीगर को वाणिज्य विभाग

·       जोगेंद्र नाथ मंडल को विधि (law) विभाग एवं गजनफर अली खान को स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी मिली।

यहाँ पर सवाल उठता है कि 1946 की अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के नेताओं को शामिल क्यों किया गया था? इसके पीछे का तर्क क्या था? इसके पीछे 2 मुख्य कारण थे –

1.     चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी दावा करती थी कि वह पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करती है। लेकिन मुस्लिम बहुल क्षेत्रों पर (विशेष रूप से जो मुसलमानों के लिए आरक्षित थे) मुसलिम लीग के शत प्रतिशत बहुमत ने यह साबित कर दिया कि ‘कांग्रेस मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है’। इस चुनाव के परिणाम ने मुसलिम लीग एवं कांग्रेस को बराबरी की स्थिति पर ला खड़ा कर दिया। एक को मुसलमानों का बहुमत प्राप्त था तो दूसरे को गैर मुसलमानों का। ऐसे में ब्रिटिश सरकार को दोनों ही पी पार्टियों के प्रतिनिधियों को अंतरिम सरकार में शामिल करने का निर्णय लेना पड़ा। शुरुआत में मुस्लिम लीग चूंकि पाकिस्तान की मांग पर अड़ी थी। इसीलिए कांग्रेस के साथ सरकार में शामिल होने को तैयार नहीं थी। लेकिन बाद में राजनीतिक दबाव एवं सत्ता में हिस्सेदारी की चाह ने अक्टूबर 1946 में अंतरिम सरकार में शामिल होने के लिए मजबूर होना पड़ा।   

2.     दूसरा एक महत्वपूर्ण कारण यह था कि उस दौरान मुस्लिम लीग के सर्वोच्च नेता मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान की मांग काफी बलवती थी। ऐसी स्थिति में ब्रिटिश के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी शुरुआती विरोध के बाद मजबूरन चाहने लगी कि यदि मुस्लिम लीग को सरकार में हिस्सा दिया जाए तो शायद वह विभाजन की मांग से पीछे हट जाएगी या नरम पड़ जाएगी। इसलिए कांग्रेस ने भी पी अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग को शामिल करने के फैसले का कोई खास विरोध नहीं किया।  

कांग्रेस के नेताओं को उम्मीद थी कि मुस्लिम लीग से सहयोग मिलेगी, लेकिन हुआ इसका उल्टा। मुस्लिम लीग के लियाकत अली को कांग्रेस ने वित्त विभाग दिया। लेकिन लियाकत अली ने अलग अलग विभागों के वित्तीय आवंटन में बार बार अड़चन लगाने के साथ साथ कई अन्य मौकों पर पी ऐसे कार्य किए जिससे कांग्रेस को अपनी नीतियों के लागू करने में अड़चन आया। अधिकांश मौकों पर मुसलिम लीग केवल यह दिखाने का असफल प्रयास करती रही कि मुसलमानों का वास्तविक रहनुमा मुस्लिम लीग है, कांग्रेस नहीं। इस प्रकार अंतरिम सरकार में रहते हुए भी मुस्लिम लीग तोड़फोड़ की राजनीति करती रही। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के नेताओं को यह लगने लगा कि विभाजन ही अंतिम रास्ता बचा है।

उपरोक्त घटनाओं का यदि हम विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने देश को विभाजित होने के प्रयासों को रोकने का हर संभव प्रयास किया, मुस्लिम लीग को सरकार में जगह दी सिर्फ इसलिए कि पाकिस्तान का राग अलापना ये छोड़ दें। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और मजबूरन उसे देश विभाजन को स्वीकार करना पड़ा।

