Saturday, 13 September 2025

कभी कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग ने एक साथ सरकार चलाया था।

1946 में ब्रिटिश हुकूमत के समय हमारे देश में एक अंतरिम (अस्थायी) सरकार बनी थी। उद्देश्य था - आजादी से पहले भारत में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू करना। ब्रिटिश सरकार ने भारत को आजादी देने के लिए एक कैबिनेट मिशन जिसे क्रिप्स मिशन भी कहा जाता है, को भारत भेजा। इस आयोग ने एक संविधान सभा बनाने और तब तक एक अंतरिम सरकार चलाने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव के तहत 1946 में प्रांतीय विधानसभाओं में चुनाव कराए गए। कुल 1585 सीटों पर चुनाव हुए।

कांग्रेस पार्टी को 923 सीट, मुस्लिम लीग को 425 सीट एवं अन्य पार्टियों या स्वतंत्र उम्मीदवार को 237 सीट मिली। कांग्रेस को गैर मुस्लिम क्षेत्रों में बहुमत मिला तो वही मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटों में 90% से ज्यादा सीट पर जीत दर्ज की। इससे मुस्लिम लीग को मुसलमानों के एक मात्र प्रतिनिधि होने का अभिमान आ गया।  

इस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेवेल ने सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरे काँग्रेस पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया। इस तरह 2 सितंबर 1946 को कांग्रेस पार्टी की अगुवाई में अंतरिम सरकार बनी। तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड वेवेल एवं उनके पश्चात् लॉर्ड माउंटबेटेन इस अंतरिम (अस्थायी) सरकार की अध्यक्ष थे। जबकि जवाहर लाल नेहरू इसके उपाध्यक्ष थे। यह सरकार 15 अगस्त 1947 तक स्थायी सरकार बनने तक चली।

मजेदार बात यह है कि इस सरकार में पक्ष और विपक्ष (कांग्रेस और मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि) दोनों शामिल किए गए थे। एक सिख प्रतिनिधि को भी शामिल किया गया था। सभी प्रतिनिधियों को कुछ इस प्रकार से जिम्मेदारियां प्राप्त थी -

·       जवाहरलाल नेहरू (कांग्रेस) के पास विदेशी मामलों की जिम्मेदारी थी।

·       सरदार वल्लभ भाई पटेल (कांग्रेस) के पास गृह विभाग था।

·       डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद (कांग्रेस) के पास खाद्य एवं कृषि विभाग की जिम्मेदारी थी।

·       सी राजगोपालाचारी (कांग्रेस) के पास शिक्षा विभाग को संभालने की जिम्मेदारी थी।

·       जॉन मथाई (कांग्रेस) के पास उद्योग एवं आपूर्ति विभाग, रफ़ी अहमद किदवई (कांग्रेस) के पास संचार विभाग,  

·       बल्देव सिंह (सिक्ख प्रतिनिधि) को रक्षा विभाग संभालने की जिम्मेदारी दी गई थी।

अक्टूबर 1946 में मुस्लिम लीग के कुछ सदस्यों को भी ब्रिटिश सरकार द्वारा अंतरिम सरकार में शामिल कर लिया गया और उन्हें भी कुछ विभागों की जिम्मेदारी दी गई। जो इस प्रकार थे –

·       लियाकत अली खान (मुस्लिम लीग) को वित्त विभाग

·       अब्दुर रब निश्तर को डाक एवं हवाई विभाग

·       आई आई चुंदरीगर को वाणिज्य विभाग

·       जोगेंद्र नाथ मंडल को विधि (law) विभाग एवं गजनफर अली खान को स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी मिली।

यहाँ पर सवाल उठता है कि 1946 की अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के नेताओं को शामिल क्यों किया गया था? इसके पीछे का तर्क क्या था? इसके पीछे 2 मुख्य कारण थे –

1.     चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी दावा करती थी कि वह पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करती है। लेकिन मुस्लिम बहुल क्षेत्रों पर (विशेष रूप से जो मुसलमानों के लिए आरक्षित थे) मुसलिम लीग के शत प्रतिशत बहुमत ने यह साबित कर दिया कि ‘कांग्रेस मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करती है’। इस चुनाव के परिणाम ने मुसलिम लीग एवं कांग्रेस को बराबरी की स्थिति पर ला खड़ा कर दिया। एक को मुसलमानों का बहुमत प्राप्त था तो दूसरे को गैर मुसलमानों का। ऐसे में ब्रिटिश सरकार को दोनों ही पी पार्टियों के प्रतिनिधियों को अंतरिम सरकार में शामिल करने का निर्णय लेना पड़ा। शुरुआत में मुस्लिम लीग चूंकि पाकिस्तान की मांग पर अड़ी थी। इसीलिए कांग्रेस के साथ सरकार में शामिल होने को तैयार नहीं थी। लेकिन बाद में राजनीतिक दबाव एवं सत्ता में हिस्सेदारी की चाह ने अक्टूबर 1946 में अंतरिम सरकार में शामिल होने के लिए मजबूर होना पड़ा।   

2.     दूसरा एक महत्वपूर्ण कारण यह था कि उस दौरान मुस्लिम लीग के सर्वोच्च नेता मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में पाकिस्तान की मांग काफी बलवती थी। ऐसी स्थिति में ब्रिटिश के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी शुरुआती विरोध के बाद मजबूरन चाहने लगी कि यदि मुस्लिम लीग को सरकार में हिस्सा दिया जाए तो शायद वह विभाजन की मांग से पीछे हट जाएगी या नरम पड़ जाएगी। इसलिए कांग्रेस ने भी पी अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग को शामिल करने के फैसले का कोई खास विरोध नहीं किया।  

कांग्रेस के नेताओं को उम्मीद थी कि मुस्लिम लीग से सहयोग मिलेगी, लेकिन हुआ इसका उल्टा। मुस्लिम लीग के लियाकत अली को कांग्रेस ने वित्त विभाग दिया। लेकिन लियाकत अली ने अलग अलग विभागों के वित्तीय आवंटन में बार बार अड़चन लगाने के साथ साथ कई अन्य मौकों पर पी ऐसे कार्य किए जिससे कांग्रेस को अपनी नीतियों के लागू करने में अड़चन आया। अधिकांश मौकों पर मुसलिम लीग केवल यह दिखाने का असफल प्रयास करती रही कि मुसलमानों का वास्तविक रहनुमा मुस्लिम लीग है, कांग्रेस नहीं। इस प्रकार अंतरिम सरकार में रहते हुए भी मुस्लिम लीग तोड़फोड़ की राजनीति करती रही। ऐसे में कांग्रेस पार्टी के नेताओं को यह लगने लगा कि विभाजन ही अंतिम रास्ता बचा है।

उपरोक्त घटनाओं का यदि हम विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने देश को विभाजित होने के प्रयासों को रोकने का हर संभव प्रयास किया, मुस्लिम लीग को सरकार में जगह दी सिर्फ इसलिए कि पाकिस्तान का राग अलापना ये छोड़ दें। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और मजबूरन उसे देश विभाजन को स्वीकार करना पड़ा।

Friday, 12 September 2025

ग्रहण के दुष्प्रभाव संबंधी मिथ्या धारणाओं को तोड़ने की बेला

पिछले दिनों 7 सितंबर 2025 को एक खगोलीय घटना ‘चंद्र ग्रहण’ हुई थी। इसके कुछ दिनों के बाद आने वाले 21 सितंबर 2025 को एक अन्य खगोलीय घटना ‘सूर्य ग्रहण’ देखने को मिलने वाली है। यह इस साल का दूसरा सूर्यग्रहण होगा। इससे पूर्व 29 मार्च को आंशिक सूर्यग्रहण देखने को मिला था। जो भारत में नहीं दिखा था। 21 सितंबर को होने वाला सूर्यग्रहण भी आंशिक सूर्य ग्रहण ही है, साथ ही यह भी भारत में नहीं दिखेगा।  बावजूद इसके हमारे देश के अंधविश्वास फैलाने वाले बहुत से मीडिया संस्थान इससे होने वाले दुष्प्रभाव से बचने के उपाय बताने के कार्य में लग गए हैं।

वैज्ञानिक अध्ययन से जब यह स्पष्ट है कि सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण कोई दैविक नहीं बल्कि एक खगोलीय घटना है जो किसी भी व्यक्ति के जीवन पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं डालते। इस दौरान किए गए कार्य ना अशुभ होते हैं, न ही इस दौरान कोई अपवित्र होता है। फिर भी यह ज्योतिष विज्ञान के जानकार अंधविश्वास फैलाने का कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हैरत की बात यह है कि जिन क्षेत्रों में सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण दिखाई पड़ता है, वहाँ ग्रहण के तथाकथित दुष्प्रभाव से मुक्त होने के कपोल कल्पित उपाय तो बताते ही हैं, इसके साथ-साथ जिन क्षेत्रों में यह ग्रहण नहीं दिखाई पड़ता है, वहाँ के लोगों को भी इसके दुष्प्रभाव का डर दिखाकर उन्हें कर्मकांड जैसे फर्जी गतिविधियों में भी घसीटने का काम करते हैं। भोले भाले लोग भी उनकी बातों में आकर, दुष्प्रभाव के डर को कम करने के लिए बिल्कुल वैसा ही करने लगते हैं, जैसा यह उन्हें बताते हैं।   

यहाँ सवाल उठता है कि आखिर इस अंधविश्वास को फैलाने के पीछे निहित कारण क्या है? जवाब है कि यह अंधविश्वास इसलिए फैला रहे हैं क्योंकि इससे उनकी कमाई जुड़ी है। इस प्रक्रिया का अवलोकन करेंगे तो पता चलता है कि ज्योतिष का कारोबार करने वाले एक जाति के लोग ग्रहण के दुष्प्रभाव से बचने के लिए अलग अलग प्रकार के कर्मकांड कराने का निर्देश देते रहते हैं। इस कर्मकांड को कराने में उनकी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहभागिता रहती है। उस कर्मकांड को कराने के बदले उन्हें दक्षिणा मिलती है। ग्रहण के बाद तथाकथित पवित्र नदियों में स्नान करने का निर्देश उनके द्वारा दिया जाता है। ऐसा इसलिए कि लोग नदियों में स्नान कर आस पास बने मंदिर में जाकर पूजा करेंगे, वहाँ मंदिरों में दान करेंगे, पुजारियों को दान या दक्षिणा देंगे, जिससे उनकी, उनकी कुटुम्बों की कमाई हो रही होगी।

ये लोग 21 वीं सदी में रहकर पांचवीं सदी में जी रहे हैं। ऐसे जीने से उनकी लोगों को ठगकर आजीविका चलती है, इसलिए वे इस प्रकार की व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं करना चाहते। क्योंकि इससे उनका हित जुड़ा है। लेकिन बाकी लोग तो फोकट में पैसे बर्बाद कर रहे हैं न उस कर्मकांड के लिए आवश्यक सामग्री को खरीदकर, फर्जी कर्मकांड का मेहनताना देकर। हम तथाकथित पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, वहाँ से जल लेकर नजदीक स्थित देवालयों में जाते हैं, वहाँ उस जल को किसी देवी देवता पर ऐसे चढ़ाने के लिए नहीं नहीं कहा जाता, उस पात्र में थोड़ा सा चंदन लगाकर मौजूद जल को किसी मंत्र को पढ़कर संकल्पित करने का ढोंग किया जाता है। उसके बदले 10 20 की मांग की जाती है। कल्पना कीजिए किसी छोटे से नदी के किनारे स्थित छोटे से मंदिर में यदि 100 लोग ही पूजा करने जाते हैं, बदले में 10 वहाँ के पुजारियों को देते हैं तो बैठे-बैठे पूरे दिन के वे कितना कमा लिए?