Friday, 12 September 2025

ग्रहण के दुष्प्रभाव संबंधी मिथ्या धारणाओं को तोड़ने की बेला

पिछले दिनों 7 सितंबर 2025 को एक खगोलीय घटना ‘चंद्र ग्रहण’ हुई थी। इसके कुछ दिनों के बाद आने वाले 21 सितंबर 2025 को एक अन्य खगोलीय घटना ‘सूर्य ग्रहण’ देखने को मिलने वाली है। यह इस साल का दूसरा सूर्यग्रहण होगा। इससे पूर्व 29 मार्च को आंशिक सूर्यग्रहण देखने को मिला था। जो भारत में नहीं दिखा था। 21 सितंबर को होने वाला सूर्यग्रहण भी आंशिक सूर्य ग्रहण ही है, साथ ही यह भी भारत में नहीं दिखेगा।  बावजूद इसके हमारे देश के अंधविश्वास फैलाने वाले बहुत से मीडिया संस्थान इससे होने वाले दुष्प्रभाव से बचने के उपाय बताने के कार्य में लग गए हैं।

वैज्ञानिक अध्ययन से जब यह स्पष्ट है कि सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण कोई दैविक नहीं बल्कि एक खगोलीय घटना है जो किसी भी व्यक्ति के जीवन पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं डालते। इस दौरान किए गए कार्य ना अशुभ होते हैं, न ही इस दौरान कोई अपवित्र होता है। फिर भी यह ज्योतिष विज्ञान के जानकार अंधविश्वास फैलाने का कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हैरत की बात यह है कि जिन क्षेत्रों में सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण दिखाई पड़ता है, वहाँ ग्रहण के तथाकथित दुष्प्रभाव से मुक्त होने के कपोल कल्पित उपाय तो बताते ही हैं, इसके साथ-साथ जिन क्षेत्रों में यह ग्रहण नहीं दिखाई पड़ता है, वहाँ के लोगों को भी इसके दुष्प्रभाव का डर दिखाकर उन्हें कर्मकांड जैसे फर्जी गतिविधियों में भी घसीटने का काम करते हैं। भोले भाले लोग भी उनकी बातों में आकर, दुष्प्रभाव के डर को कम करने के लिए बिल्कुल वैसा ही करने लगते हैं, जैसा यह उन्हें बताते हैं।   

यहाँ सवाल उठता है कि आखिर इस अंधविश्वास को फैलाने के पीछे निहित कारण क्या है? जवाब है कि यह अंधविश्वास इसलिए फैला रहे हैं क्योंकि इससे उनकी कमाई जुड़ी है। इस प्रक्रिया का अवलोकन करेंगे तो पता चलता है कि ज्योतिष का कारोबार करने वाले एक जाति के लोग ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने के लिए अलग अलग प्रकार के कर्मकांड कराने का निर्देश देते रहते हैं। इस कर्मकांड को कराने में उनकी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहभागिता रहती है। उस कर्मकांड को कराने के बदले उन्हें दक्षिणा मिलती है। ग्रहण के बाद तथाकथित पवित्र नदियों में स्नान करने का निर्देश उनके द्वारा दिया जाता है। ऐसा इसलिए कि लोग नदियों में स्नान कर आस पास बने मंदिर में जाकर पूजा करेंगे, वहाँ मंदिरों में दान करेंगे, पुजारियों को दान या दक्षिणा देंगे, जिससे उनकी, उनकी कुटुम्बों की कमाई हो रही होगी।

ये लोग 21 वीं सदी में रहकर पांचवीं सदी में जी रहे हैं। ऐसे जीने से उनकी लोगों को ठगकर आजीविका चलती है, इसलिए वे इस प्रकार की व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहते। क्योंकि इससे उनका हित जुड़ा है। लेकिन बाकी लोग तो फोकट में पैसे बर्बाद कर रहे हैं न उस कर्मकांड के लिए आवश्यक सामग्री को खरीदकर, फर्जी कर्मकांड का मेहनताना देकर। हम तथाकथित पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, वहाँ से जल लेकर नजदीक स्थित देवालयों में जाते हैं, वहाँ उस जल को किसी देवी देवता पर ऐसे चढ़ाने के लिए नहीं नहीं कहा जाता, उस पात्र में थोड़ा सा चंदन लगाकर मौजूद जल को किसी मंत्र को पढ़कर संकल्पित करने का ढोंग किया जाता है। उसके बदले 10 20 की मांग की जाती है। कल्पना कीजिए किसी छोटे से नदी के किनारे स्थित छोटे से मंदिर में यदि 100 लोग ही पूजा करने जाते हैं, बदले में 10 वहाँ के पुजारियों को देते हैं तो बैठे-बैठे पूरे दिन के वे कितना कमा लिए?