मज़े की बात यह है कि इस दुनिया में अरबों लोग ऐसे हैं जो इन कर्मकांडों से दूर होकर बिना इस मोहपाश में फंसे बेहतरीन जीवन जी रहे हैं। कर्मकांड करने वालों की तुलना में कहीं ज्यादा सुखी संपन्न जीवन व्यतीत कर रहे होते है।

अब हमें जरूरत है हमारे समाज में सदियों से प्रचलित मिथ्या धारणाओं की पहचान कर, उससे खुद को अलग करने की। सभी प्रकार के धारणाओं पर, उसकी सत्यता पर, वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता पर विचार करने की।



Saturday, 30 August 2025

अंधविश्वास परोसते सोशल मीडिया पोस्ट

फेसबुक में अपने पोस्ट की visibility और reach को बढ़ाने के लिए लोग अलग अलग तरीके अपना रहे हैं। इसमें कोई बुराइ नहीं है। क्योंकि वर्तमान समय में बहुत से लोगों को इससे रोजगार मिल रहा है, कमाई का अवसर उपलब्ध कराया जा रहा है। लोगों की आमदनी बढ़ रही है। लेकिन बुराई तब है जब आप इसके माध्यम से समाज में अंधविश्वास परोस रहे हों। स्वतंत्रता के पश्चात से ही हमारे शैक्षिक नीतियां इस प्रकार बनाई जा रही है जिससे हममें वैज्ञानिक सोच विकसित हो, लेकिन जब आप अपने प्रोफ़ाइल से अंधविश्वास को परोस रहे होते हैं, तो आप भारत सरकार के इस नेक कार्य में बाधा बन रहे होते हैं।

मामला एक फेसबुक प्रोफाइल (जो कि एक Un-professional News Channel लगा) से संबंधित है। रिपोर्टिंग कर रहा शख्स एक किन्नर से यह कहलवा रहा है कि जो भी इस पोस्ट पर ‘जय श्रीराम’ कमेंट करेगा उसके लिए मैं दुआ करूँगी कि उसकी मनोकामना पूर्ण होगी। मेरे देखे जाने तक 1500 से ज्यादा कमेंट उस पोस्ट पर ‘जय श्रीराम’ के रूप में ही आ चुके थे।

मैं पत्रकारिता का छात्र हूँ, इस कारण सरकारी नियंत्रण से मुक्त स्वतंत्र यूट्यूब चैनल, सोशल मीडिया पेज/प्रोफाइल मुझे बहुत पसंद आते हैं। इन न्यू चैनल/प्रोफाइल के माध्यम से मुझे एक से बढ़कर एक खोजी पत्रकारिता करने वाले युवा साथी मिले। उनके वीडियो देखकर मुझे काफी संतुष्टि मिलती है। लेकिन इस वीडियो को देखने के बाद मुझे उतनी ही असंतुष्टि हुई। थोड़ा बहुत गुस्सा भी आया। असंतुष्टि इसलिए कि वह व्यक्ति अंधविश्वास परोस रहा था। इसमें दो प्रकार के अंधविश्वास थे - पहला अंधविश्वास तो यह कि किसी ऐरे-गैरे पोस्ट पर ‘जय श्रीराम’ कमेंट सेक्शन में लिखने से किसी की मनोकामना पूर्ण होगी। दूसरा अंधविश्वास यह कि किसी किन्नर की दुआएं/आशीर्वाद काम करती हैं।

थर्ड जेंडर के रूप में जाने जाने वाले किन्नर समुदाय के प्रति मुझे सहानुभूति है, सड़कों पर, ट्रेन में भिक्षाटन करते, लोगों के झिड़कियाँ, अपशब्द सुनते देख कर मुझे भी उनके लिए बहुत दुख होता है। हमेशा यह सोचता हूँ कि जितनी जल्दी हो सके ये भी समाज की मुख्यधारा में शामिल होकर स्त्रियों और पुरुषों की तरह हर प्रकार के अधिकार का उपभोग कर सके। हज़ारों वर्षों से करते आ रहे अपने पारम्परिक काम ‘नवजात बच्चों को दुआएं देना’ से मुक्त हों। बच्चों को दुआएं/आशीर्वाद देना एक बेकार का आडंबर है, जो लोगों को अंधविश्वासी बनाते हैं। इनकी दुवाओं/आशीर्वाद में जरा भी असर होता तो सड़क पर भीख मांगकर गुजारा करने की जगह इनकी जिंदगी महलों, आलीशान कोठियों में कट रही होती।

देश विदेश के सभी धन्ना सेठ इनको पकड़-पकड़ कर, तस्करी कर लाते, खूब खिलाते-पिलाते और दिन-रात एक करते हुए दुआ/आशीर्वाद देने का व्यापार करवा रहे होते।

AI द्वारा निर्मित 



Wednesday, 6 August 2025

पाठ्यपुस्तक समीक्षा : हमारा अद्भुत संसार, कक्षा : तीन

 

छत्तीसगढ़ शासन द्वारा अकादमिक सत्र 2025 में पूर्व से अध्ययन/अध्यापन कराए जा रहे ‘पर्यावरण अध्ययन’ विषय को एक नए कलेवर, एक नए नाम ‘हमारा अद्भुत संसार’ के साथ लाया गया है। बच्चों के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखते हुए उन्हें 21 वीं सदी के कौशलों से युक्त एक वैश्विक नागरिक के रूप में विकसित करने की दिशा में कार्य करते हुए एनसीईआरटी, दिल्ली द्वारा इस पाठ्यपुस्तक को विकसित किया गया है। एससीईआरटी, रायपुर ने इस पाठ्यपुस्तक में छत्तीसगढ़ के संस्कृति एवं संदर्भ को समाहित करते हुए थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ प्रकाशित किया है। पर्यावरण के प्रति बच्चों की संवेदनशीलता को विकसित करने के उद्देश्य से बुनियादी स्तर एवं मध्य स्तर की कड़ी के रूप में इस पाठ्यपुस्तक को प्रकाशित किया गया है।

पाठ्यपुस्तक को चार इकाइयों में विभाजित किया गया है जिसके अंतर्गत तीन छोटे-छोटे अध्याय हैं -

इकाई

नाम

अध्याय

 

1

 

हमारे परिवार और समुदाय

अध्याय 1 - मेरा परिवार और मित्र

अध्याय 2 - मेले में हम

अध्याय 3 - त्योहार मनाएँ एक साथ

 

2

 

जीवन आसपास

अध्याय 4 - कुछ खोज पेड़ पौधों की

अध्याय 5 - पेड़ पौधे और पशु पक्षी हैं साथ

अध्याय 6 - निर्भरता एक दूसरे पर

 

3

 

प्रकृति के उपहार

अध्याय 7 - पानी है अनमोल

अध्याय 8 - हमारा भोजन

अध्याय 9 - स्वस्थ रहो प्रसन्न रहो

 

4

 

आस पास है क्या क्या?

अध्याय 10 - वस्तुओं की दुनिया

अध्याय 11 - कैसे बनी ये वस्तुएँ

अध्याय 12 - क्या और कैसे करें इसका?