मज़े की बात यह है कि इस दुनिया में अरबों लोग ऐसे हैं जो इन कर्मकांडों से दूर होकर बिना इस मोहपाश में फंसे बेहतरीन जीवन जी रहे हैं। कर्मकांड करने वालों की तुलना में कहीं ज्यादा सुखी संपन्न जीवन व्यतीत कर रहे होते है।

अब हमें जरूरत है हमारे समाज में सदियों से प्रचलित मिथ्या धारणाओं की पहचान कर, उससे खुद को अलग करने की। सभी प्रकार के धारणाओं पर, उसकी सत्यता पर, वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता पर विचार करने की।



Saturday, 30 August 2025

अंधविश्वास परोसते सोशल मीडिया पोस्ट

फेसबुक में अपने पोस्ट की visibility और reach को बढ़ाने के लिए लोग अलग अलग तरीके अपना रहे हैं। इसमें कोई बुराइ नहीं है। क्योंकि वर्तमान समय में बहुत से लोगों को इससे रोजगार मिल रहा है, कमाई का अवसर उपलब्ध कराया जा रहा है। लोगों की आमदनी बढ़ रही है। लेकिन बुराई तब है जब आप इसके माध्यम से समाज में अंधविश्वास परोस रहे हों। स्वतंत्रता के पश्चात से ही हमारे शैक्षिक नीतियां इस प्रकार बनाई जा रही है जिससे हममें वैज्ञानिक सोच विकसित हो, लेकिन जब आप अपने प्रोफ़ाइल से अंधविश्वास को परोस रहे होते हैं, तो आप भारत सरकार के इस नेक कार्य में बाधा बन रहे होते हैं।

मामला एक फेसबुक प्रोफाइल (जो कि एक Un-professional News Channel लगा) से संबंधित है। रिपोर्टिंग कर रहा शख्स एक किन्नर से यह कहलवा रहा है कि जो भी इस पोस्ट पर ‘जय श्रीराम’ कमेंट करेगा उसके लिए मैं दुआ करूँगी कि उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। मेरे देखे जाने तक 1500 से ज्यादा कमेंट उस पोस्ट पर ‘जय श्रीराम’ के रूप में ही आ चुके थे।

मैं पत्रकारिता का छात्र हूँ, इस कारण सरकारी नियंत्रण से मुक्त स्वतंत्र यूट्यूब चैनल, सोशल मीडिया पेज/प्रोफाइल मुझे बहुत पसंद आते हैं। इन न्यू चैनल/प्रोफाइल के माध्यम से मुझे एक से बढ़कर एक खोजी पत्रकारिता करने वाले युवा साथी मिले। उनके वीडियो देखकर मुझे काफी संतुष्टि मिलती है। लेकिन इस वीडियो को देखने के बाद मुझे उतनी ही असंतुष्टि हुई। थोड़ा बहुत गुस्सा भी आया। असंतुष्टि इसलिए कि वह व्यक्ति अंधविश्वास परोस रहा था। इसमें दो प्रकार के अंधविश्वास थे - पहला अंधविश्वास तो यह कि किसी ऐरे-गैरे पोस्ट पर ‘जय श्रीराम’ कमेंट सेक्शन में लिखने से किसी की मनोकामना पूर्ण होगी। दूसरा अंधविश्वास यह कि किसी किन्नर की दुआएं/आशीर्वाद काम करती हैं।

थर्ड जेंडर के रूप में जाने जाने वाले किन्नर समुदाय के प्रति मुझे सहानुभूति है, सड़कों पर, ट्रेन में भिक्षाटन करते, लोगों के झिड़कियाँ, अपशब्द सुनते देख कर मुझे भी उनके लिए बहुत दुख होता है। हमेशा यह सोचता हूँ कि जितनी जल्दी हो सके ये भी समाज की मुख्यधारा में शामिल होकर स्त्रियों और पुरुषों की तरह हर प्रकार के अधिकार का उपभोग कर सके। हज़ारों वर्षों से करते आ रहे अपने पारम्परिक काम ‘नवजात बच्चों को दुआएं देना’ से मुक्त हों। बच्चों को दुआएं/आशीर्वाद देना एक बेकार का आडंबर है, जो लोगों को अंधविश्वासी बनाते हैं। इनकी दुवाओं/आशीर्वाद में जरा भी असर होता तो सड़क पर भीख मांगकर गुजारा करने की जगह इनकी जिंदगी महलों, आलीशान कोठियों में कट रही होती।