 

पहले इकाई (हमारा परिवार और समुदाय) का पहला अध्याय ‘मेरा परिवार और मित्र’ है जो बच्चों को एक परिवार के विभिन्न सदस्य, मित्र, पड़ोसी व इन सभी के बीच के संबंध, परस्पर सहयोग को क्रमबद्ध रूप से परिचित कराता है। साथ ही यह अध्याय बड़ा परिवार, छोटा परिवार से परिचित कराने के साथ-साथ मानव-मानव के बीच के रिश्ते से आगे ले जाते हुए बच्चों को इस ज्ञान से परिचित कराता है कि मानव-जीव जन्तु, मानव-पेड़ पौधे के बीच भी रिश्ते होते हैं जो काफी प्रेम से निभाए भी जाते हैं। दूसरा अध्याय हमारे पास के और दूर के रिश्तेदारों के बीच के परस्पर सहयोगी संबंध से बच्चों को परिचित कराता है। तीसरे अध्याय में देश के दो राज्यों जम्मू एवं झारखंड में वसंत ऋतु को अलग-अलग नाम से मनाए जाने का जिक्र करते हुए विभिन्न प्रकार के व्यंजन एवं संस्कृति से परिचित कराते हुए त्योहारों को मिलजुल कर मनाने का संदेश दिया गया है। साथ ही सुरक्षित यात्रा करने हेतु आवश्यक नियमों, चौड़ी पक्की सड़क, संकरी कच्ची सड़क से भी परिचित कराया गया है।  

दूसरा इकाई ‘जीवन आसपास’ हमारे आसपास के जीवन से संबंधित है, जो तीन अध्यायों में विभाजित है। इसका पहला अध्याय ‘कुछ खोज पेड़ पौधों की’ है। यह अध्याय बच्चों को हमारे आस पास उगने वाले विभिन्न प्रकार के पेड़ पौधों, उनके भौतिक विशेषताओं, एवं महत्त्व से परिचित कराता है। इस इकाई का दूसरा अध्याय ‘पेड़ पौधे और पशु पक्षी हैं साथ’ है। पौधों तथा जानवरों के बीच के परस्पर संबंध से परिचित कराता यह अध्याय बच्चों को उनकी आवास एवं व्यवहार से संबंधित ज्ञान देता है। तीसरा अध्याय ‘निर्भरता एक दूसरे पर’ है जो यह दिखाता है कि हम पौधों तथा जानवरों के साथ किस प्रकार जुड़े हैं।  

तीसरा इकाई ‘प्रकृति के उपहार’ है इसके अंतर्गत भोजन और पानी के संबंध में चर्चा किया गया है। इस इकाई का पहला अध्याय ‘पानी है अनमोल’ है जो इस बात पर केंद्रित है कि किस प्रकार बारिश हमें पानी जैसे अनमोल उपहार प्रदान करती है। यह अनमोल उपहार हमें किन किन स्रोतों से प्राप्त होता है? किस प्रकार हम इस अनमोल उपहार का प्रभावी तरीके से उपयोग करते हुए इसका संरक्षण कर सकते हैं। दूसरा अध्याय है ‘हमारा भोजन’ इसके अंतर्गत विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने वाले खाद्य पदार्थ एवं इससे प्राप्त होने वाले लाभकारी पोषक तत्व के संबंध में बच्चों को बताया गया है। तीसरा अध्याय ‘स्वस्थ रहो प्रसन्न रहो’ है है जो अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के महत्त्व एवं तरीके पर विस्तृत जानकारी देता है।

चौथा इकाई ‘आस-पास है क्या-क्या?’ है। इस इकाई में अलग अलग प्रकार के पदार्थों/धातुओं जैसे लकड़ी, कांच, प्लास्टिक से निर्मित उन वस्तुओं को शामिल किया गया है जिन का उपयोग मनुष्य सुविधापूर्वक रहने के लिए करते हैं। साथ ही इस संबंध में भी महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं कि अपने आस पास के परिवेश को स्वच्छ बनाए रखने के लिए उसका प्रबंधन कैसे किया जाना चाहिए। इस इकाई का पहला अध्याय ‘वस्तुओं की दुनिया’ है। यह अध्याय बच्चों को यह जानने में मदद करता है कि कौन कौन सी वस्तुएं प्रकृति निर्मित है और कौन-कौन मानव के द्वारा बनाई गई है। दूसरा अध्याय ‘कैसे बनी ये वस्तुएँ?’ है, इस अध्ययन में यह पता लगाने का प्रयास किया गया है कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किस प्रकार घरों का निर्माण किया जाता है? तीसरा अध्याय ‘क्या और कैसे करें इसका?’ है। इस अध्याय में हमें अपने घरों और आसपास स्वच्छता बनाए रखने के तरीकों से परिचित कराया गया है।

एससीईआरटी, रायपुर के द्वारा प्रकाशित 162 पृष्ठों वाले हमारे आस पास के जीवन से संबंधित जानकारियों से सुसज्जित इस पाठ्यपुस्तक के अध्ययन से प्राप्त अंतर्दृष्टि को निम्न बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है -  

·       पाठ्यपुस्तक बहुत ही सरल तरीके से सरल शब्दों में बच्चों के आसपास की दुनिया जैसे – मिट्टी, नदी, पहाड़, उनपर आश्रित रहने वाले अलग-अलग आकार-आकृतियों के पेड़-पौधे (शाक, घास, लताऐं, बेल) उसके भाग (जड़, तना, पत्ती, फूल, फल, बीज) उनकी विशेषताएं, महत्ता/उपयोगिता, इन पेड़-पौधों पर आश्रित रहने वाले पशु-पक्षी, जीव-जन्तु (उनकी बोली, परिवार-रिश्ते जैसे विभिन्न सामाजिक अवधारणाओं, सांस्कृतिक जीवन (खानपान, कपड़े, त्योहार) आदि से परिचित कराता है। इनके संरक्षण की आवश्यकता, तरीके पर समझ विकसित करता है।

·       इस पाठ्यपुस्तक में एक अच्छी बात यह लगी कि प्रत्येक इकाई से संबंधित अध्यायों के संबंध में शिक्षकों को संक्षेप में परिचित कराया गया कि इस इकाई के अंतर्गत कितने अध्याय हैं? किस अध्याय में किसके संबंध में चर्चा की गई है? उस अध्याय पर कार्य करने के दौरान किन किन शिक्षण सहायक सामग्रियों की आवश्यकता होगी? को भी संक्षेप में बेहतर तरीके से बताया गया है ताकि पाठ को समझने में शिक्षक के साथ-साथ बच्चों को भी कोई असुविधा न हो। विशेष रूप से शून्य लागत वाले शिक्षण सहायक सामग्री।   

·       समूह कार्य, यह जोड़ी में रहकर स्वयं से कार्य कर सीखने को बढ़ावा दिया गया है।

·       प्रत्येक पृष्ठ में पाठ से संबंधित चित्रों को काफी बेहतर प्रिन्ट के साथ लगाया गया है।

·       प्रत्येक पाठ में मानवीय मूल्यों को विकसित करने वाले सवालों को भी शामिल किया गया है। जैसे पहले अध्याय का एक सवाल देख सकते हैं – क्या आपको लगता है कि हमें जानवरों को तंग क्यों नहीं करना चाहिए या चोट क्यों नहीं पहुंचाना चाहिए? जानवरों के व्यवहार से भी परिचित कराते हुए ये बताया गया है कि जानवरों से डर लगने या उन्हें पसंद न करने पर भी मारना नहीं चाहिए। क्योंकि आम तौर पर जानवर हमें तब तक नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, जब तक कि वे हमसे खतरा महसूस नहीं करते। गर्मी के महीने में पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करने हेतु बर्डबाथ बनवाना।

·       पीका-बू (छुपम-छुपाई), अंताक्षरी, सांप-सीढ़ी, पिट्टुल जैसे स्थानीय, पारंपरिक खेल जिससे लगभग सभी बच्चे परिचित होते हैं, को शामिल किया गया है, ताकि बच्चे स्वयं को उससे जोड़ कर कही जा रही बातों को समझ सकें।

·       किसी अवधारणा पर कार्य करने के बाद दिया गया अभ्यास कार्य समझ व स्मरण आधारित होने के साथ-साथ स्वतंत्र चिंतन या व्यक्तिगत अनुभव व्यक्त करने से संबंधित है।

·       पाठ्यपुस्तक को इतनी बेहतरीन तरीके से बनाया गया है कि संबंधित अवधारणा पर समझ बनाने में अलग से कार्यपत्रक के उपयोग की आवश्यकता महसूस नहीं होती है।

·       एक अवधारणा पर समझ बनाने के बाद उनसे संबंधित कुछ स्वतंत्र चिंतन करने वाले कुछ सवाल दिए गए हैं, उसपर कार्य कर समझ बनाने के बाद आगे की अवधारणा से परिचित कराया गया है। 

·       ऐसे वाक्य प्रयुक्त किए गए हैं जो लैंगिक विषमता को पाटने का कार्य करता है जैसे – मेरे माता पिता घर की सफाई और खाना पकाने से लेकर बाजार के सभी कामों में एक दूसरे की सहायता करते हैं। रवि भैया सब्जियों को साफ करके काटने में सहायता करते हैं। (अध्याय 1, पृष्ठ 10)

·       प्रत्येक अध्याय में गणितीय दक्षता से संबंधित प्रश्न भी शामिल किए गए हैं- जैसे – आपके परिवार में उम्र में सबसे बड़ा व्यक्ति कौन है? आपके परिवार में उम्र में सबसे छोटा व्यक्ति कौन है? आपके परिवार में सबसे लंबा व्यक्ति कौन है? (अध्याय 1, पृष्ठ 12)

·       चित्र पठन, समझ के साथ चिंतन करते हुए लेखन करने से संबंधित गतिविधियां प्रत्येक पाठ में देखने को मिलती है।

·       प्रत्येक अध्याय में आसान से लगने वाले चित्र बनाने की गतिविधियां इस ओर इशारा करती है कि बच्चों के रचनात्मक विकास पर भी गहराई से कार्य किया जा रहा है।

·       FLN स्तर के बच्चों को भी ध्यान में रखते हुए उनके लिए डिकोडिंग व बौद्धिक विकास से संबंधित सवाल (वर्ग पहेली) रखे गए हैं। 

·       संबंधित अवधारणाओं पर बेहतर समझ बनाने के लिए रोल प्ले (नाटकीय रूपांतरण) जैसे शिक्षण विधि को भी शामिल किया गया है। (अध्याय 2 पृष्ठ 32)

·       मौखिक भाषा विकास हेतु चर्चा किए जा रहे विषय से संबंधित बालगीत, कहानी को भी शामिल किया गया है। जैसे अध्याय 3 में शामिल किया गया बालगीत ‘वसंत ऋतु’। अध्ययन आठ में भोजन की महत्ता को दिखाने के लिए ‘शशि की कहानी – धावक’ नामक कहानी का उपयोग किया गया है।

·       आगे की कक्षा में मानचित्र के घटकों (दिशा, संकेत चिन्ह) की ओर ले जाने हेतु पृष्ठभूमि तैयार की गई है। (अध्याय 3 पृष्ठ 43)

पाठ्यपुस्तक के उपरोक्त विशेषताओं के अतिरिक्त कुछ ऐसे भी कमियाँ देखने को मिली जो ये यदि सम्मिलित होते तो पाठ्यपुस्तक की समृद्धि को बढ़ा रहे होते।

·       ‘त्योहार मनाएं एक साथ’ पाठ में भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में वसंत ऋतु से संबंधित त्योहार मनाए जाने की बात आई है, आकलन खंड में विभिन्न क्षेत्र व धर्मों से संबंधित त्योहारों या धार्मिक आयोजनों (जैसे क्रिसमस, ईद उल फ़ितर, छठ पूजा आदि) को शामिल किया गया है। इसी आधार पर इसके पूर्व के अध्याय में मेला का जिक्र करते हुए कुंभ को शामिल किया गया है। ईद के अवसर पर ईदगाह में लगने वाले मेले का भी यदि वहाँ उल्लेख किया जाता तो इस्लाम धर्म मानने वाले बच्चे भी मेले की अवधारणा से जुड़ पाते।

·       पूरे पाठ्यपुस्तक में एक ही धर्म केंद्रित पात्रों के नाम को शामिल किया गया है। पाठ्यपुस्तक को समावेशी बनाने के लिए अन्य धर्मों से संबंधित लोगों के नाम को शामिल किया जा सकता था। उदाहरण के लिए एक अध्याय में यदि बेला का नाम आ रहा है तो अगले अध्याय में शबाना, जॉन, अब्दुल जैसे नाम का भी जिक्र किया जा सकता था।

·       अध्याय 3 त्योहार मनाएं एक साथ में गतिविधि 1 को शामिल करने का लॉजिक समझ नहीं आया। (पेज 36) इस गतिविधि से संबंधित चर्चा इस अध्याय में नहीं की गई है।

·       तीसरे अध्याय में ऐसे ऐसे व्यंजनों का नाम (होलिगे, सद्दा) शामिल किया गया है जिसके बारे में बच्चों को बता पाने में बहुत ही मुश्किल होगी कि इसका संबंध किस त्योहार से है? 