देश विदेश के सभी धन्ना सेठ इनको पकड़-पकड़ कर, तस्करी कर लाते, खूब खिलाते-पिलाते और दिन-रात एक करते हुए दुआ/आशीर्वाद देने का व्यापार करवा रहे होते।

AI द्वारा निर्मित 



Wednesday, 6 August 2025

पाठ्यपुस्तक समीक्षा : हमारा अद्भुत संसार, कक्षा : तीन

 

छत्तीसगढ़ शासन द्वारा अकादमिक सत्र 2025 में पूर्व से अध्ययन/अध्यापन कराए जा रहे ‘पर्यावरण अध्ययन’ विषय को एक नए कलेवर, एक नए नाम ‘हमारा अद्भुत संसार’ के साथ लाया गया है। बच्चों के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए उन्हें 21 वीं सदी के कौशलों से युक्त एक वैश्विक नागरिक के रूप में विकसित करने की दिशा में कार्य करते हुए एनसीईआरटी, दिल्ली द्वारा इस पाठ्यपुस्तक को विकसित किया गया है। एससीईआरटी, रायपुर ने इस पाठ्यपुस्तक में छत्तीसगढ़ के संस्कृति एवं संदर्भ को समाहित करते हुए थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ प्रकाशित किया है। पर्यावरण के प्रति बच्चों की संवेदनशीलता को विकसित करने के उद्देश्य से बुनियादी स्तर एवं मध्य स्तर की कड़ी के रूप में इस पाठ्यपुस्तक को प्रकाशित किया गया है।

पाठ्यपुस्तक को चार इकाइयों में विभाजित किया गया है जिसके अंतर्गत तीन छोटे-छोटे अध्याय हैं -

इकाई

नाम

अध्याय

 

1

 

हमारे परिवार और समुदाय

अध्याय 1 - मेरा परिवार और मित्र

अध्याय 2 - मेले में हम

अध्याय 3 - त्योहार मनाएँ एक साथ

 

2

 

जीवन आसपास

अध्याय 4 - कुछ खोज पेड़ पौधों की

अध्याय 5 - पेड़ पौधे और पशु पक्षी हैं साथ

अध्याय 6 - निर्भरता एक दूसरे पर

 

3

 

प्रकृति के उपहार

अध्याय 7 - पानी है अनमोल

अध्याय 8 - हमारा भोजन

अध्याय 9 - स्वस्थ रहो प्रसन्न रहो

 

4

 

आस पास है क्या क्या?

अध्याय 10 - वस्तुओं की दुनिया

अध्याय 11 - कैसे बनी ये वस्तुएँ

अध्याय 12 - क्या और कैसे करें इसका?

 

पहले इकाई (हमारा परिवार और समुदाय) का पहला अध्याय ‘मेरा परिवार और मित्र’ है जो बच्चों को एक परिवार के विभिन्न सदस्य, मित्र, पड़ोसी व इन सभी के बीच के संबंध, परस्पर सहयोग को क्रमबद्ध रूप से परिचित कराता है। साथ ही यह अध्याय बड़ा परिवार, छोटा परिवार से परिचित कराने के साथ-साथ मानव-मानव के बीच के रिश्ते से आगे ले जाते हुए बच्चों को इस ज्ञान से परिचित कराता है कि मानव-जीव जन्तु, मानव-पेड़ पौधे के बीच भी रिश्ते होते हैं जो काफी प्रेम से निभाए भी जाते हैं। दूसरा अध्याय हमारे पास के और दूर के रिश्तेदारों के बीच के परस्पर सहयोगी संबंध से बच्चों को परिचित कराता है। तीसरे अध्याय में देश के दो राज्यों जम्मू एवं झारखंड में वसंत ऋतु को अलग-अलग नाम से मनाए जाने का जिक्र करते हुए विभिन्न प्रकार के व्यंजन एवं संस्कृति से परिचित कराते हुए त्योहारों को मिलजुल कर मनाने का संदेश दिया गया है। साथ ही सुरक्षित यात्रा करने हेतु आवश्यक नियमों, चौड़ी पक्की सड़क, संकरी कच्ची सड़क से भी परिचित कराया गया है।  