नउम्मीद है कि नए कलेवर में लाया गया यह पाठ्यपुस्तक बच्चों में 21 वीं सदी के कौशल को विकसित करने में सहायक होगा। 



Saturday, 28 June 2025

दांगी युवा शक्ति द्वारा दांगी समाज के प्रतिभाओं को किया गया सम्मानित

दांगी समाज को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयत्नशील एवं प्रतिबद्ध जमुई  (बिहार) में जमीनी स्तर पर कार्यरत सामाजिक संगठन ‘दांगी युवा शक्ति’ द्वारा दिनांक 22 जून 2025 दिन रविवार को ‘सम्राट अशोक प्रतिभा सम्मान सह शिक्षा सेमिनार समारोह – 2025’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में 10वीं एवं 12वीं कक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले जमुई जिले के छात्र-छात्राओं को शील्ड, मेडल आदि देकर सम्मानित किया गया। जमुई नगर स्थित द्वारिका विवाह भवन में आयोजित इस समारोह में जिले के कोने-कोने से आए हज़ारों लोगों ने सहभागिता की।

ज्ञात हो कि आज से 10 वर्ष पूर्व 2015 में जमुई के कुछ युवाओं ने मिलकर एक स्वप्न देखा था कि सैकड़ों/हज़ारों वर्ष से पिछड़े समाज के रूप में गिने जाने वाले दांगी जाति एवं इसके युवाओं को आगे बढ़ाने के लिए, समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए कुछ सम्मिलित प्रयास किए जाएं। आखिर कब तक हम पिछड़े समाज होने का तमगा ढोते रहेंगे, अब हमें अपने दांगी समाज को जागृत एवं विकसित समाज के रूप में स्थापित करना है। उन युवाओं ने इस स्वप्न को साकार करने के लिए 2015 में ‘दांगी युवा शक्ति’ के नाम से एक संगठन बनाया और इसी के बैनर तले कुछ छोटे-बड़े कार्यक्रम आयोजित करना प्रारंभ किये।  

संगठन का पहला प्रयास था - जमुई नगर स्थित दांगी छात्रावास की व्यवस्था को सुधारने का, उसका जीर्णोद्धार करने का। इस बात को ध्यान में रखते हुए कि 10वीं, 12वीं, स्नातक, स्नातकोत्तर कक्षा पास करने के पश्चात दांगी युवा वहाँ रहकर अपना भविष्य संवार रहे होते हैं, छात्रावास में उनकी मूलभूत आवश्यकता जैसे पेयजल, शौचालय, स्वच्छ हवादार कमरे, पुस्तकालय आदि पर विशेष रूप से ध्यान देते हुए भवन से लेकर कई प्रकार की आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध करवाया गया। इसी क्रम में समाज के लोगों को संगठित करने के लिए वनभोज कार्यक्रम, होली मिलन समारोह का आयोजन हो रहा है। जिसमें प्रति वर्ष एक बार सैकड़ों की संख्या में शामिल होकर लोग एक जगह बैठकर एक दूसरे से घुलते मिलते हुए अप्रत्यक्ष रूप से संगठित होकर रहने का संदेश दे रहे हैं। 

इसी कड़ी में एक कदम आगे बढ़ते हुए दांगी युवा शक्ति ने वर्ष 2019 से लगातार शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले विशेष रूप से 10वीं एवं 12वीं कक्षा में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण होने वाले, सरकारी, गैर सरकारी क्षेत्रों में अपने अथक मेहनत से नौकरी प्राप्त करने वाले युवा-युवतिओं को सम्मानित कर, उनका हौसला बढ़ाकर उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने का हरसंभव लगातार प्रयास किया जा रहा है। युवा प्रतिभाओं को निखरने का पर्याप्त मौका मिले इसका भी ध्यान रखते हुए शिक्षा सेमिनार को इस सम्मान कार्यक्रम का एक अनिवार्य हिस्सा बनाया गया। दांगी समाज के ही मोटिवेशनल स्पीकर श्री अनुराग दांगी पिछले 6 साल से लगातार समाज के युवाओं को मार्गदर्शित करने का कार्य करते रहे हैं। इसी कड़ी में इस वर्ष 2025 में भी ‘दांगी युवा शक्ति’ द्वारा लगातार छठवीं बार प्रतिभा सम्मान समारोह सह शिक्षा सेमिनार का आयोजन किया गया। 

कार्यक्रम को सफल बनाने में पूरे समाज का योगदान रहा।  संगठन से जुड़े ऊर्जावान कार्यकर्ताओं ने दांगी समाज के लोगों से इस नेक कार्य में सहयोग करने की अपील की गई, जिसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला। जमुई जिले में निवासरत दांगी बंधुओं के साथ-साथ देश के अलग-अलग राज्यों में सरकारी, गैर सरकारी क्षेत्र में अपनी सेवाएं देने वाले सैकड़ों युवाओं ने कार्यक्रम के सफल संचालन हेतु आर्थिक सहयोग किया।  

पिछले वर्ष शुरू की गई परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इस वर्ष भी दीप प्रज्वलित करने के स्थान पर वृक्षारोपण कर कार्यक्रम की शुरुआत की गई। इस शुरुआत के माध्यम से अधिक से अधिक पेड़ लगाने एवं बचाने का प्रत्यक्ष सन्देश समाज एवं पूरी दुनिया को दिया गया। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए दांगी समाज के लोगों ने शिक्षा एवं संगठन के मजबूती पर अपनी-अपनी राय रखी। इसके बाद मोटीवेशनल स्पीकर अनुराग दांगी ने उपस्थित दाँगी युवाओं को जीवन में सफल होने के सूत्रों से परिचित कराया। अनुराग दांगी ने युवाओं से एआई (आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस) के उपयोग से अपने जीवन जीने के तरीके, पढ़ाई-लिखाई, प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी को आसान करने के तरीकों को अपनी पुस्तक ‘एआई ब्रह्मास्त्र’ का जिक्र करते हुए उनका ज्ञानवर्द्धन किया। इसके पश्चात उन्होंने टाइम मैनेजमेंट स्किल पर युवाओं को जागरूक करते हुए अनुशासनपूर्ण जीवन जीने के तरीके से परिचित कराया। युवाओं को उन्होंने मोटिवेट किया कि वर्तमान समय में जीवन में कुछ अच्छा करने के लिए पढ़ाई के साथ-साथ आजीविका कमाने के लिए युवाओं को अपने अंदर आवश्यक कौशल विकसित करने चाहिए। उचित समय प्रबन्धन द्वारा ही युवा अपने अंदर ये कौशल विकसित कर सकते हैं। साथ ही युवाओं को यह भी संदेश दिया कि सरकारी नौकरी प्राप्त करने की दिशा में बढ़ने के साथ-साथ खुद में ऐसे कौशल भी विकसित करें जो रोजगार प्राप्ति में सहायक हो। मातृभाषा हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी को भी आत्मसात करने की अपील उन्होंने युवाओं से की ताकि वर्तमान समय के साथ युवा कदमताल कर सके।  