दूसरा इकाई ‘जीवन आसपास’ हमारे आसपास के जीवन से संबंधित है, जो तीन अध्यायों में विभाजित है। इसका पहला अध्याय ‘कुछ खोज पेड़ पौधों की’ है। यह अध्याय बच्चों को हमारे आस पास उगने वाले विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों, उनके भौतिक विशेषताओं, एवं महत्त्व से परिचित कराता है। इस इकाई का दूसरा अध्याय ‘पेड़ पौधे और पशु पक्षी हैं साथ’ है। पौधों तथा जानवरों के बीच के परस्पर संबंध से परिचित कराता यह अध्याय बच्चों को उनकी आवास एवं व्यवहार से संबंधित ज्ञान देता है। तीसरा अध्याय ‘निर्भरता एक दूसरे पर’ है जो यह दिखाता है कि हम पौधों तथा जानवरों के साथ किस प्रकार जुड़े हैं।  

तीसरा इकाई ‘प्रकृति के उपहार’ है इसके अंतर्गत भोजन और पानी के संबंध में चर्चा किया गया है। इस इकाई का पहला अध्याय ‘पानी है अनमोल’ है जो इस बात पर केंद्रित है कि किस प्रकार बारिश हमें पानी जैसे अनमोल उपहार प्रदान करती है। यह अनमोल उपहार हमें किन किन स्रोतों से प्राप्त होता है? किस प्रकार हम इस अनमोल उपहार का प्रभावी तरीके से उपयोग करते हुए इसका संरक्षण कर सकते हैं। दूसरा अध्याय है ‘हमारा भोजन’ इसके अंतर्गत विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने वाले खाद्य पदार्थ एवं इससे प्राप्त होने वाले लाभकारी पोषक तत्व के संबंध में बच्चों को बताया गया है। तीसरा अध्याय ‘स्वस्थ रहो प्रसन्न रहो’ है है जो अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के महत्त्व एवं तरीके पर विस्तृत जानकारी देता है।

चौथा इकाई ‘आस-पास है क्या-क्या?’ है। इस इकाई में अलग अलग प्रकार के पदार्थों/धातुओं जैसे लकड़ी, कांच, प्लास्टिक से निर्मित उन वस्तुओं को शामिल किया गया है जिन का उपयोग मनुष्य सुविधापूर्वक रहने के लिए करते हैं। साथ ही इस संबंध में भी महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं कि अपने आस पास के परिवेश को स्वच्छ बनाए रखने के लिए उसका प्रबंधन कैसे किया जाना चाहिए। इस इकाई का पहला अध्याय ‘वस्तुओं की दुनिया’ है। यह अध्याय बच्चों को यह जानने में मदद करता है कि कौन कौन सी वस्तुएं प्रकृति निर्मित है और कौन-कौन मानव के द्वारा बनाई गई है। दूसरा अध्याय ‘कैसे बनी ये वस्तुएँ?’ है, इस अध्ययन में यह पता लगाने का प्रयास किया गया है कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किस प्रकार घरों का निर्माण किया जाता है? तीसरा अध्याय ‘क्या और कैसे करें इसका?’ है। इस अध्याय में हमें अपने घरों और आसपास स्वच्छता बनाए रखने के तरीकों से परिचित कराया गया है।

एससीईआरटी, रायपुर के द्वारा प्रकाशित 162 पृष्ठों वाले हमारे आस पास के जीवन से संबंधित जानकारियों से सुसज्जित इस पाठ्यपुस्तक के अध्ययन से प्राप्त अंतर्दृष्टि को निम्न बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है -  