उपस्थित सभी लोग बहुत ही गौर से इनकी बातों को सुन रहे थे। कक्षा दसवीं के उन 10-10 छात्र एवं छात्राओं को सील्ड देकर सम्मानित किया गया जिन्होंने इस परीक्षा को प्रथम दर्जे के साथ पास करने के साथ-साथ 70% से अधिक अंक हासिल किया। इसके पश्चात 50 से अधिक छात्र-छात्राओं को प्रथम दर्जे से पास करने के लिए मेडल देकर सम्मानित किया गया। इसी कड़ी में कक्षा बारहवीं के 10-10 छात्र एवं छात्राओं को शील्ड देकर सम्मानित किया गया, जिन्होंने 12वीं बोर्ड की परीक्षा को 70% से अधिक अंकों के साथ पास किया। एवं 50 से अधिक छात्र एवं छात्राओं को प्रथम दर्जे से पास करने के लिए मेडल देकर सम्मानित किया गया। इसी क्रम में वर्ष 2024 -25 में अपने अथक प्रयास से प्रतियोगिता परीक्षा पास करते हुए सरकारी एवं गैर सरकारी क्षेत्र की सेवाओं में योगदान देने वाले 30 से अधिक युवा-युवतिओं को शील्ड देकर ‘दांगी गौरव सम्मान’ से सम्मानित किया गया। 

इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में चिनवेरिया ग्राम निवासी राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त श्री अर्जुन मंडल, समाजसेवी रवींद्र मंडल, मौजूद थे। साथ ही इस एक दिवसीय कार्यक्रम में दांगी समाज के डॉ. शशिभूषण, वरिष्ठ कॉंग्रेस नेता सुबोध मंडल, डॉ रंजीत कुमार, श्री गोपाल मंडल, श्री शतेंद्र मंडल, श्री प्रदीप कुमार, श्री नागेंद्र नाथ, श्री जंग बहादुर सिंह, श्री निरंजन मंडल, श्री बरुण कुमार, श्री अरुण मंडल, श्री उमेश चंद्र मंडल, डॉ धर्मेंद्र मंडल(आयुर्वेदिक चिकित्सा पदाधिकारी), श्री पुरुषोत्तम चंद्रा, श्री कुमार मुकेश, श्री योगेश कुमार, श्री राजीव नयन एवं सैकड़ों समाज के गणमान्य लोग इस ऐतिहासिक कार्यक्रम का हिस्सा बने।  

पूरे कार्यक्रम को संचालित करने में दांगी युवा शक्ति के सहयोगी अजित कुमार, राजेश कुमार, चंद्रशेखर कुमार, अवध बिहारी, अरुण कुमार, आदित्य कुमार, नवीन कुमार, प्रेम सिंह दांगी, रुपेश कुमार, बलराम कुमार, राजीव कुमार आदि ने योगदान दिया।



Monday, 23 June 2025

बायकॉट बॉलीवुड : कितना सार्थक?

अपने विचारों को लाखों करोड़ों लोगों तक पहुंचने के लिए वर्तमान समय में सोशल मीडिया एक सशक्त माध्यम बनता जा रहा है। फेसबुक व्हाट्सएप ट्विटर (वर्तमान X) पर अपने फॉलोवर बढ़ाओ, अपने विचार प्रेषित करो और लाखों करोड़ों लोगों तक इसे फैला दो। वरदान के साथ-साथ यह प्रगति अभिशाप भी है। पिछले कुछ वर्षों में हमारे देश की एक अग्रणी फ़िल्म इंडस्ट्री ‘बॉलीवुड’ के बहिष्कार करने का ट्रेंड बनाया जा रहा है। प्रसिद्ध एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के बाद कंगना रनौत से लेकर अलग-अलग लोगों के द्वारा ‘नेपोटिज़्मपर विमर्श करने के पश्चात् ‘बॉयकॉट बॉलीवुड’ का ट्रेंड कुछ ज्यादा ही विस्तृत हो गया है। नेपोटिज़्म की आड़ में रणबीर कपूर, हृतिक रोशन, आलिया भट्ट, और स्टारकिड होने के नाते इन्हें लगातार अपनी फिल्मों में मौके देने वाले करण जौहर से लेकर उन सभी स्टार किड्स वो भी घसीटा गया जिन्होंने अपनी अभिनय दक्षता से लोगों के दिलो-दिमाग में एक अमिट छाप छोड़ते हुए फिल्मी दुनिया में अपना एक अलग मुकाम हासिल किया।

इनके साथ-साथ इन बायकॉट गैंग के शिकार बने पिछले तीन दशक से बॉलीवुड के साथ-साथ हिंदी फ़िल्म को देश-विदेश तक पहचान दिलाने में एक महत्वपूर्ण योगदान देने वाले खान तिकड़ी (शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान)। आमिर खान की फ़िल्म लाल सिंह चड्ढा की रिलीज के दौरान बायकॉट बॉलीवुड गैंग कुछ ज्यादा ही सक्रिय दिखे। आमिर खान की यह फ़िल्म एक हॉलीवुड फ़िल्म की रीमेक थी, जिसे दर्शक ओटीटी प्लैटफॉर्म पर पहले ही देख चूके थे। जिससे कि दर्शकों को थिएटर की ओर खींचने में यह फ़िल्म सफल नहीं रही। हालांकि यह झूठ फैलाने में बॉयकॉट बॉलीवुड गैंग जरूर सफल रहे कि हमारे प्रयास से आमिर खान की फ़िल्म फ्लॉप हो गयी। झूठ इस सेंस में कहा जा सकता है कि इसी गैंग ने कंगना रनौत की धाकड, तेजस से लेकर इमर्जेन्सी फिल्मों के लिए खूब फील्डिंग की, लेकिन ये सभी फ़िल्में दर्शक मिलने के लिए तरसती रही। इससे यह साबित हो गया कि किसी फ़िल्म के चलने या ना चलने का बॉयकॉट बॉलीवुड गैंग से किसी प्रकार का लेना देना नहीं है। दर्शकों को जिस फ़िल्म में मनोरंजन मिलेगा, कहानी से लेकर अभिनय अच्छी मिलेंगी उसे वे देखने जाएंगे ही। आप कितना भी बायकॉट बायकॉट चिल्ला लीजिए। शाहरुख खान की फ़िल्म पठान और जवान ने इसे साबित कर दिखाया।