·       पाठ्यपुस्तक बहुत ही सरल तरीके से सरल शब्दों में बच्चों के आसपास की दुनिया जैसे – मिट्टी, नदी, पहाड़, उनपर आश्रित रहने वाले अलग-अलग आकार-आकृतियों के पेड़-पौधे (शाक, घास, लताऐं, बेल) उसके भाग (जड़, तना, पत्ती, फूल, फल, बीज) उनकी विशेषताएं, महत्ता/उपयोगिता, इन पेड़-पौधों पर आश्रित रहने वाले पशु-पक्षी, जीव-जन्तु (उनकी बोली, परिवार-रिश्ते जैसे विभिन्न सामाजिक अवधारणाओं, सांस्कृतिक जीवन (खानपान, कपड़े, त्योहार) आदि से परिचित कराता है। इनके संरक्षण की आवश्यकता, तरीके पर समझ विकसित करता है।

·       इस पाठ्यपुस्तक में एक अच्छी बात यह लगी कि प्रत्येक इकाई से संबंधित अध्यायों के संबंध में शिक्षकों को संक्षेप में परिचित कराया गया कि इस इकाई के अंतर्गत कितने अध्याय हैं? किस अध्याय में किसके संबंध में चर्चा की गई है? उस अध्याय पर कार्य करने के दौरान किन किन शिक्षण सहायक सामग्रियों की आवश्यकता होगी? को भी संक्षेप में बेहतर तरीके से बताया गया है ताकि पाठ को समझने में शिक्षक के साथ-साथ बच्चों को भी कोई असुविधा न हो। विशेष रूप से शून्य लागत वाले शिक्षण सहायक सामग्री।   

·       समूह कार्य, यह जोड़ी में रहकर स्वयं से कार्य कर सीखने को बढ़ावा दिया गया है।

·       प्रत्येक पृष्ठ में पाठ से संबंधित चित्रों को काफी बेहतर प्रिन्ट के साथ लगाया गया है।

·       प्रत्येक पाठ में मानवीय मूल्यों को विकसित करने वाले सवालों को भी शामिल किया गया है। जैसे पहले अध्याय का एक सवाल देख सकते हैं – क्या आपको लगता है कि हमें जानवरों को तंग क्यों नहीं करना चाहिए या चोट क्यों नहीं पहुंचाना चाहिए? जानवरों के व्यवहार से भी परिचित कराते हुए ये बताया गया है कि जानवरों से डर लगने या उन्हें पसंद न करने पर भी मारना नहीं चाहिए। क्योंकि आम तौर पर जानवर हमें तब तक नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, जब तक कि वे हमसे खतरा महसूस नहीं करते। गर्मी के महीने में पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करने हेतु बर्डबाथ बनवाना।

·       पीका-बू (छुपम-छुपाई), अंताक्षरी, सांप-सीढ़ी, पिट्टुल जैसे स्थानीय, पारंपरिक खेल जिससे लगभग सभी बच्चे परिचित होते हैं, को शामिल किया गया है, ताकि बच्चे स्वयं को उससे जोड़ कर कही जा रही बातों को समझ सकें।

·       किसी अवधारणा पर कार्य करने के बाद दिया गया अभ्यास कार्य समझ व स्मरण आधारित होने के साथ-साथ स्वतंत्र चिंतन या व्यक्तिगत अनुभव व्यक्त करने से संबंधित है।

·       पाठ्यपुस्तक को इतनी बेहतरीन तरीके से बनाया गया है कि संबंधित अवधारणा पर समझ बनाने में अलग से कार्यपत्रक के उपयोग की आवश्यकता महसूस नहीं होती है।

·       एक अवधारणा पर समझ बनाने के बाद उनसे संबंधित कुछ स्वतंत्र चिंतन करने वाले कुछ सवाल दिए गए हैं, उसपर कार्य कर समझ बनाने के बाद आगे की अवधारणा से परिचित कराया गया है। 

·       ऐसे वाक्य प्रयुक्त किए गए हैं जो लैंगिक विषमता को पाटने का कार्य करता है जैसे – मेरे माता पिता घर की सफाई और खाना पकाने से लेकर बाजार के सभी कामों में एक दूसरे की सहायता करते हैं। रवि भैया सब्जियों को साफ करके काटने में सहायता करते हैं। (अध्याय 1, पृष्ठ 10)

·       प्रत्येक अध्याय में गणितीय दक्षता से संबंधित प्रश्न भी शामिल किए गए हैं- जैसे – आपके परिवार में उम्र में सबसे बड़ा व्यक्ति कौन है? आपके परिवार में उम्र में सबसे छोटा व्यक्ति कौन है? आपके परिवार में सबसे लंबा व्यक्ति कौन है? (अध्याय 1, पृष्ठ 12)

·       चित्र पठन, समझ के साथ चिंतन करते हुए लेखन करने से संबंधित गतिविधियां प्रत्येक पाठ में देखने को मिलती है।

·       प्रत्येक अध्याय में आसान से लगने वाले चित्र बनाने की गतिविधियां इस ओर इशारा करती है कि बच्चों के रचनात्मक विकास पर भी गहराई से कार्य किया जा रहा है।

·       FLN स्तर के बच्चों को भी ध्यान में रखते हुए उनके लिए डिकोडिंग व बौद्धिक विकास से संबंधित सवाल (वर्ग पहेली) रखे गए हैं। 

·       संबंधित अवधारणाओं पर बेहतर समझ बनाने के लिए रोल प्ले (नाटकीय रूपांतरण) जैसे शिक्षण विधि को भी शामिल किया गया है। (अध्याय 2 पृष्ठ 32)

·       मौखिक भाषा विकास हेतु चर्चा किए जा रहे विषय से संबंधित बालगीत, कहानी को भी शामिल किया गया है। जैसे अध्याय 3 में शामिल किया गया बालगीत ‘वसंत ऋतु’। अध्ययन आठ में भोजन की महत्ता को दिखाने के लिए ‘शशि की कहानी – धावक’ नामक कहानी का उपयोग किया गया है।

·       आगे की कक्षा में मानचित्र के घटकों (दिशा, संकेत चिन्ह) की ओर ले जाने हेतु पृष्ठभूमि तैयार की गई है। (अध्याय 3 पृष्ठ 43)

पाठ्यपुस्तक के उपरोक्त विशेषताओं के अतिरिक्त कुछ ऐसे भी कमियाँ देखने को मिली जो ये यदि सम्मिलित होते तो पाठ्यपुस्तक की समृद्धि को बढ़ा रहे होते।

·       ‘त्योहार मनाएं एक साथ’ पाठ में भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में वसंत ऋतु से संबंधित त्योहार मनाए जाने की बात आई है, आकलन खंड में विभिन्न क्षेत्र व धर्मों से संबंधित त्योहारों या धार्मिक आयोजनों (जैसे क्रिसमस, ईद उल फ़ितर, छठ पूजा आदि) को शामिल किया गया है। इसी आधार पर इसके पूर्व के अध्याय में मेला का जिक्र करते हुए कुंभ को शामिल किया गया है। ईद के अवसर पर ईदगाह में लगने वाले मेले का भी यदि वहाँ उल्लेख किया जाता तो इस्लाम धर्म मानने वाले बच्चे भी मेले की अवधारणा से जुड़ पाते।

·       पूरे पाठ्यपुस्तक में एक ही धर्म केंद्रित पात्रों के नाम को शामिल किया गया है। पाठ्यपुस्तक को समावेशी बनाने के लिए अन्य धर्मों से संबंधित लोगों के नाम को शामिल किया जा सकता था। उदाहरण के लिए एक अध्याय में यदि बेला का नाम आ रहा है तो अगले अध्याय में शबाना, जॉन, अब्दुल जैसे नाम का भी जिक्र किया जा सकता था।

·       अध्याय 3 त्योहार मनाएं एक साथ में गतिविधि 1 को शामिल करने का लॉजिक समझ नहीं आया। (पेज 36) इस गतिविधि से संबंधित चर्चा इस अध्याय में नहीं की गई है।

·       तीसरे अध्याय में ऐसे ऐसे व्यंजनों का नाम (होलिगे, सद्दा) शामिल किया गया है जिसके बारे में बच्चों को बता पाने में बहुत ही मुश्किल होगी कि इसका संबंध किस त्योहार से है? 

नउम्मीद है कि नए कलेवर में लाया गया यह पाठ्यपुस्तक बच्चों में 21 वीं सदी के कौशल को विकसित करने में सहायक होगा।