मजेदार बात यह है कि कंगना रनौत, विवेक अग्निहोत्री, अनुपम खेर आदि की फ़िल्में बॉलीवुड की धरती पर ही निर्मित होती हैं। लेकिन इस दौरान यह गैंग चूहे के बिल में घुसे नजर आएँगे। इसका सीधा सा मतलब निकलता है कि इनकी नजर बॉलीवुड में अपनी योग्यता से पैर जमाए मुस्लिम अभिनेताओं के फिल्मों के बॉयकॉट करने पर केवल होती है। चाहे वो समाज को एक अच्छा संदेश देने वाला ही क्यों न हो? इन्हें सांप सूंघ जाता है जब 'ओ माई गॉड' फ़िल्म की बात आती है। क्योंकि उसमें इनकी सोच को ओछी साबित करने वाला नायक (परेश रावल) इनके धर्म से संबंधित है। P K फ़िल्म का नायक मुस्लिम है इसलिए उसपर ही हमला करना है।

अलग अलग नाम से प्रोफाइल बनाते हुए बॉयकॉट बॉलीवुड का ट्रेंड चलाने वाले लोगो के फेसबुक वॉल पर पी के फ़िल्म का वह सीन अक्सर देख जाता है जिसमे पी के शिव का वेश धरे एक थियेटरकर्मी को परेशान कर रहे होते हैं। वे इसे हिंदू आस्था पर हमला कहते हुए आमिर खान को गन्दी गन्दी गालियाँ दे रहे होते हैं। आखिर इसमें आमिर खान का क्या कसूर? आमिर खान तो केवल उस स्क्रिप्ट को अभिनय के माध्यम से प्रदर्शित या जीवंत कर रहे होते हैं, जिसे फ़िल्म के लेखक एवं डायरेक्टर ने जीवंत करने की जिम्मेदारी दी है। हैरत की बात यह है कि ऐसा अभिनय करने के लिए आमिर खान को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है लेकिन पीके फ़िल्म की कहानी लिखने वाले लेखक राजकुमार हीरानी या अभिजीत जोशी को कुछ नहीं बोलते। क्योंकि लेखक हिंदू धर्म से संबंधित है। इन ‘बायकॉट बॉलीवुड गैंग’ वालों को यह लगता है कि बॉलीवुड अब हिंदू धर्म की महत्ता को दिखानेवाले फ़िल्में नहीं बनाते हैं बल्कि उनका अपमान करने से संबंधित फिल्मों को बनाने पर ज़्यादा ज़ोर देते हैं। ‘बायकॉट बॉलीवुड गैंग’ इस बात को भूल जाते हैं, या शायद उन्हें यह जानकारी ही नहीं हो कि बॉलीवुड का ये बायकॉट करते हैं उसी बॉलीवुड ने शुरुआत से लेकर आज तक हजारों की संख्या में भगवान की भक्ति की चाशनी में डुबाने वाले फिल्में भी दी है। जय संतोषी माँ फ़िल्म के बाद एक काल्पनिक देवी के आपको देशभर में लाखों मंदिर देखने को मिल जाएंगे। जय माँ वैष्णो देवी फ़िल्म आने के बाद वैष्णो देवी यात्रियों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई।

इन्हें इस बात का ज्ञान नहीं है कि समय के साथ  फ़िल्म बनाने के ट्रेंड्स परिवर्तित होते रहे हैं, दर्शकों द्वारा कभी भक्ति फ़िल्में पसंद की जाती थी, उस समय की फ़िल्में ऐसी बनी। फिर पारिवारिक प्रेम केंद्रित फ़िल्में बनीं, इसी तरह प्रेम कहानी में सुखद अंत वाली फ़िल्में आईं, डाकुओं पर केंद्रित फ़िल्में आई। और भी अनगिनत ट्रेंड देखने को मिलते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक लोगों के दिलोदिमाग पर अंधविश्वास हावी था तब तक अंधविश्वास में डुबाने वाली फिल्में बनी। जब आम लोगों के साथ-साथ फिल्मों की पटकथा  लिखने वाले लेखक तार्किक सोच वाले बने तब से फ़िल्म बनाने के ट्रेंड में बदलाव आया। हॉलीवुड फ़िल्मों के साइंस फ्रिक्शन फिल्मों में रुचि लेने वाले लोगों को यदि बॉलीवुड फ़िल्म देखने की और लुभाना है, तो उसे कुछ ना कुछ यह बहुत कुछ साइंस फ्रिक्शन या तार्किक चीजों को अपनी फ़िल्म में स्थान देना पड़ेगा।  

Pk फ़िल्म को ही देखें तो बहुत ही तार्किक बातों पर आधारित यह फ़िल्म थी। लेकिन बॉयकॉट बॉलीवुड गैंग को यह फूटी आंख नहीं सुहाती, उन्हें तो वही अंधविश्वास में डूबी, अंधविश्वास परोसती फ़िल्में ही पसंद आती है। केवल अंधविश्वासियों, और जिनकी दुकान अंधविश्वास के भरोसे चलती है उसी को बॉलीवुड के इस trend से मिर्ची लगती है।

2 दिन पूर्व ही आमिर खान की नई फ़िल्म ‘सितारे जमीन पर’ रिलीज हुआ है। गैंग पूरी तरह सक्रिय है ‘बॉयकॉट बॉलीवुड’ ट्रेंड चलाने के लिए। उम्मीद करते हैं फ़िल्म अच्छी हो, अच्छी कमाई करते हुए इन धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोगों के मुँह काला करें।